👉 महाराज सगर की न्याय शीलता
🔷 सूर्य वंश में महा सगर बड़े प्रतापी और विख्यात
नरेश हो गये है। संतान के लिए उन्होंने अनेक साधु सन्तों की सेवा की तो उनको संतान
की प्राप्ति हुई। पर भाग्यवश उनका बड़ा पुत्र बड़े दुष्ट स्वभाव का निकला। वह बालकों
को पकड़कर अकारण ही सरयू नदी में डुबा देता था। जब प्रजा ने इस बात की शिकायत राजा
से की तो उन्होंने राजपुत्र को न्यायालय के समक्ष बुलाया। यद्यपि मंत्रियों ने उसे
पागल बताकर क्षमा करने का आग्रह किया, पर राजा ने उसे दोषी पाकर
अपने राज्य से निकाल दिये जाने का दण्ड दिया। साथ ही उन्होंने यह भी आज्ञा दे दी कि
“जो कोई उसे ठहरा कर उसकी किसी प्रकार की सहायता करेगा वह भी दण्डनीय होगा।”
🔶 राजा की दूसरी रानी से और भी बहुत से पुत्र
हुये थे पर वे कपिल मुनि से दुर्व्यवहार करने के कारण भस्म किये जा चुके थे। रानियों
ने इस पुत्र को क्षमा करने के लिए बहुत कहा पर सगर न्याय पथ से विचलित न हुए उनने
पुत्र को देश निकाला दे ही दिया। राजा सगर ने असमंजस के पुत्र अंशुमान् को बुलाकर
अपने पराये का विचार न करते हुए उसे अच्छी तरह शिक्षा दी और राज्य सिंहासन का
उत्तराधिकारी नियत किया। अन्याय मूलक काम चाहे अपने सगे सम्बन्धियों द्वारा ही
क्यों न किया जाय, उसे सहन करना अन्याय को प्रोत्साहन देना है।
📖 अखण्ड ज्योति 1961 जुलाई
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