वेद संपूर्ण विश्व का
भविष्य है
आज
के समय में जब विश्व बड़ी तेजी से एक वैश्विक गांव बनता जा रहा है, सूचना जानकारी
जिस तीव्रता से एक स्थान से दूसरे स्थान पर नेट के माध्यम से पहुंच रहा है, ऐसा
अतीत में नहीं था, यह बात सत्य नहीं है, पहले जो माध्यम जानकारी को एक स्थान से
दूसरे स्थान पर पहुंचाने का माध्यम था वह ज्ञान था, जिसे हम ज्ञान समझते हैं, वह सच्चा
ज्ञान नहीं हैं, वह जानकारी है किसी विषय की और जानकारी को ज्ञान के माध्यम से ही
एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाया जा रहा है।
वेद संपूर्ण मानव जाती के साथ और दूसरे प्राणियों के लिए भी जानकारी को
प्रदान करता है, और यह जानकारी वह मानव चेतना को चेतना के माध्यम से दिया करता है,
जिस प्रकार से आज हम सब संपूर्ण विश्व की जानकारी को नेट के माध्यम से प्राप्त
करते हैं, उसी प्रकार से पहले के विद्वान ऋषि अपने ज्ञान को किसी दूसरे के हृदय
में प्रकट कर देते थे, उदाहरण के लिए आज भी हमारे भारत के हिन्दू समाज में गोत्र
परंपरा के नाम से प्रचलित ऋषियों के वंश के रूप में लोग उपस्थित हैं।
एक
ऋषि की परंपरा और उनका ज्ञान उनकी आने वाली पीढ़ी को संस्कार के माध्यम से मिलते
हैं। जिस प्रकार से माता पिता के गुण उसके पुत्र अथवा उसकी पुत्री को जन्म के साथ
प्राप्त होते हैं, उसी प्रकार से उसे और भी प्रकार के सभी ज्ञान भी प्राप्त होते
हैं, जिस प्रकार से पानी की एक बूंद में जो गुण हैं, वहीं गुण सभी जगत के पानी के
अथाह समुद्र में भी उपलब्ध होता है।
मानव जितना अधिक बुद्धिजीवी बनेगा उतना ही अधिक वह वेदों को समझने में वह
समर्थ होता क्योंकि वेद मानव जाती का भविष्य है, जो मानव अपने बुद्धि को विकसित
करने में असमर्थ हैं, वह वेदों को भी समझने में असमर्थ सिद्ध होंगे, इससे यह सिद्ध
नहीं होता है कि वेद गलत हैं, इससे यहीं सिद्ध होता है कि मानव के अंदर वेदों को
समझने की योग्यता नहीं हैं।
आज
तक मानव समाज ने जो भी उपलब्ध किया है, वह किसी भी क्षेत्र की क्यों ना हो चाहे वह
भौतिक हो, या आध्यात्मिक हो, जहां तक भौतिक उपलब्धि की बात है, वह सब मानव को
वेदों के द्वारा बताए गए मार्ग पर चलने से ही उपलब्ध हुआ। जैसा कि वेदों में बताया
गया है कि एक ही सत्य को विद्वान अलग -अलग नाम से पुकारते हैं, इसका मतलब यह है की
सत्य हर विषय का यथार्थ सत्य एक ही है, उसको समय के साथ लोग अपने नाम से प्रकाशित
करते हैं।
संसार में आज जितनी भी समस्या है उसका मुख्य कारण मानव का ज्यादा मात्रा
में मूर्ख होना ही है, हम जिस समाज में रहते हैं, उसमें 100 में 99 लोग मूर्खता को
ज्ञान समझते हैं, उनको संसार के सत्य या इसके कल्याण से कोई लेना देना नहीं है, वह
सभी लोग अपने क्षणिक फायदे की बात को ही समझते है, वह समग्र मानव जाती या विश्व के
कल्याण की बात को नहीं समझते है, और ऐसे मनुष्यों को आज के समय में बहुत अधिक कठिन
हो चुका है जो अपने व्यक्तिगत स्वार्थ से ऊपर उठ कर अपने मानव जाती के कल्याण के
लिए विचार कर सके, क्योंकि समग्र मानव जाती की बात जब वेद करते हैं, तो बहुत
ज्यादा ऐसे लोग है जो वेदों की सत्या को अस्वीकार करने में ही स्वयं बहुत अधिक
गौरवान्वित महसूस करते हैं।
वेदों
की बात आज का मानव समझने में अयोग्य क्यों सिद्ध हो रहा है, इसका मुख्य कारण है कि
मानव जिस मार्ग से हो कर यहां तक पहुंचा है, वह मार्ग, अतृप्ति अशांति तृष्णा और
मूर्खता का मार्ग है, यदि आप कहें की मानव बहुत अधिक विकसित हो चुका है, तो यह
सबसे बड़ा झूठ है, मनुष्य विकसित नहीं हुआ है, क्योंकि विकसित होने का मार्ग है,
मानव चेतना के विकास से संबंधित है, मानव चेतना का निरंतर पतन हो रहा है।
यह
कैसे सिद्ध होगा की मानव का पतन हो रहा है, इसको देखने के लिए आप स्वयं देख सकते
हैं इसका परीक्षण कर सकते हैं, सारी जानकारी आज के युग की नेट पर उपलब्ध की गई है, 70 से 80% जानकारी का केन्द्र सैक्स है, और इसका
व्यवसाय भारी मात्रा में धन कमाने के लिए हो रहा है, आज धन ज्यादा से ज्यादा कमाने
के लिए लोग इस क्षेत्र में उतर रहें है,
जितना अधिक सैक्स पर निर्भर आज के समय का मानव जाती हो रहा उतना कभी अतीत में मानव
इस पर निर्भर नहीं था। पहले लोग ब्रह्मचर्य पर अधिक निर्भर थे। और इस ब्रह्मचर्य
के माध्यम से ही वह इस संसार में स्वयं को अमर कर देते थे। आज के युग की सबसे बड़ी
कमी यहीं है, कि लोग आज ब्रह्मचर्य के पतन लिए बड़ी तीव्रता से कार्य कर रहें है।
पहले लोग ऐसा नहीं करते थे, वेदों में ब्रह्मचर्य की जितनी अधिक महत्ता बताई गई
है, उतनी दूसरी वस्तु की नहीं है, ब्रह्मचर्य के द्वारा मृत्यु को जितने की भी बात
कही गई है।
जब
मैं कहता हूं की वेद संपूर्ण विश्व के भविष्य हैं तो इसका मतलब है, कि वेद मानव को
उस शिखर पहुंचने की कला को बताते जिससे मानव सिर्फ जमीन पर रेंगने वाला कोई प्राणी
तक सीमित नहीं रहता यद्यपि उसके पंख लग जाते हैं, वह पक्षियों के समान आकाश में
रमण करता है, और संपूर्ण जगत का मार्ग दर्शन करता है।
ऋग वेद कहता है, जिसको धन का अहंकार हो गया, उसके धन का नाश हो जाता है,
जिसको ज्ञान का अहंकार हो गया उसके ज्ञान का नाश हो जाता है, और जिसको शक्ति का
अहंकार हो गया उसकी शक्ति का नाश हो जाता है। इस प्रकार से मानव जाती का सबसे बड़ा
शत्रु उसका अहंकार है। हमें सूर्य से प्रेरणा लेनी चाहिए जो निरंतर मानव जाती के
कल्याण के लिए कार्य करता है, जिसके कारण ही शांति और समृद्धि समग्र जगत में
व्याप्त है।
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