भगवान शिव का आशिर्वाद
श्रद्धा पूर्वक हम चतुर्मुखी और अष्टसिद्धी के प्रदाता और आठ चक्रों वाली ब्रह्माण्डिय शरीर के स्वामी त्रीकालदर्शी सर्वज्ञ, सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी और जिनके साक्षात्कार के लिए इन आठ चक्रों को धारण करने वाले मानव चेतना उनकी ही आराधना से इस अयोध्या रुपी अपनी शरीरी से मुक्त होने में सफल होते है। उनकी दिव्य छवि मैं अपने हृदय में धारण करके उनकी साधना और उपासना से इस संसार के मायावी चक्रव्यूह से मुक्त होने की कामना करता हूँ उनके ध्यान में मग्न हो कर ही हम अपने जीवन के हर कदम को आगे बढ़ाते हैं संसार में उनके दिव्य प्रेम के प्रताप को ही देखते हैं।
उत्तर में दूर पृथ्वी की के एक चौथाई स्थान में फैले हुआ, एक शक्तिशाली हिमालय रुपी जो पहाड़ खड़ा है, जिस पर कभी स्वयं भगवान महेश्वर विराजमान हुआ करते थे, जहाँ अति संवेदनशीलता इतनी उत्कृष्ट है कि दुनिया की माँ अर्थात यह पृथ्वी भी उसे पिता कहने को तैयार थी। विशालता के साथ जो शुद्धि का प्रतीक है, जहाँ पर सफेद हंस भी स्वयं को शर्मिदित महसूस करते हैं हिमालय की बरफीली बारिश और उसके द्वारा निर्मित होने वाली झील विशालता असीमता को देखकर। जिसकी आड़ को लेकर सूर्य नित्य उदय और अस्त होता है। जिस सूर्य की छाया संपूर्ण आकाश को अपने आगोश में भर लेती है और जिसकी उपासना के लिए सप्त ऋषि रोज पर्वत की चोटी पर चढ़ कर ध्यान में मग्न होते है। जिस हिमालय की बरफीली चोटियाँ सूर्य के प्रकाश को प्राप्त करते ही सुबह-शाम अग्निमय ज्वाला की तरह से दहकती हैं, जिसके कारण वह सब उपासक अपनी आँखों में उसके आकर्षण को भर कर अभिभूत होकर नित्य परमानंद अर्थात सच्चिदानंद के आनंद में मगन होते हैं और वहाँ उनके उत्तरी चेहरे पर जीवों के भगवान का घर हैं जहाँ सांस लेने वाले या निर्जीव के समान लोग प्रतीत होते हैं। वहीं पर एक दिन शाम को जब दिन की रोशनी पहाड़ के किनारों के घाटियों के अस्थियों से बाहर निकलने वाली छाया से पहले उड़ रही थी, वहीं पर हिमालय की बेटी अपने भगवान के साथ पाँसा पर खेल रही थी और उसने उनसे पाँसें खेल में जीत लिया, पहले उनका प्रि, हाथी का छाल और दूसरा बार उसने उनके गुलाबी खोपड़ियों को और अंत में उसने कहा अब आपके साथ इस शर्त पर खेलूंगी की आप हारने के बाद अपने सर पर धारण करने वाली वस्तु को मुझे दे देंगे और भगवान महेश्वर उनकी आंतरिक इरादा को ताड़ लिया, लेकिन फिर भी कहाँ चलो ठीक है, फिर देवी ने अपने हाथों से पांसों को नीचे फेंका, जिसमें वह जीत गई, जिसके साथ वह आनंदित होकर खुशी से कहा हाँ मैंने जीत लिया, मुझे मेरा जीती हुई वस्तु दे दे, फिर भगवान शिव ने उनको अपने शीर से चन्द्रमा को उतार कर दे दिया, इसके बाद देवी बहुत अधिक क्रोध में चिल्लाते हुए, कहा आप मुझको धोखा दे रहे है, आपके ऊपर मेरा केवल गंगा का ऋण है और आपने मुझको चन्द्रमा को दिया है और मैं इस चन्द्रमा का किस प्रकार से ध्यान रखूंगी, तब भगवान ने कहा हे, हे उचित है, तुम गुस्सा क्यों हो? क्या यह चंद्रमा नहीं है, जो मैं अपने सिर पर धारण करता हूँ? लेकिन उमा एक पालतू जानवर के समान उससे दूर हो गई।
तब चालाक भगवान ने, जिन्होंने उनको अपने क्रोध की सुंदरता का आनंद लेने के लिए केवल छेड़छाड़ की थी, उन्हें मनाने और सुलझाने की तैयारी में कहा आओ, खेल खत्म हो गया है। तो अब, मुझे मेरा चंद्रमा वापिस दे दों, जो आप के लिए बेकार से भी बदतर है, क्योंकि आपके चेहरे के सौन्दर्य के सामने इसका चमक पूर्ण रूप से लूट जाएगा, जिसके कारण यह चंद्रमा हमेशा के लिये पूर्ण हो जाएगा। क्योंकि किसी वस्तु का पूर्ण होना ही उसके अंत और प्रारंभ की शुरुआत हैं। इसके अलावा, मैं कुछ भी नहीं और इसके बिना मैं कुछ भी नहीं कर सकता। तब देवी ने कहा तुम इसके बिना क्यों कुछ भी नहीं कर सकते? और महेश्वर ने कहा तुम्हें पता है कि यह मेरे माथे से वापस ले लिया गया है जो दुनिया है, यह ब्रह्मांड अस्तित्व में तभी रहेगा। जब यह मेरे माथे पर रहेगा, तब उमा ने कहा वह कैसे हो सकता है? और भगवान ने कहा सभी बनाई गई चीजों में से, नया चंद्रमा सबसे अच्छा है। अर्थात यह मन ही इस संसार रुपी संपूर्ण विश्व ब्रह्माण्ड का आदि मुल श्रोत हैं और इसलिए यह है कि मैं इसे अपने बालों में पहनता हूँ, उस शक्ति के प्रतीक के रूप में जो सभी गति को प्रदान करने वाले जीवित और निर्जीव का केन्द्र है। क्योंकि सौंदर्य ही दुनिया का लिए शासक रूप में है और इसके बिना, सभी अंधेरे में गिर जाएंगे और गतिहीन होंगे और इसके साथ एक कहानी जुड़ी हुई है। तब देवी, जिज्ञासा से भर कर कहा मुझे कहानी बताओ और मैं तुम्हें आपका चंद्रमा दे दूंगी और अपने धोखे के लिए आप को माफ कर दूंगी और फिर महेश्वर ने कहा बहुत अच्छी बात है। इस चन्द्रमा रुपी मन के लिए वह वही था जो उसने स्वयं को करने की कामना की थी।
फिर उमा ने भगवान शिव को उनका चन्द्रमा वापिस दे दिया, जिसको भगवान शिव ने अपने शीर पर भूरे बालों के मध्य में धारण कर लिया। फिर वह नीचे अपने आसन पर बैठ गये, सीधी खड़ी चट्टानें के सहारे अपनी पीठ को लगा कर और उमा को अपनी गोद में ले लिया और वह अपने सर को भगवान शिव के छाती पर रख कर उत्सुकता के साथ उनकी कहानी को सुनने के लिए भगवान शिव के मुंह को निहारने लगी।
लेकिन जैसे ही भगवान शिव ने कहानी को कहना शुरु करना चाहा तभी उनकी निगाह पर्वत की चोटी के नीचे पड़ी, जहाँ पर वह खड़ें थे, उनके नीचे पहाड़ी के किनारे, वहाँ से बहुत दूर, एक आदमी, ठंडे सफेद बर्फ पर दर्द से पीड़ित हो कर इधर उधर विचरण कर रहा था और वह उस विशाल जंगल के बीच में एक चींटी की तरह दिखाई दे रहा था, जो रेगिस्तान में नमक के टुकड़े के बीच खो गया था। तब उमा को भगवान ने कहा देखो। वहाँ एक आदमी है। वह यहाँ क्या कर सकता है, जहाँ कोई प्राण घातक कभी नहीं आता है? इंतजार करना और देखना बेहतर था। तब देवी ने कहा तुम मुझे फिर से धोखा देने वाले हो। यह मेरी कहानी के बारे में धोखा देने के लिए एक चाल है और महेश्वर ने कहा नहीं, आप निश्चित रूप से देरी के बिना सुनेंगी। लेकिन सबसे पहले हमें यह पता चलने दें कि इस गरीब प्राणघातक का उद्देश्य क्या है और उन्होंने उस आदमी को अपने पास बुलाया, ओ आदमी इधर आओ वहाँ तुम क्या तलास रहें हो। और तुम कौन हो? और यहाँ बर्फ के मध्य में अकेले चढ़ाई क्यों कर रहे हों?
फिर भगवान शिव की आवाज़ को सुनकर, जो पहाड़ियों के बीच गरज के समान गूंजती थी, वह आदमी बर्फ पर नीचे गिर गया और उसने कहा हे महेश्वर, वरदान देने वाला, निश्चित रूप से यह है कि मैं सुनता हूँ और कोई दूसरा नहीं, मैं आपके पास एक बहुत मुख्य कार्य के लिए आया हूँ और मेरी सारी आशा तुम्हारे भीतर है। जैसा कि आपको मेरे बारें में सब कुच पता है कि मैं स्वयं कथक हूँ और जो पाटलीपुत्र के राजा हैं, जिनका मैदानी इलाके में पहाड़ियों के नीचे अपना राज्य है और वह आराम करने के लिए हर रात को मैं उसे एक कहानी सुना करता था, उसे बेवकूफ बनाने और उसकी आंखों में नींद लाने के लिए। तो चौदह साल तक मैंने उसे हर रात एक कहानियाँ सुनाई और आखिरकार, एक रात, जब वह बिस्तर पर जाने के लिए समय पर आया, तो मैंने उससे कहा हे राजा, मेरी कहानियों का संग्रह आज समाप्त हो गया है और मेरी कल्पना भी खत्म हो गई है, और अब मैं तुम्हें और कोई कहानी नहीं सुना सकता। फिर उसने मुझे अपनी लाल, गुस्से से भरी आंखों से देखा और उसने कहा ऐ कुत्ता यह कैसे हो सकता है? क्या मैं तुम्हारी कहानीयों के संकाय के खत्म होने के कारण सो जाऊंगा? तो मैं उसके सामने अपने चेहरे नीचे गिरा लिया और कहा हे राजा आप मुझपर दया दिखाओ। लेकिन मैं खाली हूँ और मेरे आविष्कार का फव्वारा सूख गया है। तब उसने कहा पता है कि अब तुम मेरे कथक नहीं हो, लेकिन दूसरा तुम्हारा स्थान है। और इसको जान लो मैं तुम पर दया कर रहा हूं, इसलिए मैं तुमको मात्र तीन महीने का समय देता हूँ, जिसके बाद तुम मुझे नित्य नई-नई कहानीयों को सुना कर मेरी जिज्ञासा को शांत करोगे, इसके सिवाय तुम्हारे पास कोई भी दूसरा रास्ता नहीं होगा, जिसके कारण मैं तुम्हारे खाली दीमाग के साथ तुम्हारी शरीर रक्षा करने वाला हूं, यदि तुम ऐसा करने में असफल रहते हो तो मैं पहले तुम्हारी बेकार की जिह्वा को तुम्हारे मुंह से निकाल कर फाड़ दूंगा और इसके बाद मैं तुम्हारे परिवार और रिश्तेदारों को जमीन से बेदखल करके उनको नष्ट कर दूंगा, ठीक उसी प्रकार से जिस प्रकार के क्रोधित हवा भंयकर तूफान या बवंडर का रूप ले कर पेड़ों को जमीन से उखाड़ कर दूर फेंक देती है, वारिस के शुरुआती मौसम में और इसके बाद क्रोधित राजा ने तत्काल ही अपने आदमीयों को मेरे घर पर भेज कर मेरे कुटुंब के सभी सदस्यों को अपने कब्जे में कर लिया है। गिरवी रूप में जिनको मेरे वापिस होने पर ही छोड़ेगे, ऐसा ना होने पक वह सब को मार देगा और जब मुझे कोई दुसरा आश्रय नहीं मिला तो मैं आपके चरणों में आ गया, रात दिन की यात्रा करके बिना खायें पीये यूं ही भूखा प्यासा। और आपने मेरे अतीत, वर्तमान और आने वाले मेरे भविष्य को जान लिया हैं और अब मैं आपके हाथों में हूं।
तब महेश्वर ने अपनी पत्नी उमा से कहा तुम देखती हो, हमारा इंतजार करना अच्छा था और अब, यह दुर्भाग्य पूर्ण कथक बहुत ही अच्छे समय में पहुंचा है। तो उसे भी हमारी कहानी सुननी चाहिए। लेकिन उसके लिए अच्छा या बुरा क्या हैं, इसका निर्णय अकेला समय ही कर सकता है। तब भगवान शिव ने कथक को उठा कर अपने बालों में डाल लिया और मात्र भगवान के हाथों के स्पर्श से ही कथक की अपनी सारी तनाव और थकावट से एक पल में ही उससे दूर हो गई और वह भगवान के मटमैले बालों की छाया में बैठा गया, कहानियों को सुन कर अपनी मनोदशा को उखाड़ फेंकने के लिए, जो विशाल वृक्षों के जंगल की तरह प्रकाशित हो रहे थे।
और फिर भगवान शिव ने कहानी को शुरु किया और जैसे ही बोला, जिसको सुनने के लिए गन्धर्व, किन्नर, सिद्ध और विद्याधर उनके पास शोर गुल करते हुए गये और उन सब को भी परमेश्वर भगवान शिव ने अपने बालों में एकत्रित कर लिया, जहाँ पर वह सब एक साथ शांत चित्त होकर जिज्ञासा के साथ उनकी कहानी पर अपने कान को लगा लिया।
मानव द्वारा देवताओं की अस्वीकृत
बहुत समय पहले की बात है, बहुत शुरुआत में, जब दुनिया और उसके सभी प्राणियों और यहाँ तक कि देवताओं भी युवा थे, वहाँ एक निश्चित देश में एक राजा रहता था जो मर गया, राज्य को अपने उत्तराधिकारी के पास छोड़ दिया, और यह वारिस केवल अठारह वर्ष का था और उसका नाम रत्नेश था और यद्यपि वह व्यक्तिगत रूप से प्यार और युद्ध के देवताओं के संयोजन जैसा दिखता था और अपनी सभी वस्तुओं से बहुत प्यारा करता था, वह उदार और गर्म-स्वभाव पूर्ण और खुले दिल वाला और भरोसेमंद इसके साथ दुनिया के तरीकों से अनुभवहीन भी था, जिसके कारण ही उसको उसके सिंहासन से च्युत कर दिया गया, उसके संबंधियों की योजनाओं का वह आसान शिकार बन गया, जिन्होंने उनके खिलाफ बहुत बड़ा षड्यन्त्र किया था, जिसके कारण ही अपने मामा द्वारा उनके सिंहासन से हटा दिया गया था, जिन्होंने पहले उसको अपना विश्वास पात्र बनाया फिर उसने विश्वासघात से उन्हें राज्य से बाहर निकाल दिया, उनके पास कुछ भी नहीं छोड़ा सिवाय उनके जीवन के।
इसके कारण अपनी जान बचाने के लिए रत्नेश अपने राज्य को छेड़ कर वहाँ से भाग गया और छिपने के स्थान के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमने लगा, जिसके कुछ समय के बाद उसने अपने एक पड़ोसी साम्राज्य में शरण ली, एक देश के राजा से एक भटकने वाले राजपूत बनने के बाद, अपने तलवार के साथ और भुखमरी के कारण, या दूसरों पर निर्भरता के अलावा वह कुछ भी नहीं कर सकता था। जिसकी वजह से अपने गुस्से में खो गया और तीनों लोकों कि हर वस्तु के प्रति एक समान क्रोध से भर गया और उसने श्राप दिया, पहले खुद को और उसके बाद अपने मामा को और फिर अपने सभी संबंधियों को भी और अंततः देवताओं को भी उसने श्राप दे दिया। और उसने कहा हे देवताओं, मैंने तुम्हें अपने आप से सब तरह से दूर कर दिया है और आपको अस्वीकार कर दिया। मेरे पूरे जीवन के लिए मैं पवित्र हूँ और अपनी दिव्यता की खेती की है और अपने आपको प्रशंसा और प्रसाद के साथ सम्मानित किया है और फिर भी वापसी के रास्ते से, आपने मुझ पर कोई ध्यान नहीं दिया है और मुझे इस स्थिति में आने की अनुमति दी है। अब, इसलिए, मैं नास्तिक बन गया हूँ और अपने क्रोध में उन्होंने देवताओं के साथ दुर्व्यवहार किया, उन्हें सभी नामों से बुलाया और फिर उसने कहा अब से मैं आप में से किसी की भी पूजा नहीं करूँगा, केवल अकेले उनकी जो मेरी श्रद्धा और उपासना के योग्य है, देवियों में जो सबसे बड़ी महान देवी है, जिसके पास हर प्रकार का ऐश्वर्य प्राप्त करने का मुझको सौन्दर्य और सौभाग्य मिलता है, जो मेरे जीवन को चमकाने में जो समर्थ हैं। जिसने तीनों लोकों पर कभी शासन नहीं किया है। यद्यपि वह समुद्र के अन्दर विद्यमान हर प्रकार के रत्नों और छुपे खजाने कि मालकिन हैं, इस प्रकार से वह देवियों की आराधना में मदमस्त पागल हाथी के समान हो कर इधर-उधर घूमने लगा और कहने लगा ओ कमला, ओ पदमा, ओ श्री, ओ लक्ष्मी ओ सुन्दरियों के सौन्दर्य की देवी और कमलों सबसे श्रेष्ठ कमल वाहिनी अपनी दया और करुणा का प्रदर्शन कीजिये अपने दुःखी उपासक के ऊपर, आप मेरी अन्तर आत्मा की मुख्य श्रोत हैं, यद्यपि आप ही समुद्र की लहरों में उसको मथ कर जिस प्रकार से दूध को मथ कर उसकी मलाई निकाली जाती हैं उसी प्रकार से आप समुद्र के पानी को मथ कर उसमें से मलाई के समान झाग निकालने में समर्थ है, आपके कारण ही पानी में बुलबुले उठते हैं और आकाश में बिजली चमकती हैं, जिस समुद्र के अंदर सारे संसार की नदियाँ मिल कर समा जाती हैं, आपकी शक्ति से जंगल में अग्नि रूप ज्वाला विद्यमान होती हैं जैसे औरतों के हृदय में छल, कपट, ईर्ष्या और द्रोह विद्यमान होता हैं, जो उनके चंचल मन में झूठ छाया की तरह से बदलता रहता हैं, जिसके कारण ही हम जैसे साधारण जन का इस संसार में वेड़ा पुरी तरह से गर्क होता हैं, अर्थात हम जैसे का जीवन बर्बाद होता है। जो एक सहृदय मानव को बर्बाद करके किसी दूसरे मानव की तलाश में इधर उधर मुंह मारती फिरती हैं और कहीं भी किसी पुरुष के साथ जो लंबे समय तक नहीं रहती हैं, आप ही धनता की देवी रूप हैं, जिस धन की देवी का केवल एक सिद्धांत हैं कि वह संसार के विलासिता को चाहती हैं और जिसके पास उसका संग्रह हैं उसके पास ही ठहरती हैं, जिसके कारण ही एक पल में आदमी राजा के समान बहुत अधिक धनवान बन जाता है और दूसरे पल वह राजा निर्धन बन जाता हैं जैसे वह अनादि काल से संस्कारित किया गया हो सड़क पर भीख मांगने के लिए, उसके लिए कभी भी आप अपने आप को जिम्मेदार नहीं मानती हैं, लोग कहते हैं कि उसका भाग्य ठीक नहीं था और इसका कर्म ही खराब था। लेकिन मैं जानता हूं कि इसके पीछे मुख्य कारण आप सब की कृपा और अकृपा हैं जो नादान प्राणी नहीं जानता है। आप ही केवल मेरी एक देवी हैं क्योंकि आप के पास ही सत्य दिव्य की शक्ति का सामर्थ्य है, इसलिए मैं केवल आपके चरणों की उपासना करता हूं। ओ सुन्दरता की देवी आपकी चमक के साथ आपके अनुग्रह रूप में स्त्रैण अवतार हैं, जिसमें सफेद सुडौल घुमावदार और जबरदस्त विश्वासघाती समुद्र के झाग के रूप में, सर्वव्यापी, घबराहट, बेवकूफ, असंगतता, रेत के रूप में घुलनशील, सपनों के रूप में असंतुलन है, मैं आपकी लंबी धोखेबाज नशीली आंखों के रंग की पूजा करता हूँ और आपकी लहर की तरह अंगों की अपमानजनक उभार है। मैं आपको एक मतदाता और एक पीड़िता के रूप में खुद को पेश करता हूँ, जैसा आप मेरे साथ करेगी वैसा करो। मुझे उठाओ या मुझे नीचे गिरा दो, सब मेरे लिए समान है, क्योंकि मेरी भक्ति पूर्ण है, क्योंकि आप मेरी दिव्यता हो और आपकी खुशी ही मेरी किस्मत है।
और जैसे ही वह वहाँ से इस प्रकार कहता हुआ आगे बढ़ता चलाजा रहा था, तभी ऐसा हुआ कि भाग्य के आदेश से, जल-लिली ने उसके कहें हुए शब्दों को सुना और उसके जानकारी के बिना, वह जो भी उसने कहा, उसे सुनने के लिए उसके पास आई और वह अपनी प्रशंसा से बहुत खुश थी, जितनी अधिक वह हो सकती थी, क्योंकि वह उन सब जल लिलीयों में सबसे नई थी, खुद को लेकर उसके पास चली गई, यद्यपि वह हाल ही में समुद्र से उठी थी और उसने उसे अपनी कमल की आंखों के कोने से बाहर देखा और देखा कि वह बहुत छोटा और बहुत सुन्दर था और उसने अचानक उसकी कल्पना के द्वारा उसे पीड़ित किया। इसके बाद तब उसने अपनी आराधना को समाप्त कर दिया, तो उस जलपरी ने उसके ऊपर अपनी मंजूरी की एक नज़र डाली और अपने मधु युक्त होठों से मुस्कुराया उसको वेसूध करने के लिए, जिसका मिथ्याभिमान और झूठी प्रशंसा लुप्तो हो चुकी थी और उसने कहा आओ मैं तुम्हारी निर्दोषता को प्रमाणित करती हो तुम एक सच्चे सीधे साधे दिखने वाले युवा राजकुमार हो तुम्हें अब किसी द्वारा धोखा नहीं दिया जायेगा। जब से तुमने मेरी दिव्यता के सामर्थ्य को स्वीकारा है, और किसी देवी देवता की आराधना को त्याग कर श्रद्धा पूर्वक मेरी आराधना की बहुमूल्यता के साथ पुजा और सत्कार किया हैं जिसके कारण मैं तुम पर बहुत अधिक प्रसन्न हूं।
तो इस तरह से उसने बहुत रात तक, उसे अपनी सेवा करने के लिए, उसने उसके सिर में एक अजीब विचार डाल दिया और फिर रत्नेश ने खुद से कहा अब मैं ऐश्वर्य शाली शौभाग्यवती और एक जुआरी का उपासक बन गया हूँ और अब मुझे उसे सबूत में रखना होगा और देखें कि वह मेरे लिए क्या करेगी। यहाँ तक कि वह उन लोगों के लिए कुछ भी नहीं कर सकती जो अभी भी बैठते हैं और उन्हें अपना हिस्सा लेने का कोई मौका नहीं देते हैं। तो वह बाहर चला गया और शहर की सड़कों पर ऊपर और नीचे घूमता रहा, जिस तरह से मौका उसके रास्ते में मिल सकता है और जब वह राजा के महल से गुज़र रहा था, तो उसने ऊपर महल के एक टावर के शीर्ष पर चारों तरफ आठ खिड़कियों वाला एक कमरे को देखा, जो आकाश के प्रत्येक बिंदु पर एक था और जब वह वहाँ पर खड़ा था, तब शहर के एक आदमी ने उससे कहा राजपूत, आप किस लिए यहाँ पर खड़े हैं? क्या आप नहीं जानते कि यहाँ उस जगह को देखने के लिए भी मना किया गया है, जहाँ राजा अपना सबसे बड़ा मोती रखता है। तब रत्नेश ने खुद से कहा मुझे आश्चर्य है कि वह किस प्रकार का मोती हो सकता है, और कौन होगा जिसे इस प्रकार के मोती को देखने के लिए भी अनुमति नहीं है और वह जिज्ञासा से भरा गया और जैसे ही वह वहाँ से आगे चला गया, जल-लिली ने इसे लौ में उड़ा दिया, जब तक कि वह अपनी इच्छा पूरी करने की ज्वलंत इच्छा महसूस नहीं कर लेता और आखिरकार, उसने कहा मैं इस रात को जाऊंगा और किसी भी तरह या अन्य चढ़ाई करूंगा और अपनी आंखों के साथ इस अद्भुत मोती को देखूंगा।
इस लिए उसने अपने ले एक तीर वाम कि व्यवस्था की और एक बड़ी रस्सी और रस्सी को लपेट कर एक इच्छा बना लिया और यह सब कुछ अपने साथ लेकर मध्य रात्रि के समय में अपने स्थान से निकल पड़ा और वह नगर की मुख्य गली में जाकर एक छायादार वृक्ष के नीचे अंधेरे में छुप गया। क्योंकि उस समय रात्रि के मध्य में आकाश से चन्द्रमा अपने प्रकाश के द्वारा महल के सबसे ऊंची इमारत को प्रकाशित कर रहा था, इसलिए उसने स्वयं को सड़क के दूसरे किनारे पर अंधेरी रात्रि में एक नए खुदे हुए कब्र जैसे स्थान में घूस कर छुपा लिया और इंतजार करने लगा चन्द्रमा के प्रकाश को महल की इमारत से अन्यत्र जाने के लिए और जैसे ही चन्द्रमा का प्रकाश महल की ऊंची इमारत से अन्यत्र चला गया, तो जल्दी ही वह अपने छिपे हुए स्थान से निकल कर वह बाहर गया और वहाँ से सीधे उस महल के बड़ी इमारत के पीछे पहुंच कर अपने एक वाण में तागें को बांध कर अपनी धनुष की सहायता से इमारत के ऊपर छोर के लिये दिया जिसके कारण वह वाण इमारत के घुमावदार झरोखे में घुस कर वापिस रत्नेश के पास आ गया, जिससे रत्नेश ने तत्काल अपने वाण को छोड़ कर जमीन पर फेंक दिया और उस तांगे में रस्सी को बांध कर तागें के दूसरे किनारे से नीचे खिचने लगा जिसके कारण वह रस्सी उस तागें के स्थान पर इमारत के झरोखे में गुजर कर दुबारा उसके पास एक किनारा आ गई, जिसके अच्छी तरह से उसने रस्सी के दोनों किनारों को पकड़ कर रस्सी के सहारे वह जल्दी-जल्दी किसी बंदर की महल की ऊंची इमारत के ऊपर चढ़ गया और वह खिड़की के पास पहुंच गया और उस खिड़की के द्वारा वह महल के अंदर प्रवेश कर गया रस्सी को वही बाहर खिड़की के लटकता हुआ छोड़ कर।
खिड़की के सहारे से महल के कमरे में पहुंचने के बाद वह कमरे में चलने लगा और वह कुछ दूर जाने के बाद आश्चर्य चकित हो कर वहीं पर खड़ा हो गया, क्योंकि उसने अपने सामने बिस्तर पर एक युवा औरत को आभूषणों से सुसज्जित हो कर सोते हुए देखा, उसे देखकर ऐसा लग रहा था जैसे वह चमेली के फूलों और उनके पत्तों से निर्मित बिस्तर पर सो रही हो। जबकि चन्द्रमा अपने प्रकाश से उसको नहला रहा था और चन्द्रमा का प्रकाश उसके शरीर के अंगों से चिपका हुआ था, जैसे वह उसके साथ प्रेम कर रहा हो और वह स्त्रैण दैवीय अवतार के रूप में प्यार के जुनून से दुनिया को जीतने के बाद थकान के कारण नींद की गोद में गिर गयी हो और उसकी बंद आँखों की लंबी लकीर चमक के साथ उसके मुंह तक छाया की तरह उसके गाल पर फैल गईं थी, जो सोते हुए मुसकुरा रही थी, जबकि हवा ने उसकी गर्दन को ढंकने वाले रेशम के वस्त्र को किनारे से उठा लिया था और उसके गले की सुंदरता को नग्न कर दिया था, बस जहाँ वह अपने स्तनों के घुमावदार कोने से मिल रहे थे, वह गुलाबी रंगों के दो उभार धीरे-धीरे उसके सांसों के साथ उठ और गिर रहें थे क्योंकि वह सहजता के साथ सांसे ले रही थी और उसका एक हाथ उसके सिर के नीचे था और दूसरा हाथ जैसे एक खुले फूल की तरह, बिस्तर के किनारे पर लटक रहा था, उसकी कलाई से एक युवा वृक्ष की शाखा के डंठल की तरह।
और जब वह वहाँ पर गतिहीन खड़ा था, अपने दिल में प्यार के तीर के साथ एक लक्ष्य की तरह अपने आपको केन्द्र करके, तभी वह जाग गई, क्योंकि जल कि लीलि ने उसके सपने में प्रवेश लिया था और उसे एक तस्वीर दिखायी और उससे कहा जाग, क्योंकि मैंने तुम्हारे लिए एक पति को ले कर आई हूँ जो स्वयं से काम से अधिक सुंदर है और जब उसने अपनी आँखें को खोला उसे देखने के लिए। वहाँ वह उसके सामने खड़ा था और तुरन्त वह शुरू हो गई और आश्चर्यचकित होकर उसे देखकर खड़ी हो गयी। क्योंकि उसके अपने सपने ने इतना सटीक जवाब दिया था, जिसको देख कर वह स्वयं अपनी आंखों पर विश्वास नहीं कर सकती थी और उसे संदेह हो रहा था कि उसने यह केवल सपने में देखा था कि वह-वह वास्तव में जाग रही थी, या फिर वह अभी भी सो रही थी और फिर थोड़ी देर के बाद, उसने कहा क्या आप एक सच में यहाँ पर हमारे सामने खंडें है? या मेरे सपने कि केवल एक वस्तु की तरह से है? और तब उसने कहा हे नींद की सुंदरता, मैं एक वास्तविकता हूँ लेकिन मेरी इच्छा है कि ऐसा न हो, क्योंकि मैं खुशी से अपने जीवन को आपके सपनों में केवल एक चीज के लिए जब्त कर दूंगा। तब उसने कहा दुनिया में कौन हो और इस दुनिया में से आप मेरे कमरे में कैसे चढ़ आयें हैं, जिसमें कोई भी कभी नहीं आ पाया है, बल्कि मेरी महिला परिचर और हवा के पक्षियों भी नहीं आते हैं? और उसने कहा हे जागृत सौंदर्य की मूर्ति, मैं अवंती का राजा रत्नेश हूँ और मुझको मेरे रिश्तेदारों ने मेरे सिंहासन और राज्य से बहिष्कृत कर दिया है। लेकिन मुझे क्या ख्याल है क्योंकि यह अन्यथा था और मुझे कभी भी आप पर आंखें नहीं रखनी चाहिए थीं।
लेकिन जब उसने उसका नाम सुना, तो उसने कहना शुरू किया और वह अपने कानों पर विश्वास नहीं कर सकी और उसने कहा मुझे अपना नाम फिर से बताओ. फिर उसने ऐसा किया और उसने कहा निश्चित रूप से मुझे अभी भी सपना देखना चाहिए. या क्या आप वास्तव में देवता द्वारा मेरे पास भेजे गये है? शुरुआत से अपनी कहानी बताओ और इसलिए उसने शुरु किया और वह उसको अपनी आँखों को बिना उसके ऊपर से हटाए उसको देखती रही जब वह बोल रहा था। क्योंकि जल परी ने उसकी आवाज में एक प्रकार का संमोहन और आकर्षण पैदा कर दिया था, जिसके कारण राजा की सुंदरता के आकर्षण ने उसको किंकर्तव्यमुढ़ कर दिया था।
और जब उसने अपनी पिछली कहानी को कहना समाप्त कर दिया, तो उसने उससे कहा हे राजा के पुत्र, संदेह से परे देवता ने तुम्हें मेरे पास लाया होगा, क्योंकि इस मामले में एक चीज पूरी तरह से अज्ञात है, इतनी अजीब बात है कि यह नहीं हो सकता खुद का लेकिन अब, सुनो, क्योंकि मेरे पास आपको बनाने का प्रस्ताव है। पता है कि राजा मेरे पिता राजनीतिक गठबंधन के लिए मुझे एक पड़ोसी राजा के लिए दुल्हन के रूप में देना चाहता है और उस राजा की दुल्हन होने की बजाय, मैंने खुद को इस खिड़की से सड़क पर नीचे भागने का इरादा किया था, क्योंकि मैं एक तस्वीर में भी उसकी दृष्टि को सहन नहीं कर सकती हुं और अब आप आ गए हैं, इसी उद्देश्य की पुर्ति के लिए और मुझे बचाने का साधन प्रदान करने के रूप में। यद्यपि आप एक गरीब है और बिना किसी साम्राज्य के हैं, जिसको आप कभी भी वापस नहीं ले पाएगे। परन्तु आप जाति में मेरा बराबर है और जब तक कि सृष्टिकर्ता ने तुम्हारा बाहरी झूठ नहीं बनाया है, तो मेरे आत्मा और आत्मा में भी बराबर है। क्या तुम मेरे लिए एक पति के रूप में हो, क्योंकि मैं तुम्हें पति के लिए चुनने के लिए तैयार हूँ और मुझे रस्सी से नीचे ले चलो, जिसके द्वारा आपने स्वयं को लाया था? क्योंकि मैं अपने लिए पति अपनी स्वतंत्र इच्छा से चुनूंगी और आपकी सारी गरीबी और बुरे भाग्य के साथ साझा करूंगी और इसके लिए आपको आशीष दूंगी। इसके लिए आप कसम खाइये कि आप मेरे साथ हमेशा सौहार्दपूर्ण व्यवहार करेंगे और मेरे साथ अपना सब कुछ सुख-दुःख साझा करेंगे, जैसा कि आप अपने स्वभाव से किसी दूसरे के साथ करते हैं, आपकी सारी परेशानी और आपकी सारी खुशी, इस संसार में और अगले संसार में भई और मैं आपके हाथों में आपकी जमा के रूप में खुद को रखूंगी और ऐसा भी हो सकता है कि मैं आपके सारे बुरे भाग्य को अच्छे से सौभाग्य में बदल दूंगी और यदि नहीं, तो भी मैं आपको धीरज के साथ भाग्य से जो भी आपको मिलेगा उसको सहन करने में मदद करूंगी और अब, कहो क्या आपके दिमाग में किसी प्रकार का व्यापार है? और आप सोच कर मुझको एक उत्तर दीजिये, क्योंकि मैं आपकी आत्मा से कम कुछ भी नहीं खरीदूंगी।
और जब उसने अपनी बात पुरी कर ली थी, तो उसने अपनी सुंदर आंखों के साथ सीधे उसको देखा, जिसमें न तो मूर्खता और न ही डर था और रत्नेश ने उसे वापस देखा और उसका दिल उसकी छाती में जैसे सूख गया हो, क्योंकि उसने न केवल उसकी सुंदरता से बल्कि उसकी आत्मा की ताकत से उसे छू लिया था और वह उसकी खुशी के लिए हँसा और कहा हे स्वर्ग के चौराहे खड़ी अभिभावक के रूप में फरीस्ता, मेरी सुनो। हे उच्च गुणों से युक्त महिला, तुम्हारा प्यार पना अद्भुत है और फिर भी मैं आपके उत्कृष्टता के सामने उसका सबसे छोटा हिस्सा हुं और अब तुम मेरे से बेहतर एक किसी योग्य पति को पाने की योग्यता रखती हो और फिर भी, यदि तुम मेरी पत्नी बनने की इच्छा रखती हो, तो मैं इस जीवन और अगले जीवन में भी आपका स्वामी और आपका संरक्षक बनूंगा और आप मानव रूप में मेरी दिव्यता होगी और इससे पहले कि आप मिठाई और गहने चाहती हैं, मैं खाना और कपड़ों को चाहूंगा और वह नीचे झुक कर उसके पैरो को छूआ और अपना हाथ उसके सिर पर रख दिया और फिर खड़ा हुआ और मुस्कान के साथ उसे देखा और उसने उसे स्नेह से देखा और कहा तुम वह आदमी हो जिसे मैं पति के लिए चाहती थी और अब मैं देखती हूँ कि मेरा सपना सच था और अब मैं तुम्हारी पत्नी और तुम्हारी दासी हूँ।
फिर उसने कहा मेरी प्रिय पत्नी, अब हमें नीचे जाना होगा और इससे पहले कि हम खोजे जायें और फिर भी, हालांकि आप एक बांस के पत्ते के रूप में प्रकाश हैं, यह एक खतरनाक चीज है। क्या तुम प्रयास करने का साहस रखती हैं? तब उसने डरते हुए कहा क्या है? यदि हम गिरते हैं, तो हम एक साथ नीचे गिरेंगे और उसी क्षण हम मृत्यु से मिलेंगे। लेकिन डरो मत क्योंकि मैं अपनी बाहों से तुम्हारी गर्दन से चिपक जाऊंगी। तब रत्नेश हँसा और उसने कहा नहीं, मैं अपने बहुमूल्य मोती को इन नरम और कोमल बाँहों के आसरे रखने का जोखिम नहीं उठाऊंगा। फिर उसने बिस्तर से एक रेशम चद्दर उठा लिया और उसने उस चद्दर को उसकी कमर के चारों ओर कसकर बांध दिया और उस चद्दर के ऊपर से मरोड़ कर रस्सी को मजबूती से बांध लिया। उसके बाद उसने खिडकी के नीचे देखा कि उस समय चौकीदार अपना दूसरा चक्कर लगा कर वापिस जा रहा था और जब वह चला गया तब उसने कहा यहीं अवसर हैं यहाँ से निकलने का, लेकिन तभी उसने कहा रुको मैं अपने धन को अपने साथ ले ले लेती हूं, जो मुझको उपहार के रूप में मिले थे जब मैं छोटी थी और फिर उसने एक कपड़ों का गठरी बनाई और उसमें उसने अपने सारें कीमती गहने और आभूषणों को रख लिया और फिर उसने रस्सी को सहारे उनको पहले सड़क पर फेंक दिया और फिर रत्नेश ने कहा क्या तुम डर तो नहीं हो? और उसने कहा मुझे डर है, लेकिन केवल तुम्हारे लिए. तब उसने कहा अपनी आंखें बंद कर लो और मेरी गर्दन के चारों ओर से पकड़ो लो, अच्छी तरह से पकड़ो। तो उसने वैसा ही किया और फिर रत्नेश ने अपने पैरो के चारों ओर रस्सी पहन कर अपने कमर में कस लिया और उसे अपने हाथों में पकड़ लिया, जैसे कि मृत्यु ने उनको पकड़ लिया हो उससे बचने के लिए और खुद को धीरे-धीरे सड़क पर उतरने दिया। जब वह जमीन पर जब पहुंच गये, तो धिरे से उसे भी सड़क किनारे खड़ा कर दिया। जबकि उनके आँखों के भौंहों के नीचे से पसीने की बुंदे टपक रही थी।
और जब उन्होंने धरती को छूआ, तो उसने कहा तू जितना मजबूत है उतना मजबूत दिखता नहीं है और देवता ने मेरे लिए एक आदमी भेजा है। लेकिन रत्नेश ने उसे अपनी बाँहों में लपेट लिया और उसे चूमा और उसने कहा अब मैं तुम्हें चूम सकता हूँ, क्योंकि हमने एक साथ मौत का सामना किया है और मैंने तुम्हें अपना बना लिया है। लेकिन यहाँ हमें एक पल के लिए भी नहीं रहना चाहिए और उसने कपडों की गठरी को उठाया और जल्दी से चल दिया, उसे अपनी बाँहों में लेकर और पूरी दुनिया को एक भूसे के रूप में समझते हुए और उस ने उस से कहा हम कहाँ जाएंगे, क्योंकि नगर में वे तुम्हें खोजेंगे? तब उसने कहा इस शहर के नजदीक एक और दूसरी जगह है, जो खाली और निर्जन है और तोतों और बंदरों द्वारा निवास किया जाता है। आवो हम वहीं चलेंगे और बाद में, विचार करें कि क्या किया जाना है और मैं तुम्हें रास्ता दिखाऊंगा।
तो वह उसे उस खाली शहर में ले गया, कभी उसे रास्ते में नीचे नहीं बैठने दिया, क्योंकि वह उसे अपनी बाँहों में पकड़ने में खुशी महसूस कर रहा था और आखिर में जब वे वहाँ निर्जन स्थान पर पहुंच गये, तो वह एक आंगन के सामने रिक्त स्थान पर रुक गया और वहाँ से अंदर गया और उसमें एक निर्जन एक पुराना गाय घर अर्थात एक गौ शाला को देखा, जो घास और भूसे से भरा हुआ था और उसने उसे वहाँ पर बैठा दिया और गांठों को खोल कर, उसे रस्सी से मुक्त कर दिया और फिर उसने कहा हाँ। कि मुझे तुम्हें एक महल से ले जाना चाहिए था उसके बजाय मैंने तुम्हें इस तरह के एक बर्बाद छप्पर में ले आया हूं और उसने कहा जहाँ पति है, पत्नी का स्वर्ग वही पर है और उसने फिर कहा हाँ। मैं निर्वासन और भटकने वाला हूँ और मैंने तेरे रिश्तों और तेरे घर से तुझे ले लिया है और उसने कहा क्या पत्नी, उसके पति का बच्चा नहीं है और पति पिता और उसकी पत्नी की माँ है? और उसे किस घर की आवश्यकता है जिसने अपने भगवान के दिल में शरण ली है? फिर उसने अपने बाएँ हाथ को उसके चारों ओर रख दिया और उसके बाएँ हाथ को उसके दाहिने हाथ में ले लिया और उसे चूमा और उसने कहा आपका नाम क्या है? और उसने कहा मुझे रत्नावली कहा जाता है। तब उसने कहा तू अच्छी तरह से नामित है और अब मैं आपके जीवन का पेड़ बनूंगा। आओ और मैं तुम्हें इस त्याग किए हुए महल में एक कमरा बना के दूंगा, जो एक दुल्हन कक्ष के लिए आपकी सेवा करेगा और मैं तुम्हें घास और भूसे का एक अप्रिय सोफे बना दूंगा। इसके लिए हमारी शादी की रात है और देखो, ध्रुविय सितारा भी आकाश में उपस्थित है।
लेकिन इस बीच, देवताओं को पता चल गया यहाँ जो भी हुआ था। क्योंकि उन्होंने अपने प्रति दुर्व्यवहार को सुना था कि रत्नेश ने अपनी निराशा और दुःख का कारण उनको बताया था और जब उन्होंने देखा कि जल-लिली की सहायता से उसने अपनी पत्नी के लिए रत्नावली को प्राप्त कर लिया था, तो वे दोनों देवी और देवता उसके साथ बहुत नाराज थे और वे इस मामले पर चर्चा करने के लिए स्वर्ग में इंद्र के महल में सभी एक साथ एकत्रित हुए और यह निर्धारित किया कि क्या किया जाना है। लेकिन मैं वहाँ नहीं था, क्योंकि मैंने रत्नेश के खिलाफ कोई दिक्कत नहीं की थी, अपने युवाओं और उत्तेजना को जानना था, जिसने अपने विस्फोट का अवसर दिया था और उसे क्षमा कर दिया था और नारायण भी अनुपस्थित थे, क्योंकि रत्नेश से नाराज होने के कारण, वह उनकी पत्नी पर प्रशंसा करने के लिए उससे प्रसन्न थे, जो आप मेरे हैं, जैसा कि आप मेरे हैं। इसलिए मुलाकात की, उन्होंने एक दूसरे से क्रोधित हो कर कहा यह अकेला घृणास्पद और असहिष्णु होगा कि एक प्राणघाती को हमें अपने बल पर नहीं खड़े होने के कारण दुर्व्यवहार को उजागर करना चाहिए और जैसे कि हम अपने उपासकों के दासों के अलावा कुछ भी नहीं थे। लेकिन सभी से भी बदतर, यहाँ जल-लिली ने वास्तव में एक पत्नी के लिए तीनों दुनिया में सबसे खूबसूरत महिला देकर उस दुष्ट को पुरस्कृत किया है, यद्यपि उसके बुरे व्यवहार के लिए दंडित होने की बजाय, उसे वास्तव में एक पुरस्कार प्राप्त हुआ है और यदि यह जारी रहता है, तो हम पूरी तरह से पूर्ववत हो जाते हैं और ब्रह्मांड के स्थापित संविधान को नष्ट कर दिया जाएगा। इसके लिए सभी प्रशंसा, पूजा, यज्ञ और बलिदान पर निर्भर करते हैं लेकिन यदि पुरुषों को इनके बिना हमारे पक्ष मिलते हैं, तो हमें कौन-सा प्रस्ताव देने की पीड़ा होगी? इस प्रकार इस प्राणघातक के आचरण के माध्यम से बुरा है, पानी की लिली की असीम रूप से बदतर है। क्योंकि उसने देवताओं के विरूद्ध एक प्राणघातक नश्वर मनुष्य का हिस्सा लिया है, क्योंकि वह चालाक साथी की चापलूसी से पकड़ी गयी थी।
फिर पानी की लिली हँसने लगी, उन्हें अपनी लंबी आंखों के कोने से बाहर सभी पूछताछ के साथ देख रही थी जो उसके कानों तक पहुंच गईं और उसने कहा निश्चित रूप से मैंने दोष के लिए बहुत कम योग्यता हासिल की है, अगर मैंने अपने उपासक को अपनी स्तुति के लिए पुरस्कृत किया है, जैसा कि आपको पहले बहुत पहले करना चाहिए था। अगर हम उन पर ध्यान नहीं देते हैं, तो ये प्राणियों हमें छोड़ देंगे और हम पर हंसेंगे और फिर हम अपने उचित जीवन की इच्छा के लिए नाश हो जाएंगे और इसलिए यह मैं नहीं बल्कि-बल्कि आप ही सब हैं, जो उन्हें अकेले छोड़ने के लिए दोषी हैं। इसके अलावा, आखिरकार, वह मेरी शक्ति और दिव्यता को अन्य सभी की तुलना में मजबूत मानने में काफी सही है, इसलिए वास्तव में यही सत्य है।
लेकिन उसके शब्दों को सुनकर, देवताओं को गुस्से में डाल दिया गया और कहा छी। छी। और उन्होंने उसे दिखाने के लिए दृढ़ संकल्प किया कि वह ग़लत थी और उसकी गैरजिम्मेदारी के लिये दंडित किया जाये और उन्होंने व्यवस्था की कि इंद्र को धरती पर उतरना चाहिए और उसे ढूंढना चाहिए और उसका उदाहरण बनाना चाहिए. लेकिन उस चालाक पानी की लिली ने खुद से कहा अब मैं इन सभी मूर्ख देवताओं और विशेष रूप से इंद्र को दिखाऊंगी कि सौंदर्य और भाग्य दुश्मनों को दूर करने के लिए भी दुश्मन हैं और उसने पाखंड का खेल खेला और उनसे कहा, अपने सुंदर होंठों पर एक भ्रमपूर्ण मुस्कान के साथ जब कोई गलती हुई है, तो दोषी व्यक्ति के लिए मरम्मत करना चाहिए अर्थात उसको सुधारना चाहिए. इंद्र को नीचे जाने चाहिए, परन्तु मैं स्वयं उन पापियों को इनके सामने प्रस्तुत करूंगी की उनके साथ न्याय किया जा सके और उनके पाप का उनको दण्ड दिया जा सके और मैं अपने द्वारा किये गये शरारत को सुधारूंगी और राजा के लिए मैं तलाश करूंगी की रत्नेश अपनी पत्नी के साथ कहाँ पर रहता है। तब देवताओं को प्रसन्नता हुई, क्योंकि उसने उनकी अपने स्पष्ट आज्ञा अनाकुलता से अपने रक्षकों अपने से दूर कर दिया था और उन्होंने कहा वह बहुत छोटी है और इसके अलावा, वह एक औरत है और निःसंदेह वह उस दुष्ट की सुंदरता और उसकी चापलूसी से उसकी जाल में पकड़ी गई थी लेकिन अब उसने अपना मन बदल लिया है, जो समुद्र के रूप में परिवर्तनीय है वह उठ गई, इसलिए हमें उससे नाराज नहीं होना चाहिए।
अमर ईश्वर और नश्वर मानव
और प्रातः काल दोनो प्रेमी अपने घास फुस के विस्तर पर से उठे, जो उनको देवी की अनुकमंपा से मिला था, घास फुस का विस्तर उनके लिए बहूल्य
रत्न जड़ित महल के सोफे से कही अधिक और आनंदायक प्रतित हो रहा था, इस नस्वर संसार में उस घास फुस के
मकाने में आज उनको जहाँ इस संसार में सब कुछ जहर मिश्रीत हैं वहाँ उनको अमृत का
स्वाद पहली बार मिला गया था, जिसके लिए वह दोनो अहोंभाग्य के साथ अपने जीवन को कृतकत्य मान रहे थे
और फिर देवी की अन्तःप्रेरण के की वजह से रत्नावली ने अपने पति रत्नेश से कहा, मेरे प्रियवर पति यद्यपि हम इस घास
फुंस के विस्तर पर सो सकते हैं, लेकिन यहाँ पर हम दोनों घास फुस को खाकर अपने जीवन का निर्वाह नहीं
कर सकते हैं। मैं चाहति हुं कि आप कुछ देर के लिए यहाँ मुझको अकेला छोड़ कर शहर के
बाज़ार में जाईयें और उसको अपना किमती एक हार जिसमे बहुमूल्य रूबी कबुतर के अंडे के
आकार के जड़े थे उसको हार देते हुए कहा कि आप मेरे इस हार को बेच कर कुछ आवश्यक
खाने-पिने और गृहस्थी की वस्तुओं को खरीद कर लाइये और आते वक्त एक मेरे लिए विणा
को लेकर आईयेगा और इन सब से जो आवश्यक हैं कि आप जितनी जल्दी हो सके उतीने जल्दी
ही लौट आईयेगा, क्योंकि
मैं यहाँ पर अकेले बिना तुमको देखे बगैर नहीं रह सकती हूँ, लेकिन इसके अतिरिक्त य्हाँ खतरा भी है, क्योंकि किसी ने भी हमें यहाँ आते हुए
नहीं देखा हैं और कोई नहीं जानता हैं कि आप मुझको यहाँ पर ले कर आये हैं, फिर भी मैं जानती हुं कि आपके बिना
मेरा यहाँ पर अकेले रहना बहुत मुस्किल हैं, इस खाली उजाड़ महल में लेकिन फिर भी मैं कुछ
देर तक यहाँ पर रह कर तुम्हारा इंतजार कर सकती हूँ। अपनी आँखों को उस रास्ते पर
जमांये हुए जिस पर चल कर हम यहाँ पर आये थे मैं वहीं पर तुम्हारे इंतजार में ताकती
रहुंगी।
फिर रत्नेश ने कहा मैं तुमको यहाँ पर एक पल के लिए अकेला छोड़ने के
पक्ष में विल्कुल नहीं हुं, भले ही यहाँ पर हमको भी गाय की तरह से घास फुस को ही क्यों ना काना
पड़ें, इसके
अलावा मैं यहाँ पर मैं अपमे खाने पिने के लिये कुछ अवश्य तलाश कर लुंगा, लेकिन रत्नावली ने कहा ऐसा नहीं हो
सकता है, मैं
गाय की तरह से यहाँ पर नहीं रह सकती हुं और मैं गाय के समान घास फुस को नहीं खा
सकती हुं मेरे लिए तुमको शहर से खाने की वस्तुओं को लाना ही होगा, फिर रत्नेश ने कहा जैसा तुम कह रही हो
वैसा ही करुगां, लेकिन
इसमें एक संकट हैं कि मैं तुमको अपने साथ में नहीं ले जा सकता हुं, इसलिए मुझको अकेला ही जाना होगा और
उसने रत्नावली के हाथों से उसके हार को ले लिया और वहाँ से तत्काल बाहर निकल गया
उसके कहता हुआ कि तुम अपने आपको यहाँ पर बिल्कुल अकेला मत समझना यद्यपि यहाँ से
जाने के बाद भी मैं हमेंशा तुम्हारें पास हि रहुंगा।
और जैसे ही रत्नेश वहाँ से गया, रत्वानानली ने अपने आप से कहा कि अब मुझको अपने
आप को सजाना और सवार लेने चाहिए, क्योंकि जब मेरा पति शहर से वापस आयेगा तो मुझको उसका स्वागत करन है।
क्योंक् मेरा स्वामी मुझसे लम्बे समय तक दूर रहने के बाद हमारे पास आयेगा। इसलिये
उसने अपनी गठरी में जो सबसे आकर्षक और सुंदर वस्त्र और आभुषण थे उनको अपने साथ
लिया और अपने बालों को अच्छी तरह से सुलझा कर एक चोटी में बांद लिया और वहीं महल
के अंदर विद्यमान तालाब के पानी में स्नान कर के और तालाब के पानी को शीषे की तरह
से उपयोद करके अपने को सुसज्जित कर लिया और जब वह सज धज कर तैयार होगई, जिसके बाद अपने सौन्दर्यपूर्ण आकर्षण
को देख कर वह स्वयं पर मोहित हो गई और उसने अपने आप से कहा जब वह मुझको दोबारा
दोखेगा तोएक बार फिर से वह आनंद से भर जायेगा और मैं उसके चेहरे पर आई प्रसन्नता
को देक कर खुश हुंगी, लेकिन वह अब तक नहीं जानती थी कि इसके साज सज्जा के पिछे जल परी थी
जो उसको उसके हृदय में से प्रेरित कर रही थी वह उसके पति के लिए नहीं था यद्यपि
किसी दूसरे के लिए था। इस तरह से जब उसने नये और आकर्षक आभुषणों को पहन कर तैयार
होगई, तो
वह उस तालाब के पास एक बड़ा पुराना वट वृक्ष था जो पुराने महल के बाहर था वह वहाँ
पर जाकर उसकी छाया के निचे उसकी तना के पास बैठ कर इंतजार करने लगी बड़ी बेसब्री
के साथ जिस रास्तें से रत्नेश शहर के लिए गया और उसको निहारने लगी।
और ठीक उसी समय जब रत्नेश रत्नावली से दूर था और रत्नावली सज-धज कर
इस जंगल के उजाड़ एकांत में बट वृक्ष के छाया निचे बैठ कर अपने पति रत्नेश के आने
का इन्तजार कर ही थी, तभी इन दो प्रेमियों का पिछा करते-करते हुए जल परी ने इन्द्र को
सुचित कर दिया और वह तत्काल स्वर्ग से पृथ्वी पर आ पहुंचा और वहाँ से सिधा उस सड़क
पर चल पड़ा जिस रास्ते पर आगे चल कर वह खाली उजाड़ महल पड़ता था। जिस रास्ते से चल
कर इससे पहले दो प्रेमी गुजरे थे, उसी रास्ते पर एक ब्राह्मण का भेष बना कर और फिर वह रत्नावली के
सामने आकर उपस्थित होगया और रत्नावली अभी भी वहीं पर बैठ कर अपने पति रत्नेश का
इंतजार कर रही थी और वह उसके ही ध्यान में मग्न थी, जब ब्राह्मण भेष में इन्द्र उस वृक्ष के पास
जाकर अचनकर खड़ा हो गया, उस वट वृक्ष की छाया में तब रत्नावली की निगाह उसके ऊपर पड़ी और
रत्नावली ने सोचा कि यह केवल एक साधारण ब्राह्मण हैं, इससे मुझको भयभित होने की कोई ज़रूरुत
नहीं है। जिसके कारण वह शांत चित्त अपने स्थानपर बैठी रही, लेकिन जब इन्द्र उसके काफी करीब चला
गया और अब भी अपने स्थान पर शांत बैठी रही, इन्द्र ने जब करीब से उसकी सुन्दरता को देखा तो
उसके ऊपर काम देव सवार होगे और वह काम वासना से तड़पने लगा। जैसे उसके ऊपर बिजली गीर
गई हो, जिसके
कारण वह मुर्छित होने लगा, क्योंकि वह भी नहीं जानता था कि जिस सुंदरता को देख कर वह मोहित
होरहा है उसके पिछे जलपरी के जादूई शक्ति का कमाल है और वह एक हथियार की तरह से
इन्द्र को भ्रमित करने के लिए रत्नावली के सौंदर्य को जाल की तरह से विछाया था और
राजा इन्द्र इसके बारें में कुछ भी नहीं जान सका वह तो रत्नावली के अर्धनग्न अंगो
को देखर पागल हो रहा था, उसके आधे खुले हुए प्रिय अंगों ने उसको मदहोश कर दिया था और चांदी के
तारों से निर्मित उसके वस्त्र के अंदर उसके दो स्तन छिपे हुए थे, जिस प्रकार से गंगोत्री से निकलवाली
गंगा को कोहरे और-और धुंध उसके प्रारंभिक स्थान पर छुपा लेते हैं उसी प्रकार से
चादी के वस्त्र रत्नावाली के चट्टानों के समान कठोर स्तनों को अपने अंदर से छुपा
रहें थे, जिस
प्रकार से दूर से दिखने पर गंगा का पानी उसके प्रारंभिक श्रोत पर सफेद पत्थर के
समान बर्फ जैसे दिखते है जिस निचे पानी बहता है और जिस प्रकार से गंगा के दोनों
किनारें पर बिशाल पत्थर पड़े होते हैं जिनके मध्य से गंगा कि धारा बहती है, ठिक इसी प्रकार से रत्नावली के अंग
विशाल आभुषणों के मध्य में अपने सौंदर्य के खुशबु को विखरते हुए बह रहें थे। जिस
प्रकार से कस्तुरी अपनी खुशबु के कारण चारों तरफ के लोगों को अनायास अपनी तरफ खिच
लेती हैं और जिसके कारण ही वह अपने चारों तरफ की मनुष्य समेत सारी आबों हवा को
अपने बस में कर लेती हैं, उसी प्रकार से तर्नावलीका सौंदर्य का आकर्षण इंद्र को अपनी तरफ खिच रहा
था, जिस
प्रकार से कस्तुरी मृग के हृदय में होती हैं उसी प्रकार से रत्नावली के हृदय में
जल परी ने अपना स्थान बना लिया था। जिसके कारण ही रत्नावली में असाधारण रती के
समान वह प्रतित हो रही थी। जिसने अपने पैरों में सोने की पायलों को पहन रखा था, जिसके कारण उसके पैर बहुत भार युक्त हो
गया थे और जिसने अपनी कलाइयों में सोने की बहुमुल्य रत्न जड़ित चुड़ियों को पहल
रखा था, जिसके
कारण उसके हाथ बहुत चोटे और पतले दिख रही थी और उसने अपने बाहों में कुहनी के ऊपर
बाजुबंद को पहन रखा था, गोल-गोल बजुबंदों के कारण उसकी पहले से और पहले से अधिक गोली और
आकर्षण प्रतित हो रही थी और एक मणियों से सुसज्जित मालें को वह अपने गलें मेंपहन
रखा था और अपने काले सुंदर बालों एक हरें घास के रंग का चुड़ंमड़ी लगा रखा था और
जैसे ही रत्नावली ने अपनी शांत आँखों इन्द्र की आंखों में देखा तो इन्द्र को और
बड़ा विजली का झटका जैसा लगा और लगभग गिरनेवाला ही था फिर भी उसने किसी तरह से
अपने आप को सम्हाले रखा और अपने मन में कहा यह नस्वर संसार की औरत क्यों हमारें
दरबार की प्रत्येक अप्सराओं पर मुस्कुरा रही है, अगर जल की परी ने (लीली) ने इसको पहले से ही
देख चुकी है तो वह इसकी सौंदर्यता के इर्श्या के कारण मर क्यों नहीं गई इसको अब तक
नहीं समझ पा रहा हुं? और फिर उसने रत्नावली से कहा ओ सुन्दर आंखों वाली महिला जैसा कि मैं
जानता हुं कि तुम रत्नेश की पत्नी हो, जिसको देखने के लिए ही मैं यहाँ पर आया हुं?
तब रत्नावली ने कहा महाशय यह तो ठीक हैं कि मैं उसकी पत्नी हुं, यद्यपि मैं नहीं बता सकती कि यह आपके
द्वारा इतनी जल्दी कैसे जान लिया गया? क्योंकि बिते हुए कल तक मैं उशकी पत्नी नहीं थी, लेकिन एक अप्रसन्न पागलनता के कारण कल
रात्री को ही मैं उसके साथ विवाह किया था। तब इन्द्र ने कहा ओ सुकुमारी मैं अच्छी
तरह से तुम्हारें बारें में सब कुछ जानता हु, क्योंकि एक तपस्वी जो कई सालो तक साधना कर चुका
हैं वह किसी के बारें कुछ भी जानने में समर्थ हो जाता है। मैंने भी यह अपनी तपस्य़ा
की शक्ति से जाना लिया है कि तुम केवल एक दिन पहले की बनी हुई दुल्हन हो। क्योंकि
तुम कमल नयनो वाली अपनी आँखों से पूर्ण प्रसन्नता और शांती को प्रकट कर रही हो, वह उस प्रकार से नहीं है जिस प्रकार से
एक अबिवाहित लड़की की आँखे उत्तेजित और चिंतित होती हैं।
तब रत्नावली ने कहा हे ब्राह्मण क्या तुमने इस रास्ते से आते हुए
मेरे पति को कही देखा हैं या उसको किसी प्रकार से जानते हो क्योंकि मैं यहाँ पर
उसके आने के इंतजार में बैठी हुं और यह विल्कुल अच्छा नहीं हैं लगता कि एक
संस्कारित और शभ्य परिवार की औरत किसी अजनबी से बात करें। इसलिये मैं आपसे विनम्र
निवेदन करना चाहती हु कि आप यहाँ पर से मुझको अकेला चोड़ कर चले जाइयें और बाद में
फिर कभी मुझसे मिलने के लिए आइयेगा। इस पर तब इन्द्र ने कहा हे चन्द्रमुखी महिला
प्राचिन काल की मान्यताओं को सर पर उठाकर फिरना कोई अच्छी बात नहीं हैं उसमें
बहुत-सी कुरुपता भी विद्यमान हो सकती हैं और यह पुर्णरुप से अप्रत्यासित भी है, लकिन इसमें एक प्रकार का विशेषाधिकार
भी है, कि
एक वृद्ध आदमी बिना किसी अपमान भाव को महसूस किया किसी युवा आदमी के स्त्रि से बात
करता है। क्योंकि जब आग पुरी तरह से बुज जाती हैं तो फिर सुखे इंधन को किस प्रकार
का भय होगा? और
मेरे यहाँ उपस्थित रहने के बारें तुमको विल्कुल चिंतित होने की ज़रूरत नहीं हैं
क्योंकि मैं काफी वृद्ध हुं और मैं तुम्हारें पिता के समान हुं, यहाँ तक मैं तुम्हारें पति की उम्र से
दुगनी उम्र हुं। इसलिये निश्चित रूप से मुझे आपके पति के बजाय आपको ढूंढने के लिए
भाग्य से बहुत अधिक पसंद किया गया है, मुझे अपने इस मिले मौके का फायदा उठाने दो और
तुम्हारे पति के अनुपस्थिति में तुमसें प्रश्न पूछने में क्या बुराई हैं, ऐसी कौन-सी भावना जिसने इस आदमी को
आपको अपने पति के लिए चुनने के लिए प्रेरित किया है जिसे देवताओं के शत्रु के रूप
में जाना जाता है और इसलिए उनके प्रतिशोध महसूस करने की संभावना है और अचानक और
अपमानजनक ऐसे आदमी का अंत आता हैं।
क्योंकि वे शायद ही कभी समृद्ध होते हैं, जिन्हें देवताओं ने दंडित करने का दृढ़
संकल्प किया है। इसलिए, समय के साथ पश्चाताप करना आपके लिए बेहतर तरीका नहीं होगा और यह मौका
आपको उसकी अनुपस्थिति से बचाये जाने के लिए किया गया है और उसे अपने भाग्य में
छोड़ दियाग गया है और अब तुम खुद को बचाओ और इस आदमी के साथ अपने सम्बंध को अलग कर
दिया है और खतरे में समान रूप से उपर्युक्त देवताओं और पिता जिसके द्वारा उसने
तुम्हें चुरा लिया है?
और जैसे ही रत्नावली ने उस वृद्ध ब्राह्मण के इन शब्दों को सुना तो
वह अपने पति को सहज रूप से खतरे में स्थिती को समझ गई और उसने खुद से कहा यह कौन
है जो हमारे बारे में पहले से ही सब कुच जानता है? क्या यह मेरे पिता द्वारा भेजा गया उनका कोई
जासूसी तो नहीं है, जो मुझे दृष्टि से जानता है? या क्या यह छिपा रूप में कोई देवता हो सकता है, जो मेरे पति को दुःख या नुकसान
पहुंचाने के लिए नीचे आ सकता है, या मेरी सुंदरता के लिए मुझे दूषित कर सकता है? ऐसी चीजों के लिए अक्सर पहले भी हुआ
है।
और उसने उसे ठंडी आंखों से देखा और कहा ब्राह्मण, तुम एक दुष्ट सलाहकार हो; और मुझे वास्तव में तुम्हारें प्रति
कठोरता से अधिक बेकार होना चाहिए, क्या मुझे अपने पति को त्यागना चाहिए, जिसके लिए मैंने केवल अपने माता-पिता को छोड़
दिया है और जिसके बारें में मैं कल्पना भी नहीं कर सकती हूँ, इसका मतलब है कि जब तक आप ईश्वर नहीं
हैं तब तक आपको सभी को जानना चाहिए. परन्तु यदि आप सच बोलते हैं, तो मेरे पिता ने आपको नाराज किया है, मैं आपको बता दूंगी कि मेरे पति ने उस
व्यक्ति को नाराज करने के लिए अच्छा किया, जिसने भी मेरे अपने पति में निंदा करने की
कोशिश की और उनकी पत्नी के साथ छेड़-छाड़ करने की कोशिश की हो, यह उसका धर्म हैं किसी दूसरे का नहीं
हैं। क्या आप नहीं जानते कि एक सच्ची पत्नी के लिए उसका पति एक ईश्वर है? और यदि यह मामला था, जैसा कि आप कहते हैं कि मेरे पति ने
अपने देवताओं को त्याग दिया था, क्या यह मामला बेहतर होगा, कि मुझको भी अपने पति को त्याग देना चाहिए
वास्तव में जो मेरा है?
तब इंद्र ने कहा हे भाग्यहीन और प्यारी महिला, तू हाँ। देवताओं के घृणित व्यक्ति के
साथ मिलकर, उनके
खिलाफ उनके साथ आगे बढ़कर पहले से ही भ्रष्ट हो गयी है? और क्या तुमको पता है कि वह एक अपराध
के अपराध को साझा करता है जो आपराधिक होने पर अनुमोदित होने की मंजूरी देता है और
तुम ऐसा कर रही हो, क्योंकि तुम अपने अपराधी की रक्षा करके देवता के अपमान को
प्रोत्साहित करत रही हों।
फिर रत्नावली ने कहा मैं किसी भी देवात को नहीं जानती हु यद्यपि मैं
अपने पति को अच्छा तरह से जानती हुं और बिना प्रश्न या कारण के उसके पीछे चलती हुं, जैसे रात के पिछे दिन चलता है और अब तक
ग़लत होने से, यह
एक औरत का कर्तव्य है, क्योंकि यह उसका धर्म है, जो बहुत शुरुआत से स्थापित है और इसकी जड़ें
उसकी प्रकृति और उसके साथ हैं। एक बार एक समय था, जब न तो पुरुष थे और न ही महिलाएँ थीं, लेकिन ब्रह्मांड अकेले अस्तित्व में था
और फिर एक दिन, जब
निर्माता आगे सर्जन के दृष्टिकोण के साथ ध्यान कर रहा था, तो उसने खुद से कहा कुछ ऐसा निर्माण
जिसको मैंने किया है उसे पूरा करना चाहता हूँ। यह अँधेरा है और अपनी उत्सुक
सुंदरता और उत्कृष्टता से बेहोश है। उसके बाद उसने एक आदमी को बनाया और तुरन्त
सर्जन आश्चर्य और सुंदरता का एक वस्तु बन गया, जो मनुष्य के दिमाग में दर्पण में एक तस्वीर की
तरह दिखाई देता है। तब आदमी दुनिया में अकेले घूमता था, फूलों और पेड़ों और जानवरों कि तरह से
सोच रहा था और अंत में वह एक तालाब के पास आया और उसने देखा और खुद को देखा। फिर
आश्चर्य से भरा, उसने
कहा यह सभी का सबसे सुंदर प्राणी है और वह पूरी दुनिया के माध्यम से इसे खोजने के
लिए लगातार शिकार कर रहा था, यह नहीं जानता कि वह खुद की तलाश में था। लेकिन जब उसने पाया कि उसके
सभी प्रयासों के बावजूद वह तालाब की सतह पर इसे देखने से ज़्यादा कुछ नहीं कर सकता
था, तो
वह दुःखी हो गया और कुछ भी ख्याल रख गया। तब निर्माता, इसे समझकर, खुद से कहा हा। यह एक कठिनाई है जिसे
मैंने कभी भी पूर्ववत नहीं किया, जो मेरे काम की सुंदरता से स्वाभाविक रूप से उत्पन्न हुआ। लेकिन अब, क्या किया जाना है? यहाँ के लिए यह आदमी है, जिसे मैंने अपनी दुनिया के लिए दर्पण
बना दिया, अपनी
सुंदरता के दर्पण में फंस गया। तो मुझे किसी भी तरह या अन्य बुराई का इलाज करना
चाहिए. लेकिन मैं एक और आदमी नहीं बना सकता, उसके लिए ब्रह्मांड के चक्र में दो केंद्र
होंगे। न ही मैं प्रकृति की परिधि में कुछ भी जोड़ सकता हूँ, क्योंकि यह अपने आप में सही है। इसलिए, आवश्यक है, कुछ तीसरी चीज वास्तविक नहीं, इसके लिए यह ब्रह्मांड के संतुलन को
परेशान करेगा न ही अवास्तविक, इसके लिए यह कुछ भी नहीं होगा लेकिन वास्तविकता और गैर-इकाई के बीच
की सीमा पर तैयार है। तो उन्होंने पूल की सतह पर प्रतिबिंब एकत्र किए और उनमें से
एक महिला बना दी। लेकिन, जैसे ही वह बनाई गई, रोना शुरू कर दिया और उसने कहा हाँ। अफसोस। मैं हूँ और मैं नहीं हूँ।
तब निर्माता ने कहा तू मूर्ख मध्यवर्ती प्राणी, आप एक गैर-इकाई है, केवल तभी जब आप अकेले खड़ी हो जाती
हों। लेकिन जब आप मनुष्य के साथ एकजुट होती हों, तो आप अपने पदार्थ के साथ भागीदारी में
वास्तविक होती हों और इस प्रकार, हे ब्राह्मण, अपने पति के अलावा एक महिला एक गैर-इकाई और पदार्थ के बिना एक छाया
है, खुद
के दर्पण के अलावा कुछ भी नहीं, भ्रम के दर्पण पर परिलक्षित होता है।
तब इंद्र ने कहा हे पतली-कमर वाली महिला, तुम पत्नियों के सामान्य कर्तव्य को
जानकर अच्छी तरह से बहस करती हों और फिर भी इस तरह के तुम एक के साथ मिलकर अपने
स्वयं की आसक्ती की पुष्टि नहीं करती हो, जैसा कि तुमने अपने पति के लिए चुना है। तू ने
अपनी कुंवारी की सुंदरता के फूल को उसमें से एक वेदी पर त्याग दिया है और एक रानी
की स्थिति से गिरने के लिए एक घूमने वाली योद्धा की पत्नी बन गई है।
फिर रत्नावली ने कहा ओ ब्राह्मण, हर फूल को जल्दी या बाद में, फीका होना चाहिए, क्योंकि यह उसकी नियत और यही उसका
अपरिहार्य अंत है। अंत में यह फीका होना चाहिए, चाहे वह महल में रानी की तरह हो, या जंगलों की गहराई में अकेली हो और
कौन कहेंगा, क्या
पत्तियों के बाल के आभूषण की तुलना में जंगलों में फूलों की तरह से सूखना बेहतर
नहीं है? तो
फिर, अगर
मैंने अपनी शाही स्थिति को त्याग दिया है और अपने पति के साथ जंगल और अकेलेपन के
लिए खुद को सताया है, तो क्या खो गया है जो खेदजनक है? क्या आप मेरे मामले में इतना यकीन करते हैं कि
यह एक नुकसान दायक है, और यदी एक फुल की तरह से अपने स्वयं के लाभ लिए, अगर मैं एक महल में फूल की तरह रहती
हूँ या फिर अपने स्वयं की खुसी के लिए अकेले जंगल में उदास रहती हूँ? यह मेरा व्यक्तिगत मामला हैं। एक बार
एक राजा था जिसने अपनी पत्नी को धोखा दे दिया था और उसने अपने राज्य को एक सांप की
तरह अपनी पुरानी त्वचा के समान जान कर छोड़ दिया था और सब कुछ घास के टुकड़े की
तरह से अपने से दूर कर दिया था और दुनिया की तरफ से अपनी पीठ बदल कर ली थी और वह
गंगा को नहीं, बल्कि
महान दक्षिणी जंगल में चला गया, क्योंकि उसने कहा मुझे जाने दो जहाँ मैं कभी भी मानव के चेहरे को
नहीं देखूंगा, या
फिर एक मानव की आवाज नहीं सुनूंगा। तो कुछ दिन के बाद वह उस भयानक जंगल की अज्ञात
गहराई में चला गया, जब तक वह विशाल पेड़ों के बीच अपनी छाया के साथ खुद को अकेला नहीं हो
गया और फिर, अचानक, उन जंगली पेड़ों के मध्य में वह अचानक
खो गया। कुछ देर के बद सारें जंगली विशाल वृक्ष गायब हो गयें थे और वह अपने आपको
एक बड़ी नदीं के किनारें पर खड़ा पाया, जिसका पानी उसकी आँकों के समान स्वच्छ और
निर्मल थे जिनमें अनगिनत गहरें निलें रंग के कपमल पुस्प खिल रहें थे और हर एक निले
गहरे कनल पुस्प पर उशकी एक अलग प्रियतमा रूप में सुनहरी मधुमक्खिया बैठी हुई थी और
वह सब भिन-भीना रही थी जैसे सूर्य की किरणें उसके चारों तरफ प्रज्वलित होता है, अर्थात वहाँ एक प्रकार से जैसे सूर्य
का अवतरण हो रहा था, जैसे वह सब अपना आत्मचिंतन करके इस पृथ्वी पर एक साथ आगई थी। जिस
प्रकार से कृश्ण अपने गोपियों के मध्य में स्थित हो, इस तरह से हर एक कमल पुस्प विचार रहे थे कि
जैसे उन सब की अपनी अलग-अलग प्रेयसी हो और राजा वहाँ आश्चर्य के साथ खड़ा हो कर उन
सभी अकेले कमल पुस्पों को उनकी प्रेयसी के साथ देखता रहा, मधुमक्खियों वाली नदी को और वह उसी
नदीं के किनारें पर टहर गया अर्थात वहीं पर रहने लगा जब तक की उसकी मृत्यु नहीं हो
गई. क्योंकि जीवन का यहीं सत्य यहाँ हर कोई हर समय मर रहा हैं वहीं लोग कहते हैं
कि वह जी रहें हैं और यदि निर्माता उस जंगल के बीच में उन निष्पक्ष फूलों को जीवित
और जीवित रहने के लिए मर सकता है, तो निश्चित रूप से वे बेहतर थे। यद्यपि वह राजा अपनी सभी दस लाख
रानियों के सौनंदर्य के कारण ही उनसे विरक्त हुआ था। इसके अलावा, जहाँ मेरा पति है, वहाँ कोई अकेलापन नहीं है क्योंकि मुझे
जिस साथी की ज़रूरत है वह वहीं है।
और फिर इंद्र ने कहा हे कालें धने बालों वाली महिला, तुम अपने पति के बारें बातें करती हों, जैसे कि तुम उसे अपने जन्म से जानते थी, जबकि तुमने कल रात अपने जीवन में पहली
बार अपने पति को देखा था और फिर तुम कैसे कह सकती हों कि वह अपनी आत्मा की इच्छा
को पूरी नहीं करेगा, या वह अपने हिस्से पर थक अर्थात उब नहीं सकता है और आप को लापरवाही
से दूर कर सकता हैं क्योंकि तुम उसके लिए अजनबी हैं जो उसे संयोग से मिली हों।
फिर रत्नावली ने कहा ओ ब्राह्मण, आप केवल मुझे बेवकूफ बनाने के लिए यह सब कुछ
बोल रहे हैं, अन्यथा
आप दुनिया के सार रूप में एक गरीब पंडित हैं। पता है कि एक महिला एक पल में पहचान
लेती है, अजीब
साझेदारी के साथ, अगर वह केवल उसे देखने के लिए भाग्यशाली हो, तो वह जान जाती है कि यह आदमी उसका पति
होने के लिए उचित है। क्योंकि यह इस जीवन के उथले और आकस्मिक अनुभवों पर निर्भर
नहीं है, लेकिन
दुकान एक पूर्व जन्म की यादों के समान। इसके अलावा, समय के तत्काल और परमाणु होते हैं जो स्वयं के
कारणों और परिणामों में होते हैं जो अतीत और भविष्य के दो अनंत काल में दोनों
तरीकों से चलते हैं, क्योंकि यह एक के फल और दूसरे के बीज हैं और कई बार ऐसा होता है कि
एक आँख की चमक एक आत्मा की नियति निर्धारित करती है और जहाँ तक मेरा मामला हैं, क्योंकि जब से मैंने अपने पति को देखा, मैं अन्य के अलावा हूँ, रोशनी के एक पल और पारस्परिक मान्यता
के अमृत द्वारा अनन्तता के लिए बदल गया। क्या सृष्टिकर्ता सभी चीजों के मूल में
लगाया गया है और निर्जीव विकृतियों और आकर्षण को उनकी नियति के रूप में नहीं रखा
गया है, नियंत्रित
नहीं किया जाना चाहिए या अवज्ञा नहीं की जा सकती है? एक बार एक शोकग्रस्त महिला थी, जिसने एक निश्चित राजा के से अपनी
इच्छा के खिलाफ शादी की। तो जब वे एकजुट हुए तो, जीवन के आतंक और दुःक के साथ घृणा में प्रवेश
किया और अपनी आत्मा में निवास किया और हर बार जब वह उससे संपर्क करता था, वह मौत की भविष्यवाणी जैसा दिखता था।
फिर उसे उसके पास आना असंभव लगता है, जिसके लिए राजा आश्चर्यचकित था और उसने खुद से
कहा, निश्चित
रूप से इस असाधारण विद्वेषाभाव के लिए कुछ असाधारण कारण होना चाहिए, जो इसके अतीत के रहस्यमय अंधेरे में
संसकार रूप से दफनाया गया है। अन्य महिलाओं के लिए, अब तक मेरे गले को चौंकाने से, स्वागत है और यहाँ तक कि उसके लिए
अदालत में भी, मेरे
लिए अभिषेक करती है। क्योंकि मैं एक बहुत ही सुन्दर आदमी हूँ और वह महेश्वर के
मंदिर में बलि चढ़ानो के लिए गया और भगवान शिव की मुर्ती के सामने खड़े होकर, उसने कहा हे ईश्वर तुम अतीत, वर्तमान और भविष्य के बारे में जानते
हो, यदि
तुमने मुझे इस विचलन का कारण नहीं बताते हो, तो मैं इस पल को अपने सिर को काट दूंगा। तब
देवता की मुर्ति ने जोर से हंसते हुए कहा। हे मूर्ख राजा, यह एक बहुत ही साधारण बात है। पता है, बहुत पहले, एक पूर्व जन्म में, तुम पहले से ही अत्याचारी के शरीर में
किए गए पापों के कारण जन्म लिया था और वह एक सांप बन गई थी और तुम एक मोर हो गये
थे। इसलिए वह तुम्हारी निकटता को भी सहन नहीं कर सकती थी, क्योंकि तुम मोर की प्रकृति के थे और
उसकी व्यर्थता का तनाव बरकरार रखते थे और अब भी तुम दोने में वहीं सांप और मोर की
वृत्ती विद्यमान है, जिसके कारण ही यह सब तुम्हारें जीवन में हो रहा है और फीर राजा ने
कहा लेकिन, फिर, मुझे उसके लिए कोई अपमान नहीं लगता है? और भगवान ने कहा क्योंकि एक और जन्म
में आप गरुड़ की दौड़ के एक पक्षी था, जिसमें से सांप उचित भोजन सांप रूप में थे।
इसके अलावा, महिलाएँ
इन प्रेमों और घृणाओं को मनुष्यों की तुलना में अधिक स्थायी रूप से बरकरार रखती
हैं, क्योंकि
भावना उनकी आत्मा का सार है और शरीर में डुबकी की तरह, वे शुद्ध पानी की तरह, पुराने जन्मों के संस्कारों के दाग को
दूर करती हैं। तो तुम्हें अब भी सच सीखना चाहिए, तब राजा ने एक और पत्नी से अपना विवाह कर लिया, जो उसके सात शांति से रहती थी और इस
प्रकार, हे
ब्राह्मण, मैं
अपने पति के लिए बहुत पहले से तैयार कि गयी थी कि मैंने उसे एक पूर्व जन्म में
बुने हुए संस्कार के द्वारा देखा, जो कि आकाश में गहने को घास खींचने वाली शक्ति के रूप में अनूठा और
अदृश्य था और अब मैं अपने विवाह से अपने पुराने जन्म के संस्कार को और दृढ़ और
मजबुत कर दिया हैं और मेरी और मेरे पति के संस्कार जो एक दूसरें के पुरक थे मगर वह
दोनो अलग थे जिनको हमने पुनः एक साथ जोड़ दिया है।
तब फिर इंद्र ने कहा हे बड़ी आंखों और भारी कटारं जैसी भौहों वाली महिला, तुम अपने पक्ष में एक पक्षपाती की तरह बहस करती हों, फिर भी तुम्हारा कार्य केवल अचानक जुनून का ही परिणाम है, जिसने तुम्हारी अपनी पहले कि विनम्रता को भूला दिया है और अभिषेक की तरह आपके पति के लिए जल्दी हथियार उटा लेती हो, यह तुम्हारा एक अच्छे परिवार की महिला की तरह व्यवहार नहीं चल रहा है, यद्यपि यह तुम्हारी आत्मीक इच्छा और अपनी आजादी के लिये किया जाने वाले विद्रोह के समान है, जो अपने पति की सुंदरता से आकर्षित होने के कारण हुआ है।
फिर रत्नावली ने कहा ओ ब्राह्मण, इस में मैंने अपनी जाति की पहली लड़की को अपमानित नहीं किया है। राजाओं की बेटियों के लिए शुरुआत से ही अपने पतियों को चुनने का विशेषाधिकार था। लेकिन वे इस में अपने परिवार को दिखाती हैं कि जब उन्होंने एक बार चुना है, तो वे अपने फैसले का पालन करती हैं और अपने पति के दामन को पकड़ लेती हैं जो कि मौत को तोड़ने के प्रयासों में हंसते हैं और अगर मैंने अपने पति के आकर्षण को पाने में ग़लत किया है, तो मैं इसके बाद इसके लिए संशोधित कर दूंगी और फिर भी गलती स्वयं की तुलना में निर्माता की है। क्या आप नशे की लत मधुमक्खियों के लिए कमल को दोष देंगे? या निर्माता ने महिलाओं या पुरुषों को सौंदर्य क्यों दिया, लेकिन एक-दूसरे की आत्माओं को फंसाने के लिए क्यों? और यहाँ तक कि देवताओं को भी अपमानित किया जाता है, क्योंकि उनमें से कौन अपनी पत्नी की सुंदरता से कम नहीं होता है? नहीं, कुछ ऐसे हैं जो भटक गए हैं, अपने स्वयं के अलावा किसी अन्य लिंग की सुंदरता में उत्साहित होने से परेशान हैं। तुम मुझे किसी महिला की प्रकृति का पालन करने के लिए दोषी क्यों ठहराते हो और उस मर्दाना सौंदर्य की पूजा करते हो जो मेरा लक्ष्य है? तीनों दुनिया के लिए केवल मेरे जैसे क्रिया का अवतार है और आपका आरोप गति और जीवन के इस ब्रह्मांड को लूट देगा, जो केवल पारस्परिक आकर्षण के आधार पर ही रहता है। सुंदरता चकाचौंध और आकर्षण के लिए और खुद ही एक भ्रम होने के बाद हर जीव को एक चालाक लाइन की तरह खींचता है, उस व्यर्थ घूमने वाले नृत्य में जो ऋषि दुनिया को बुलाते है और जब सपने देखने वाला होता है तो उसकी वस्तु बिना किसी सपने की तरह गायब हो जाती है और हम सभी एक अनन्त दौर में चले जाते हैं, जैसे झरने में पानी की बूंदें, पर्यवेक्षक की आंखों पर स्थायीता का प्रभाव छोड़ देती हैं। फिर भी यह स्थायीता केवल एक भ्रम है और इसके बेड़े और शानदार परमाणुओं के निरंतर प्रवाह के कारण और हमारे क्षणिक जीवन में, केवल एक चीज ज़रूरी है, स्वाद के लिए यदि हम सच्चे प्यार के अमृत की एक बूंद को भी प्राप्त कर सकते हैं, जो संभव है, हर परमाणु के लिए, केवल तभी जब वह उस असाधारण सुंदरता की झलक देख प्राप्त कर सके जो उसके लिए उचित है, जो उसकी अपनी आत्मा का उद्देश्य और इसलिए, हे ब्राह्मण, मैं अपने पति की सुंदरता को स्वीकार करने से शर्मिंदा नहीं हूँ, लेकिन मैं उसकी महिमा करती हूँ और आनन्द करती हूँ, जिसने अपने पुर्न जन्म का फल पाया है और एक पतंगा की तरह, मैं उसकी मोमबत्ती के प्राकाश में उड़ कर आ गयी हूँ और वह एक इच्छुक शिकार बन गया है और मैं अपनी पसंद के सभी परिणामों को सहन करने के लिए तैयार हूँ और जब मैं अपने स्वामी के प्रति अपने निष्ठा में डरती हूँ, तो मैं आपके अपमान के न्याय को स्वीकार करूंगी।
तब इंद्र ने कहा हे धीरें ऐ और मधुर आवाज वाली महिला, जब किसी औरत की मन में उसके प्रेमी के साथ उसके व्यवहार के लिए कभी कोई बहाना नहीं होता है? और उसकी चालाकी उसकी किसी भी स्त्री से कम नहीं है। तो फिर भी, कहो कि तुम क्या चाहती हैं, इसके बारें में तुम स्वयं जानती हों कि आपके पिता इस मामले में आपकी राय के साथ सहमत नहीं होगे और जैसे ही आपके पिता को तुम्हारेंम और तुम्हारें पति के बारें पता चलेगा, जिससे तुम्हारें और तुम्हारें पति के जीवन में बहुत भयानक और आतंकित करने वाला दुःख अचानक जायेंगा, जिससे तुम दोनो के जीवन का अंत भी हो सकता है।
फिर रत्नावली ने कहा हे ब्राह्मण, तुम आंशिक रूप से दाहिनी ओर हो, क्योंकि यह संभव है कि अचानक क्रोध मेरे पिता कोई भी कष्टप्रद तरीके से कार्य कर सके और यहाँ तक कि हमें वह समय भी दिखा सकते है जिसकी हमने अभी तक कल्पना नहीं किया हैं, जिससे यह भी सिद्ध हो सकता हैं कि आप ग़लत हैं, क्योंकि मेरे पिता के साथ पहली विषय पर निती पुर्वक विचार करते है, जिसके कारण वह हमें क्षमा करने का कारण भी देख सकते है। लेकिन जब वह प्रसन्न होते है तभी वह ऐसा करते हैं, उन्हें जो भी करना है करने दो, वह मुझे कभी भी किसी भी सर्त पर नुकसान नहीं पहुंचा सकते है। क्योंकि क्या वह मेरे पति को जीवित रहने देगें, या उसे मार देगें, वह अब हमें विभाजित नहीं कर सकते है, न ही मुझे जीवित या मृत का पालन करने के अपने अधिकार से वंचित कर सकते है, क्योंकि पत्नी अपने पिता से नहीं बल्कि अपने पति से सम्बंधित है। तो अगर हम एक साथ रहना चाहते हैं तो हमें एक साथ रहने देगें और यदि हम मर जायेंगे, तो भी हम साथ में ही मरेगें और मृत्यु कोई बुराई नहीं है, बल्कि केवल एक अपरिहार्य अर्थात आवश्यक रूप परिवर्तन है और अक्सर बेहतर के लिए ही अक्सर ऐसा होता है, यदि वह जीवन जो अंत में रखता है, वह एक इनाम के योग्य कामों में से एक है। एक बार रेगिस्तान के दो राजा थे, जिन्हें माया और साया कहा जाता था और वे आपस में क दूसरे के घातक दुश्मन थे और साया ने माया पर के राज्य पर हमला कर दिया और उसके बेटे को मार डाला और उसकी पत्नियों के साथ उसकी राजधानी पर कब्जा कर लिया और माया को उसके राज्य से भगा दिया। बहुत समय तक युं ही भटकने के बाद दुनिया की पर्शानियों और दिक्ततों से परेशान हो कर, माया ने निर्णय किया साया की सेवा करने का और इसलिए वह उसके राज्य में प्रवेश किया, क्योंकि साया माया को व्यक्तिगत रूप से नहीं पहचानता था इसलिए उसने साया को अपने पास अपने व्यक्तिगत रखरखाव के रूप में रख लिया और फिर साया खुद का बदला लेने का मौका प्राप्त करने का इंतजार करते हुए माया का सेवा में रह रहा था, उसी बीच में साया के राज्य पर हमला किया गया था एक तीसरे राजा के द्वारा जिसके कारण साया का सारा राज्य द्वारा नष्ट कर दी गई थी और वह रेगिस्तान में भाग गया, बुरी तरह घायल हो कर, उस समय उसके पास केवल अपने साथी माया के और कोई दूसरा नहीं था, फिर भी वह किसी प्रकार से रेगिस्तान को पार करने की उम्मीद कर करे वह वापस लौटने की उम्मीद कर रहा था अपनी राजधानी जिससे वह अपनी राजधानी को एक बार फिर से प्राप्त करके स्वयं के राज्य को सुरक्षित सके, तो वे दोनों रेगिस्तान को पार करने के लिए एक साथ चलने लगे। रेगिस्तान काफी बड़ा और विस्तृत था जिसके कारण चलते-चलते उनके घोड़े भुख प्यास से थक गये और वह अपने घोड़ों के लिए कही से भी पानी की भी व्यवस्था नहीं कर सके, हलांकि उनके पास एक चमड़े की थैली थी जिसमें पानी भी था लेकिन वह उन दोनो के लिए ही पर्याप्त नहीं था तो वह अपने घोड़ो को कहाँ से दे सकते थे, जिसके कारण उन दोनो के घोड़े प्यास से मर गये और वह दोनो रेगिस्तान में अपने पैरो के आश्रीत हो गये और यह स्वयं भी भुख से तड़प रहें थे।
तब साया ने माया से कहा बड़ी मुस्किल से एक व्यक्ति ही इस चमड़ें की थैली का पानी पी कर इस रेगिस्तान को पार कर सकता है क्योंकि हम दोने के लिए इसमें परयाप्त पानी नहीं है, फिर भी वह किसी तरह से साथ-साथ चलते रेगीस्तान में यात्रा करने लगे और समय के साथ पानी कम से और कम होने लगा।
और इसके बाद साया ने चमड़े की थैली को अपने पास रख लिया जिसमे कुछ थोड़ा-सा पानी और बचा हुआ था और एख रात जब माया रेगिस्तान के रेत में सो रहा थो और साया अभी तक जाग रहा था और उसने चमड़ें की थैली को देखा जिसमें बहुत थोड़ा पानी बचा हुआ था और उसने अपने आप से कहा इतने पानी में से केवल एक व्यक्ती वड़ी मुस्किल से इस रेगीस्तान को पार कर सकता है। दो आदमी इतने पानी से कभी रेगीस्तान को पार नहीं कर सकते हैं और अब मेरा शत्रु मेरे अँखों के समान पड़ा हुआ है, फिर भी वह अपने स्थान पर शांती के साथ बैठा रहा, अपनी नंगी तलवार को अपने हाथ में लेकर अकेले आकाश में टिम-टिमाते चमकते हुए तारों को मध्य में लंबी रात्री तक माया को नीद में सोते हुए देखता रहा और प्रातः काल में वह फिर उठ कर चलने लगे और जैसे सूर्य ऊपर उठता गया और समय के साथ रेत गर्मि बढ़ती गई, जिसके कारण माया का तबीयत विगड़ने लगी और उसको सब कुछ धुंधला-सा दिखानो लगा, क्योंकि उसके शरीर में जख्म के कारण वह उस समय घायल भी था, इसलिए उसने साया से कहा आवो हम पानी को पी लेते हैं क्योंकि इस रेगीस्तान में हम मर भी सकते है। लेकिन साया ने अपने मुंह को बन्द ही रखाऔर एक भी बुंद पानी की अपने मुह में नहीं डाला और वह दिन के दिन ऐसे ही चलते रहे और माया ने चमड़ें की थैली का सारा पानी पी लिया, यद्यपि साया ने अपने मुंह को विल्कुल बंद रखा और यह सब कुछ वह अपनी चमकती आँखों से देखता रहा और अपने मुंह को दरवाजे बंद रखा जैसे वह अपने अंदर मृत्यु को प्रवेश करने से पहले दरवाजे को बंद कर रखा हो।
और अंत में एक दिनऐसा आया जब माया ने कहा मेरे जख्मों ने मेरी सारी शीरीर की ताकत या शक्ति का हरण कर लिया है, जिसके कारण मैं अब यहाँ से आगे एक कदम भी नहीं चल कसता हुं, फिर साया ने कहा मन को मजबुत रखो एक दिन की और बात हैं इसके बाद हम रेगीस्तान के पार हो जायेंगे। लेकिन माया ने कहा तुम अकेले ही अब आगे की यात्रा करों और अपने जीवन को बचा लो और मुझको यहाँ पर मरने के लिए अकेला छोड़ दो, इसके साथ वह रेगीस्तान की जलती ही रेत पर मुर्छित हो कर गीर गया।
और फिर रुक साया ने माया को अपनी बाहों में उठा लिया, जिससे उसको घबड़ाहट होने लगी और जैसे वह वहाँ से चलने के लिए उठा उसको चक्कर आने लगा और उसकी इन्द्रियाँ उसके साथ मजाक करने लगी और रेगीस्तान जैसे उसकी आँखों के सामन नाचने लगा और उसने अपने कान से सुना पानी के कल-कल बहने की आवाज को और रेगीस्तान का नगाड़ा उसके कानों में वजने लगा और उन दोनो की आत्माओं के पिछे से जैसे मृत्यु अपने राज्य में प्रवेश के लिए आमंत्रण दे रही थी और कह रही थी इस रेत के रेगीस्तान से परे किसी दूसरे जगत के रेगीस्तान की यात्रा के लिए और वह उसका मजाक उड़ाते हुए वह मुस्कुराया जैसे यह किसी स्वप्वन के समान था और इस प्रकार से वह रेगीस्तान में अपने एकांत के साथ संघर्ष करने लगा, जबकि उसका जीवन उससे दूर जा रहा था, ठीक उसी प्रकार से जैसे फुलों की मालाओं के समान जो क्रोधित सूर्य के प्रकाश में धीरे-धीरे जल जाते हैं और अचानक उसने अपने स्वप्न में माया की आवाज को सुना जो उसके सर के ऊपर जैसे धिरे-धिरे रो रहा हो और कह रहा था कि हम दोनो से शहर काफी दूर ही रह गये, फिर बी हम दोनो बच गये, फिर साया ने कहा हे राजा मैं तुम्हारा शत्रु साया हुं और मैंने ही तुमको इस रेगीस्तानी मृत्यु के पास लाया हुं और उसने महसूस किया अपने चेहरे को रेगीस्तान की रेत के ऊपर और इशके साथ ही उसने अपनी नश्वर शरीर को छोड़ कर किसी दूसरे संसार के लिए प्रयाण कर गया। औप यमराज ने साया के कर्म का यादरखा और साक्षात्कार किया, जिसके कारण उसकी आत्मा अगले जन्म नस्वर संसार से मुक्त हो कर, वह हवा की आत्मा के रूप में परिवर्तित होगई.
तब इंद्र ने कहा हे महिला, जिसकी धनुष वाली भौहें बेहोशी के साथ आश्चर्य की उत्कृष्ट सुंदरता से छूती है, निश्चित रूप से वह बहादुर राजपूत पुरुष्कार का हकदार था, लेकिन उसके कार्य और तुम्हारें और अपने पति के बीच साधारणतः सम्बंध ही क्या है?
तब फिर रत्नावली ने कहा हे ब्राह्मण इसमें उसी प्रकार का सम्बंध हैं जिस प्रकार से राजपुत पुरुष्कार का हकदार था उसी प्रकार से हम भी सामान्यरुप से पुरुष्कार के हकदार हैं। क्योंकि मेरा मेरे पति के साथ मिलना मेरे लिए एक सम्मान की बात हैं और यह हमरें परमेंश्वर की इच्छा के अनुकुल हैं और यह उस राजपुत के कियें हुए कार्य से कही बड़ा कार्य मेरे लिए हैं और इसमें किसी प्रकार-सा संदेह नहीं हैं कि मेरे द्वारा मेरे पिछले जन्म कोई बहुत ही श्रेष्ठ किया गया था जिसके परिणाम स्वरुप ही मैं अपने इस पति को पाया है। लेकिन हमारें वर्तमान के जीवन में श्रेष्ठ कर्म करने का समय अभी भी है और जिसमें मैं शाहस के साथ प्रयाश करुगी अपने आने वालें भविष्य की आवश्क्यता के साथ उसके अनुरुप स्वतंत्रता और आजादी के लिए जो भी रुकावट या क्लिषट कर्म हैं उनको नष्ट करने का, जिसके कारण हमारें जीवन में अहं भाव या फिर कुछ ऐसा जिससे हमारें जीवन में अफशोस और दुर्भाग्य का प्रवेश कर सकता हो और इसलिए, अतीत से हमारे जीवन के भविष्य का अनुमान लगाने के लिए बहुत उपयुक्त नहीं है, क्योंकि जीवन स्वयं में ही धीरज रखता है, जिसमें परिवर्तन की संभावना होती है और कई बार ऐसा हुआ है कि जीवन के बहुत करीब आने पर कुछ इसके साथ हुआ है, हमारें संपूर्ण अतित के अनुभव के विरोधाभासी पीणाम मिलते प्राप्त होते हैं। एक बार एक कुत्ता बिना मालिक था, औ वह अकेले ही कहीं पर चला गया जहाँ पर उसके पास कुछ भी खाने के लिए नहीं था, यद्यपि यात्रा करते हुए उसे कई ऐसी वस्तुए मिली थी, नालें में पड़ी हुई जिसको वह खा सकता था, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया, जिसके कारण वह बहुत अधिक दुबला पतला होगया और खजली के कारण अपने शरीर को रगण-रगण कई पत्थरों पर बहुत सारें जख्मों भी कर लिया था। जो भी उसको देखता था केवल वह उसको गलियों के साथ श्राप देता था और उसको अपने आस पास से छड़ी से पीट-पीट कर और पत्थर मार-मार कर दूर भगा देता था। इस प्रकार से वह स्वयं को शाश्वत मृत्यु के साथ जोड़ कर किसी तरह से अपने जीवन को व्यतित कर रहा था और वह अपनी पुंछ को जख्मों से बचाने के लिए अपने पैरों के बिच में रखता था। इसके बाद भी वह उदास आँखों से अपनी भुख और मृत्यु के भय से निपुणता के साथ लड़ रहा था, इस प्रकार से वह काफी समय तक जींदा रहा और जब उसका अंत कर करीब आगया तो एक दिन जब उसको चलने में बहुत अधिक कठानाई होने लगी, उसी समय उस सड़क पर एक बैलगाड़ी आगई, जिसमें बहुत सारी औरते बैठी थी जो एक विवाह उत्सव से भजन कर के आरही थी और उन्होनें उस कुत्ते को देखा और वह सभी औरते उस कुत्ते का माजाक उड़ाने लगी। लेकिन उन्ही औरतों में एक ऐसी भी औरत भी थी जिसके हृदय में उस कुत्ते को देख कर उसपर करुणा और दया आगई और वह बैलगाड़ी से निचे उतर गई और वह उस कुत्तें के पास गई, अपने साथ एक रोटी का टुकड़ा को लेकर। जिसके बाद उस कुत्तें ने उस औरत की आँखों में बड़े ध्यान से देखने लगा, वह-वह कुछ भी नहीं समझ पा रहा था, क्योंकि उसे संपूर्ण जीवन में अब तक ऐसा कोई भी नहीं मिला था जिसने उसके प्रती थोड़ी-सी भी दयालुता का प्रदर्शन किया हो और कुछ समय के बाद उस कुत्ते ने अपनी पतली पुंछ के अंतिम हिस्सें को बड़ी सज्जनता के साथ हल्का-सा हिलाया और उस औरत के प्रति पनी कृत्यज्ञता को प्रस्तुत किया। इसलिए हे ब्राह्मण यह कोई भी निश्चित रूप से नहीं जानता हैं, जीवन के प्रारंभ और उसके अंत के बारें में की किसका किस प्रकार से होगा।
तब फिर इन्द्र ने कहा ओ पके हुए लाल फलों के समान होठों वाली महिला, तुमने अब तक जो भी कहा उससे मुझको एक बात समझाने में समर्थ नहीं हो सकी कि वह कौन-सी कारण या वृत्ती या आपकी विमारी है? जिसने आपको इस अजनबी के बाहों का सहारा ले कर रात्री में अपने पिता के महल के सुख को छोड़ कर, इस प्रकार से भाग करके, विवाह करने के लिए मजबुर किया था, इसके पिछे मुख्य कारण हैं उसका उत्तर मुझको अब तक नहीं मिला है और क्या हर राजा की पुत्री का यह कर्तव्य हैं? कि वह इस प्रकार से अपने पिता के घर से भाग रात्री में किसी भी अजनबी से विवाह कर ले, जो कि वास्तव में एक डकैत था जो उस समय रात्री में महल के अंदर माल लुटने के उद्देश्य से गया हुआ था।
तब रत्नावली ने कहा हें ब्राह्मण यह कोई साधारण बात नहीं जो सब पर एक समान रूप से लागू की जायेंगी जैसाकि तुम सब राजा की पुत्रीयों पर एक समान लागू करने का प्रयास कर रहें हो, मैंने जो भी किया हैं यह कोई सामान्य बात नहीं हैं यद्यपि यह एक प्रकार से अपवादा रूप से हैं ऐसा बहुत मुस्किल से किसी और के जीवन में कभी हुआ होगा। इसके अलावा, यद्यपि आप इसपर अविश्वास कर सकते हैं और जानते हैं कि मैंने ऐसा भी नहीं किया, जैसा कि मुझे करना चाहिए क्योंकि मैं एक राजा की पुरत्री हुं, लेकिन यह सिर्फ़ इस पति के लिए मैंने किया हैं और किसी अन्य के लिए नहीं। यद्यपि मैं इस मामले में विवेकाधिकार और मूर्खता के साथ काम कर सकती हूँ, फिर भी यह मेरी प्रकृति के अनुसार नहीं है, बल्कि इसके खिलाफ है और इसलिए यह किसी भी अन्य व्यक्ति के लिए, या यहाँ तक कि मेरे लिए भी कोई नियम नहीं प्रस्तुत करता है। क्योंकि इस संसार और इसके चक्रव्युह में फंस कर एक डरपोक स्वयं को एक बहीदूर में परिवर्तित कर सकता है और एक कंजुस दानवान बन सकता हैं इसके अतिररिक्त एक बहुत बड़ा वुद्धिमान आदमी मुर्ख बन सकता हैं और एक समझदार पागल बन सकता है यहाँ संसार में किसी के साथ कुछ भी होना संभव है और यहाँ ऐसा भी हो सकता हैं कि एक औरत अपने आपको विना किसी आरक्षण के किसी आदमी को अपना दिल देसती हैं, जिसको वह अपने स्वप्न में देख रही थी और उसके स्वप्न खत्म होते ही, वह अपने श्रद्धा समर्पण पूर्ण आग्रह के साथ सामने खड़ा था। इसको क्या कहेंगे? जिसने उसके हृदय में स्थित आत्मा में हमेशा से छुपी अग्नी को प्रज्वलित कर देता है इसको क्या कहेंगे? कि यह केवल यह संयोग हैं, या फिर यही उस औरत का शौभाग्य हैं जो उसके पुर्नजन्म के अच्छे कियें कर्मों के परिणाम के रूप में उसको इस जन्म में भी मिला है, इसके शौभाग्य को देख कर कुछ लोगों को जलन भी सकती हैं। जिसने दुनिया के श्रेष्ठ, शुद्ध औरतों के मध्य में अपना नामंकन कराने से इन्कार कर दिया हो और इसी प्रकार से मेरे सम्बंध में भी इसके बारें में अच्छी तरह से जानती हुं, क्योकि इसको मेरा विवेक आसानी से समझ सकता है और जिसके लिए मुझे किसी प्रकार से दोषी नहीं मानता है और जिस औरत के पक्ष में उसकी आत्मा होती हैं उसको किसी और प्रकार के प्रमाण या सिद्धांत या शुद्धि की आवश्यक्ता नहीं होती है। जैसा कि एक बार एक राजा था जिसके पास उसकी बहुत सारी पत्निया थी, जिसमें से शिवाय एक रानी को छोड़ उसकी और दूसरी रानिया राजा के प्रती झुठी अंश्रध्धा और छल-कपट पूर्ण व्यवहारा को हमेंशा राजा के प्रती प्रकट करती थी। इसी प्रकार से काफी समय तक चलता रहा और इसके कुछ दिनो के बाद राजा एक युद्ध के अबियान पर गया औऱ अपनी सभी रानियों को उसने एक-एक लाल कमल पुस्पों को दिया और कहा कि इसको तुम सब ध्यान से रखना क्योंकि यह लाल कमल का फुल ही तुम सब की श्रद्धा समर्पण और प्रेम को हमारें सामने प्रकट करेंगा जब मैं युद्ध के अभियान से वापिस आउंगा। या फिर यह मुझे दिखाएगा, इस लाल कमल पुस्प का रंग ही आपकी निष्ठा का सबूत होगा। क्योंकि इस कमल के पुस्प को देवता से प्राप्त किया है, जिसकी वजह से यह कभी भी नहीं सुखेगा, जब तक तुम सब अकेली मेरे लिए सच्ची श्रद्धा रखोगी और फिर वह चला गया और जैसे ही वह चला गया, उन सभी पत्नियों ने एक अपवाद के साथ खुद को अन्य पुरुषों के साथ खुश करना शुर कर दिया और बहुत जल्द वे सभी अपने कमल को देखने लगी और उन सब के कमल पुस्प सूख गये अर्थात वह मर गये थे। जिसके कारण भयभित हो कर वे सारी रानियाँ अपने सभी दूसरें प्रेमियों को छोड़कर, अपने अपराध के बारे में सचेत होने के कारण से बहुत अधिक आतंकित हो चुकी थी। इसके कुछ ही समय के बाद ही उन सब के पास खबर आई कि राजा वापस आ रहा है और जब वह पहुंचा, तो उसकी सभी पत्नियाँ उससे मिलने के लिए प्रकट हुई, स्नेह के विरोध के साथ, आनंद उत्सव के साथ स्वयं को सजा धजा करके, राजा को प्रसन्न करने के उद्देश्य से और राजा ने कहा तुम सब मुझे अपना-अपना लाल कमल पुस्प दिखाओ और प्रत्येक का अपना-अपना लाल कमल पुस्प अपने पति राजा को दिखाया। वे सभी ताजा और लाल थे जब उन्होंने उन्हें दिया था। केवल एक अच्छी पत्नी ने उसे सूख गया कमल दिया और उसने कहा हे मेरे भगवान, मुझे नहीं पता कि यह कैसे है कि ये सभी कमल ताजा हैं। यहाँ पर मेरा कमल मृत और सूख गया है, आपके वचन के विपरीत हैं और फिर भी मेरे दिल ने कभी भी किसी भी व्यक्ति के बारे में सोचा नहीं है। तब उन सभी अन्य पत्नियों ने उसके विरूद्ध चिल्लाया, क्योंकि उन्होंने उससे घृणा कर रही थी और उन्होंने कहा हे राजा, यह औरत भ्रष्ट है और हम सभी इसे अच्छी तरह से जानता हैं और अब तो सबूत भी आपको मिल चुका है। लेकिन राजा ने उन्हें देखा और वह हँसा और उसने कहा हे मूर्ख, कितने महीने तक कमल ताजा रह सकता है? अब, क्या आप सभी अपने अपराधों को छुपाने के अपने प्रयासों की निंदा करती हैं। लेकिन वह अकेले ही उसके दिल से निर्मल और पवित्र थी और उसे कमल के मुर्झाने से किसी प्रकार का डर नहीं था और वह अकेली शुद्ध और मेरी रानी होने के योग्य है। क्योंकि सिर्फ़ वहीं कमल पुस्प कभी नहीं मुर्झाता हैं जिसकी जड़े किसी मानव के हृदय में जमी होती हैं जिसमें सत्य प्रेंम और श्रद्धा रूप पानी और खाद दिया जाता है।
तुफान और पत्तें का जीवन
फिर इन्द्र ने कहा हे बकुले के मुख के समान मुस्कुराने वाली महिला, भले ही आप अपने पहले और अत्याधुनिक दिल की निर्दोषता और कोमलता से पीड़ित होने के लिए बहानी चाहती हैं, फिर भी आप रात में चोर की तरह आने और आपको चोरी करने के लिए अपने पति के प्रति उदार नहीं कर सकती हैं। खैर, क्या तुमने खुद कहा था कि एक पतंगे की तरह आग में उड़ा दिया है और अपने पंखों को गंधक से जला दिया है।
फिर रत्नावली ने कहा हे ब्राह्मण, एक कमजोर महिला कैसे अपने भाग्य से बचने की उम्मीद कर सकती है, भाग्य जो महानतम देवताओं से भी आगे निकलती है? क्या प्यार का देवता महान भगवान की आँख की आग में तितली की तरह झुका हुआ नहीं था? और फिर मैं उन लोगों की आंखों में आग से कैसे बच सकती थी जो स्वयं भगवान के स्थान पर हैं? आइये, क्या मैं इसको आपके लिए साबित करूंगी कि मेरे पति ने कोई नुकसान नहीं किया बल्कि मेरे लिए अच्छा है? क्या तुम नहीं जानते कि महिलाएँ पत्तियों की तरह हैं और प्रेम हवा की तरह है, जो पेड़ों के बीच अपने ही मीठे रास्ते पर उड़ता है और हर पेड़ के लिए, यह पत्तियों आती है और वह उनको हिलाता है और जिसमें कुछ पत्तियाँ तत्काल गिर जाती हैं, जबकि अन्य कुछ समय के बाद थोड़ें समय तक वृक्ष के टहनियों से साथ रहती हैं, फिर वह भी गीरती हैं, लेकिन जल्दी या बाद में सभी गिरने के लिए बर्बाद हो जाती हैं, केवल उन लोगों को बचाओ जो निर्दय भाग्य को अनजाने में पेड़ पर सूखने और क्षय करने के लिए बनाए जाते हैं। चाहे वे गिरते हैं या गिरते नहीं हैं, वे आम अपरिहार्य अंत से बच नहीं सकते हैं। तो पेड़ पर बने पत्ते से क्या प्राप्त होता है? क्या मलाया के पहाड़ से चंदन की सुगंध से भरी हवा से लुप्त हो जाने पर उनका उपजना और गिरना सबसे अच्छा नहीं था, फिर घबराहट से विस्फोट करने की प्रतीक्षा करें, अस्थिरता से विस्फोट से उछाल से? अब मुझे दिखाओ कि क्या आप एक आदमी को अपनी खुद की या किसी अन्य महिला के पति होने के योग्य हैं, जिसने मुझे मेरे पेड़ से चुरा लिया है, क्योंकि मैंने अनगिनत पुरुषों को देखा है जैसा कि मैंने अपनी खिड़की से देखा है और किसी के साथ उनकी तुलना नहीं की जा सकती। क्योंकि वह दृढ़ है और मैं कमजोर हूँ और वह बहादुर है और मैं डरपोक हूँ और राजा उसका पिता था और मेरा फिता भी एक राजा है और वह सुंदर भी है और मैं सभी मनुष्यों की आंखों को पढ़ सकती हूँ और साथ ही, सुंदरता के लिए जो भी व्यक्ति इसे देखता है, उसका दिल में हल-चल होती है, चाहे वह पुरुष या महिला हो और इसे उखाड़ कर कैसे फेंक दें और यदि यह कपास धागे की तरह बहुत शक्तिशाली स्नैप है, तो सभी तंतु जो इसे अपनी प्राचीन मिट्टी में तय करते हैं और इसे दूर ले जाते हैं, जैसा कि उसने किया मेरे साथ और इसलिए एक महिला का दिल उसके पति के साथ उड़ाया जाता है, जहाँ भी वह उसे लेने का विकल्प चुन सकता है और जो लोग इसे अन्यथा प्राप्त करेंगे वे जीवन के रहस्य में पंडित नहीं हैं। क्योंकि मेरे दिल को रात में धरती की तरह, अंधेरे में दफनाया गया था और मेरे पति उस समय खिड़की पर आया, सूरज की तरह सुबह और एक पल में मैं प्यार की लाल खुशी से जो भरा हुआ था और अब मेरी आत्मा पर उसका अधिकार है, क्योंकि अब यह सब उसके कारण ही है और उसका रंग और उसकी खुशी केवल प्रतिबिंब और उसके परिणाम के रूप में मुझमें दिखती हैं। उसे दूर ले जाओ और सब गायब हो जाएंगे और क्या तुम सूरज को दोष देोगे कि उसने काली रात को गुलाबी सुबह में क्यों बदलना चाहते हो?
तब इंद्र ने कहा हे महिला, जिसका शरीर की खुशबु उसके चारों ओर फैलती है, उच्च जाति के कपूरकी सुगंध की भांति, आप अपने अपराधी पति के लिए विनती करती हैं और आप चुपके पानी में मोर की पूंछ के प्रतिबिंब के समान दिखती हैं, क्योंकि यह विभिन्न प्रकार की सुंदरता को अपने में छुपायें है और फिर भी यह है भ्रम के अलावा कुछ भी नहीं, क्योंकि आप पहले प्रेम के वासना में आकर्षित होने के साथ परेशान और नशे में हैं, जिसके कारण ही आपकी जीभ इस प्रकार का भाषण देती है और आपके भटकने वाले राजपूत पति को आप परमेंश्वर की तरह समझती है।
फिर रत्नावली ने कहा हे ब्राह्मण, इस दुनिया में सभी भ्रम में ही है और फिर भी कुछ भ्रम दूसरों के मुकाबले लंबे समय तक चलते हैं और उनके बीच में कोई अन्य भेद या अंतर नहीं है और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि जैसा कि आप कहते हैं, मेरे पति में मेरा विश्वास एक प्रकार भ्रम था, केवल इतना ही दिया गया कि यह जीवन तक कम से कम रहता है? एक सपने से ज़्यादा भ्रामक क्या हो सकता है, फिर भी जो सपने के भ्रम को समझ सकता है, जब तक कि वह अंत तक नहीं पहुंच जाता है? वास्तविकता के रूप में भ्रम नहीं है, जब तक इस भ्रम की खोज नहीं हो जाती है? इसलिए जब तक मेरा भ्रम नष्ट नहीं हो जाता हैं, तब तक आपके शब्द शून्य नहीं होते हैं। फिर भी यह कभी नहीं हो सकता है, क्योंकि समय का पता लगाने की इच्छा हो सकती है। यह एक लाभ है, भले ही यह केवल आज के लिए सहन करता है, क्योंकि निश्चित रूप से कौन जानता है कि वह एक और सूर्य के उदय को देखेगा? बहुत समय पहले की बात है, एक राजा था जो अपनी एक रानी के साथ गर्मि के मौसम की दोपहरी में महल में बनें तालाब के पानी में तैर रहा था और कुछ समय तक तैरने के बाद वह तालाब के ठंडें निर्मल पानी में खड़ा होगया, पहले राजा ने अपनी रानी की एक प्रतिमा को बना हुआ, पानी के अंदर चमकते हुए प्रतिबिंब के रूप में देखा और उसके क्रिया कलापों जो वह उस समय कर रही थी और फिर उसके पानी को हिलाया जिससे रानी का प्रतिबिंब पानी में से गायब होगा, क्योंकि किसी की परछाई पानी में तभी तक दिखती हैं जब तक पानी शांत होता है। उस समय रानी किसी युवा चन्द्रमा कि तरह से प्रतित हो रही थी जो आकाश में बादलों के मध्य में से झांक रही थी, क्योंकि उसके भिगे हुए वस्त्रों में से उसके सुडौल अंग का बाहरी किनारा दिक रहा था और उसने अपने गहरे काले बालों को अपनी चोटी से ढिला कर दिया जिससे वह कंधे से होते हुए उसके स्तनों के ऊपर तक फैल गये और वह उसके ऊपर बरसने लगे और जब वह दोनो पानी में तैरते हुए तक गये, जिसके बाद उन दोनो ने तालाब के पास में ही बने सुन्दर हवेली में आराम करने के लिए गये, जहाँ पर राजा तत्काल थकान के कारण रानी की गोद में आपना शर रख कर में आरामा करने लगा और थोडी ही देर में वह निद्रा में चला गया और उसने स्वप्न देखा कि वह शुबह शिकार करने के लिए लिये जायेगा और शुबह होते ही वह अपना शिकार पर चला गया और जंगल में जाने के बाद उसने देखा कि एक ब्राह्मण एक वृक्ष की छाया में सो रहा था और जब शाम को राजा शिकार करके वापिस आरहा था अपने पिछले रास्तें से तो उसने देखा कि अब भी वह ब्राह्मण वही वृक्ष नीचे सो रहा था। इसलिए राजा ने अपने एक आदमी को भेज कर उसको जगाने के लिए कहा। इसके कुछ देर के बाद वह आदमी राजा के पास आया और कहा कि महाराज वह ब्राह्मण नहीं उठ रहा है हमन सब कुछ किया उसको जगाने लिए लेकिन वह नहीं जागा, इसके लिए हम क्या कर सकते हैं? और यह भी निश्चित हैं कि वह अब तक मरा बी नहीं है क्योंकि उसकी शरीर अबी बी गर्म हैं और वह शांस भी ले रहा है। तब राजा ने उस ब्राह्मण को अपने साथ महल में ले कर आया और उसे विस्तर पर लिटा दिया गया और वहाँ राजा के महल में वह ब्राह्मण विस्तर पड़ें-पड़ें सात सोलों तक सोता रहा और राजा अपनी दिनचर्या को करता रहा और एक दिन अंत में वह ब्राह्मण अपनी निद से आचानक जाग गया और उसने अपने चारों तरफ अद्भूत आश्चर्य के साथ देखने लगा और जोर से चिल्लाया कि यह सब क्या हैं और वह कहाँ पर हैं, क्योंकि मैं तो जंगल में एक साधरणतः वृक्ष के निचे सो रहा था। तब राजा उसके पास आया और उससे कहा कि तुम यहाँ पर पिछले सात सालों से सो रहे हो और इस बिच मैं अपने सारे कार्यों और जीम्मेदारियों को करता रहा, जिसमें मैंने कई युद्ध और शांती की स्थापना की, इसी बिच मैंने कई पुत्र और पुत्रीयों को भी प्राप्त किया और वह बड़े हो गये, लेकिन तुम केवल अपने विस्तर पर सोते रहे और जैसे ही ब्राह्मण राजा के प्रश्नों का उत्तर देने के लिए तत्पर हुआ, तभी राजा अपनी नीद से रानी के यह कहने पर उठ गया कि क्या आर्यपुत्र आप सो रहें हैं। तब रजा नें रानी से पुछ मैं कितने समय से सो रहा हुं? जिस पर रानी ने कहा आपनें अभी-अभी मेरी गोद में अपने सर को रखा है, तब राजा रानी को अपनी आश्चर्यभरी दृष्टी से देखा और अचानक वह चिल्लाने लगा हाँ यब सब केवल माया और क्षणिक हैं इसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं हैं, समय क्या है और एक स्वप्न क्या है? क्योंकि मैं पिछले पूरे सात सालों तक सोता रहा और तुम्हारे गीले कपड़े अभी भी तुम्हारें स्तनों से चिपके हुए हैं, किसी घमंडी विद्रोहियों की तरह, इनको अपने स्तनो से बाहर खड़े होने के लिये बोल दो और बिना किसी संदेह के मैं और तुम अब भी स्वप्न में ही जी रहें थे, लेकिन मैं हमें जाग जाना चाहियें तुम मुजे तत्काल चुंबन दो बिना किसी प्रकार के एक भी पल को व्यतित किये वगैर और रानी ने सोचा कि राजा गल हो चुका है लेकिन फिर बी उसने राजा की आज्ञायों का पालन किया और उसने पने निचले होठों से राजा को एक चुंबन दिया और अचानक तभी हवेली की छत फट कर उनके ऊपर गीर गई जिससे उन दोनो की मृत्यु होगई और फिर वह दोनो अपने स्वप्नों में जागृत हुए, एक दूसरें के चुंबने लेने के कुछ समय बाद ही जैसा की राजा भयभित था। आगें रत्नावली ने इन्द्र से कहा कौन बता सकता है, की यह स्वप्न हैं या हकिकत हैं हमारें साथ जो अबी होरहा हैं हमें अपने जीवन के सुहानो स्वप्न से जागृत होना चाहिए उससे पहले की यह हमारा प्रेण भी एक माया और क्षणिक नस्वरता में तब्दिल हो जाये।
फिर इन्द्र ने कहा ओ महिला जिसका आकार किसी नागिन की तरह हैं जो कुंडली मार कर बैठी है, तुम्हारें शब्द किसी ईश्वर के देवदूत के हों और तुम्हारें सारे स्वप्न बहुत छोटे और क्षणिक हैं जिनकी पूर्ण होने की मात्र एक संभावन ही है, लेकिन इस संसार में जैसे तुम स्वप्न से जागृत हो गई हो और तुमने अनुभव करलिया हैं, इस जीवन के कड़ुआहट को इस छोटे से ही उम्र में, क्या यह संभव नहीं हो सकता है? कि तुम्हारा पति जो पहले से ही तुमसे दूर जा चुका हैं और वह तुम्हारें पास वापिस कभी नहीं आयेगा।
तब रत्नावली ने मुस्कुराते हुए कहा हे ब्राह्मण, क्या आपने कभी मछुआरों की जाति के एक आदमी को नहीं देखा है, गंगा के पानी में छोटी मछलियों को पकड़ते हुए? एक बार जब उन्होंने चारा निगल लिया है, तो वे मछुआरें के पास आने से बच नहीं सकते हैं और वह बहुत जल्दी ही मछुआरें के हाथ में आजाती हैं, जिनको मछुआरों आग की लौ पर भुन कर अपने खाने के लिए तैयार कर लेता है। इसके बारें में स्वयं प्रेम का देवता भी नहीं जानता है तो मछली इस के बारें में कैसे जान सकती है? और इसलिए वह स्वयं एक मछुआंरें के समान है जो किसी मनुष्य को हृदय को अपने बश में कर लेता है, उसके सामने किसी सुन्दर औरत के रूप में चारा डाल कर, जिस प्रकार से मछलियों को अपने जाल में फंसा लेता हैं नछुआंरा, जैसे कि प्राचिनकाल में विश्वामित्र को भी मेनका ने अपने जाल में फसां लिया था और ठीक इसी प्रकार से पिछली रात्री को मैंने अपने पति रूप मनुष्य को अपने काम रुपी वासना से परीपूर्ण शरीर को चारा बना कर उसके गले में डाल दिया था, जिससे बचना उसका संभव नहीं है इस लिए वह कहीं भी होगा, भाग कर मेरे पास अवश्य जल्लदी ही आ जायेगा। जिस प्रकार से मछली चारें के साथ लगें लोहें के मजबुत सिकंजें में फंस जाती हैं जिससे उसका छुट पाना असंभव होता है उसी प्रकार से मेरा पति भी मेरे प्रेम रुपी मजबुत सिकंज से बच कर नहीं जा सकता है। क्योंकि यह प्रेम अपनी धुर्तता से परमेंश्वर को भी अपने जाल में फंसा लेता है तो उसके सामने मानव की क्या अवकात है। इसलिए पुरानी कहावत हैं कि औरत के प्रेम रुपी हथियार से बचना किसी मानव का संभव नहीं है। इस तरह यह भगवान की एक चालाकी के समान है, जैसा कि वह आग को भी चकित करता है, अब तक जिस प्रेम रूप आग पर वह प्राणियों को पकाता है, उसके मछुआरे पीड़ितों को अपने बश में करने में आनंद को प्राप्त करते है और जितना लंबा मेरा पति मुझसे दूर होगा, उतना ही अधिक निश्चित रूप से उसकी वापसी की संभावाना अधिक है और खुद की मेरे पास अनुपस्थिति के लिए काफ़ी अधिक दुःखी भी होगा। क्योंकि वह उसी प्रकार से होगा जैसै हिमालय पर्वत के शिखर पर उपस्थित व्यक्ती के हृदय का स्थिती होती हैं, जहाँ पर अधिक समय तक किसी भी प्राणी का रहना संभव नहीं है, क्योंकि हमालय की ठंडी बर्फ उसके अंत के लिये परयाप्त होती हैं, उससे पहले कि वह हिमालय की ठंड से बचने के लिए उसकी घाटियों में स्थित जंगल की लकड़ियों को जला कर स्वयं को गर्म नहीं कर लेता है। इसी प्रकार मेरे पति के लिये जो गर्मी और प्रेंम रुपी अग्नि है जो उसके जीवन का मुख्य श्रोत ही इस नस्वर संसार में वह मेरे हृदय में स्थित है जिसको प्राप्त करने के लिए जल्दी ही वह मेरे पास होगा। जानिए कि वफादार पत्नी का दिल प्रेम की वेदी है, जिस पर पवित्र घर की आग जल जाती है और यह अंधेरे में भी चमकती है, यात्रा करने वाले पति के घर का मार्गदर्शन करने के लिए और उसकी अनुपस्थिति में, एक काली रात्री में इसकी शुद्ध बीम निष्ठा के अंधेरे में प्रकाश के द्वारा स्वर्णमय बनाई गई लकीर जैसा दिखता है और जिसमें से कोई आग नहीं निकलती है, जबकि अभी भी इसे खिलाने या प्रज्वलित करले के लिए ईंधन सुरक्षित है और मेरा प्रेम अभी तक पूरी तरह से थका हुआ नहीं है। न ही मैं इतनी मूर्ख थी कि मेरे पति ने मुझे अपनी वापसी के लिए सुरक्षा के बिना छोड़ दिया। पता है, हे ब्राह्मण, सभी सृष्टि के प्राणियों में से केवल दो ही हैं जिन्हें अपने वैध शिकार की खोज करने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन चुपचाप प्रतीक्षा करना पड़ता है, जबकि यह प्रेमीका अपने स्वयं के साथ समझौता में विनाश के लिए दौड़ती है और इनमें से एक मकड़ी है और दूसरी एक औरत है।
एक महिला का भगवान
तब इंद्र ने कहा हे तू स्वादिष्ट स्त्री, प्रेम ने तुझ पर अपना जादू डाल दिया है, या जैसा कि तू कहती है, उसने तुम्हें अपने हुक पर पकड़ा रखा है और अब तुम ऐसे व्यक्ति की तरह हों जो रेगिस्तान में दूर से दिखता है और अनजानता के कारण, इसकी प्रकृति वास्तव में क्या है, इसकी जानबूझकर सुंदरता की प्रशंसा करता है और निस्संदेह आप सही हैं और तेरा पति तेज़ रखेगा, जबकि तेरी सुंदरता का खिलना सुबह के साथ ताजा और सुगंधित होगा, लेकिन जब आप दिन की गर्मी में पहने और धूलते हैं, तो सावधान रहें। ऐसा न हो कि वह तुम्हें फेंक दे। तुम नहीं जानती हो कि अनावश्यक पत्नी के सामने क्या झूठ है।
फिर रत्नावली ने कहा ओ ब्राह्मण, जो अपने पति को चुनती है वह एक साहसी और बड़ें जुआरी जैसी दिखती है, जो अपने ऊपर मरने वाले एक भी कलाकार पर अपना सब कुछ लुटा देती है और अगर उसने हल्के से चुना है, केवल मूर्खता और स्वार्थी सुख की इच्छा से, तो मार्गदर्शन नहीं होने के कारण बुराई में फंस जायेगी जिससे उसका विनाश होगा। लेकिन अगर उसने अपनी पसंद को अपने शराब की तरह से नहीं पिया है, बल्कि अपने सच्चे पति और घातक पल के अर्थात वासना बश में होकर मालिकाना भावना से किसी जादूगर की तरह से उससे अपना सम्बंध स्थापित किया है, जिसके कारण वह अपने वासनाओं के चक्रव्युह के भीतर एक ग्रह की तरह फंस जायेगी, एक गरीब बेवस अपनी प्रकृति प्रतिकुल होकर और अगर वह उसे अंधाधुंध प्रेम करने के लिए तैयार नहीं होती है, तो वह उसके रूप में अपने भाग्य को प्राप्त कर लेती है तो उसे बहुत भक्ति मिल सकती है। क्योंकि वह जो उसके पीछे है और अपने पति के आह्वान पर आती है, वह आनंद से बाहर नहीं होती है, हालांकि आनंद सर्वोच्च है, लेकिन जैसा कि वह अपनी इच्छा के विरुद्ध थी और सिर्फ़ इसलिए कि वह उसकी मदद नहीं कर सकती, क्योंकि वह परमस्वार्थी है और उसके बाद उसके जन्म के फल प्राप्त होने के लिए कुछ भी नहीं हो सकता है। क्योंकि किसी महिला के लिए अपने गुरु को ढूंढना बेहतर होता है, अपने पति से बड़ा गुरु उसको कहीं नहीं मिल सकता है, भले ही उसे बाद में बीमारियों के समान उसका उपयोग करना पड़े, या उसे छोड़ देना चाहिए, उसे कभी भी खोजना नहीं चाहिए. हर महिला के लिए एक भगवान की ज़रूरत होती है, लेकिन कई उसे कभी नहीं ढूंढते हैं। लेकिन जब उसने उसे पाया, तो उसे उसके साथ व्यवहार करने दो, वह उसका है। लेकिन अगर उसे ग़लत आदमी मिल जाए, हालांकि वह उसे रानी के रूप में मान सकता है और उसे देवी के रूप में पूजा कर सकता है, फिर भी वह कभी उससे प्यार नहीं करेगी और उसका दिल खुश नहीं होगा, क्योंकि वह उसकी नहीं है और वह उसे आज्ञा नहीं दे सकती हैं। वह सिर्फ़ उसी प्रकार से है जैसे एक हाथी के लिए एक शृंखला द्वारा आयोजन किया जाता है उसको पकड़ने के लिए और एक महिला उसके दिल से होती है और उसके प्यार का सार आज्ञाकारिता की भावना है, क्योंकि किसी भी महिला को कभी भी किसी भी आदमी से प्यार नहीं होता है, जब तक कि वह नहीं जानती कि वह बिना किसी शिकायत के आज्ञा मानने के लिए उसका स्वामी है, चाहे वह चाहे या नहीं। फिर भी इसमें कोई दासता नहीं है, क्योंकि वह अपनी शृंखला से प्यार करती है और वह उस आदमी द्वारा प्रभुत्व रखती है, जिसे वह पसंद करती है और हर स्त्री के लिए, खुशी दुःख है, वह आदमी जो उसका असली गुरु नहीं है, परन्तु पति के साथ दुःख खुशी है और कोई भी महिला नहीं बल्कि उसके स्वामी के प्रति आज्ञाकारिता की अपरिहार्य खुशी को समझ सकती है, क्योंकि यह उसकी प्रकृति की विशिष्टता से उत्पन्न होता है। जो मनुष्य साझा नहीं करता है, उसकी प्रकृति के लिए आज्ञा मानना नहीं है लेकिन आदेश के समान होता है और अब, मेरे पति मेरे स्वामी हैं और मैं उसकी दास हूँ और अगर वह मुझसे प्यार करना जारी रखता है, तो यह ठीक है और यदि नहीं, तो भी यह ठीक है, क्योंकि वह मुझे उसकी पूजा करने से नहीं रोक सकता है। यद्यपि सृष्टिकर्ता यह हो सकती है कि यदि वह कमल को प्रेतवाधित तालाब से हंस को दूर करता है, तो वह अपने सभी सर्वज्ञता से तालाब की इच्छा से वंचित नहीं हो सकता है। न ही कोई भाग्य पत्नी की वफादारी को सशक्त कर सकती है। क्योंकि जिसका पति के प्रति समर्पण परिस्थिति में बदल जाता है या परिवर्तित होने वाली औरत कभी उसकी पत्नी नहीं थी, बल्कि एक अजनबी, संयोग बश दुर्घटना और गलती से उससे जुड़ गयी थी और उसको उस नाम से बुलाया जो कभी उसका नहीं था।
तब फिर इन्द्र ने कहा वृहद प्रेम की मुर्ती और जागृत उर्जा का प्रकाश को धारण करने वाली हे महिला यद्यपि तुम्हारें पति ने तुमको बहुमूल्य आभुषण के रूप में पाया है जिसके लिए उसकी स्वयं की अपनी व्यक्तिगत कोई योग्यता नहीं है, हंलाकि उसका देवाताओं के प्रति किये गये अपराध से कोई भी मानव तुम्हारें पति को बचाने में समर्थ नहीं है और इस कारण से ही उसने स्वयं अपने लिए अपने दुर्भाग्य को आमंतृत किया है और यह सब उसके द्वारा व्यर्थ में किये गये क्रोध के कारण है, जिसके परिणाम स्वरुप ही उसकी बर्बादी उसके सामने उपस्थित हुई है।
और फिर रत्नावली अपने स्थान से उठ कर इन्द्र के सामने खड़ी होगई और उसने अपने हाथों को अपने सिने के ऊपर बांध लिया, अपनी निचली आँखों के भौहों को टेढ़ा करके उसकी आँखों में देखा और कहा ब्राह्मण अभी मैं उस पुरुष की पत्नी हुं और ऐसा भी संभव हैं कि आगे आने वाले समय में एक माँ बन सकती हुं और बहुत कुछ भी हो सकती हुं, मैं इसको अच्छी तरह से जानती हुं कि बिते हुए कल तक वह मेरे लिए अजनब थे और अंजाने थे मेरे लिए और अब आप से कुछ प्रश्न करना चाहती हुं। अगर हमारें पास एक पुत्र होगा और यदि वह जब बड़ा होकर एक आदमी बन जायेगा और जब वह क्रोध की कुरुपता के कारण अपने भाग्य को भुल चुका होगा और अपने दुःखों को लिए मुझको दोषी ठहरायेगा जिसको उसने अपने भाग्य में स्वयं लिखा होगा, अब मुझे बताओं उसके प्रति मेरा क्या कर्तव्य होगा? क्या मुझे उसका त्याग कर देना चाहिए या फिर उसको छोड़ कर उससे स्वयं को दूर कर लेना चाहिये, अथवा मुझे उसके द्वारा किये गये अपराध और दोष जो उसने मेरे प्रती किया है उसको सांत्वना देने के साथ उसको क्षमा कर देना चाहिये, एक कठोर बीमार कर्ता को जानबूझकर उसके कार्य की तुलना में जुनून के एक पल के परिणाम के रूप में इसे देखते हुए?
और उसने अपनी पलको को ऊपर उठा कर, उसको स्पष्ट रूप से अपरिहार्य आंखों से देखा जो उसकी आत्मा में घुस गयी और इन्द्र को जवाब देने के लिए इंतजार कर रही थी और इंद्र उसके सामने कुछ पल के लिए भ्रमित हो गया था और अपनी आँखो को उसकी आँखों से मिल नहीं सका और इन्द्र नेअपने हाथों को एक साथ झटका और कहा हे स्त्री और पत्नी, सूक्ष्म और चांदी की भाषा में बात करने वाली, जिसकी अतुलनीय सुंदरता को अपनी युवा दुल्हन की आंखों में नरम प्रेम-प्रकाश को अनूठी ढंग से सामार्थ को प्रदान किया जाता है, मैं तुम्हारें और तुम्हारें पति पर विजय के वर के कारण पराजय को प्राप्त करता हूँ, क्योंकि तुम्हारे अंदर अपने पति के प्रति अदम्य निष्ठा के सामर्थ की शक्ति है, जिसके लिए ही यह भी कहा जाता है कि एक पुण्य महिला का प्रताप देवताओं से अधिक शक्ति शाली होता है। पता है कि मैं तुम्हारे पति को दंडित करने आया हूँ, परन्तु तूने उसे छुड़ाया है और उसके बीच और स्वर्ग के क्रोध के बीच मेंतुम खड़ी हो गई हो। जिसके कारण तुम अपने पति को ले लो और उसे अच्छे मार्ग में ले जाओ, जो तुम्हारा है और यदि तुम कर सकती हों, तो अपने पिता के प्रतिशोध से, अब मेरी रक्षा करों।
और तुरन्त वह उसकी आंखों के साने से गायब हो गया और आकाश में उड़ गया। जल परी ने इन्द्र को ऐसा करते हुए उसे देखा, बाद में उसने रत्नावली की वादाम जैसी आँखों में विजय की खुशी के साथ चमकिले होठों पर मुस्कुराते हुए देखा। लेकिन रत्नावली को तब समझ में आया जब उसने देखा कि उसके सामने से मायावी बहुरुपिया भ्रामक ब्राह्मण गायब हो गया चुका था और उसने अपने अंदर एक गहरी सांस को लिया, एक चौंकाने वाली झुंड की तरह से खड़े हो कर आश्चर्यमय आँखों के साथ अपने स्तन को हिलाते हुए, जबकि एक प्रकार के प्रफुल्ता का रंग उसकी गालों पर आ गया और फिर उसने खुद से कहा जैसा कि मैंने सोचा था और वह वृद्ध ब्राह्मण कोई देवता था, जो इस निचे के नस्वर संसार में मुझे प्रलोभलनो को देकर अपने मार्ग से भटकाने का प्रयाश करने के लिए आया था। उसकी पलकें कभी भी नहीं चलती थी और उसके शरीर की कोई छाया भी पृथ्वी पर नहीं पड़ती थी और वह हमारे साथ अब तक जो भी कुछ हुआ था उसे जानता था क्योंकि जिसके बारें में इस संसार का कोई नस्वर मानव इसके बारें में नहीं जानता हैं। लेकिन अब, मुझे अपने पति और अपने पिता के क्रोध के बीच, अपने शब्दों को याद रखना चाहिए और यदि मैं ऐसा कर सकती हूँ और जैसे ही वह स्वयं से इस प्रकार से बातें कर रही थी तभी उसने देखा कि उसका पति जल्दी-जल्दी उसकी तरफ आने वाली सड़क पर चला आरहा था।
और फिर वह खुंशी के आँसु को आखों में भर कर वह अपने पति की तरफ भागती हुए गई, जबकि उसके आँखों की प्रसन्नता कुद कर गालों पर रंगत बन कर उभर आई थी और जल्दी ही वह एक दूसरें के करिब आगये और रत्नेश ने कहा मैं तुम्हारें लिए भोजन के साथ शराब भी ले कर आया हुं, इसके साथ प्याला भी ले कर आया हुं, क्योंकि हम दोनो एक साथ बैठ कर ही पिने का लुप्त उठायेगे और तुम्हारे बजाने के लिए एक विणा को भी लाया हुं, जिसको देखकर रत्नावली ने कहा ओ हो यह कितना अधिक सुन्दर है, लेकिन मैं इस समय भुख से वेहोश हो रहा हूँ, तुम्हारे बाहों और होठों के अमृत को पाने लिए और फिर उसने रत्नेश के चारों तरफ अपनी बाहों को फैला कर उसको पकड़ लिया और वे कुछ पल तक इसी तरह एक साथ खड़े रहे, जबकि उनकी आत्माएँ एकात्म स्थापित बनायं रखी उनके शरीर से अलग होने पर भी, अपने प्यारे होंठों के दरवाजे पर आंदोलन में घूमते हुए और फिर, थोड़ी देर बाद, उसने कहा आओ, तुम यहाँ हो और तुम भूखे हो और मैं भी हूँ। आइए हम पहले खाएँ और फिर हो सकता है, तुम मुझे फिर से चूमोगे और फिर रत्नेस ने अपना बोझ को नीचे रख दिया और उसे अपनी बाहों में ले लिया और उसने उसे चूमा, जब तक उसके होंठ पीले नहीं हो गये, जैसा कि भय के साथ उसने अपनी सांस शरीरी से बाहर छोड़ दिया और फिर वे अच्छा तरह से एक साथ बैठे और खाय पी लिया, हर निवाले को मुंह में डालने से पहले एक दूसरे को चुंबन करते हुए और आँखों में आँसू के साथ मुस्कुराते हुए, अपने नामों को पूरी तरह से भूल गए.
तब जब उन्होंने खाना समाप्त कर लिया, तो वे उठ गए और एक-दूसरे की बाहों में घूमते हुए, जैसे कि एक मानव प्रतीक हो और आप, अंजीर के पेड़ों में चिल्लाते तोतों को देखकर और बंदरों को छिद्रों की छत पर चढ़ते हुए देख रहे थे घरों और खुशी से अधिक शोक और बिना कारण के हंसी, जबकि दिन बिजली के एक फ्लैश की तरह समाप्त हो गया था और सूर्य अपनी किरणों के साथ पहाड़ में अपने आराम के लिए चला गया था और चंद्रमा गुलाबी रंग को लेकर आकाश से झाकने लगा ता और फिर रत्नावली ने कहा आइए हम वापस चलें और शराब का आनंद ले और हम एक साथ शराब पीएंगे अपने दोनों के लिए पीएंगे और रत्नेश ने कहा मैं गाऊंगा और तुम्हारे पास खेलूंगा और अपनी छाया से नृत्य करूंगा मुझे मेरी उपलब्धियों को दिखाने के लिए, हम भाग लेंगे अपने आपको चंद्रमा की रोशनी में आनंद देने के लिए. तो ऐसा ही उन्होंने किया और रत्नेश ने अपने हाथ में लाल शराब के कप के साथ पेड़ के नीचे बैठा था, जबकि उसने नृत्य किया था और उसने विणा को वजाया और गाया, चंद्रमा के सार और केसर की सुंदरता के साथ जैसा की वह स्वयं स्त्री अवतार की तरह चांदनी की तलाश में इस धरती पर आई हो, अपनी आत्मा में प्रवेश करने के लिए और पृथ्वी के सभी चीजों का देखभाल करने के लिए और इसे कमजोर कर देंने के लिए और उसने उसे नशे की लत में देखा और खुद से कहा निश्चित रूप से वह स्वर्ग की दिव्य प्रसन्नता का एक हिस्सा है जिसने किसी महिला के रूप में इस प्रकार का रूप धारण किया है, या पृथ्वी पर किसी संयोग वश दुर्घटना से आगई है आकाश के चमक का एक टुकड़ा के रूप में, वह अपनी शुद्धता में हंसते हुए सामग्री की सकलता पर हंस रहा है जिसके द्वारा वह घिरा हुआ है।
इसलिए वे दो बर्बाद शहर में एक-दूसरे से प्रसन्न हुए, चांदनी में नहाए और पहले प्यार के पारस्परिक भयावहता की उत्साह के साथ मग्न थे। लेकिन इस बीच, जौहरी, जिसे रत्नेश ने रत्नावली के कंगन को वेच दिया था, जब उसने इसे देखा तो आश्चर्य से भर गया था और उसने खुद से कहा इस राजपूत को ऐसा गहना कहाँ से मिला, जिसका पूरे शहर में कोई मेल नहीं किया जा सका? तो उसने इसे बहुत कम कीमत में खरीदने के बाद, उसने बिना ज्ञान के रत्नेश का पीछा किया और उसे बाज़ार में खरीदारी करते हुए देखा और आखिर में जब वह शहर से बाहर विरान स्थान पर लौट रहा था तो उसने कुछ दूरी पर रह कर रत्नेश का पिछा करता रहा और जब वह दोनों प्रेमी मिले, तो उस उत्सुक सुनार ने सड़क के कोने के चारों ओर देखा और उन्हें देखा। लेकिन उन्होंने कभी उस जौहरी को नहीं देखा, क्योंकि वे खुद को छोड़कर दुनिया के सब कुछ के बारें में विस्मरण में खो गए थे। फिर भी पहले से ज़्यादा आश्चर्यचकित होकर, जौहरी ने खुद से कहा इस महिला की सुंदरता उतनी ही अधिक है जितना कि कंगन, जो निःसंदेह उसका ही है और उसके पास अन्य सभी गहने भी हो सकते हैं और अब में यह समझ गया कि इस कहानी के पिछे कौन-सा मसला है। इस प्रकार वह थोड़ी देर तक अपने स्थान पर खड़े होकर अपने दिमांग को दौड़ाने के बाद और उन्हें देखकर, वह धीरे-धीरे और अनिच्छुक रूप से अपने घर वापिस लौट आया और जब वह वहाँ अपने घर पर पहुंचा तो उसने पूरे शहर में उथल-पुथल-पाया और जब उसने कारण पूछा, तो लोगों ने कहा कोई पिछली रात को महल में आया था और राजा की बेटी को ले गया है और उस आदमी के लिए राजा ने एक बड़ा इनाम रखा है जो यह पता लगा सकता है कि उसे कौन ले गया है? और वह कहाँ पर है।
और तुरन्त जौहरी ने अपना कंगन लिया और राजा की महल में पूरी रफ्तार से भाग कर गया और महल में प्रवेश करने के बाद, उसने अपनी कहानी सुनाई और कंगन दिखाया और राजा ने इसे अपनी बेटी के कंगन के रूप में पहचान लिया और एक पल की देरी के बिना अपने, पाहियों को उनको तलसने के लिए भेजा, सिपाही, जो जौहरी के नेतृत्व में, खाली शहर के लिए जितनी जल्दी संभव हो सका वहाँ पर पहुंच गये और जब वे प्रेमी, सब कुछ भूल कर, चांदनी में एक-दूसरे की आंखों के नशे में झांक रहे थे, अचानक उन्होंने चिल्लाया और राजा के रक्षकों ने भाग कर उनको पकड़ लिया और उन्हें अपने नियंत्रण में कर लिया और उन्हें राजा के सामन कैदियों की तरह से प्रस्तुत किया गया।
लेकिन पानी-लिली (जलपरी) ने उन्हें ऐसा करते हुए देख लिया था और उसने अपना सुंदर सिर झटका और चिल्लायी और उसने कहा: अब मैंने देवताओं के-के साथ अपना जो वादा किया है और राजा को इन मूर्ख प्रेमियों के छिपाने की जगह खोजनी है और मैंने इस साथी के लिए पर्याप्त किया है और मैं इनसे थक गयी हूँ। अजीब। कितनी जल्दी इन प्राणियों ने मुझ पर पल। उनके पास उनके बारे में स्थायी रूप से कुछ भी दिलचस्प नहीं है और मेरे लिए जो भी आकर्षण है, उतनी ही जल्दी ही छाया के रूप में बंद हो जाती है। लेकिन फिर भी, वह सबसे अच्छा दिखने वाला आदमी है जिसे मैंने कभी देखा था और इसलिए, मैं उसे एक और अच्छी बरी कर दूंगी और उसके बाद उसे खुद के लिए स्थानांतरित कर दूंगी।
स्वयं के पक्ष में उनका शौभाग्य
तो रत्नावली और उसके प्रेमी को जल्दी ही महल में ले जाया गया और राजा के सामने सिपाहियों के द्वारा लाया गया और जब राजा ने उन्हें देखा, तो उसने अपने हाथों को पकड़ लिया और उसने कहा हा। तो इस प्रकार से उड़ा पक्षी और उसकी बेवकूफ के द्वारा कैद किया जाता है और अब, बेटी को क्या किया जाएगा जो राजपूतों के साथ घूमती अपने परिवार से दूर रहती है और साथ में अपने परिवार के लिए अपमान को लाती है? या चोर क्या रात के राजाओं के महल में टूटने के लायक है और अपनी बेटियों और उनके सबसे अच्छे रत्नों को बंद करता है?
तब रत्नावली ने कहा हे पिता, क्रोध को न्याय के लिए अंधकार न दें। यद्यपि मैंने स्वतंत्र रूप से कार्य किया है, मैंने कुछ भी नहीं किया है, जैसा कि आप पाएंगे, स्वयं या आप को अपमानित करने के लिए. जानिए कि मेरा पति मेरे जैसा है, राजा का बच्चा है और यहाँ तक कि खुद भी राजा है और मेरे समान, द्रौपदी और दमयंती ने अपने पतियों को नहीं चुना था? और गंधर्व समारोह द्वारा शकुंतला ने दुष्यंत से शादी नहीं हुई थी और भरत उनका पुत्र था? लेकिन राजा ने कहा बस। हे बेटी। तेरा पति सूरज की उगते ही मर जाएगा, हालांकि यह तुम्हारे साथ हो सकता है। तब रत्नावली ने कहा तब तो आप अपने शरीर और खून का हत्यारे होगे, क्योंकि वह मेरा पति है और मैं उसके साथ मर जाऊंगी और इस पर राजा हँसा और उसने कहा हे मेरी बेटी, यह कला करने वाली अब मेरी बेटी नहीं है, क्या आप वास्तव में मुझे यह समझाने के लिए सोचती हों कि मैं आपको इस राजपूत से दूर ले जाने के लिए बाध्य हूँ; या आप के लिए, उसके साथ भागकर घोटाला पैदा करने के लिए, किसी भी परिवार की एक स्वतंत्र महिला की तरह, अपने आप के अनुसार?
तब रत्नावली ने कहा हे पिता, एक पल सुनो और बाद में हम दोनों को मार डालना, यदि आप चाहते हैं, मृत्यु के लिए और अकेले नहीं। यह कोई आम बात नहीं है और यकीन है कि मैं हूँ कि देवता में इसका हाथ है। मुझे केवल यह बताओ, क्योंकि तुम मुझे अच्छी तरह जानते हो, क्या मैं हल्के से काम करने वाली थी? और राजा ने कड़वाहट से कहा यह वह चीज है जो आपके व्यवहार से समझ में नहीं आता है। क्योंकि मैंने तुम्हें एक और सीता के समान सोचा था और देखो। तू अपनी खिड़की से एक भटकने वाले राजपूत की बाहों में कूद गयी है। महिलाओं की प्रकृति या उनकी मूर्खता के अस्थिर अस्थियों को कौन समझ सकता है? वे एक आदमी से बात करती हैं और दूसरे को देखती हैं और तीसरे के बारे में सोचती हैं। वे भ्रम के रूप में अवतार को धोखा दे रही हैं। चार चीजों के लिए चार के अत्याचारी हैं, समुद्र, नदियों के लिए और मृत्यु, प्राणियों के लिए, आग, ईंधन के लिए और महिला, मनुष्य के लिए है।
तब रत्नावली ने कहा लेकिन एक सवाल मुझे आपसे पूछना है और यह आखिरी है तुमने मुझे दुल्हन होने के लिए किसके बारे में बताया था क्या यह अवंती का राजा नहीं था? और राजा ने कहा हाँ। तब रत्नावली ने अपने पति के हाथ से पकड़ लिया और उसने कहा वह यहीँ है और अब मैं उसकी पत्नी हूँ और अब आप सुनिश्चित हो जाईये कि देवता ने स्वयं इसे मेरे पास लाया है। पता है कि कल रात, यह आदमी मेरे कमरे में चढ़ गया था और मुझे एक पल के लिए रोक दिया था, मैंने उसे सिपाहियों को दे दिया, क्योंकि मैंने उसे अपनी सुंदरता और दूसरें युवाओं समान इसको भी काम अग्नी से पीड़ा दी थी और मैंने उससे कहा तुम कौन हो? और उसने कहा मैं अवंती का राजा हूँ और मैंने शुरू किया और मैंने उसकी कहानी सुनी और जैसा कि मैंने सुना, उसने मेरी आंखों और कानों के माध्यम से मेरा दिल चुरा लिया और मैंने अपने सामने देखा, उस भयानक रक्षशी को, जिसके लिए मुझे आपकी राजनीतिक आवश्यकता का शिकार होना ज़रूरी नहीं थी, बल्कि यह मानव रूप में मेरे लिये प्यार का देवता था और पता है कि मैने दूसरे की दुल्हन बनने के बजाय, इसको अपने पति के रूप में मान कर दूसरें होने वाले मेरे पति को दूर कर दिया है और एक राज्य को अपने आप को मजबूर नहीं करता है, मैं अपनी खिड़की से खुद को फेंक देती हूँ और मैंने खुद को पहले से ही मर लिया। क्योंकि मुझे पता था कि वह नीति आपका पहला विचार था और मुझे बलिदान होना चाहिए और मैंने उस पर देखा जो मेरा पति है, जैसा कि मैंने उसकी कहानी सुनी है, जैसा कि देवता ने स्वयं भेजा है और एक व्यक्ति के रूप में नया जीवन है। कैसे मेरे खिड़की में मौका लाया जा सकता है, जिस राजा को मैं धोखा दे रही थी, अगर देवता की स्पष्ट सहयोग द्वारा नहीं? इसके अलावा, आपकी दिलचस्पी का सवाल था और यदि आप अपना कारण बोलने दें, तो मैंने तुम्हें कोई चोट नहीं पहुंचाई है, बल्कि एक सेवा है। तुमने मुझे उस उकसाने की दुल्हन क्यों दी, परन्तु वह राज्य जो उसके पास है उसका सहयोग करने के लिए? और यदि तू अपनी बेटी के पति के लिए झूठा राजा नहीं बल्कि सत्य है, तो आप कैसे घायल हो गए हैं? मेरे पति को सही करो और उसे मार डालने के बजाय, उसे अपने सिंहासन को वापस पाने में मदद करें और आप एक बुरे सहयोगी के लिए एक अच्छा प्राप्त करेंगे, जैसा कि मैंने अपने लिए एक अच्छा पति प्राप्त किया है और एक-एक राज्य हम सभी तीनों का होगा।
तब राजा ने आश्चर्यचकित होकर कहा यह एक बेवकूफ बनाने वाली कहानी है, जो आपके प्रेमी और खुद को धोखा देने के लिए तैयार है और फिर रत्नेश ने कहा। हे राजा, अब तक मैंने बात नहीं की है, क्योंकि मैं अपनी ज़िंदगी नहीं मांगूंगा और मैंने इसे एक याद के रूप में माना था। लेकिन पता है कि मेरी चिंताओं के बारे में क्या है, आपकी बेटी ने आपको सत्य के अलावा कुछ भी नहीं बताया है और अब तक इसे व्यवस्थित करने से, उसने मुझे इसके बारे में कुछ भी नहीं बताया और जो मेरे चाचा से सम्बंधित है और खुद और वह है मेरे लिए खबर और मैं इसे पहली बार सुनता हूँ। तो अब मुझे मार डालो, यदि आप चाहते हैं, मृत्यु के लिए, या यदि आप चाहते हैं, तो मुझे सिपाहियों के अधीन रखें और जांच करें और यदि यह सच नहीं है, तो मुझे एक की बजाय सौ मौतें दें। या मुझे उधार दें, यदि आप चाहते हैं, लेकिन एक छोटी-सी शक्ति और मैं अपने सिंहासन पर खुद को डाल दूंगा। मेरे विषयों के लिए मुझे प्यार है और केवल मेरे चाचा को आवश्यकता से जमा; और सुनिश्चित करें कि वह केवल आपके गठबंधन को लालसा देता है। क्योंकि वह जानता है कि वह कमजोर है और समर्थन के बिना खड़ा नहीं हो सकता है। तो अपनी इच्छा के अनुसार करो। केवल अपनी बेटी पर अपने क्रोध पर न जाएँ, क्योंकि मैं केवल दोष देना चाहता हूँ और फिर भी, मुझे लगता है कि यहाँ तक कि मैं बहाना नहीं हूँ। उसे देखो जैसे वह खड़ा है और अगर आप कर सकते हैं मुझे दोषी ठहराओ; क्योंकि एक देवता भी उसके जैसे सौंदर्य से लुप्त हो जाता है। फिर भी पता है कि यह संयोग बश एक दुर्घटना थी और ऐसा मेरा इरादा नहीं था जो हमारे संघ के बारे में लाया। क्योंकि मैं तेरे टावर में चढ़ गया था, यह नहीं जानता कि वहाँ क्या था और अब, मैं तुम्हारे हाथों में हूँ। और जैसे ही उसने बात की, पानी-लिली ने अपनी अंगूठी और साहस में अपनी आवाज में सुंदरता डाली और राजा ने प्रशंसा के साथ, उसकी इच्छा के विरुद्ध उसे देखा और उसने खुद से कहा वह अच्छी तरह से कहता है, क्योंकि मेरी बेटी अपनी भक्ति से ऋषि को बदल सकती है और वह स्वयं ही एक है, जिसे किसी महिला को प्रशंसा के लिए क्षमा किया जा सकता है, क्योंकि मैंने कभी भी एक बेहतर आदमी नहीं देखा है। निश्चित रूप से, अगर कहानी केवल सत्य थी, तो वह मेरी बहू को अच्छी तरह से लगाएगा। इसलिए जब रत्नेश ने अंत किया, तो राजा उसे अपने भौहों के नीचे से देख रहा था, विद्रोह के झुकाव में, अपने क्रोध के बीच और अपनी बेटी के प्रति स्नेह और कहानी के प्रभाव में संतुलित था और जब वह चुप्पी में खड़ा था, रत्नावली आयी और उसके पैरों पर घुटने लगा लिया और उसने कहा, हे पिता, उसे मत मारो, परन्तु उसकी रक्षा करो और इसमें तुम्हारा लाभ ही होगा। लेकिन मेरे लिए, मेरे साथ व्यवहार करें जैसा आप चाहते हैं। क्योंकि मैंने बहुत काम किया है और मैं केवल सजा और अपमान के लायक हूँ। मैं केवल एक कमजोर महिला हूँ और उसकी सुंदरता ने मुझे उससे दूर ले जायेगी। फिर भी पता है कि तुम्हारी वंशावली मेरे भीतर है और तुम्हारे पोते के पिता खड़ा हैं और क्या आप सोचते हैं कि ऐसा आदमी जो आपके और मेरे ऊपर अपमान लाने के लिए बेटा बन जाएगा? और उसने बारिश की तरह उसकी आंखों से आँसू गिरने के साथ अपने पिता को देखा और वे अपने क्रोध पर बताते हैं और पिघलते हैं और उसे पराजित करते हैं और उसने उसे अपनी बाहों में ले लिया और उसे चूमा, उसके बालों को उसके हाथ से दबाकर और उसने कहा: प्रिय बेटी, मैं तुम्हारा दुश्मन नहीं बन सकता, भले ही मैं चाहता हूँ और आपकी आंखों में आँसू मेरे आंसुओं को लाए हैं और यदि आपने बहुत कठोर काम किया है, तो मैं आपके उदाहरण का पालन नहीं करूंगा। अपने पति को मेरे साथ रहने दो और मैं सच्चाई की जांच करूंगा: और यदि आप कहें तो हम देखेंगे कि उसके लिए क्या किया जा सकता है। तब रत्नावली ने उसे गर्दन के चारों ओर रोते हुए पकड़ा और अपनी छाती पर रोया और उस राजा की मदद से, रत्नेस ने अपने सिंहासन को वापस प्राप्त कर लिया और रत्नावली को अपनी रानी के रूप में उसके पिता से प्राप्त कर लिया। यही पति के भाग्य के लिए उसकी पत्नी का शुभ और पवित्र गुण है।
और फिर, पानी की लिली ने उन दोनों को पृथ्वी छोड़-छोड़ दिया और वह स्वयं स्वर्ग के लिये उड़ गयी और वहाँ उन्होंने इंद्र के हॉल में इकट्ठे हुए सभी देवताओं को पाया और तुरंत उसने उन्हें नकल करना शुरू कर दिया और उसने कहा अब आप देख सकते हैं कि मेरे साथ किसी भी या यहाँ तक कि आप सभी के साथ संघर्ष करना कितना व्यर्थ है। इस राजपूत ने आपके पक्षपात के बावजूद समृद्धि प्राप्त की है, मेरे पक्ष में; और इंद्र के लिए, वह सुंदरता से पूरी तरह से खराब थी, जब वह एक प्राणघातक नस्वर महिला के रूप में मिला था और उन्हें फटकारने के बाद, वह चली गई, जैसे ही वह चली गई और उसके कंधे और वादाम जैसी आंखों के कोने से उसके कंधे की चमक पर उन पर वापस लौट आया, जिसने जहर की सुइयों जैसे देवताओं के दिल को छीन लिया।
और फिर उन्होंने एक-दूसरे को देखा और कहा हम सभी को इस दुष्ट जल-लिली द्वारा मूर्ख बना दिये गये है और अब यह पूरी तरह से असहिष्णु है और इंद्र ने कहा यद्यपि वह नस्वर प्राणघातक अवज्ञाकारी, जिसे मैंने अपनी पत्नी के लिए क्षमा किया था, वह दोषी था, फिर भी वह उसे अपने कर्तव्य पर वापस लाएगी। लेकिन इस मामले में असली अपराधी यह शरारती देवी है। क्योंकि उसने हमें सब कुछ जमा करने के एक कार्यक्रम में लिया और उसने एक ऐसे प्राणियों के पक्ष में दिखाया जो अपने व्यर्थता को झुकाती है, जो हमें चिढ़ाने और परेशान करने की एक मज़बूत इच्छा से बाहर है। इसलिए अब हमें दंड देना चाहिए और उसकी कार्यवाही पर रोक देना चाहिए, क्योंकि यदि उसे आगे बढ़ने की इजाजत दी जाती है, तो सब कुछ मानव और दिव्य भ्रम में फेंक दिये जाएगा और अब वह जवान है और सुधार करने में सक्षम है, लेकिन जब तक उसे क्रम में रखा नहीं जाता है, वह बदतर और बदतर हो जाएगी। इसलिए हमें समय के बिना इसे देखना चाहिए.
उसके बाद वे सभी मेरे शरीर में आए. लेकिन मैंने उनसे कहा यह मेरा सम्बंध नहीं है। अगर आपको पानी-लिली के खिलाफ कोई शिकायत है तो नारायण के पास जाओ. उनकी अपनी पत्नी को दंडित करने के लिए पति के अलावा किसी का कर्तव्य नहीं है और मैंने उन्हें दूर भेज दिया। इसके बाद देवताओं ने नारायण के लिए ब्रह्मांड के माध्यम से शिकार किया, लेकिन व्यर्थ में लंबे समय तक और फिर आखिर में उन्होंने उसे समुद्र के बहुत ही मध्य में अकेला पाया, कमल के पत्ते पर झूठ बोलते हुए, जैसे वह लहरों पर तैरता था, अपने बाएँ पैर की अंगुली चूसता था और ध्यान में दफनाया जाता था और जब वे आए और अपने आप से पहले चुप्पी में थे, तो आराध्य हरि ने विनम्रतापूर्वक अपने मुंह से अपने पैर की अंगुली ली और उन पर बहुत सपने देखने वाली आंखों के साथ उत्सुकता से देखा, जितना कहना है तुम मुझसे क्या चाहते हो?
तब देवताओं ने प्रवक्ता के लिए इंद्र के साथ पहले सम्मानपूर्वक झुकाया, उन्होंने कहा हे अच्युता, हम आपकी पत्नी के आचरण के बारे में शिकायत करने आए हैं, जिसने हमें एक प्राणघातक नस्वर मानव के साथ अपना हिस्सा लेकर सभी हास्यास्पद बना दिया है हम पर दुर्व्यवहार, बस क्योंकि वह उसे चापलूसी और प्रशंसा के साथ अकेला लोड किया और वह हमारे चेहरों में सौदेबाजी में हंसती है, हालांकि वह हममें से सबसे छोटी है और अब उसने खुद को कहीं और छुपाया है और पाया नहीं जा सकता है। इसलिए तेरी प्रार्थना है कि वह तुम्हें स्वामित्व और सजावट की उचित सीमा और उसके बुजुर्गों के प्रति सम्मान दे। हमारी गरिमा के लिए उसके व्यवहार की इच्छाशक्ति स्वतंत्रता से कम हो गया है।
और फिर, पानी के लिली के पति ने अपनी पत्नी का नाम धीरे-धीरे फुसफुसाया और कम था, हालांकि, उस दुनिया के चारों ओर अंतरिक्ष के लगभग हिस्सों में उस फुसफुसाहट की आवाज़ हिल गई और ब्रह्मांड अपने स्वर को एक लूट की तरह प्रतिबिंबित करता है जिसका तार हवा के स्पर्श पर थरथराता है और जैसे कि सर्वव्यापी गड़ग-ड़ाहटडूब में गया और एक झाड़ी में मर गया, समुद्र ने बुलबुला और फोम शुरू कर दिया और अचानक सौंदर्य की देवी दूसरी बार की तरंगों के पंख से निकल गई और वह अपने छोटे पैरों के साथ एक कछुआ के पीछे आराम कर रही थी और समुद्र के पानी उसके अंगों से निकलते थे जो इसके नमक की सुंदरता के साथ चमकते थे और उसकी गर्दन एक खोल जैसा दिखती थी और इसकी सतह के मोती पर हरे रंग के पन्ना की अंधेरे छाया को प्रतिबिंबित किया गया था; और वह एक तरफ एक लंबे रंग के एक गहरे नीले कमल को अपने लंबे कोने वाली, लाल-जाली, छायादार आंखों के रूप में रखती थी और उसके मुलायम दौर की बाहों की खूबसूरत रस्सी और उसके चिकनी और पतले पैरों की चरम सीमाएँ, जिनके घुटने थोड़ा अंदर घुमाए गए थे, लाल मूंगा के छल्ले से भरे हुए थे जो उसके होंठों के रंग में ईर्ष्या से भरे हुए थे, जो सचेत होने पर मुस्कुराते थे अपनी श्रेष्ठता का जबकि उसके बस्से, जिनके दो स्तन एक दूसरे से थोड़ा दूर हो गए थे, जैसे बहनों ने झगड़ा किया है, समुद्र के संगीत को समय रखने के लिए बहुत धीरे से ऊपर और नीचे गुलाब और वह अपने बाएँ हाथ से नीले बालों का एक तार रखती थी जो उसके सिर से जनता में गिर गई थी और उसे हवा से उड़ाए गए बादल की तरह घेर लिया और उसका अंत समुद्र की तरंगों से दूर हो गया। तो वह चुप्पी में खड़ी हो गई, थोड़ी देर झुक रही थी, जब तक कि उसके पतले कमर के मुलायम गुना में तीन गुना झुर्रियाँ दिखाई नहीं दे रही थीं, जबकि फोम ने उसे समर्थन देने वाले कछुए के पीछे छीन लिया और लापरवाही की, उसके छोटे मोती से पैर तक और उसकी आंखें दूर-दूर दिखाई दे रही थीं, जो उस आकाश-बाध्य सागर मैदान के क्षितिज पर तय थीं।
और देवताओं ने उसे चुप्पी में देखा और फिर एक दूसरे पर और प्रत्येक को पता था कि दूसरा विचार क्या है, हालांकि कोई भी बात नहीं करता था और प्रत्येक ने कहा स्वयं से, इस तरह के एक सुंदर प्राणी को किसी भी चीज के रूप में आरोप लगाना संभव है, उसे बहुत कम दंडित करें। इसलिए वे सभी उसके सामने इंतजार कर रहे थे, घबराए और दुखी और नशे में और चुप, जबकि वह उनके सामने इंतजार कर रही थी और विष्णु ने उन्हें और सपने देखने वाली आँखों से देखा और अचानक देवताओं ने पारस्परिक सहमति के रूप में बदल दिया और बोलने के बिना, वे सब समुद्र में एक साथ उड़ गए और पक्षियों के झुंड की तरह उसके किनारे पर गायब हो गए और फिर विष्णु ने अपनी पत्नी को अतुलनीय स्नेह की नज़र से देखा और थोड़ी देर बाद उसने मुस्कान के साथ उसे माना। तब पानी-लिली एक बार में आई और अपने स्वामी के चरणों में बैठ गई और धीरे-धीरे उन्हें कमल के साथ हाथ से हाथ से रगड़ना शुरू कर दिया जो उसने उनके बगल में रखा था और विष्णु ने उसे देखा, अपनी सपने देखने वाली आँखें खोलकर और बंद कर दिया, जबकि लहरों ने चुपचाप ऊपर और नीचे अपने कमल सोफे को हिलाकर रख दिया और सूरज अस्त हो गया और रात गिर गई, उन्हें समुद्र के ब्रह्मांड पर अंधेरे में अकेले छोड़ दिया। महान भगवान के बाल में,
और फिर, महेश्वर कहानी पुरी हो गयी और उन्होने अपना हाथ बढ़ाया और कथक को अपने बालों से बाहर निकाल लिया और उसे नीचे रख दिया और उसने कहा तूने सुना है अब जाओ और राजा को अपनी कहानी बताओ.
लेकिन जाने के बजाए, कथक बर्फ पर उसके चेहरे से गिर गया और उसने कहा: हे महेश्वर, हे शम्बू, हे तीन आंखों वाले त्रिशूल भालू, हे भगवान और वरदान देने वाले, तूने मेरे कानों के अमृत के साथ मेरे कान पवित्र किए हैं। फिर भी ओ। मुझे अभी तक एक और वरदान दें। तो महेश्वर ने कहा वह क्या है? और कथक ने कहा हे मुझे दिखाओ, लेकिन उस लहर से पैदा हुई सुंदरता की एक झलक, क्योंकि वह देवताओं के सामने समुद्र से निकल गई थी।
तब महान भगवान ने अपनी पत्नी से निजी तौर पर कहा अब देखें, कैसे ये मंद दिखने वाले बेवकूफ प्राणियों ने पूछा कि वे क्या नहीं जानते हैं और अपने विनाश पर अज्ञानता से भागते हैं और उसने कथक से कहा क्या आप वास्तव में उस अमर सौंदर्य को देखना चाहते हैं? कथक ने कहा हाँ। तब उमा को भगवान ने कहा जल्दी जाओ और पानी-लिली लाएँ और उसे केवल इतना बताओ कि मुझे एक पल के लिए उसके पक्ष की ज़रूरत है।
तब उसकी पत्नी बिजली की चमक की तरह उड़ गई और वे चुप्पी, महान भगवान और नस्वर मानव प्राणघातक में इंतजार कर रहे थे, जबकि देवता का मुखौटा बर्फ के अकेले चोटियों से बाहर निकला और थोड़ी देर के बाद, पर्वत की बेटी लौट आई, उसके साथ पानी की लिली लायी गई. तब उस खूबसूरत ने कहा मैं यहाँ हूँ और अब, महान भगवान को मेरे पास कबूल करना है?
और महेश्वर ने कहा, हे नारायण के प्रिय, यहाँ एक प्राणघातक का एक गरीब शैतान है, जिसके लिए मैंने वरदान दिया है। मुझे यह पक्ष करो एक ही पल के लिए खुद को दिखाओ और उसने कथक से कहा अब देखो और देखें।
और कथक ने अपना सिर उठाया और आकाश के अंधेरे विस्तार में देखा, जो पैलीड बर्फीली चांदनी चोटी पर फैला हुआ था और अचानक, दीवार पर चित्रित एक तस्वीर की तरह, देवी इसके खिलाफ प्रकट हुई थी और समय के एक परमाणु के एक ही अंश के लिए, उसकी आंखों में उस अंधेरे की सुंदरता की दृष्टि और बर्फ की दो पहाड़ियों पर अंधेरे नीली आंखों की एक जोड़ी अपने आप में गोली मार दी और अपने दिल को ब्लेड की तरह सूख गया वन लौ की एक चादर में शुष्क घास का और उसने रोया और दोनों हाथों से उसके दिल पर पकड़ा और बर्फ पर गिर गया।
फिर महेश्वर ने कहा एक प्राणघातक इस तरह की सुंदरता को सहन करने की अपेक्षा कैसे कर सकता है? लेकिन यह मृत शरीर यहाँ नहीं रहना चाहिए और वह उसे अपने शुद्ध हाथ से पैर से ले गया और उसे दूर कर दिया। तब वह खाली शव बर्फ-ठंडी हवा के माध्यम से एक सीटी के साथ पहुंची और हरिद्वार में गंगा में उल्का की तरह गिर गई. लेकिन उस दुर्भाग्यपूर्ण कथक की आत्मा तुरंत पृथ्वी पर लौट आई और फिर से पैदा हुआ और वह एक कवि बन गया, जो दुनिया भर में अपने पूरे जीवन में घूम रहा था, आंखों के लिए आग पर दिल से शिकार कर रहा था जिसे वह कभी नहीं मिला।
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