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स्वयं पर विश्वास ही सफलता का पैमाना है

 

👉 स्वयं पर विश्वास ही सफलता का पैमाना है

 

🔷 सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉक्टर जगदीशचंद्र बोस ने यह खोज की थी कि सभी पेड़-पौधों में जीव-जंतु एवं प्राणी की तरह ही प्राण होते हैं, वे दुःख-दर्द का अनुभव करते हैं। यदि पौधों को जहर दे दिया जाए, तो वे भी मर जाते हैं। अपने इस शोध का प्रदर्शन करने के दौरान, इंग्लैंड में उन्होंने एक इंजेक्शन में जहर भरकर उसे एक पौधे में लगा दिया, लेकिन पौधा मरा नहीं। वहाँ  पर एकत्रित भीड़ उनकी हंसी उड़ाने लगी ।

 

🔶 चूकि उन्हें अपनी खोज और उससे कहीं ज्यादा अपने आप पर पूरा भरोसा था, उसी वक्त उन्होंने सोचा कि जब यह पौधा इस जहर से नहीं मर सकता, तो मैं भी इस जहर से कैसे मर सकता हूँ?

 

🔷 वे उसी जहर का इंजेक्शन स्वयं में भी लगाने को तैयार हुए कि आयोजकों में से एक व्यक्ति ने उनका हाथ रोककर कहा- ‘सर, हमने जहर के स्थान पर इस शीशी में रंगीन पानी भर दिया था।‘

 

🔶 डॉक्टर बोस ने वह प्रयोग वास्तविक जहर से दोबारा किया और पौधा धीरे-धीरे मुरझा गया।

 

🔷 उन्होंने अपने प्रयास और स्वयं पर इतना अटूट विश्वास था कि अंत में पूरे विश्व को उनकी इस खोज पर पूर्ण मान्यता देनी पड़ी।

 

🔶 तो दोस्तों , यह होती है स्वयं पर विश्वास की ताकत | अगर डॉक्टर बोस को अपने ऊपर इतना विश्वास नहीं होता तो वह भी और लोगों की तरह ही अपनी खोज को बेकार मान लेते लेकिन अपनी विश्वास के दम पर उन्होंने पूरे विश्व को झुका दिया।

 

🔷 अगर हमें अपने आप पर भरोसा है , विश्वास है तो सिर्फ ये सोच लेने से ही “कि मैं इस कार्य को ज़रूर कर लूंगा ” हमारे अंदर इतना आत्मविश्वास आ जाता है कि हम बड़े से बड़ा और मुश्किल से मुश्किल कार्य भी बहुत आसानी से कर देते है और अपने आत्मविश्वास कि बल पर हम दुनिया को झुका सकते है।

 

🔶 अगर हमें अपने आप पर अटूट विश्वास है तो दूसरे लोग भी हम पर भरोसा करेंगे और ये ही हमारी

 

 

हमारे छोटे से प्रयास से भी बहुत बड़ा फर्क पड़ता है

 

🔶 एक व्यक्ति रोजाना समुद्र तट पर जाता और वहाँ काफी देर तक बैठा रहता। आती-जाती लहरों को लगातार देखता रहता। बीच-बीच में वह कुछ उठाकर समुद्र में फेंकता, फिर आकर अपने स्थान पर बैठ जाता। तट पर आने वाले लोग उसे मंदबुद्धि समझते और प्रायः उसका मजाक उड़ाया करते थे। कोई उसे ताने कसता तो कोई अपशब्द कहता, किंतु वह मौन रहता और अपना यह प्रतिदिन का क्रम नहीं छोड़ता।

 

🔷 एक दिन वह समुद्र तट पर खड़ा तरंगों को देख रहा था। थोड़ी देर बाद उसने समुद्र में कुछ फेंकना शुरू किया। उसकी इस गतिविधि को एक यात्री ने देखा। पहले तो उसने भी यही समझा कि यह मानसिक रूप से बीमार है, फिर उसके मन में आया कि इससे चलकर पूछें तो। वह व्यक्ति के निकट आकर बोला- भाई ! यह तुम क्या कर रहे हो?

 

🔶 उस व्यक्ति ने उत्तर दिया- देखते नहीं, समंदर बार-बार अपनी लहरों को आदेश देता है कि वे इन नन्हे शंखों, घोंघों और मछलियों को जमीन पर पटककर मार दें। मैं इन्हें फिर से पानी में डाल देता हूं। यात्री बोला- यह क्रम तो चलता ही रहता है। लहरें उठती हैं, गिरती हैं, ऐसे में कुछ जीव तो बाहर होंगे ही।

 

🔷 तुम्हारी इस चिंता से क्या फर्क पड़ेगा?

 

🔶 उस व्यक्ति ने एक मुट्ठी शंख-घोंघों को अपने हाथ में उठाया और पानी में फेंकते हुए कहा – देखा कि नहीं, इनके जीवन में तो फर्क पड़ गया ना? वह यात्री सिर झुकाकर चलता बना और वह व्यक्ति वैसा ही करता रहा।

 

🔷 मित्रों, हमारी ज़िंदगी में भी ऐसा ही होता है। जैसे बूँद - बूँद से घड़ा भरता है वैसे ही छोटे - छोटे प्रयासों से हम अपनी और समाज की ज़िंदगी बदल सकते हैं।

 

🔶 इसलिए किसी भी छोटे कार्य कि महत्ता को कम ना समझे। एक दिन ये छोटे - छोटे प्रयास ही बहुत बड़ा परिवर्तन ला देंगे।

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