👉 चालाक बगुला और केकड़ा
🔷 एक बार समुन्द्री जीव जब सुबह की धूप सेकने
किनारे पर आए तो अपने शत्रु बगुले को एक टांग पर खड़े प्रार्थना करते देखा। आज उसने
उन पर आक्रमण भी नहीं किया था।
🔶 सभी को बड़ा आश्चर्य हुआ कि इस बगुले को क्या
हुआ। कुछ साहसी मछलियां, कछुए और केकड़े इकट्टे होकर उसके पास पहुंचे
और पूछा- ”क्या बात है बगुले दादा। आज किस चिंता में हो?“
🔷 ”भाई लोगो! मैंने आज से भगताई शुरू कर दी है।
कल ही मुझे स्वप्न आया कि दुनिया खत्म होने वाली है, इसलिए क्यों न
भगवान का नाम लिया जाए और सुनो, यह तालाब भी सूखने वाला है।
तुम लोग जल्दी ही किसी दूसरी जगह चले जाओ।“
🔶 ”क्या तुम सच कह रहे हो।“ ”हां भाई! मैं भला
झूठ क्यों बोलूंगा। तुम देख ही रहे हो कि अब मैं तुम लोगों का शिकार भी नहीं कर रहा
हूं क्योंकि मैंने मांस खाना भी छोड़ दिया है। राम…राम…राम…।।“
🔷 बगुले का साधुपन देखकर सबको भरोसा आ गया
कि बगुला भगत जो कह रहे हैं, सच है। ”बगुला भगत जी! अगर यह तालाब
सूख गया तो हमारे बाल बच्चे तो तड़प-तड़पकर मर जाएंगे।“ मेंढक ने कहा- ”कोई उपाय
करो।“
🔶 ”भाई मैं आज रात ईश्वर से बात करता हूं, फिर
जैसा वह कहेंगे तुम्हें बता दूंगा। मानना न मानना तुम्हारी मर्जी।“ सभी लोग बगुला
भगत के पांव छूकर चले गए। दूसरे दिन बगुला भगत ने बताया कि भगवान ने कहा है कि अगर
आप सब बगल वाले जंगल के तालाब में चले जाओ तो बच जाओगे।
🔷 ”मगर हम वहां जाएंगे कैसे?“ सबने
चिन्ता जाहिर की। ”यदि यहां से वहां तक एक सुरंग खोद ली जाए तो…।“ एक कछुआ बोला।
”अरे भाई ये क्या आसान काम है?“ केकड़ा बोला- ”और फिर इतनी
लम्बी सुरंग कौन खोदेगा।“
🔶 तभी एक मछली बोली- ”एक और भी उपाय है। बगुला
भगत जी हमें अपनी पीठ पर बैठाकर वहां छोड़ आएं।“ यह सुनते ही बगुला भगत बोला- ”मैं
तो अब बूढ़ा हो गया हूं। इतना बोझा भला…।।“
🔷 ”भगत जी! आप हमें एक-एक करके वहां ले जाओ।
आप तो अब साधु हो गए हैं और साधु का काम है दूसरों की रक्षा करना।“ सबने गुहार लगाई।
”अब जब आप इतना कह रहे हैं तो ठीक है। आओ, ये शुभ काम मैं आज से ही
शुरू कर दूं। आओ, तुममें से एक मछली मेरी पीठ पर बैठ जाए।“
🔶 एक चतुर मछली फौरन उछलकर उसकी पीठ पर बैठ गई।
बगुला भगत उसे लेकर फौरन उड़ गया।
🔷 इसी प्रकार कई दिन गुजर गए। बगुला रोज दो-तीन
मछलियों,
मेंढकों, कछुओं आदि को ले जाता रहा। एक दिन
केकड़े की बारी आई। केकड़ा उसकी पीठ पर सवार था। बगुला भगत सोच रहा था, आज तो मजा आ जाएगा। केकड़े का बढि़या मांस खाने को मिलेगा।
🔶 उधर, एक पहाड़ी पर से गुजरते
हुए केकड़े को ढेर सारी मछलियों की हडिृयां, कछुओं के खोल और
मेंढकों के पिंजर पड़े दिखाई दिए तो वह बगुले भगत की सारी चालाकी समझ गया और बिना
एक पल गंवाए उसने बगुले की गरदन दबोच ली।
🔷 ”अरे केकड़े भाई, क्या
करते हो?“ बगुला चिल्लाया। ”पाखण्डी बगुले। फौरन मुझे मेरे
तालाब पर वापस लेकर चल वरना बेमौत मारा जाएगा। मैं तेरी सारी चालाकी समझ गया। अब
चूंकि तू बूढ़ा हो चुका है, इसलिए तुझसे शिकार नहीं होता।
इसीलिए तूने यह चाल चली और भोली-भाली मछलियों को यहां लाकर खा गया। अब अगर जिंदगी
चाहता है तो वापस चल वरना तेरी कब्र भी यहीं बन जाएगी।“
🔶 बगुला मरता क्या न करता। वह वापस पलटा और उसी
तालाब पर आ गया। उसका ख्याल था कि केकड़ा उसे छोड़ देगा, मगर
केकड़े ने उसे छोड़ा नहीं। उसने उसकी गरदन काट दी और तालाब में जाकर सबको उसकी
हकीकत बता दी।
🔷 मौत के मुंह से बच गए सभी जीव केकड़े का
धन्यवाद करने लगे।
शिक्षा – जिसका स्वभाव धूर्तता का हो, उस पर भरोसा करने से धोखा ही मिलेगा।
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