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जादूगर कालिया


जादूगर कालिया
    बहुत समय पहले कि बात है एक राजा थे। जिसके पास उनकी सात पुत्रीयाँ थी, वे सब बहुत सुन्दर और अच्छी लड़कियाँ थी। लेकिन जो सबसे छोटी पुत्री थी जिसका नाम सुनयना था। वह अपनी सभी बहनों में बहुत ही अधिक चालाक और समझदार थी। राजा की पत्नी का जब मृत्यु हुई, तब वह सब बहने बहुत छोटी थी। इस तरह से इन बेचारी सात राजकुमारि लड़कियों कि देखभाल की जिम्मेदारी राजा के कन्धों पर आगई थी। उनकी देखभाल करने वाली उनकी कोई माँ नहीं थी।
राजा की पुत्रीयाँ आगे चल कर राजा के लिये भोजन बनाने का कार्य करने लगी ,और हर दिन वहीं राजा के लिये भोजन बना कर देते थी। तब भी जब राजा अपने मंत्रीयों के साथ महल से बाहर होता देश के किसी कार्य के लिये।


लगभग इसी समय देश के प्रधान सेवक की मृत्यु हो गई, अपने पिछे उसने पत्नी के साथ एक छोटी लड़की को छोड़ गया इस संसार में, जब राजा की सात लड़किया अपने पिता के लिये भोजन को तैयार कर रही थी, उसी समय प्रधान कि विधवा पत्नी और उसकी पुत्री इन राजा कि लड़कियों के पास आई, थोड़ी-सी आग को मागने के लिये इनके चुल्हे से। सुनयना ने अपनी बहनो से कहा कि इस औरत को यहाँ से भगा दो और इससे कहो की यह अपने घर में आग को स्वयं पैदा करे। यह हम सब से क्या मांगने के लिये रोज हमारे यहाँ पर चली आती है, अगर हमने यहाँ इसे रोज आने की आज्ञा दे दी, तो यह हमारे लिये ज़रूर किसी मुसिबत का कारण बनेगी किसी एक दिन।
लेकिन सुनयना की दूसरी बहनों ने सुनयना से कहा कि शान्त रहो, आखिर तुम अक्सर इस वेचारी विधवा औरत से क्यों लड़ती और झगड़ती रहती है? इसके साथ इसको भला बुरा भी कहती हो इस वेचारी का कसुर हि क्या हैं? केवल हमारें यहाँ आकर हमारे चुल्हे से थोड़ी-सी आग ही तो मांगती है। अब इसे थोड़ी-सी आग दे भी दो, इस तरह से प्रधान कि विधवा पत्नी रोज राजा कि रशोई में आग लेने के लिये आने लगी और वहाँ से कुछ जलती हुई लकड़िया ले लेकर अपने घर ले जाती और जब कोई उसको देखने वाला रशोंई में नहीं होता था। तो वह विधवा औरत बहुत जल्दी-जल्दी राजा के लिये तैयार भोजन में राख को मिला देती थी।
अब जब राजा अपनी पुत्रीयों को बहुत अधिक प्रेम करता था, उसकी पत्नी के मरने के बाद, यह उसकी लड़किया ही उसके लिये भोजन तैयार अपने हाथों से करती थी। जिससे राजा को ऐसा कोई खतरा नहीं महशुष हुआ कि उसके भोजन में किसी प्रकार का जहर मिलाया गया है। लेकिन जब राजा ने अपने खाने के भोजन में राख को मिला पाया तो उसने विचार किया यह अवश्य उन लड़कियों के लापरवाही के कारण ही भोजन में राख मिल गई है। ऐसा नहीं है कि किसी ने अपने किसी कुरुप मकसद को साधने के लिये हमारे भोजन में राख को मिलाया है, राजा यह विचार करने लगा कि यह कैसे हुआ? यद्यपी राजा स्वंय बहुत अधिक उदार और अपनी पुत्रीयों के प्रती दयालु प्रकृती का व्यक्ती था। इसलिये वह उन्हें किसी प्रकार कि सजा इसके लिये नहीं देना चाहता था। यद्यपि करी की खराब स्थिति को कई दिनों से दोहराया जा रहा था।
अंत में राजा ने निर्णया किया, कि वह छुप कर देखेगा अपनी पुत्रियों को अपना भोजन बनाते हुए, कि यह सब कैसे और क्यों रोज ही हो रहा है? इस लिये राजा अपने दूसरे कमरे में गया और वह अपनी पुत्रियों को खाना बनाते हुए दिवाल के गुप्त झरोखे से, उन लड़कियों को छुपकर खाना बनाते हुए देखने लगा, और उसने देखा कि उसकी सात लड़किया सावधानी से चावल को धोया और बड़ी स्वच्छता से करी को तैयार कर रही हैं। और जैसे ही सभी प्रकार के भोजन बन कर तैयार हो गये, तो उनको स्वच्छता के साथ चूल्हे से दूर हटा कर रख दिया। आगे राजा ने देखा कि प्रधान कि विधवा पत्नी आग जलाने के लिये कुछ लकड़िया मांगने के लिये आई, अपने भोजन को पकाने के लिये। तभी सुनयना उस पर क्रोधित हो कर उससे कहा कि तुम अपने घर में क्यों नहीं जलाने का इधन रखती हो? और रोज हमारे यहाँ हमारी वस्तुओं को मत मांगने के लिये इस तरह से चली आया करो, तुमको थोड़ी भी शर्म नहीं लगती है, जब देखो तब मुह उठाये चली आती है कुछ ना कुछ मांगने के लिये।
फिर सुनयना कि दूसरी बहनो ने सुनयना से कहा कि चलो दे भी दो कुछ लकड़िया और आग, वेचारी और कमजोर इस औरत को, यह हम सब को किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहंचा सकती है। लेकिन सुनयना ने उत्तर में कहा अगर तुम सब इसको रोज हमारे यहाँ आने के लिये इजाजत देती रहोगी और रोज किसी ना किसी वस्तु को देती रहोगी, तो यह एक दिन हमारे लिये किसी भयानक समस्या को पैदा कर देगी और तब हम सब को इसके लिये दुःख को सहना पड़ेगा।
जब राजा ने प्रधान की विधवा पत्नी को देखा कि वह लकड़ियों को लेने के बाद प्रत्येक खाद्य पदार्थ में थोड़ो थोड़ा करके सभी भोजन में, जो उसकी पुत्रियों के द्वारा अच्छे और सुन्दर तरिके से तैयार किये गये थे उनमें राख मिला रही है।
इस पर राजा बहुत अधिक क्रोधित हुआ और उसने अपने आदमियों को उसे पकड़ने के लिये भेजा और कहा कि उसको मेरे सामने प्रस्तुत करो सिघ्र ही। लेकिन जब विधवा आई, तो उसने कहा कि वह एक खेल-खेल रही थी उसको ऐसा करते हुए कोई देखता है कि नहीं और उसने बड़ी चालाकी और धुर्तता पूर्ण कलाबाजी से युक्त अपने शौभाग्य और उत्थान के लिये राजा की प्रशंशा में अद्भुत शब्दों में यशोगान को गया, जिसके परिणाम स्वरूप राजा उस पर अत्यधिक प्रसन्न और काम से मोहित हो कर उसको दण्ड देने के स्थान पर उसे अपनी रानी बनाने का निर्णय कर लेता है और इस तरह से उससे वह विवाह कर लेता है और वह विधवा अपनी-अपनी पुत्री के साथ राजा के महल में ही रहने लगती है।
अब रानी राजा कि पहली पत्नी से उत्पन्न सात लड़कियों से बहुत अधिक नफरत और घ्रिणा करने लगी और वह चाहती थी कि किसी प्रकार से इनको इस महल से बाहर किया जाये, जिसके लिये वह नयें नये तिकड़म रचने लगी और वह विचार करने लगी कि जैसे भी संभव हो, किसी भी तरह से इनको यहाँ से भगा देने के बाद राजा का सारा धन और संपदा के साथ सभी प्रकार का ऐश्वर्य केवल उसकी एक पुत्री का ही होगा। और मेरी पुत्री उनके स्थान पर राजकुमारी के रूप में इस महल में रहेगी। इसके बजाय कि उसको राजा की पुत्रियों के प्रती करुणा, दया, प्रेम से युक्त व्यवहार करना चाहिये, यद्यपी वह हर प्रकार से केवल राजा कि सात पुत्रियों को प्रताणित और दुःखी करने वाले हि सारे कार्यों को करने लगी थी। इस तरह से उसने राजा कि सात पुत्रीयों के खाने पिने पर प्रतिबंध लगा दिया, और वह उनको बहुत कम खाने के लिये खाना और पिने के लिये बहुत कम पानी दिया करती थी। इस तरह से सातों बहनों पर हर प्रकार से दुःखों का ही श्रोत खुल रहा था। और इसके विपरित जो प्रधान के द्वारा उत्पन्न रानी की एक छोटी पुत्री थी। उसके लिये हर प्रकार कि सब ऐश्वर्य पूर्ण वस्तुओं को उपस्थित किया जाने लगा महल में रानी की आज्ञा से, और उसे राजकुमारी की तरह से आरामदायक जीवन जीने के लिये, हर तरह से उसकी माँ ने उसको प्रोत्साहित किया और अपनी पुत्री के लिये रानी ने अच्छे-अच्छे खाद्य पदार्थ, अच्छे-अच्छे कपड़े हर प्रकार की वस्तुओं का संग्रह करने लगी। और राजा कि पहली पत्नी से उत्पन्न सात पुत्रियों को सभी प्रकार कि वस्तुओं से वंचित कर दिया गया। वह सभी बहने बहुत दुःखी उदाश और अत्यधिक परेशान रहने लगी। उनको समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि वह क्या करें? इस तरह से वह सात बहने दुःखी हो कर महल से बाहर रोज जाकर अपनी माँ कि समाधि पर रोया करती थी, और इस प्रकार से कहा करती थी माँ ओ माँ क्या तुम अपनी वेसहारा, लाचार, वेवश पुत्रियों को नहीं देख सकती हो, हम सब कितने अधिक अप्रसन्न और दुःखी है? और हम सब कैसे भुखे प्यासे रह सकते है? इस क्रुर निर्दय सौतेलि माँ के साथ।
एक दिन जब वह सब एक साथ अपनी माँ की कब्र पर बैठ कर रोने के साथ शिशकियाँ भर रही थी और तभी उन्होंनें देखा कि एक उनकी माँ के समाधि स्थल के पास ही एक बहुत सुन्दर अनार का वृक्ष उत्तपन्न हो गया। और पुरी तरह से ताजे पके हुए सुन्दर स्वादिष्ट फलो से लद गया और इस तरह से सभी बच्चों ने अपनी भुख को पके फलों को खा कर शान्त किया। और हर रोज जब उनकी सौतेली माँ उनको खाने के लिये पर्याप्त भोजन नहीं देती थी, तो वह सब अपनी माँ के इस कब्र पर आकर इसी तरह से फलों को खां कर अपनी भुख को शान्त कर लिया करती थी। आगे चल कर उन सब बहनों ने अपनी सौतेली माँ के द्वारा दिया गया घटिया भोजन भी खाना बन्द कर दिया। और केवल अनार के फलो को खाकर ही जीवीत रहने लगी, क्योंकि वह अनार का पेड़ अद्भूत था जितना अधिक फलो को तोड़ा जाता था, उससे अधिक पके हुए स्वादिष्ट फल अगले दिन लग जाते थे, जो उन बहनो के लिये पर्याप्त भोजन के समान कार्य करते थे।
उन सब सात बहनो की सौतेली माँ ने जब देखा कि वह जब भी भोजन के लिये कहती है, उन सात बहनो को और वह सब खाने के लिये मना करने देती है, जब ऐसा ही कई दिनो तक चलने लगा, तो उसको बड़ी चिन्ता होने लगी, उसने अपनी पुत्री को बुलाया और कहा कि यह सात लड़किया खाना पिना कुछ भी महल में नहीं करती है, इसके विपरित यह सब स्वस्थ और सुन्दर है इनको कोई विमारी भी नहीं है, इनके शरीर पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, यह तो तुम से भी अधिक सुन्दर और आकर्षण दिखती है। मैं नहीं जानती कि ऐसा कैसे हो रहा है? इन सब राजकुमारियों के साथ, तुम जा कर देखा करों छुप कर कि कोई इन सबको खाने पिने के लिये तो नहीं देता है।
इस तरह से जब सात राजकुमारिया अपनी माँ कि समाधि पर गई और वहाँ सुन्दर और स्वादिष्ट अनार के पके फलो को खा रही थी, इनके पिछा करते हुए प्रधान कि पुत्री भी वहाँ पहूंच गई। और उसने देखा कि यह सब अनार के पके हुए फलो को एकत्रित कर रही थी।
तभी सुनयना ने उसको देख कर अपनी दूसरी बहनो को सम्बोधित करते हुए कहा कि क्या तुम सब नहीं देख रही हो? कि यह लड़की हम सब का पिछा कर रही है और हम सब को देख रही है। आवो हम सब मिल कर इसको यहाँ से भगा देते है, या इन सब अनार के फलों को छुपा देते है। अन्यथा यह यहाँ से जायेगी और हम सब के बारे में सब कुछ अपनी माँ से कह देगी, और इसके बाद हमारे साथ जो भी होगा वह वहुत अधिक बुरा और दुःखदाई होगा।
लेकिन सुनयना कि दूसरी बहनों ने कहा नहीं-नहीं सुनयना तुम इतना अधिक इस निर्दोष लड़की के प्रती निर्दई मत बनो, यह लड़की इतनी अधिक निर्दई और क्रुर स्वाभाव कि नहीं है, जो यहाँ से जा कर सब कुछ अपनी माँ से कह देगी। आवो हम सब उसको अपने पास बुलाते है और उसको भी खाने के लिये कुछ स्वादिष्ट फलो को देते है। और उन सब ने उस प्रधना की पुत्री को अपने पास बुलाया, और उसको खाने के लिये एक अनार का फल दे दिया।
प्रधान की पुत्री ने धिरे-धिरे उस अनार के फल को खाते हुए, अपनी माँ के पास महल में गई, और अपनी माँ से कहा कि मुझे कोई आश्चर्य नहीं है, इस पर कि वह सात बहने खाना नहीं खाती है। जो महल में उनके लिये तैयार किया जाता है। क्योंकि उनकी माँ के द्वारा रोज उनको पके हुए स्वादिष्ट अनार का फल खाने के लिये दिया जाता है। और इसी लिये वह सभी बहने रोज अपनी माँ की कब्र पर जाती है। और अनार के फलो को खाती है, मैंने भी उसमें से एक फल खाया था जो अती सुन्दर और अद्भुत था ऐसा फल जो मैने कभी अपने जीवन में नहीं खाया था।
यह सब सुन कर वह क्रुर रानी बहुत अधिक दुःखी और परेशान हो गई, अगले दिन उसने अपना पुरा समय अपने कमरे में ही विताया, और राजा से कहा कि उसके सर में बहुत बुरी तरह से दर्द हो रहा है। राजा अपने अन्दर बहुत अधिक गहराई से दुःखी और उदास हो गया। और उसने कहा कि बताओ मेरी जान मैं तुम्हारे लिये क्या कर सकता हूँ? उसने उत्तर में कहा केवल एक ही वस्तु है जो मुझे इस सर दर्द से मुक्त कर सकती है। वह यह है कि जो तुम्हारी पहली पत्नी कि समाधि है वहाँ पर एक अनार का सुन्दर वृक्ष उगा है, उसको उखाड़ कर जड़ और उसके तने के साथ पत्तों को थोड़े पानी में उबाल कर मेरे सर पर उस उबले जल से जब मालिस होगी, तो मेरा सर दर्द पूरी तरह से ठीक हो जायेगा। इस तरह से राजा ने अपने कुछ नौकरों को अपनी पहली पत्नी की समाधि पर भेजा और कहा कि वहाँ समाधि स्थल के पास जो सुन्दर अनार का वृक्ष उगा है। उसको उखाड़ कर जड़, तना, पत्तो समेत मेरे पास लेकर यहाँ पर आवो। सेवको ने राजा कि आज्ञा के अनुसार जड़ समेत उस सुन्दर अनार के वृक्ष को उखाड़ के राजा के पास ले आये, और राजा के द्वारा उनको उबाल कर जल में रानी के लिये औषधी के रूप में उपस्थित कर दिया गया। जिसके सेवन से उस क्रुर रानी ने राजा से कहा कि वह अब बिल्कुल ठिक हो गई है, और अच्छा महशुष कर रही है।
अगले दिन जैसा कि प्रायः सातों बहने अनी माँ की समाधि पर जाया करती थी गई ,और उन्होंने देखा वहाँ पर से अनार का वह सुन्दर वृक्ष गायब हो चुका है, तो वह सब बहुत बुरी तरह से दुःखी होकर रोना शुरु कर दिया।
अब वहाँ पर जहाँ पर कभी अनार का वृक्ष था उसके स्थान पर एक छोटा-सा तालाब बन गया, और वह मक्खन के समान पदार्थ से भर गया और जो जल्दी ही सफेद ठोस विस्किट में बदल गया। जिसको रोती हुई सातो बहनो ने आश्चर्य के साथ देखा। इसको देख कर वह सात बहने बहुत अधिक प्रसन्न और उत्साहित होगई। और उन सब उसमें से कुछ विस्किटों को खाया, जो उनको बहुत अधिक पसन्द आया। और अगले दिन भी वहीं हुआ, और ऐसा ही कई दिनो तक चलता रहा। हर रोज सुबह राजकुमारिया अपने माँ की समाधि पर जाती और वह देखती की उस छोटे तालाब में पहले मक्खन बनता फिर वह विस्किटों का रूप ले लेता है। जिसको वह सब खा कर अपनी भुख को शान्त कर लेती थी। फिर उस क्रुर और निर्दई रानी ने अपनी पुत्री को बुला कर कहा मुझे पता नहीं कि यह क्या हो रहा है? जबकि मैने अनार के वृक्ष को उखाड़वा दिया, जो रानी की समाधि पर उगा था। फिर भी वह सब लड़कियाँ ना ही बिल्कुल दुःखी या उदास हुई और ना ही वह सब दुबली पतली हुई, यद्यपी वह सब अपनी भोजन अब भी महल में नहीं करती है, जो मैं उनके लिये तैयार कराती हूँ। मैं इसके बारे में कुछ भी नहीं कह सकती हूं कि ऐशा कैसे हो रहा है?
और उसकी पुत्री ने कहा कि मैं उन पर नजर रखुगी और देखुगीं आखिर माजरा क्या है?
अगले दिन जब सातों बहनो ने अपनी माँ कि समाधि पर जा कर मक्खन से बने विस्किटों को खा रही थी, तभी सबसे पहले सुनयना प्रधान की लड़की को देखा, जो उन सब पर छुप कर नज रख रही थी, और उसने अपनी बहनों से कहा देखों वह लड़की दोबारा यहाँ पर फिर आई है, आवो हम सब चारो तरफ से इस तालाब को ढक लेते है। जिससे वह इसको नहीं देख सके, अगर हम सब ने अपने विस्कुट का थोड़ा भी टुकड़ा इसको दिया तो यह अवश्य जा कर अपनी क्रुर औऱ निर्दई माँ से कहेगी, जो हम सब के लिय बहुत बड़ा दुर्भाग्य को लाने वाला होगा।
सुनयना की दूसरी बहनो ने समझा कि सुनयना अनावश्यक संदेह करती है। और उन सबने उसके सुझाव पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया, इसके विपरित उन्होंने प्रधान के पुत्री को भी कुछ विस्किट खाने के लिये दे दिया।
क्रुर रानी-रानी ने जब राजकुमारियो के अदम्य शाहस, उत्साह और हौशले से पूर्ण कार्य के बारें में सुना तो वह बहुत व्यग्रता के साथ क्रोध से लाल पिली होने लगी। और इसके साथ उसने अपने नौकरों को बुला कर कहा अभी जाओं रानी की समाधि को वहाँ से उखाड़ दो और उसके पास में उपस्थित छोटे तालाब को नष्ट करके उसमें मलमुत्र भर दो। और इस पर भी वह संतुष्ट नहीं हुई, अगले दिन वह फिर भयंकर बिमारी का बहाना करके अपने महल के कमरे में पड़ी रही, और कहने लगी की अब सच में यह उसके जीवन का आखीरी समय है, इसको सुनते ही राजा अत्यधिक दुःख से भर गया, और उसने रानी से कहा क्या उसके सारे सामराज्य कि शक्ति के बदले में। यदि कोई उपाय है, तो वह कहे जिसको वह राजा अपना सब कुछ देकर खरिद ले, और जिससे रानी का जीवन बचाया जा सके।
क्रुर रानी ने कहा केवल एक वस्तु है जो मेरे जीवन को बचा सकती, लेकिन मैं जानती हूँ की तुम इस कार्य को हमारे लिये कभी नहीं कर पाओगे। राजा ने कहा तुम कहो वह कुछ भी होगा, मैं उसे अवश्य पुरा करूगा, इसके लिये मैं तुमसे वादा के साथ प्रतिज्ञा करता हूँ। फिर उसने कहा मेरे जीवन को बचाने के लिये, तुमको अवश्य अपनी पहली पत्नी से उत्पन्न सातो पुत्रियों कि हत्या करनी होगी। उनका कुछ खुन मेरे सर और मेरी हथेलियों पर लगाना होगा। इस तरह से उनकी मृत्यु ही मेरा जीवन है। इन शब्दों को सुन कर राजा दुःख और पिड़ा से भर गया, उसके पैरों के निचे से जैसे पृथ्वी गायब हो चुकी हो और वह मुर्छा खा कर गिरने वाला होगया, लेकिन फिर भी राजा ने स्वयं को सम्हालते हुए, क्योकि राजा को अपने प्रतिज्ञा के टुटने का भय था। इसलिये भारी हृदय के साथ वह कमरे से बाहर आगया और राजकुमारियों को तलास करने लगा।
राजा ने अपनी सातों पुत्रियों को अपनी पहली पत्नी के बर्बाद समाधि स्थल पर रोते हूए पाया।
फिर राजा के हृदय में भाव उठा उन सबकी हत्या ना करने के बारें में, राजा ने अपनी पुत्रियों से प्रेमपुर्वक बोला कि तुम सब चलों मेरे साथ इस जंगल से बाहर। कुछ दूर जा कर एकान्त जंगल में राजा ने आग जलाई और उन सब के लिये कुछ चावल को पका कर, उनको खाने के लिये दिया। लेकिन दोपहर का समय था इस समय बहुत अधिक गर्मि हो रही थी। जिसके कारण वह सभी सातों बहने गहरी निद्रा में खाने बाद चली गई। और जब राजा ने देखा कि यह सब सो चुकी है। तो वह उठा अपने स्थान से और चोरी से छुप कर उन लड़िकयों कि निगाह से वहाँ से भाग गया। उन सब को वहीं निद्रा अवस्था में छोड़ कर (अपनी पत्नी के भय के कारण) और अपने मन में सोचता हुआ कि यह हमारी पुत्रीयों के लिये यही अच्छा है कि यह सब यहाँ एकान्त जंगल में भुखे–प्यासे किसी भुखे जानवर के भोजन के रूप में अपनी मृत्यु को प्राप्त करें, इसके बजाय कि यह सब अपनी सौतेली माँ के द्वारा मारी जाये, यह इनके लिये बहुत ही बुरा होगा।
फिर राजा ने जंगल में एक हिरण को मार कर, उसके खुन को लेकर अपने महल में आय़ा और उस खुन को रानी के सिर और उसके हथेलियों पर लगाया, और क्रुर रानी ने सोचा कि राजा ने सच में सातों राजकुमारियों को मार दिया है। और उसने राजा से कहा कि अब वह स्वयं को बिल्कुल अच्छा महशुष कर रही है।
राजा के चले जाने के कुछ देर बाद हि सातों राज कुमारियों कि निद खुल गई और उन्होंने अपने आपको घने जंगल में अकेले पाया जब उन्होंने अपने चारों तरफ भयंकर जंगली जानवरों को चिग्घाड़ने कि आवाज को सूना, जिसको सुनते ही उन सबका रोआ-रोआ भय से कांपने लगा, उनका पुरा का पुरा शरीर भय से थर थराने लगा, जिसके कारण वह सब भय से आक्रान्त हो कर रोने और चिल्लाने लगी और उनमें जितनी शक्ति थी पुरी शक्ति को लगा कर अपने पिता को पुकारने लगी इस आशा से कि सायद उनकी आवाज को सुन कर राजा वापस आ जाये। लेकिन उन सब को ऐसा करते हुए बहुत समय गुजर गया, उन सब को शिवाय अपनी आवाज के जैसे बादल गड़ गड़ा रहे हो ऐसा सुनाई दे रहा था इसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं था।
ठिक उसी दिन उस जंगल में एक दूसरे पड़ोसी देश के सात राजकुमार वहाँ शिकार करने के उद्देश्य से आये थे। और वह सब अपने राज्य ते लिये प्रस्थान कर रहे थे, तभी उन राज कुमारों में से सबसे छोटे राजकुमार ने अपने भाईयों को रोकते हुए कहा कि ज़रूर कोई इस जंगल में फंसा है और वह हम सब को अपनी सहायता करने के लिये पुकार रह है।
अभी सब लोग यही ठहर जाओ मैं समझता हूँ कोई रो रा है और किसी को बुला रहा है, क्या तुम सब इस आवाज को नहीं सुन रहे हो? चलो इस दिशा में चलते है जहाँ से यह आवाज आरही है। और तलास करते है कि यह कौन है?
इस तरह से सातो राजकुमारों ने जंगल को चिरते हुए अपने घोड़ों को उसी दिशा में दोड़ा दिया, जहाँ से यह मार्मिक आवाज आ रही थी और कुछ ही समय में वह सब राज कुमार उस जंगल में पहूंच गये, जहाँ पर वह सात राजकुमारियाँ मार्मिक विलाप के साथ अपने हाथों को बजा रही थी। इस दृश्य को देख कर सबसे बड़ा राजकुमार बहुत अधिक आश्चर्यचकित हूआ और बड़ी व्यग्रता के साथ उन सब कि सारी कहानी को बड़ी रुची के साथ सुना, और उन सब ने बहुत कुछ नया जीवन के बारें में सिखा, और उन सब राजकुमारों ने यह निश्चय किया, जो परमेश्वर के द्वारा यह औरते मिली है, इनको अपने साथ अपने राज्या में ले जायेगे और इन सब के साथ विवाह कर करके अपने साथ ही रखेगे।
इस तरह से सबसे बड़े राज कुमार ने सबसे बड़ी राजकुमारी से विवाह किया और दूसरे ने दूसरे राजकुमारी से, तीसरे राजकुमार ने तीसरी राजकुमार से विवाह किया, ऐसे ही प्रत्येक राजा कुमार नें प्रत्येक राजकुमारी से क्रम के अनुसार अपना-अपना विवाह समपन्न कर लिया। अन्त में सातवीं राजकुमार ने सबसे सुन्दर और सबसे अधिक वुद्धिमान राजकुमारी सुनयना से अपना विवाह किया।
और जब वे अपने ही देश में आए, तब सात राजकुमारों की शादी में सात ऐसी खूबसूरत राजकुमारियों के लिए पूरे राज्य में बहुत खुशी हुई।
इस सुनयना को करीब एक साल बाद एक बेटा के पैदा हुआ, और उसके चाचा और चाची लड़के से इतने अधिक प्रसन्न थे कि ऐसा लगता था कि उस लड़के पास सात पिता और सात माँ हैं। अन्य किसी भी पराजकुमार और राजकुमारियों में से किसी को भी बच्चा नहीं था, इसलिए सातवीं राजकुमार और सुनयना के बेटे को बाकी सभी ने अपने वारिस की तरह से स्वीकार किया था।
इस तरह वे कुछ समय तक वह बहुत खुशी के साथ रहे, कुछ एक अच्छे दिनो के बाद सातवें राजकुमार (सुनयना के पति) ने कहा कि वह शिकार के लिये बाहर जाएंगा और वह चला गए, इसके बाद सुनयना ने लंबे समय तक इंतजार किया अपने पति का, लेकिन वह कभी वापस नहीं आया।
फिर उसके छह भाइयों ने कहा कि वे जाकर देखेंगे कि उसके बारे में क्या हुआ? और वे चले गए, लेकिन वे भी वापस नहीं आए।
और सात राजकुमारियों को बहुत दुःख हुआ, क्योंकि उन्हें डर था? कि उनके पति को किसी तरह से जंगल में किसी के द्वारा मार दिया गया है।
एक दिन जब बहुत अधिक दिन नहीं विता था यह सब कुछ हुए, जैसा कि सुनयना अपने पुत्र को पालने में झुला रही थी और उसकी सभी बहने निचे के कमरों में काम कर रही थी। ठीक उसी समय कोई महल के दरवाजे के पास आया, जिसने काला लबादा पहन रखा था। जो स्वयं को फकिर कह रहा था, और उसने कहा कि वह यहाँ पर भिक्षा मांगने के लिये आया है। नौकर ने कहा कि तुम महल के अन्दर भीक्षा मांगने के लिये नहीं जा सकते हो। राजा के सभी पुत्र इस समय बाहर गये है, हम सोचते की वह सब मर चुके है और उनकी विधवाओं को तुम्हारी भीक्षा से परेशानी हो सकती है। इसलिये तुम्हें अन्दर नहीं जाने दिया जायेगा। लेकिन उसने आदमी ने के कहा कि मैं एक पवित्र आत्मा हूँ तुम मुझे अन्दर जाने दो, फिर उस मुर्ख नौकर ने उस आदमी को अन्दर महल में जाने कि अनुमती देता है। लेकिन वह सब यह नहीं जानते थे कि वह सच में कोई फकिर या साधु नहीं था वह तो एक बहुत क्रुर कुरुपात्मा जादुगर कालिया था।
जादुगर कालीया ऐसे ही महल में घुम रहा था और उसने बहुत-सी सुन्दर वस्तुओं को देखा, अन्त में उस कमरें में पहूचा जहाँ पर सुनयना अपने छोटे वेटे को पालने में झुलाते हुए उसको लोरी सुना रही थी। उसको देखते ही जादूगर कालीया ने सोचा कि इतनी अधिक सुन्दर औरत जो स्वर्ग कि किसी अप्सरा की तरह है, आज तक उसने अपने जीवन में कभी नहीं देखा है, इस प्रकार उससे अत्यधिक मोहित हो कर वह सिधा उसके पास चला गया। और उससे कहा कि मैं तुमको पसंद करता तुम मेरे साथ मेरे घर पर चलो मैं तुमसे विवाह करना चाहता हूँ। लेकिन सुनयना ने कहा मेरा पति है मुझे डर है, कि उनकी मृत्यु हो चुकी है। फिर भी मेरा यह छोटा-सा वेटा है, जिसके लिये मैं यहाँ निश्चित रूप से रहुंगी और इसको इस दूनिया में जिने के लिये इसको शिक्षा दे कर एक वुद्धिमान और चालाक पुरुष बनाउगी, जो मेरी जीम्मेदारी है। और जब वह बड़ा हो जायेगा, तो वह दुनिया में जाएंगे और अपने पिता को तलासने कि कोशिश करनी करेगा। स्वर्ग ने मुझे मना कर दिया है, मैं उसको कभी भी नहीं छोड़ सकती हूँ और ना ही तुमसे कभी शादी कर सकती हूँ। "इन शब्दों को जादूगर कालिया ने जब सुना तो बहुत क्रोधित हुआ, और उसने सुनयना को अपने जादु से दम पर एक छोटे से काले कुत्ते में बदल दिया। और उसे ले कर अपने साथ चल दिया, यह कहते हुए, यद्यपी तू मेरे साथ नहीं आएंगी स्वतंत्र इच्छाशक्ति जो तेरी है, मैं तुझको अपना बनाऊँगा।" तो बेचारी राजकुमारी ने कुत्ते के रूप में उसके साथ भागने लगी इधर उधर, लेकिन उसके पास कोई शक्ति नहीं थी उससे बचने कि और ना ही यह बताने की उसके साथ क्या हो रहा? जो अपनी दूसरी बहनों को महल में बता सके कि वह एक वेवश कुत्ते के रूप में विवश जादूगर कालिया के इसारे का अनुगमन कर रही हैं। जैसे ही जादुगर कालीया महल के दरवाजे से पहूंचा, नौकरों ने उससे पुछा, तुमने इस छोटे से कुत्ते को कहाँ से लिया? "और उसने जवाब दिया," राजकुमारियों में से एक ने मुझे इसे एक उपहार के रूप में दिया है। “इसके सुनते ही नौकरों ने और कुछ पुछे वगैर उसको महल के दरवाजे से बाहर जाने की अनुमती दे दी।
इसके कुछ समय के बाद सुनयना की दूसरी छोटी छः बहनो नें अपने भान्जे के रोने कि आवाज को सुना और जब वह सिढ़ीयों से चढ़ कर उसके कमरे में गई। तो उन सबने देखा कि वहा कमरे में कही भी सुनयना दिखाई नहीं दे रही थी। फिर उन सबने नौकरो से पुछताछ की और जब उन्होंने सुना कि एक फकिर और उसके काले कुत्ते के बारे में, फिर उन सबने अन्दाज लगाने का प्रयाश किया कि सुनयना के साथ क्या हुआ था? उन्होंने नौकरों को हर दिशा में उन सब की तलाश करने के लिये भेजा, लेकिन उन सब को कही भी ना वह फकिर ही मिला ना ही उसका काला कुत्ता ही मिला, वह सब निराश हो कर महल में वापिस आगये। वेचारी छः औरते क्या कर सकत थी? उन सबने अपनी बहन और अपने दयालु पतियों की हर प्रकार से आशा को छोड़ दिया। अपना सारा ध्यान सुनयना के वेटे के परवरिश और उसकी देखभाल के साथ उसकी शिक्षा दिक्षा में लगा दिया।
समय गुजरता रहा और सुनयना का पुत्र 14 साल का हो गया, फिर एक दिन उसकी चाची ने उसको अपने परिवार का इतिहास बताया। इसको सुनने के बाद वह अपने पिता, अपनी माँ और अपने चाचओं को खोजने के लिये अत्यधिक उत्सुक होगया, और इसके साथ उसने दृढ़ संकल्प किया कि वह बाहर संसार में जाकर उन सब कि तलास करने की, और इसके लिये उसने अपनी इच्छा को भी अपनी चाचियों के सामने जाहिर किया। और यदि वह अपने माता पिता और चाचाओं को कही पर जीन्दा मिल गये तो उन सबको अपने घर पर वापिस लायेगा। उसकी चाचियों को उसके दृढ़संकल्प के बारें में जानकारी जब होगई, तो उन सब ने उसे रोकने के लिये प्रयाश करने लगी, और वह चाहती थी इसका यह विचार बदल जाये, इसके लिये उन्होंने राजकुमार से कहा हम सबने अपने पतियो को-खो दिया है, अपनी बहन को खोदिया, है और उसके पति को भी खो चुकी हूँ। अगर तुम यहाँ से बाहर गए, हो सकता तुम भी खो जाओ तो हम सब किसके सहारे यहाँ पर जीन्दा रहेगे, और क्या करेगे? लेकिन उस लड़के ने अपनी चाचियों उत्तर दिया मैं तुम सब से प्रार्थना करता हूँ कि तुम सब लोग मुझे निरुत्साहित मत करो, मैं जल्दी ही वापिस आउंगा, अगर यह संभव हुआ तो मैं अपने साथ अपने माता पिता और चाचाओं को भी ले कर आउंगा। तो फिर इस तरह से वह अपनी यात्रा पर चल पड़ा, लेकिन कई महिनो तक वह कुछ भी नहीं समझ सका कि किस प्रकार से वह अपने सम्बंधियों को तालश कर सकता है।
और अंत में जब उसने हजारों किलोमिटर की थकाने वाली यात्राओ कों पुरा कर लिया, और पुरी तरह से लगभग जब वह निराश हो चुका था। उसको अपने माता पिता और चाचाओं के बारें में किसी प्रकार कि कोई सुचना कही भी प्राप्त नहीं हूई। इसी बीच वह एक ऐसे देश में पहूंचा जो पुरी तरह से पत्थरों का देश था। वड़ी बड़ी चट्टाने, वृक्ष, इसके अतिरिक्त एक बहुत बड़ी पत्थर कि उंची कठोर इमारत थी, जिसके एक किनारे पर एक छोटा-सा मकान था जिसमें एक माली रहता था।
जब वह देख रहा था तभी माली की पत्नी ने उसको देख लिया, और भाग कर अपने घर से बाहर आई, और कहा मेरे प्रिय बच्चे तुम कौन हो और तुम ने इस खतरनाक स्थान पर आने कि हिम्मत के साथ साहस कैसे किया? उस लड़के ने कहा कि मैं एक राजा का बेटा हूँ और मैं यहाँ अपने पिता औऱ अपने चाचाओं की तलाश में आया हूँ, मेरी माँ को एक दुष्ट जादूगर ने डरा धमका कर कुत्ता बना कर अपने साथ ले गया है।
माली की पत्नी ने कहा कि यह देश और यह स्थान एक महान जादूगर का ही है। उशके पास हर प्रकार की शक्तीयाँ है जो भी व्यक्ती उशकी आज्ञा का उलंघन करता है या उसका अपमान करता है, तो वह अपनी जादु की शक्ति से उसको पत्थर या वृक्ष बना देता है। यहाँ पर जो तुम सभी प्रकार के वृक्ष और पत्थर देख रहे हो, यह सब कभी जीवीत प्राणी हुआ करते थे। इन सबको हमारे मालिक जादुगर ने अपने शक्ती से इस रूप में बना दिया है। कुछ समय पहले एक राजा यहाँ आया था, उसके कुछ समय के बाद उसके छः भाई भी यहाँ पर आये थे। और उन सब को जादुगर ने पत्थर और वृक्ष में परिवर्तित कर दिया है। और केवल यही दुर्भाग्यशाली लोग नहीं थे, इसके अतिरिक्त एक बहुत सुन्दर रानी है जिसको इस बड़े इमारत में कैद कर के रखा है। जिसको उस जादुगर ने पिछले बारह सालों से कैद किया है। क्योंकि वह जादुगर से नफरत करती है और जादुगर उससे शादी करना चाहता है।
फिर छोटे राजकुमार ने विचार किया, अवश्य ही यह सब मेरे माता-पिता और मेरे चाचा ही है। मैंने उन सब को अन्त में पा हि लिया, जिसके लिये मैं भटक रहा था। इस तरह से उसने अपनी कहानी उस माली की पत्नी से कहा और उससे प्रार्थना के साथ उससे विनती की वह उसकी सहायता करे, इन सब वेकसुर और लाचार लोगों के बारें में और अधिक जानकारी को प्राप्त करने के लिये, और इस अप्रसन्न आदमी के बारे में जिसके बारे में अभी आपने बाताया है। और उस माली की पत्नी ने उसका साथ देने का लिये वादा किया, इस तरह से वह दोनो आपस में मित्र बन गये। और माली की पत्नी ने उसको अपना रूप बदलने के लिये सुझाव दिया, क्योंकि जादुगर उसको देखते ही उसे पत्थर में बदल देगा। इस पर राजकुमार तैयार होगया, इस तरह से माली की पत्नी ने उस राज कुमार को अपनी साड़ी को पहना दिया, और यह बहाना किया की वह उसकी पुत्री है।
इसके थोड़े समय के बाद ही एक दिन, जैसे ही जादुगर कालीया अपने सुन्दर बगिचे में घुम रहा था, उसने एक छोटी लड़की को देखा (ऐसा उसने विचार किया) जो वहाँ वगिचे में खेल रही थी। तब उस जादूगर ने माली कि पत्नी को अपने पास बुलाया और उससे पुछा कि वह लड़की कौन है? माली कि पत्नी ने कहा कि वह उसकी पुत्री है। इस तरह से जादुगर और उस राजकुमार की पहली मुलाकात होती है, जो एक लड़की के भेष में जादुगर से अपनी पहचाल छुपा कर मिलता है। और जादुगर उसको देख कर उसके कहता है कि तुम बहुत ही सुन्दर हो, कल सुबह तुम मेरा उपहार लेकर बड़ी इमारत में जाओगी वहाँ रहने वाली सुन्दर औरत के लिये।
छोटा राजकुमार इसको सुनकर बहुत ही खुश हुआ और तुरंत ही वह माली की पत्नी के पास गया, और इसके बारे में उसको बताया। उसके साथ विचार विमर्श करने के बाद उसने निश्चय किया की उसके लिये छद्म भेष में रहना ही उसके लिये फायदेमन्द होगा। और इसी विश्वास के साथ अपनी माँ से कुछ सम्बंध, इसी तरह से स्थापित करने के लिए, अनुकूल अवसरों की संभावना को सुरक्षित रखने के लिए भी यही सुरक्षित होगा कि वह वास्तव में मेरी माँ है।
जब सुनयना की शादी राजकुमार के साथ हुई थी, तो राजकुमार ने उसको एक छोटी-सी अंगुठी दी थी जिस पर उसका नाम लिखा हुआ था और उस अंगुठी को सुनयना ने अपने पुत्र की अंगुली में पहना दिया था, जब उसका पुत्र छोटा बच्चा था। जब उसका पुत्र समय के साथ बड़ा हुआ तो उसकी चाचियों ने उस अंगुठी का आकार राजकुमार के उंगली के साईज का बनवा कर उसकी उंगली में पहना दिया था। इस तरह से वह अंगुठी अब भी उस राज कुमार ने अपनी उंगलि में पहन रखी थी। माली की पत्नी ने राजकुमार को सुझाव दिया की कुछ ऐसा जो इस गुलदस्ते में छुपा कर रख दो जिससे तुम्हारी माँ तुमको पहचान जाये यथा सिघ्र। यह सब विना किसी समस्या या कठिनाइ के संभव नहीं होगा। जैसा की एक कठोर दरवान हमेंशा वेचारी राजकुमारी की उपर नजर रखता है। (उसे अभी अपने दोस्तों के साथ संचार स्थापित करने का डर भी हो रहा था) यद्यपी माली के पुत्री के रूप में राजकुमार को रोज फुलों का गुलदस्ता अपनी माँ तक पहूंचाने का मौका मिल चुका था। जादुगर की एक दाशी हमेंशा उसकी माँ के कमरें में हर वक्त रहती थी। अन्त में एक दिन किस्मत ने उस राजकुमार का साथ दिया और उसको एक ऐसा मौका मिल ही गया, जब कमरे में केवल उसकी माँ के अतिरिक्त और कोई दूसरा व्यक्ती नहीं था, और जब कोई भी उसको नहीं देख रहा था तो उसने अपनी उंगली से अंगुठी को निकाल कर उसे फुलों के गुच्छे में बांध कर अपनी माँ सुनयना के कदमो में डाल दिया। इस अंगुठी के जमिन पर गिरते ही एक ठन्न की आवाज हुई, जिसने सुनयना को निचे उस फुल के गुच्छे कि तरफ आकर्षित किया। सुनयना ने देखा ऐसा क्या इन फुलो के अन्दर है? जो यह विचित्र आवाज कर रहा है। जिसमें उसने एक छोटी-सी अंगुठी को फुलों के साथ बंधा हुआ पाया। उस अंगुठी को पहचाने ही उसको अपने पुत्र के द्वारा वताई गई कहानी पर तुरन्त विश्वाश हो गया। कि उसने कितना अधिक खोज करने के बाद उसको प्राप्त कर लिया है। उसे बचाने के लिए कोशिश किया और अपने जीवन को खतरे में डाल के पुत्र ने अपनी माँ से कहा कि जो भी उसके लिये अच्छा और शुभ हो, जिसके द्वारा वह अपने माता-पिता और चाचाओं को दुष्ट जादुगर कालीये के काले जादु से मुक्त कराने में सफल हो सके, वह उसको बताय, उसकी माँ ने उससे कहा कि पिछले लंबे बारह सालो सें उस जादुगर ने मुझे इस तरह से कैद कर के इस इमारत के सारे दरवाजो को बन्द कर के रखा है, क्योकि वह मुझसे विवाह करना चाहता है और मैंने उससे विवाह करने से मना कर दिया है, और उसकी दाशी इतनी निकटता से मेरी रक्षा कर रही हैं कि उससे रिहाई की मुझे कोई उम्मीद नहीं दिखाई दे रही है।
यद्यपी सुनयना का पुत्र अब बहुत वुद्धिमान और चालाक था, इसलिये उसने अपनी माँ से कहा, जो पहली वस्तु तुमको करनी है वह यह कि तुम यह पता कर के बताओ कि कालिया जादूगर के जादू की शकती का विस्तारा कहा तक है। केवल इसी तरह से हम अपने पिता और चाचा को इस दुष्ट कालीये के काले जादु से मुक्त कराने में सफलता प्राप्त कर सकते है। जो इस समय इसके कैद में पत्थर और वृक्ष के रूप में है। तुमने लंबे बारह सालो तक कालीया जादुगर से केवल क्रोध और कठोरता के साथ ही बात किया है, अब तुम उसके साथ उदारता और प्रेम के साथ बात करो। उसे बताओ कि अपने पति का मैंने इतने लंबे समय तक शोक किया और फिर अब मैं तुमसे शादी करने को तैयार हूँ। फिर पता लगावो की उसकी शक्ति क्या है, और क्या वह अमर है? या उसे मार डाला जा सकता है। "
सुनयना ने अपने बेटे की सलाह लेने का निश्चय किया और अगले दिन कालीया जादुगर के लिए संदेश भेजा और उससे बात की, जैसा उसके पुत्र के द्वारा उसको सुझाव दिया गया था।
जादूगर, यह सुन कर बहुत प्रसन्न हुआ, शादी करने के लिए जल्द से जल्द कहा और इसके बाद महल में चलने के लिए अनुमति देने के लिए सुनयना से विनती की, लेकिन उससे सुनयना ने कहा कि इससे पहले कि वह उससे शादी करे, उसको-उसे थोड़े और अधिक समय देना चाहिए। जिससे वह आपस में परिचित हो सकते है, और यह कि दुश्मनों के इतने लंबे होने के बाद, उनकी दोस्ती का स्तर भी और मजबूत हो सकता है। "और मुझे बताओ," उसने कहा, "क्या आप पूरी तरह से अमर हैं? क्या मृत्यु आपको कभी नहीं छू सकती है? और क्या आप मानव जाति को महसूस करने के लिए एक महान जादूगर हैं?"
"तुमने क्यों पूछा?" उन्होंने कहा।
"क्योंकि," उसने जवाब दिया, "अगर मैं आपकी पत्नी हूँ, तो मैं आपके बारे में सब कुछ जानना चाहुंगी, यदि कोई आपदा आपके उपर आधमकती है, तो उस पर काबू पाने के लिए, या यदि संभव हो तो इसे टालना।"
"यह सच है," कालीया जादुगर ने कहा, "मैं दूसरों के रूप में नहीं हूँ। दूर से दूर, इस से सैकड़ों मील की दूरी पर, वहाँ एक जंगल वाला देश है जो घने जंगल से ढंका है। जंगल के बीच में एक गोला है जहाँ पर केवल ताड़ के पेड़ विद्यमान है और उस ताड़ के वृक्षों के घेरे के केंद्र में छह बड़े पानी से भरे हुए तालाब है, एक दूसरे से ऊपर गिरते है, छठे तालाब के नीचे एक छोटा पिंजरा है, जिसमें एक हल्का हरा रंग का तोता है, उसी तोते के जीवन पर मेरा जीवन निर्भर करता है। तोते के मर जाते ही मुझे मरना होगा। हालांकि, जादुगर ने कहा," यह असंभव है कि तोते को किसी भी प्रकार से चोट पहूंचाया जा सके। उस तोतो को सुरक्षित बनाए रखने लिये, मैने दोनों देश को एक दूसरे देश से बहुत दूर कर दिया है। इसके अतिरिक्त उस देश और तोते की रक्षा के लिये मैने हजारों जीन्नो को वहा पर नियुक्त कर दिया है। जो भी उसके पास नजर आयेगा तुरंत मार दिया जायेगा। वहा कोई पहूंच ही नहीं सकता है।
सुनयना ने अपने ने अपने बेटे को दुष्ट कालीया जादुगर के बारे में जो भी जाना था वह सब कुछ उससे बता दिया। लेकिन एक ही समय में उसे तोते को पाने के सभी विचार को छोड़ने के लिए भी अपने पुत्र को मजबूर किया।
राजकुमार ने जवाब दिया, "माँ, जब तक मैं उस तोते को पकड़ नहीं सकता, तुम और मेरे पिता और चाचा मुक्त नहीं हो सकते, डरो मत, मैं जल्द ही वापस आऊंगा। क्या आप इस बीच में जादूगर को अच्छे हास्य- के साथ अब भी तुम उसके साथ विवाह पर अपने विवाद चालु रख सकती हो? और इससे पहले कि वह देरी के कारण का पता लगाए, मैं यहाँ आ जाउंगा।" यह कह कर, वह चला गया।
थकाने वाले की सैकड़ों मिल की यात्रा करने के बाद राजकुमार, आखिर में एक बहुत घने जंगल में पहूंचा, तब तक वह बुरी तरह से थक चुका था। जिसके कारण वहीं पर एक बड़े छाया दार वृक्ष के निचे बैठ कर आराम करने लगा, जहाँ पर उसको कुछ ही समय में सुन्दर मनोरम हवावों के झोकों के कारण निद्रा आगई। उसकी निद एक मधुर स्वर ध्वनियों के सुनने कारण खुल गई, और वह राजकुमार जहाँ से ध्वनी आ रही थी उस तरफ देखा, जहाँ पर उसके निगाह के सामने एक विशाल सर्प जो उस पृक्ष पर चढ़ने का प्रयाश कर रहा था। जिस वृक्ष के निचे राजकुमार सोया हुआ था, उसी वृक्ष के उपर शाखाओं पर एक चिल जोड़े ने अपना घोसला बना रखा था, जिसमें उस चिल के दो छोटे बच्चे बैठे हुए थे। जब राजकुमार ने उन चिल के दो निर्दोष बच्चे पर आने वाले संभावित खतरें को देखा, तत्काल राजकुमार ने अपनी तलवार को निकाला और सर्प के टुकड़े कर के मार दिया। ठीक उसी समय राजकुमार ने हवा में सरसराहट की आवाज को सुना, जिसके साथ दो वृद्ध चिल राजकुमार के सामने आकर खड़े हो गए। जो अपने बच्चों के लिये भोजन लाने के लिये शिकार पर गये थे, अपने बच्चों को घसलें में छोड़ कर, उन्होंने जल्दी ही मरे हुए सर्प को देखा और उसके ही समिप पर खड़े हुए राजकुमार को भी देखा, और उन चिलों में से वृद्ध चिलों की माँ ने राजकुमार से कहा प्रिय पुत्र यह क्रुर निर्दई सांप पिछले कई सालों से इसी तरह से मेरे निर्दोष बच्चों खा कर अपना पेट भरता था। लेकिन तुमने आज मेरे बच्चों का जीवन बचा लिया साप को मार कर, जब भी तुमको किसी प्रकार कि ज़रूरत पड़े, तुम हमें याद करना और हम तुम्हारी सेवा के लिये अवश्य उपस्थित होगे। और तुम इन दोनो हमारे बच्चों को अपने साथ ले जाओ अपने सेवक की तरह से, इस पर राजकुमार बहुत अधिक प्रसन्न हुआ और इसके बाद उन दो चिलो ने अपने पंखों को फैलाया कर उसपर राजकुमार को बैठा लिया। और उसे ले कर वह आकाश मार्ग से यात्रा करने लगे। वह उस राज कुमार को बहुत दूर तक अपने पंखो पर बैठा कर ले गये। जब वह उस घने जंगल में पहूंच गए, जहाँ पर गोल घेरे में उगे हुए बहुत सारे ताड़ के पेड़ कतार से खड़े हुऐ थे। आकाश में अपने सर को उठाये हुए। उनके मध्य में छ पानी से भरे तालाब भी थे, यह दिन के दोपहर का समय था और इस समय गर्मि बहुत अधिक पड़ रही थी। चारों तरफ वृक्षो पर बैठे सभी जीन, राक्षस, और शैतान निर्द्वन्द निसंक हो कर गहरी निद्रा में सो रहे थे। वे सब अनगिनत हजारों की संख्या में थे, यह किसी भी व्यक्ती के लिये असंभव था कि कोई व्यक्ती इन दैत्यों और शैतानो से आमने सामने की लड़ाई करके इनको परास्थ कर पाये। इसी बिच चिल अपने मजबुत पंखों के साथ निचे कि तरफ उतरने लगे, जब वह जमिन से थोड़ा ही उपर थे तभी राजकुमार चिल के पंख से निचे जमिन पर कुद पड़ा और चिलो के साथ मिलकर राजकुमार ने केवल एक ही प्रयाश में उन सभी छ पानी से भरे तालाबों को प्रदुषित कर दिया, औऱ उसके अन्दर से जाने वाली सिढ़ियों से हो कर राजकुमार उस हल्के रंग वाले सुग्गे के पास पहूंच गया। और उस सुग्गे को कपड़े में लपेट कर अपने लबादे की जेब में डाल लिया। और जैसे ही राजकुमार चिल के पंखों पर सवार हो कर आकाश मार्ग से अपनी यात्रा को चला, तभी निचे सभी जिन अपनी निद्रा से जाग गये। और वह सब चिल्लाने लगे, उन सब में अफरा तफरी मच गई. जब उन्होंने पाया की उनका खजाना गायब हो चुका है, जिसके साथ ही एक जंगली और उदासीन चीख़ की स्थापना हुई।
बहुत दूर सैकड़ों मिल की यात्रा में उड़ने के बाद वह चिल अपने उस घर पर आगये, जहाँ पर वह विशाल वृक्ष था, जिस पर उनका घोसला बना हुआ था। फिर राजकुमार ने वृद्ध चिलों से कहा कि आप अपने इन छोटे चीलों को वापिस ले लीजिए, इन्होने मेरे लिये बहुत अच्छा कार्य किया है। अगर मुझे कभी इनकी ज़रूरत पड़ी तो मैं अवश्य इनकी सेवा को लुगा। और आपसे सहायता लेने में कभी भी नहीं हीचकुंगा। फिर राजकुमार ने अपने पैरों के द्वारा अपनी यात्रा को शुरु कर दिया, और तब तक चलता रहा जब तक कि वह एक बार पुनः दुष्ट जादुगर कालीया के महल तक नहीं पहूंच गया। और वहाँ महल के दरवाजे के पास निचे वगिचे में बैठ कर सुग्गे के साथ खेलने लगा। जादूगर कालीया ने उसे अपने महल की खीड़की से देखा और तुरन्त भाग कर वह राज कुमार के पास आया, और कहा मेरे बच्चे तुम ने इस सुग्गे को कहा पर पाया? तुम इस सुग्गे को मुझको दे दो इसके लिये मैं तुमसे विनती करता हूँ।
लेकिन राजकुमार ने उत्तर दिया जादुगर को ओह नहीं मैं अपने सुग्गे को तुमको नहीं दे सकता हूँ। यह कई सालों से मेरा प्रिय पालतु पक्षी है। फिर जादुगर ने कहा अगर यह तुम्हारा पुराना मनपसंद पक्षी है, तो मैं समझ सकता हूँ कि तुम इसको मुफ्त में नहीं दोगो, तो तुम स्वयं कि बताओ इस सुग्गे की क्या किमत लेना चाहते हो?
राजकुमार ने कहाः साहब मैं अपने इस प्यारे सुग्गे को बेच भी नहीं सकता हू।
इससे जादुगर कालिया बहुत अधिक भयभित होगया और कहा कि तुम इसके बदले में मुझसे कुछ भी ले सकते हो वश मुझे तुम यह सुग्गा दे दो। चलो ठीक है तो सबसे पहले न सात राजाओं को मुक्त करो जिसको तुमने पत्थल और वृक्ष बनाया है।
जादुगर ने कहा चलो ठिक तुम्हारी इच्छा पूर्ण हो, तुम केवल मुझे यह सुग्गा दे दो, इसके साथ ही सुनयना के पति समेत और दूसरे छ राजा अपने प्राकृत रूप में वापिस आगये। फिर कालिया जादुगर ने कहा मुझे यह सुग्गा अब दे दो।
लेकिन राजकुमार ने कहा इतना जल्दी भी क्या है? पहले तुम उन सभी लोगों को आजाद करों जिसको भी तुमने अपने कैद में रखा। कालिया जादुगर ने कहा ठीक है और उसने अपनी छड़ी को घुमाया सब के सब प्राणी जो कभी पत्थर और वृक्ष थे वह सब अपने-अपने प्राकृतिक शरीर में वापिस आगये।
फिर जादुगर ने अपने हाथ जोड़ कर रोते हुए विनती किया राजकुमार से की अब तो तुम मुझे यह सुग्गा दे दे, इसके साथ वह पुरा का पुरा वगिचा जो कुछ समय पहले पत्थरों और वृक्षो से भरा था वह चारो तरफ मानव जीवन की खुशबु से आलोकित होने लगा। सब कुछ जीवीत होगया और शासे लेने लगे, राजा, पंडित, नौकर, चाकर, सेवक, सरदार, घोड़े, हाथी, सैनिक इत्यादी और घोड़े चलाने के लिए ताकतवर पुरुष, आभुषणो से सुसज्जीत, और सशस्त्र अभिकर्ताओं के साथ सैनिक टुकड़िया भी।
जादुगर ने रोते हुए फिर कहा कि मुझे यह सुग्गा अब दे दो, राजकुमार ने सुग्गे को और शक्ति से पकड़ लिया और उसके एक पंखे को जोर लगा कर उसके शरीर से अलग कर दिया, इसके साथ ही दाहिना हाथ जादुगर कालीया का भी उसके शरीर से अलग गया।
फिर जादूगर कालीया ने अपने बायें हाथ को फैला कर राजकुमार से विनती की मुझ यह सुग्गा दे दो, राजकुमार ने सुग्गे के बायें पंख को उसके शरीर से उखाड़ कर कालीया के समिप फेक दिया, जिसके साथ जादुगर का भी बायाँ हाथ उशके शरीर से उखड़ कर दूर जा गिरा।
मुझे मेरा सुग्गा दे दो यह कहते हुऐ कालिया जादुगर अपने घुटनों पर गिर पड़ा, राजकुमरा ने सुग्गे के पहेल दायें फिर बायें पैर को उसके शरीर से उखाड़ दिया सके साथ कालीया जादुगर का भी दोनो पैर उसके शरीर से उखड़ कर उससे दूर जा पड़े।
जब कालीया जादूगर के शरीर का कोई अंग उसके साथ नहीं रहा तो वह अपनी आखों को घुमाते हुए और रोतो हुऐ कहा कि मुझे मेरा सुग्गा मुझे दे दो, राजकुमार ने सुग्गे का सर पकड़ कर मरोड़ दिया, जिससे उस सुग्गे के प्राण पखेरु उसके शरीर से बाहर निकल गये, इसके साथ ही राजकुमार ने वह सुग्गा कालीया जादुगर के पास फेक दिया लेकिन जादुगर कालिया के भी प्राण पखेरु भी एक भयंकर गुर्गुराहट के साथ उसके नस्वर शरीर को छोड़ कर जा चुके थे वह मर चुका था।
इसके बाद राजकुमार के पिता ने अपनी पत्नी सुनयना को बड़ी इमारत से मुक्त किया और इस तरह से राजकुमार अपने सभी सम्बधियों के साथ अपने देश के लिये प्रस्थान किया और दूसरे सभी लोग भी अपने-अपने देश और नगर घर की तऱफ चल पड़े।

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