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मोह का दुष्परिणाम
🔶 विद्याधर नाम के पंडित के तीन पुत्रों में
से धर्म शर्मा सबसे छोटा था। घर में सब प्रकार से सुख पूर्वक रहने के कारण उसका मन
विद्याध्यायन में नहीं लगता था और अवसर आने पर भी वह पढ़ने के लिए गुरुकुल में
प्रविष्ट नहीं हुआ। इस पर उसके पिता ने उस की बहुत भर्त्सना की और आस-पास के लोग
भी उसकी बुराई करने लगे। तब उसने साधु सेवा का व्रत लिया और उन्हीं की सत्संगति से
उसे शास्त्रों का पूर्ण ज्ञान हो गया। कहाँ तो वह मूर्ख माना जाता था और कहाँ अब
बहुसंख्यक व्यक्ति उससे शिक्षा प्राप्त करने आने लगे।
🔷 एक दिन एक व्याध एक तोते के बच्चे को लेकर
उसके पास आया। बच्चा उसे बड़ा सुन्दर लगा और उसने उसे खरीद लिया। तोता ऐसा चतुर था
कि वह शीघ्र ही स्पष्ट रूप से मानव भाषा बोलने लगा और तरह तरह से वार्तालाप करके
धर्म शर्मा को प्रसन्न रखने लगा। धीरे-धीरे धर्म शर्मा को तोते से ऐसा प्रेम हो
गया कि उससे बढ़कर संसार में उसे कुछ भी अच्छा नहीं लगता था। एक दिन जब वह स्नान
को गया अकस्मात् किसी प्रकार पिंजड़े के खुल जाने से एक बिलाव तोते को पकड़ ले गया
और खा डाला। इस घटना से धर्म शर्मा को इतना खेद हुआ कि उस तोते के लिए शोक करते-
करते ही उसने प्राण त्याग दिये, और परिणाम स्वरूप दूसरे जन्म में उसका
जन्म तोते की योनि में ही हुआ। अति मोह किसी का भी अच्छा नहीं होता और बुद्धिमानों
को उससे बचकर ही रहना चाहिए।
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