👉 जीवन में सफलता चाहते हैं तो माता-पिता का आदर करो
🔷 माता-पिता ने तुम्हारे पालन-पोषण में कितने
कष्ट सहे हैं! भूलकर भी कभी अपने माता-पिता का तिरस्कार नहीं करना। वे तुम्हारे
लिए आदरणीय हैं। उनका मान-सम्मान करना तुम्हारा कर्तव्य है। भारतीय संस्कृति में
माता-पिता को देवता कहा गया है: मातृदेवो भव। पितृदेवो भव। भगवान गणेश माता-पिता
की परिक्रमा करके ही प्रथम पूज्य हो गये।
🔶 श्रवण कुमार ने माता-पिता की सेवा में
अपने कष्टों की जरा भी परवाह न की और अंत में सेवा करते हुए प्राण त्याग दिये। देवव्रत
भीष्म ने पिता की खुशी के लिए आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत का पालन किया और
विश्वप्रसिद्ध हो गये।
🔷 एक पिता अपने छोटे-से पुत्र को गोद में लिये
बैठा था। एक कौआ सामने छज्जे पर बैठ गया। पुत्र ने पूछा: ‘‘पापा! यह क्या है?’’ पिता ने बताया: ‘‘कौआ है।’’ पुत्र ने फिर पूछा: ‘‘यह क्या है?’’ पिता ने कहा: ‘‘कौआ है। ’’पुत्र बार-बार पूछता: ‘‘पापा! यह क्या है?
’’पिता स्नेह से बार-बार कहता: ‘‘बेटा! कौआ है कौआ! ’’कई वर्षों के
बाद पिता बूढ़ा हो गया। एक दिन पिता चटाई पर बैठा था। घर में कोई उसके पुत्र से
मिलने आया। पिता ने पूछा: ‘‘कौन आया है? ’’पुत्र ने नाम बता
दिया। थोड़ी देर में कोई और आया तो पिता ने फिर पूछा। पुत्र ने झल्लाकर कहा: ‘‘आप
चुपचाप पड़े क्यों नहीं रहते! आपको कुछ करना-धरना तो है नहीं, ‘कौन आया-कौन गया’ दिन भर यह टाँय-टाँय क्यों लगाये रहते हैं?’’
🔶 पिता ने लम्बी सांस खींची, हाथ
से सिर पकड़ा। बड़े दुःख भरे स्वर में धीरे-धीरे कहने लगा: ‘‘मेरे एक बार पूछने पर
तुम कितना क्रोध करते हो और तुम दसों बार एक ही बात पूछते थे कि यह क्या है?
मैंने कभी तुम्हें झिड़का नहीं। मैं बार-बार तुम्हें बताता: बेटा!
कौआ है।’’
🔷 माता-पिता ने तुम्हारे पालन-पोषण में कितने
कष्ट सहे हैं! कितनी रातें मां ने तुम्हारे लिए गीले में सोकर गुजारी हैं, तुम्हारे
जन्म से लेकर अब तक और भी कितने कष्ट तुम्हारे लिए सहन किये हैं, तुम कल्पना भी नहीं कर सकते। कितने-कितने कष्ट सहकर तुमको बड़ा किया और अब
तुमको वृद्ध माता-पिता को प्यार से दो शब्द कहने में कठिनाई लगती है!
🔶 पिता को ‘पिता’ कहने में भी शर्म आती है!
अभी कुछ वर्ष पहले की बात है - इलाहाबाद में रहकर एक किसान का बेटा वकालत की पढ़ाई
कर रहा था। बेटे को शुद्ध घी, चीज-वस्तु मिले,बेटा
स्वस्थ रहे इसलिए पिता घी, गुड़, दाल-चावल
आदि सीधा-सामान घर से दे जाते थे। एक बार बेटा अपने दोस्तों के साथ चाय-ब्रेड का
नाश्ता कर रहा था। इतने में वह किसान पहुंचा। धोती फटी हुई, चमड़े
के जूते, हाथ में डंडा,कमर झुकी हुई।।।
आकर उसने गठरी उतारी।
🔷 बेटे को हुआ, ‘बूढ़ा
आ गया है, कहीं मेरी इज्जत न चली जाय!’ इतने में उसके
मित्रों ने पूछा: ‘‘यह बूढ़ा कौन है?’’ लड़के ने कहा :यह तो
मेरा नौकर है।
लड़के ने धीरे से कहा किंतु पिता ने
सुन लिया। वृद्ध किसान ने कहा: ‘‘भाई! मैं नौकर तो जरूर हूँ लेकिन इसका नौकर नहीं
हूँ,
इसकी मां का नौकर हूँ। इसीलिए यह सामान उठाकर लाया हूँ।’’
🔶 यह अंग्रेजी पढ़ाई का फल है कि अपने पिता को
मित्रों के सामने ‘पिता’ कहने में शर्म आ रही है, संकोच हो रहा है!
ऐसी अंग्रेजी पढ़ाई और आडम्बर की ऐसी-की-तैसी कर दो, जो
तुम्हें तुम्हारी संस्कृति से दूर ले जाय!
🔷 पिता तो आखिर पिता ही होता है, चाहे
किसी भी हालत में हो। प्रह्लाद को कष्ट देनेवाले दैत्य हिरण्यकशिपु को भी प्रह्लाद
कहता है: ‘पिताश्री!’ और तुम्हारे लिए तनतोड़ मेहनत करके तुम्हारा पालन-पोषण
करनेवाले पिता को नौकर बताने में तुम्हें शर्म नहीं आती!
🔶 माता-पिता व गुरुजनों की सेवा करने वाला और
उनका आदर करनेवाला स्वयं चिर आदरणीय बन जाता है। जो बच्चे अपने माता-पिता का आदर-सम्मान
नहीं करते, वे जीवन में अपने लक्ष्य को कभी प्राप्त नहीं कर सकते।
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