राजकुमार श्रवण
बहुत समय पहले कि बात है, जब इस भारत भूमि पर एक बहुत प्रतापि राजा नवलजीत हुआ करते थे। जिनकी प्रसिद्धि और प्रतिष्ठा की दूर-दूर तक प्रशंसा हुआ करती थी। उनकी एक रानी थी जिनका नाम शषीकला था। वह बहुत अधिक दुःखी रहती थी और अपनी मनोकामना की पुर्ती के लिये दूर-दूर तक सभी समाधि स्थलों और पिर पैगम्बरों के अतिरिक्त मन्दिर दरबार माथा टेकती थी। क्योंकि उनकी कोई अपनी संतान नहीं थी। जिसके कारण वह बहुत अधिक आंसु बहाया करती थी। बहुत लंबे समय के बाद कुछ सिद्ध पुरुषों ने उनसे वादा किया कि तुम्हारी मनोकामना पुत्र प्राप्ति की अवश्य पुरी होगी।
जब रानी शषीकला अपने महल में वापिस आई और जैसा कि उनको बताया गया था कि उनको पुत्र उतपन्न होने वाला है, उसी समय उनके महल के दरवाजे पर तीन भिक्षु का भिक्षा मांगने के लिये आना हुआ, तब वह रानी अपने होने वाले के बच्चे के बारें में और अधिक कुछ जानने के लिये। भिक्षुओं से कहा कि हमारें होने वाले बच्चे का दुर्भाग्य और सौभाग्य क्या है? उन भिक्षुओं में जो सबसे बड़ा भिक्षु था, उसने कहा ओ रानी यह निश्चिचत है कि तुम्हारें गर्भ से होने वाला बच्चा लड़का ही होगा और एक महान पुरुष के जीवन को जीयेगा, लेकिन उस लड़के के चहरे को बारह सालों तक तुम मत देखना और यदि इससे पहले तुमने या उस लड़के के पिता ने बारह वर्ष से पहले उसका चेहरा देख लिया, तो निश्चित ही तुम मृत्यु को उपलब्ध हो जाओगी। यह वही कार्य जिसको तुम्हें अवश्य करना ही होगा। यदि तुम चाहती हो की तुम्हारा लड़का तुम्हारे साथ हो। जैसे ही तुम्हारे लड़के का जन्म हो तुम उसे तत्काल महल के काल कोठरी में डाल देना और कभी भी उसको सूर्य के प्रकाश में बारह साल तक मत देखना। जब उसका बारह साल पुरा हो जायेगा, तो सबसे पहले वह नदी में जाकर स्नान करेगा और नये कपड़े को पहने कर तुम्हारे पास आयेगा। उसका नाम राजा श्रवण होगा, जिसकी प्रसिद्धि दूर-दूर तक इस पृथ्वी पर फैलेगी।
इस तरह से जब एक सुन्दर राजकुमार समय आने पर इस संसार में जन्म लिया, उसके माता पिता के द्वारा उसको महल के अन्दर विद्यामान काल कोठरी में डाल दिया गया। कुछ दाई और नौकरों कि देख रेख में और उन ज़रूरी सामानों के साथ जिसको राजकुमार को ज़रूरत पड़ सकती थी। उसके साथ राजकुमार के लिये एक नवजात घोड़े के बच्चे को भी भेज दिया गया जो उसी दिन जन्म लिया था जिस दिन राजकुमार का जन्म हुआ था और तलवार के साथ, भाला, वरछा और खण्ड्ग इसलिये कि जब राजा श्रवण संसार में विचरण करने के लिये जाने को चाहे, उसका अपने शत्रुयों पर उपयोग के लिये। इस तरह से वह लड़का उस महल के अन्दर काल कोठरी में रहने लगा और उस घोड़े के बच्चे के साथ खेलता था और अपने साथ विद्यमान एक तोते से बाते किया करता था, जबकि दाईया उसको उन सभी ज़रूरी वस्तुओं के बारें में बताती थी। जिसको एक राजाकुमार को जानना आवश्यक होता है।
छोटे राजा श्रवण ने अपने जीवन को सूर्य के प्राकाश से दूर पिछले लम्बें ग्यारह सालों तक व्यतित किया, जब वह बढ़कर लम्बा और ताकतवर हो गया, उस घोड़े और तोते के साथ खेल-खेल कर तृप्त हो चुका था। लेकिन जब उसका बारहवां साल प्रारंभ हुआ, तब लड़के के हृदय ने कुछ पिरवर्तन कि इच्छा की, वह अपने काल कोठरी से बाहर संसार की ध्वनियों को अक्सर सुना करता था।
उसने कहा कि मैं बाहर जा कर यह निश्चय करना चाहता हूँ कि यह बाहर आवाज कहा से किसकी आरही है? लेकिन उसकी सेविकाओं ने उससे कहा, तुमको अभी एक साल और यहाँ रहना है इसके बाद ही आप यहाँ से बाहर संसार में जा सकते है। वह केवल बहुत जोर हंसते हुए, इतना कहा कि मैं अब यहाँ पर और अधिक समय तक नहीं रह सकता हूँ, किसी दूसरे आदमी के लिये।
फिर उसने अपने अरबी घोड़े भानु को तैयार किया और अपने चमकते हुए अस्त्रों को अपने साथ ले कर घोड़े पर सवार हो कर बाहरी संसार को जानने के लिये निकल पड़ा। लेकिन उसको ध्यान था कि उसकी सेविकाओं उससे जो कहा था उसको विचार करके, जब वह नदी के पास आया, वह वहाँ घोड़े से निचे उतर कर, नदी के अन्दर जा कर स्नान किया और अपने कपड़ों को भी धोया।
फिर अपने साफ सुथरे कपड़े को पहन कर और स्वयं तरो ताजा हो कर, बहादुर कि तरह हृदय से प्रफुल्लित हो कर घोड़े पर सवार हुआ और तब तक चलता रहा जब तक कि वह अपने पिता के नगर में नहीं पहुंच गया। वहाँ एक स्थान पर कुएँ और एक बड़े छाया दार वृक्ष के निचे आराम करने के लिये बैठ गया, उस कुए से उस समय एक औरत अपने मिट्टी के मटके में पानी को खिच रही थी। जब वह उसके पास से जाने लगी तो उस मटके पर छोटे राजकुमार ने एक पत्थर का टुकड़ा मार कर उसको पुरी तरह से तोड़ दिया। उसके सर पर रखे हुये भरे पानी के मटके का संतुलन विगड़ जाने से वह निचे गिर गया और सारा पानी उस औरत को भिगोते और सराबोर करते हुए जमिन विखर गया। जिससे वह रोती हुई राजा के महल में इसके खिलाफ शिकायत करने लिये चली गई और वहाँ जा कर उसने कहाँ कि एक शक्तीशाली राजकुमार अपने अस्त्रों के साथ जिसके साथ उसकी कलाई पर एक सुग्गा बैठा हुआ है। जो गांव के पास कुए पर बैठा हुआ है और उसने उसके मटके को तोड़ दिया है।
जब राजा नवलजीत ने इसके बारें में सुना, तो उसने तुरंत अंदाज लगा लिया कि राजकुमारा श्रवण समय से पहले ही अपनी काल कोठरी से बाहर आ चुका है और उसने उस भीक्षु के शब्दों को याद किया कि यदि वह उसे बारह साल से पहले देख लेगा तो उसकी मृत्यु हो जायेगी। उसको इतनी हिम्मत नहीं हुई कि वह अपने पुत्र को पकड़ने के लिये अपने सिपाहियों को भेज सके, इस औरत के न्याय के लिये। इसके बजाय उसने उस औरत के आराम को ध्यान में रख कर उससे कहा कि वह अपने मिट्टी के बदलें में हमारें तरप से लोहे या पितल का घड़ा ले-ले और उसके अपराध को भुल जाये और उस औरत ने राजा कि बात को मान लिया।
लेकिन जब राजकुमार श्रवण नें देखा कि वह औरत वापिस आगई अपने साथ लोगे और पितल का घड़ा को ले कर, वह स्वयं पर हसा और अपने एक नुकेले शक्तीशाली बाड़ को निकाला और उससे उस लोहे के घड़े को निसाना लगाया जैसे कि वह मिट्टी का घड़ा हो, जिससे वह घड़ा भी टुट गया।
फिर भी राजा ने अपने आदमियों को राजकुमार श्रवण के पास नहीं भेजा, फिर राजकुमार श्रवण नें अपनी युवा वस्था की शक्ति पर अभिमान करके घोड़े पर सवार हो कर महल में गया। वह सिधा वहाँ से राजा नवलजीत के दरबार में गया। जहाँ पर उसके पिता कापंते हुए बैठे हुए थे, जिसके सम्मान में उस राजकुमार ने अपने पूर्ण आदर और श्रद्धा के साथ राजा को नमस्कार किया, लेकिन राजा नवलजीत को अपनी जान का भय होने के नाते अपने चेहरे को उसकी तरफ से घुमा लिया बिना एक भी शब्दो को उत्तर में बोले।
राजकुमार श्रवण का राजा नवलजीत के दरबार में बहुत अधिक तीरस्कार किया गया।
उसने कहाँ कि मैं यहाँ राजा का अभिवादन करने के लिये आया था मेरा किसी प्रकार से राजा को नुकसान पहूंचाने का इरादा नहीं था।
मैने ऐसा क्या कर दिया कि राजा ने मेरी तरफ से अपना चेहरा घुमा लिया?
राजा और सामराज्य के पास कोई शक्ति नहीं है कि वह मेरे साथ सौम्यता पूर्ण व्यवहार कर सके.
मैं जिस योग्य हुं उसके अनुरुप जहाँ मुझे सम्मान मिलेगा उसकी तलास में अवश्य जाउंगा।
फिर वह अपने घोड़े पर सवार हो कर वहाँ से दूर चला गया, पुरी तरह से कड़ुआहट और क्रोध से तमतमाते हुए, लेकिन जैसे ही वह महल की खिड़कियों के पास से होकर जा रहा था, उसने अपने माँ के रोने कि आवाज को सुना और उस आवाज ने उसके हृदय को हल्का कर दिया, जिसके कारण उसका क्रोध तत्काल ही समाप्त हो गया और उसने एक बहुत बड़ी शान्ती अपने अन्दर महसूस किया, क्योंक उसने अपने माता पिता कि आज्ञायों का उलंघन किया था। इसलिये वह बहुत अधिक दुःखी हो कर रोने लगा।
ओ हृदय राजा का मुकुट भी दुःखी हो गया,
यद्यपि यह सभी कुछ तुम्हारे लिये नहीं था।
लेकिन वह आसु पुत्र के लिए ही थे।
मेरी माँ की कला ने मुझे एक विचार दिया।
यद्यपी मेरा जीवन अभी शुरु हूआ है।
और रानी शषीकला ने उत्तर अपनी आंसुओं के द्वारा दिया
हाँ माँ क्या मैं यही हूँ, यद्यपी मैं रो रहा हूँ
निश्चित ही इस तरह से इन शब्दों को पकड़ कर
चलो इस क्षेत्र के सभी आदमियों के राज, लेकिन ध्यान से
तुम्हारा हृदय शुद्ध और निर्मल है।
इस तरह से राजा श्रवण ने अपने हृदय को बहुत प्रकार से शांत्वना दिया और अपने शौभाग्य को प्रारंभ करने के लिय तैयार हो गाय। उसने अपने घोड़े भानु अपने तोते को अपने साथ लिया, वह दोनो उसके साथ वह दोनो उसके जन्म से उसके साथ रहते थे जो उसके परम प्रिय साथी थे। इस तरह से वह अपने इन साथियों के साथ बहुत अच्छी तरह से घुलमिल गया और रानी शषीकला ने जब उसको देखा वहाँ से जाते हुए, अपने महल कि खिड़की से तब तक उसे देखती रही जब तक कि वह लड़का उनकी आंखों से ओझल नहीं हो गया। उस लड़के ने अपने पिछे आकाश में केवल धुल के उड़ते हुए गुबार को छोड़ दिया था। जो उसके घोड़े के सरपड दौणने के कारण जमिन से उठ कर आकाश में छा चुके थे, फिर उसने अपने सर को अपने हाथों में झुकाकर रोते हुए कहने लगी।
ओ मेरे पुत्र यह मेरी आंखे तुमको बिना कभी देखे आज तक मुस्कुराई नहीं है,
देखो वे अपने बादल के रूप में ऊपर उठ रहे है,
जो सूर्य का प्रकाश मन्द कर रहे है, जिससे दिन में ही अँधेरा छा रहा है,
जिस माँ का पुत्र उससे दूर जा रहा है,
जैसे कि धुल पृथ्वी से,
राजकुमार श्रवण ने अपने मित्र राजा सुरेश के साथ पासें का खेल खेलना शुरु करना चाहते थे और इसके लिये जैसे ही उसने अपनी यात्रा को शुरु किया उसे कुछ समय के बाद ही आकाश में बड़े घनघोर बादल छा गये, गड़गड़ाहट, कड़कड़ाहट, चिन्गारी युक्त विजली के साथ बहुत भयानक तुफान आ गया। इस लिये-लिये वह अपने रहने के लिये निवास स्थान तलासने लगा, उसने जब चारों तरफ देखा तो शिवाय एक कब्रीस्तान के कुछ नहीं दिखा जहाँ पर एक मुर्दा बिना सर के जमिन पर पड़ा हुआ था और चारोतरफ बहुत एकांत और विचिचत्र आवाजों से सारा वातावरण भर रहा था, इस तरह से राजकुमार श्रवण को ऐसा लगा कि उसको अपना समय कुछ समय तक इस बिना सर के मुर्दे के साथ हि बिताना पड़ेगा और वह उसके पास ही निचे जमिन पर बैठ गया और उसने इस तरह से कहा-
यहाँ पर कोई भी नहीं है नां ही पास में नाही दूर में,
इस बिना शांसों के मुर्दे को वचा लो जो बहुत ठंडा और अप्रसन्न है,
क्या परमेश्वर अपनी शक्ति से इसको फिर से जिवित कर देगें?
उस एकान्त में कोई और भी था जो उसकी बातों को सुन रहा था।
और तत्काल वह बिना सर का मुर्दा उठ कर राजा श्रवण के पास ही बैठ गया और वह इससे ज़रा भी आश्चरयचकित नहीं हुआ, इस प्रकार से कहा,
तुफान अपने शक्तीशाली चरमोत्कर्श में गड़गड़ा रहा है,
बादल घनां रूप धारण किये हुए पश्चिम के आकाश में छाये है,
कितने परेशान और तंग लोग इन कब्रों में पड़े है,
ओ मुर्दे क्या तुमकों यहाँ पर ज़रा भी चैन नहीं है,
फिर उस बिना सर के मुर्दे ने उत्तर देते हुए कहा,
इस पृथ्वी पर मैं हमेशा से ऐसा ही हूँ,
मेरी तीरछी पगड़ी एक राजा की तरह है,
मेरा सर सबसे उचांइ पर है जिसको मैने फेक दिया है,
मैंन अपने आनन्द और इच्छा से त्याग दिया है,
मेरे शत्रुए के साथ जो बहादुरी के साथ संग्राम कर रहा है,
जीवित मेरे जीवन के साथ झुलते हुए,
और अब मैं मर गया हूँ,
भयंकर मेरे पाप कर्म ही मेरा नेतृत्व कर रहे है,
इच्छा मुझे मेरे कब्रीस्तान में आराम से नहीं रहने देती है,
इस तरह से पुरी रात बित गई, अंधेरे, निरस और सुनसान रात्री में, जब श्रवण कब्रीस्तान में बैठ कर बिना सर वाले मुर्दे से बात चित कर रहा था और अब जब सुबह सूर्य कि किरणों का आगमन फिर से भुंडल पर आने लगी, श्रवण ने कहा कि उसको अपनी यात्रा पर निश्चय ही आगें जाना चाहिये, फिर बिना सर के मुर्दे ने उससे पुछा कि वह किस यात्रा पर जाने कि तैयारी कर रहा है? और जब उसने कहा कि वह राजा सुरेस के साथ पासें का खेल खेलने के लिये जारहा है, उस मुर्दे ने उस राजकुमारा से विनती की वह उसके साथ खेल खेलने की इच्छा को त्याग कर दे, क्योंकि मैं स्वयं राजा सुरेश का भाई हूँ और मैं उसको अच्छा तरह से जानता हुं वह अच्छी नियत वाला आदमी नहीं है। वह हर दिन अपने नास्ते के बाद दो तीन आदमी का सर काटता है केवल अपने मनोरंजन के लिये। एक उसके पास कोई और नहीं था जिसका सर वह काट सके इसलिये उसने मेरा ही सर काट दिया और निश्चय ही तुम्हारा सर भी काट देगा किसी बहाने से तुमको बहका कर अपने द्वारा या दूसरों किसी अपने सहयोगी के साथ मिल कर। जो भी हो यदि तुमने निश्चय कर हि लिया है कि तुम उसके सात जाकर घुड़ सवारी का खेल खेलोगे, तो इस कब्रीस्तान गाह से कुछ हड्डयों को भी अपने सात ले कर जाओ.
इस तरह से राजकुमार श्रवण ने वहाँ कब्रिस्तान से कुछ हड्यों को उठा लिया और उनको पासें के रूप में बना कर अपनी जेब में डाल लिया। फिर उस बिना सर वाले से विदा ले कर वहाँ से चल पड़ा अपने आगे के सफर में राजा सुरेश के साथ पांसे का खेल खेलने के लिये।
अब जबकि राजकुमार श्रवण की बहुत अधिक हार्दिक इच्छा थी राजा सुरेश के साथ पांसा का खेल अर्थात जुये के लिये वह अत्यधिक लालाईत था। इस लिये वह चलते हुए एक ऐसे जंगल में पहुंटा जो आग से जल रहा था और उस जंगल में जलती हुई आग से एक सुक्ष्म आवाज रही थी। वह यात्री परमात्मा के लिये मेरे जीवन को इस आग में जलने से बचा लो।
जब राजकुमार ने जिधर से आवाज आरही थी उस तरफ जलते हुए जंगल में ध्यान से देखा तो उसने जान की वह आवाज एक चोटे से झिंगुर के द्वारा कि जा रही थी। तथापि सहृदय राजकुमार ने तुरंत उसकी जलती हुई आग से खिच कर बाहर निकाल कर, अपने हाथों से एक सुरुक्षित स्थान पर उसको रख दिया। फिर उसे छोटे से प्राणी ने पूर्ण रूप से राजकुमार को इसके लिये अपनी कृत्यज्ञता को प्रकट किया और अपने एक संस्पर्शक को अपने शरीर को निकाल कर सुरक्षित रूप से राजकुमार को देते हुए कहा, इसको आप अपने पास रखे और आप जब भी कभी मुसिबत में हो तो इसको आग में जलाना, उशी समय आपके पास आकर मैं आपकी सहायता करके आपको मुसिबत से बाहर निकाल दूंगा।
फिर राजकुमार मुस्कुराते हुए कहा तुम मेरी किसा प्रकार से सहायता कर सकते हो? इसके बाद भी राजकुमार ने उसके द्वारा दिये गये उसके संस्पर्शक को अपने पास रख लिया और अपनी यात्रा पर आगे चल पड़ा।
थोड़े समय के बाद वह अब राजा सुरेश के नगर में पहुंच गया था। जहाँ पर उसकी पहले मुलाकात उस राजा की सत्तर कुवारी पुत्रियों से हुआ, जो उससे मिलने के लिये आई जो बहुत प्रसन्न और वेपरवाह किस्म कि सभी हसते हुए चेहरे के मल्लिका थी। लेकिन उन राजा कि सत्तर लड़कियों में जो सबसे बड़ी लड़की थी जब उसने राजकुमार श्रवण को अपने अरबी घोड़े भानु पर सवारी करते हुए देखा तो वह उस पर अत्यधिक मोहित हो गई और अपने दुर्भाग्य को कोसती हुई राजकुमार को बुला कर के उससे कहा कि अब इस घोड़े से उतर कर कुछ समय के लिये आराम कर लीजिये।
उचित प्रिंस, चार्जर पर इतना ग्रे,
वापस आ जाओ। वापस आ जाओ।
या मैदान के लिए अपना लेंस कम करें;
आपका सिर दिन के लिए जब्त हो जाएगा।
प्यारा-प्यारा जीवन? तो, अजनबी, मैं प्रार्थना करती हूँ,
वापस आ जाओ। वापस आ जाओ। "
लेकिन वह, पहली बार मुस्कुराते हुए, हल्के ढंग से जवाब दिया:
अच्छी युवती, मैं दूर से आया हूँ,
प्रेम और युद्ध में विजेता शपथ ले।
राजा सुरेस मेरा युद्ध होगा,
उसके चार टुकड़ों में उसका सिर चलेगा;
फिर एक वर के रूप में, मैं सवारी करूँगा,
तुम्हारे साथ, छोटी दासी, मेरी दुल्हन के रूप में।
जब राजकुमार ने बहुत ही बहादुरी के साथ उत्तर देते हुए यह कहा, फिर उस कुवांरी कन्या ने राजुकमार के चेहरें को निहरते हुए महसूस किया कि यह किताना अधिक सुन्दर है और कितना बहादूर और मजबुत है, इस तरह से वह सिधा उसके प्रेम में दिवानी होगई और प्रसन्नता के साथ वह इस संसार में अनुसरण करने के लिये कटिबद्ध होगई.
लेकिन जो दूसरी उनहत्तर बहने थी वह सब उससे इर्श्या और डाह करने लगी और भयावह तरह से मुस्कुराते हुए कहा इतना अधिक जल्दी ठाक नहीं है। वह बहादुर योद्धा। अगर तुम मेरी बहन से सच में विवाह करना चाहते हो तो तुमको हमारी सर्तों को पहले परा करना होगा। तुम हमारे छोटे भाई कि तरह से हो।
राजकुमार श्रवण ने कहा प्यारी कन्याओं बताओ कौन-सा कठीन कार्य मुझे करना है?
इसके बाद वह सब उन्हत्तर कुवारी कन्यायों ने सौकिलो बाजरें के बीज को सौ किलो रेत मिला कर राजकुमार श्रवण को दे दिया और उससे कहा कि तुम इन बीजों को रत के कड़ो से अलग करके दिखाओ.
फिर राजकुमार ने अपने पिछले मित्र झिंगुर के बारें में विचार किया और उसके संस्पर्शक को जेब से निकल के जालाय जिससे वह झिंगुर अपनी सेना के साथ राजकुमार श्रवन के सामन उपस्थित हुआ और राजकुमार में उससे कहा कि तुम सब आज रात भर में इस रेत में सभी बाजरें के दानों को बाहर निकाल दो।
झिंगुर ने कहा ठिक है अभी करते है अब मैं जान गया कि कितना छोटा कार्य करने के लिये तुमने मुझे दिया, इसके लिये मैं अपने सभी भाईयों को इसमे सम्लित नहीं करुंगा।
इस तरह से कुछ झिंगुरों ने मिल कर कार्य को शुरु कर दिया अर्थात वह सब रेत से बाजरे के दाने को अलग करने लगे और रात भर में उस कार्य को पूरा कर दिया।
अब जब राजा सुरेश कि ६९ लड़कियों ने देखा कि राजकुमार श्रवन ने उसके दिये हुये कार्य को बहुत ही आसानी से करने में सफल हो चुका है, इसलिये उन्होंने राजकुमार के लिये एक दूसरा कठिन कार्य करने के लिये कहा और कहाँ कि उन सब को उनके झुलने पर बारी-बारी से झुलाये जब तक वह झुल कर थक नहीं जाती है।
तब फिर उसने हसते हुए कहा, तुम सब सत्रह के सत्रह बहने यह चाहती हो की मैं तुम सब को अपना पुरा जीवन इसी तरह से झुलाता ही बिताउंगा, क्यों मैं तुम सब को बारी-बारी झुलांउगा एक बार ही क्यों नहीं सब को झुला देता हूँ, फिर उन सबमें जो सबसे बड़ी थी उसने कहा यदि तुम हम सब को एक साथ ही झुलाना चाहते हो तो यह भी ठिक है।
इस तरह से वह सब बहने अपने-अपने झुलने पर बैठ गई और राजकुमार श्रवण ने उन सब को एक रस्सी से बाध कर अपने एक शक्तीशाली बाड़ में बांध कर अपनी पुरी शक्ति को लगा कर उसने बाड़ को आकाश की तरफ छोड़ दिया, बाड़ अपने बेग कि शक्ति के साथ उन सब के झुलने को काफ़ी दूर तक आकाश में लेगया, जिस पर बैठ कर वह सब बहने बहुत अधिक खुसी के सात ठहाके मार-मार कर हंस रही थी। लेकिन जब झुलना निचे कि तरफ आया तो राजकुमार ने उन झलने की रस्सी को अपने तेजधार तलवार से काट दिया जिसके कारण वह सब बहने झुलने से निचे गिर गई और लगभग सभी जख्मी होगई, शिवाय उस लड़की के जो राजकुमार से प्रेम करती थी।
इसके बाद पन्द्रह कदम आगे चला और जब वह उन सत्तर नगाड़ों के पास पहुंचा, क्योकि जो भी राजा सुरेश के साथ पासें का खेल खेलने के लिये आता था, उसके राज्य में उसको इन नगाड़ों को बजाना पड़ता था और उनको अपनी पुरी शक्ति से बजाना पड़ता था जिससे वह सब के सब टुट-फुट जाये। इसने ऐसा ही किया, फिर उस राजा की सत्तर राजकुमारियाँ एक पंक्ती में आकर वह सब इन नागाड़ों को हथौड़ों से पिट-पिट कर कई-कई टुकड़ों में कर देती थी।
सबसे बड़ी राजकुमारी ने इसको देखते ही, वहाँ से सिधा भयभित हो कर भागते हुए अपने पिता राजा सुरेष के पास गई, क्योंकि केवल वहीं उस समय ठीक थी जो अपने पैरों पर दौड़ सकती थी और कहा एक बहुत शक्ति शाली राजकुमार यहाँ बांज के समान घोड़े पर सवार हो कर आया है।
उसने हम सब कुवारी कन्यायों को बहुत अच्छी तरह से झुलाया और वहाँ से बहुत तेजी से सबको निचे फेक दिया।
और उसने वहाँ पर रखें हुए सभी नगाड़ों को तोड़ दिया, जिसको आपने वहाँ पर रखा हुया था।
पिता जी निश्चित ही वह आपको मार देगा और मुझको अपनी दुल्हन बना कर लेजायेगा।
लेकिन राजा सुरेष ने उसका तारस्कार पूर्वक उपेक्षा से उत्तर दियाः
पागल कन्या वश बहुत कुछ तुमने उसके बारें में कह दिया।
यह मेरे लिये बहुत छोटी-सी बात है,
मेरे पारक्रम औऱ शक्ति को देख कर वह भयभित हो जायेगा।
उसके सभी अस्त्र व्यर्थ सिद्ध हो जायेगें मेरे सामने,
जैसे ही मैं अपना नास्ता करने के लिये बैठुगा,
और आगे बढ़ कर उसके गले को उससे अलग कर दुंगा।
इस प्रकार के बहादूरी और शब्दों से अपनी शेखी बघारने के बावजुद, वास्तविक्ता में अन्दर से वह अत्यधिक उस राजकुमार से भयभित हो गया, जब उसने राजा श्रवण के पुषार्थ के बारें में सुना और उसने विचार किया कि राजकुमार को नगर में स्थित उस वृद्धा औरत के घर में ठहराना चाहिये, जैसा कि वह अपने साथ पांसा खेलने वालों को ठहराता है जो उसके साथ यहाँ पर खेलने के लिये आते है और उनको अपने पास बुलाने के लिये सेवक के साथ स्वादिष्ट मिठाईयों में जहर डालकर भेज देगा जिसको खा कर राजकुमार अपनी मृत्यु को उपल्ध होगा। लेकिन जब राजा सुरेष का सेवक श्रवण के पास जहर मिश्रित स्वादिष्ट मिठाईयाँ को लेकर गया, तो उससे राजा श्रवण ने कहा कि मैं राजा के स्वभाव से अच्छी तरह से परिचित हुं इसलिये मैं उसके साथ मित्रता करने के लिये नहीं आया हूँ, जिससे उसकी मिठाईयों को खाउंगा, मैंने प्रतिज्ञा कर लिया उसको मारने का इस तरह से, वह मुझे मारने का प्रयास कर सकता है।
यह कहते हुए उन मिठाईयों को वहाँ उपस्थित राजा सुरेष के कुत्ते के पास फेंक दिया, जो उसके दास का पिछा करते हुये वहाँ तक आया था, जिसको खाते ही उस कुत्ते की तत्काल मृत्यु हो गई.
जिसके कारण राजा श्रवण अत्यधिक क्रोधित हो कर उस राजा सुरेष के दास पर कहा यहाँ से तुरंत वापस चले जाओ और अपने राजा से कहना की राजा श्रवण को यह कदापी पसंद नहीं है कि वह अपने शत्रु को भी धोखे से मारे।
राजा श्रवण शाम के समय राजा सुरेष के पास पांसें का खेल खेलने के लिये जा रहा थे, तभी उसने रास्तें में एक बिल्ली को एक कुहारे के आवें के पास वैचैनी से चक्कर लगाते हुए देखा, तब राजा श्रवण ने उस बिल्ली से पुंछ तुम्हारी वैचैनी का कारण क्या है? बिल्ली ने उत्तर देते हुए कहा कि इस आवें में मेरे दो छोटे-छोटे बच्चों को कुहार ने रख कर ढक दिया जिसमें आग लगते ही मेरे बच्चें जीन्दा जल कर मर जायेगें।
इसको सुनते ही राजा श्रवण के हृदय में उन बिल्ली के बच्चों के प्रती स्नेह और करुणा के सात दया का भाव हिलोरें मारने लगा, जिसके कारण राजा श्रवण उश कुहार के पास गया और उससे कहा कि वह अपने सारे मटकें जो अभी आवों में पकाने के लिये लगा कर रखा है उसको ऐसे ही उसको बेच दे, कुम्हार ने कहा अभी सारें मटके कच्चे है उसकी किमत अच्छा नहीं मिलेगी लेकिन जब यह आग में तप कर पक जायेंगे तो इनकी किमत उसको अच्छी मिलेगी इसलिये वह उसको अभी नहीं बेच सकता है। राजा श्रवण ने कहा तुम अपनी किमत ले लों जोभी हो यह सारा आवां मुझे इस तरह जिद पूर्वक कहने पर कुम्हार ने वह सब आवें का मटका राजा श्रवण को वेचे दिया। जिसमें से पह एक मटके को तलास-तलास कर उन विल्ली के बच्चों को प्राप्त करके उस बिल्ली को उपस लौटा दिया। जिसके कारण वह विल्ली बहुत अधिक राजा के ऊपर प्रसन्न हुई उनकी दयालुता को देख कर उसने अपने एक बच्चे को राजा श्रवण को दे कर कहाँ इसको अपने पास रखों जब भी तुम किसी मुसिबत में होगे यह तुम्हारी मद्दत करेगी। इस तरह से उस बिल्ली के बच्चे को अपनी जेब में डाल कर राजा श्रवण सुरेष के पास पासें का खेल चौपट को खेलने के लिये गया।
पांसें का खेलने से पहले ही राजा सुरेष ने अपने वाजियों को तय कर दिया की, जब वह अपनी पहली वाजीं को हारेगा तो उसके बदले में वह अपने राज्य का त्याग कर देगा। जब वह दूसरी बाजी को हारेगा तो वह अपने संपूर्ण विस्व में व्याप्त अपनी सभी प्राकार की संपदा का त्याग कर देगा और जब अपनी तीसरी बाजी को भी हार जायेगा तो वह अपने सर को कलम करा देगा और राजा श्रवण ने अपनी पहली बाजी में अपने हथियारों को हारने की बात की, सरी बाजी में अपने अरबी घोड़े भानु को हारने कि बाजी रखी और तीसरी बाजी हारने पर वह अपने सरको कलम करने की बात को स्विकार किया और इस तरह से राजा सुरेष के साथ राजा श्रवण का पासें का चौपट खेल प्रारंम्भ हुआ। राजा श्रवण समझता था कि यह पहली बाजी को जातेगा और यही सोच कर वह उस मरे हुये बिना सर के आदमी की चेतावनी को भुल गया था। जिसके कारण वह राजा सुरेष के पासों के साथ ही खलना शुरु कर दिया, राजा सुरेष नें अपने पालतु पासों से पहली ही बाजी में राजा श्रवण को बुरी तरह से पराजित कर दिया। जिसके कारण उनको अपने सभी चमकते हुए हथियार राजा सुरेष के हवाले करने पड़े।
फिर दूसरी बाजी का प्रारंम्भ हुइ, एक बार फिर राजा सुरेष के पालतु पासों ने राजा श्रवण को परेशान करते हुए दूसरी बाजी को उनके हाथ से झपट लिया, जिसके कारण राजा श्रवण को अपने प्रिय अरबी घोड़े भानु को राजा सुरेष के सेवके के हवाले करना पड़ा। ऐसा करते ही राजा श्रवण का अऱबी घोड़ा भानु रोते हुए अपने मालिक राजा श्रवण से रोते हुए कहने लगा, जो वही पास में ही खड़ा था।
वह मेरे प्रिय राजकुमार मैं तुम्हारे लिये बहुत अधिक सोना समुद्र से निकाल कर भी लाउंगा, तुम मुझ पर पहले कि तरह से भरोशा करो, मैं तुमको अपने ऊपर उठा कर सारें जंगलों से पार ले जाउंगा।
मेरी उड़ान उसी प्रकार से होगी जैसे कि आप मुलायम किसी पक्षी के ऊपर बैठ कर यात्रा कर रहे है। हजारों-हजारों मिलो तक बिना थके हुए.
और यदि आपको बहुत ज़रूरी हो तो अगली बाजी को अवश्य खेलिये उससे पहले आप एक बार अपने हाथों को अपनी जेब में अवश्य डालिये, इसके लिये मैं आपसे विनम्र प्रार्थना करता हूँ।
इसको सुनते ही राजा सुरेष ने अपने दास को डपटते हुए कहा कि इस अऱबी घोड़े को तुरंत इसके मालिक से दूर ले कर जाओं यह अपने मालिक को किस प्रकार का सुझव दे रहा है। तुरंत दास आकरअपने मालिक के प्रति वफादार भानु को ले कर दूर चला गया। राजा श्रवण अपने आसुओं को उसकी जुदाई में नहीं रोक सका और वह सोचन लगा कि कितने सालों तक वह अरबी घोड़ा भानु उसके साथ रहा और वह रोते हुए उससे दूर चला गया।
घोड़े ने रोते हुए कहा मेरे प्रिय राजकुमार रोओं मत, मैं अब भुखा ही रहुंगा, किसी अजनबी के हाथों से दिये गये अपने भोजन का त्याग का दूंगा। अपने दाहिने हाथ को अपनी जेब में डाल कर बाहर निकालों और फिर बाजी को आगे खेलों, ऐसा सुनते ही राजा श्रवण का दिमांग चलना शुर करदिया उसने तुरंत अपने जेब में हाथ डाला और उसने पाय उसकी जेब में बिल्ली का बच्चा संघर्ष रत है फिर उसको याद आया उस बिना सर के द्वारा दिये गये हड्डियों के बने पासों के बारें में, जिससे राजा श्रवण का हृदय एक बार फिर से तेजी से धड़कने लगा और उसने राजा सुरेश से कहा मेरे हथियार और मेरे घोड़े को अबी मुझसे दूर मत ले जाओं जब तक कि तुम मेरे सर को नहीं जीत लेते, अभी तक मैंने तुम्हारे पांसे से खेला है अब तुम हमारे पासें के साथ खेलोगे।
ऐसा सुनते ही राजा सुरेष एक आश्चर्य चकित हुआ और उसने अपने महल में रहने वाली सभी सुन्दर औरतों को हुक्म दा कि वह सब अपनी काम कला का प्रदर्शन करें यहा राजा श्रवण के सामने जिससे इसकी एकाग्रता खेल में से कम हो है। लेकिन उसकी तरफ भिना किसी प्रकार का ध्यान दिये बीना राजा श्रवण ने अपने पासों को राजा सुरेष के सामने फेकते हुए कहा अनगली बाजी को आगें बढ़ाओं मेरे इन पांसों से।
जब राजा अपने पालतु पासें जो चुहें रूप में थे उनकों अपनी करामात दिखाने के लिये आगें बढ़ने को कहा तो राजा सुरेष के चुहें रूप पास जब अपने सामने बिल्ली को सात पांसों को देखा तो उनकी डर से धिग्गी बंध गई, वह अपना सब कुछ त्याग कर पांसें से दूर हो गये। इस तरह से राजा सुरेष के पासें अपना कमाल नहीं दिखा सके और राजा श्रवण के पासों नें अपना कमाल दिखाया, जिसके कारण पहली बाजी में अपने हथियार को और दूसरी बाजी में अपने अरबी घोड़े को पुनः राजा श्रवण ने जीत लिया।
फिर राजा सुरेश अपनी सारे पैतरेबाजियों का उपयोग करके किसी भी तरह से वह इन अगली सभी बाजियों को जुएँ में जितना चाहता था। इसलियें उसने प्रार्थना करते हुए अपने पासों से कहा कि यह तीसरा और अंतीम बाजी होगी,
वह मेरे प्रिय पांसे मेरे पक्ष में ही तुम आना।
जिस आदमी के साथ मैं आज खेलने के लिये बैठा उसको आज अवश्य हराना ही है।
यह हमारें लिये उतना ही जोखिम भरा है जितना मेरे जीवन और मृत्यु का घोर संकट मेरे सर पर मडरा रहा है। ऐसा जब राजा सुरेश ने कह लिया, तो उत्तर में राजा श्रवण ने अपनी तरफ से पासों से विनती करते हुए कहा ओ मेरे पासों आज तुम मेरा साथ अवश्य देना केयोंकि यह मेरे लिये न्याय और अन्याय का सवाल है। जिस आदमी के साथ मैं खेल रहा इसको आज मैं हर हालत में हराना चाहता हूँ यह मेरे लिये मेरे जीवन की सबसे बड़ी बाजी है और मेरे जीवन और मृत्यु का सवाल है। यह जीत मुझे स्वर्ग में मेरे लिये अस्तान को तय करने वाली होगी।
इस तरह से एक बार उन दोनों ने पासे का केल शुरु किया जिसके चारों तरफ राजा की सभी एक से बढ़कर एक औरते आपने पूर्ण श्रृगांर के साथ अपने-अपने अदाओं से राजा श्रवण को अपनी तरफ आकर्षित करने का प्रयाश कर रही थी और विल्ली चुहों के राजा धोल को खीड़की में बैठ कर देख रही थी ध्यान से जिसके कारण वह सब उस पासें से डर के मारे दूर ही रहें जिसके कारण राजा सुरेश ने अपनी पहली बाजी में अपने राज्य को फिर संसार में अपना सारा धन और आखिरी बाजी वह अपनी सर को भी हार गया।
तभी उसका एक नौकर उसके पास दौड़ कर आया और उसको सुचना दिया की हमारी रानी एक नई लड़की को जन्म दिया है। राजा सुरेश ने उसको डाटते हुए कहा कि बहुत बुरे समय में उसका आगमन हुआ है, जाओं तत्काल उसकी हत्या कर दो, वह अपने जन्म के साथ मेरे लिये दुर्भाग्य को ले कर आई है।
लेकिन राजा श्रवण ने अपने चमकते हुए हथियार को राजा सुरेश की तरफ दिखाते हुए कहा, कठोर शब्दों में उसको चेतावनी देते हुए, नहीं-नहीं ऐ राजा वह कन्या तुम्हारें लिये दुर्भाग्य को लेकर नहीं आई है, तुम अपनी इस लड़की को अपनी मुझे दे दो मेरी पतनी के रूप में, अगर तुम ऐसा करते हो ऐर कसम खाते हो कि अब तुम किसी और के साथ यह पासें का चौपट जुआ नहीं खेलोगे और किसी का सर कलम नहीं करोगों। तो मैं तुमको तुम्हारा सब कुछ हारा हुआ लौटा दुंगा।
इस तरह से राजा श्रवण ने प्रतिज्ञा की वब अपने जीवन में फिर कभी यह जुयें का खेल नहीं करेगा औऱ ना ही किसी और के सर को काटेगा। इसके बाद उसने एक ताजी आम की छोटी शाखा को लेकर उसके साथ अपनी नवजात जन्म लड़की को दूसरे हाथ में लेकर, इनको सोने की तस्तरी में रख कर राजा श्रवण को दे दिया।
जैसे ही राजा श्रवण ने अपने साथ आम की शाखा के साथ नवजात लड़की को लेकर राजा सुरेश के महल से निकला कुछ दूर पर जाकर उसे एक वेड़ियों में जकड़ा कैदी मिला जो उसको दूर से पुकार रहा था।
ओ साही घोड़े पर सवार राजा कुछ देर रुक कर यहाँ पर विश्राम कर लो,
और मेरे अनुरोध को स्विकार कर लो, मेरी बेबसी को समझों, इन वेड़ियों को थोड़ा ढिला कर दो और आनन्द पुर्वक लम्बा जीवन जीवों।
उसकी बातों को सुनने के बाद राजा श्रवण का हृदय दया से पिघल गया और उसने राजा सुरेश को आदेश दिया कि इस कैदी को बेड़ियों से मुक्त कर दिया जायें।
फिर वह वहाँ से हिमालय की पहाड़ियों पर गया और वहाँ पर जमिन के अन्दर एक किलें में नवजात लड़की कोकिला को कुछ सेविकाओं के साथ रख कर, दरवाजे के पास में उस आम की शाखा को जमिन पर लगा दिया और इस तरह से कहा बारह सालों के बाद यह आम का वृक्ष जब अपने यौवन को उलब्ध होगा तो, मैं हाँ पर वापिस आउंगा और कोकिला से विवाह करुंगा।
और बारह सालों के बाद, जब वह आम का पेड़ बढ़ कर अपने युवा पन को उपलब्ध हुआ तो और उसमें फल और फुल आने लगे, तब राजा श्रवण वहाँ जा कर राजकुमारी कोकिला को जिसने राजा सुरेश से जुए में जीता था, उससे अपना विवाह कर लिया।
१९ एक लड़का जिसके माथें पर चन्द्रमा और ठुड्डी पर तारें का चिह्न था
एक देश में एक दरिब दम्पति रहते थे, जिनकी सात लड़कियाँ थी। वह लड़कियाँ राजा की माली की पुत्रि के साथ राजा के छाया दार वृक्षों से भरें बगिचें में खेलने के लिये रोज जाया करती थी और वह लड़की अक्सर अपनी सहेली से कहती थी कि जब मेरा विवाह होगा तो मुझे जो सुन्दर लड़का पैदा होगा, उसके माथें पर चन्द्रमा का निसान और उसकी ठुड्डी पर तारें का निसान होगा। एसे लड़के को पहले किसी नहीं देखा होगा। फिर उसकी सहेली उसकी यह बातें सुनकर उसकी खिल्लि उड़ाती और उस पर हसा करती थी।
लेकिन एक दिन राजा ने उसकी बातों को सुना कि उसको जो सुन्दर लड़का होगा उसके माथें पर चन्द्रमा और ठुड्डी पर तारें का निसान होगा और ऐसे लड़के को किसी ने पहले कभी नहीं देखा होगा। फिर उस राजा ने स्वयं अपने मन में विचार किया अवश्य ही इसको ऐसा ही सुन्दर और अद्भुत लड़का होगा। यद्यपी उस राजा के पास पहले से उसकी चार रानियाँ थी जिनका अपना कोई संतान नहीं थी। इस लिये वह राजा उस गरिब माली दम्पती के पास गया और उनसे उसने कहा कि वह उनकी पुत्री से विवाह करना चाहता है। यह सुनकर गरिब दम्पती अपने शौभाग्य पर बहुत अधिक प्रसन्न हुए और उन्होंने विचार किया यह तो बहुत अच्छा है कि उसकी पुत्री राजा की पटरानी बन कर उसके साथ महल में रहेगी, यह सब विचार करके उन्होनें राजा से अपनी पुत्री का विवाह करने के लिये तैयार हो गये और उनहोंने अपनी सभी परिचित मित्रो और सगें सम्बंधियों को अपने यहाँ विवाह उत्सव में सामिल होने के लिये आमन्त्रित किया और राजा ने भी अपने मित्रो और सगें सम्बंधियों को भी अपने विवाह में सभी को बुलाया और राजा ने उस माली दम्पती को बहुत अधिक रुपया दिया जितना उसको धन की ज़रूरत थी। फिर बड़े आनन्द पूर्ण समारोह के साथ राजा ने अपना विवाह माली के पुत्री से कर लिये और उसको ले कर अपने साथ महल में आया।
इस तरह से लग-भग एक साल वित गये और उस माली की पुत्री जो राजा की रानी कि तरह से उनके महल में रहती थी, उसको पुत्र होने में जब कुछ दिन रह गया तो, राजा कि और दूसरी चार पत्नियाँ थी वह उस माली के पुत्री के पास आयी और उसका हर प्रकार से देख भाल करने लगी, लेकिन उनकी नियत ठीक नहीं थी, जिसके कारण उन्होंने माली की पुत्री को बहकाने लगी और उन्होंने उससे कहाँ किया कि कुछ ही दिन में तुमको पुत्र होने वाला है और राजा तो अक्सर शिकरा पर ही रहते है, खुदा ना खास्ता तुम बिमारी होगई तो तुम्हारी देखभाल कौन करेगा, राजा को तुम्हारी बिमारी के बारें में कुछ भी नहीं पता होगा, तो तुम क्या करोगी?
जब शाम को राजा शिकार कर अपने महल में वापिस आया तो माली की पुत्री ने राजा से कहा कि आप तो अक्सर शिकार पर ही रहते है, यदि मुझे को किसी प्रकार कि परेशानी हो जायें या मैं बीमार होगई, तो मैं आपको कैसे सुचित करुगी। राजा ने अपना डमरु को माली की पुत्री जिस कमरें में रहती थि उसके दरवाजे पर लटका दिया और कहा कभी तुमको किसी प्रकार की आवश्यक्ता हो तो तुम इस डमरु को बजाना और मैं तुरंत तुम्हारें पास आ जाउंगा, इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि मैं तुमसे कितना दूर हूँ।
अगले दिन सुबह जब राजा शिकार करने के लियें चला गया, उसके बाद राजा की दूसरी चार रानियाँ उस माली कि पुत्री को पास आई उसको देखने के लिये, तो उसने उनसे वह सब कुछ कह सुनाया जैसा कि राजा ने कहा था और उस डमरु के बारे में भी बताया। तो उन चार रानियों ने कहा अच्छ इस डमरु को बजा कर तो देखों क्या सच में इसकी आवाज सुन कर आता भी है? या फिर केवल तुमको उल्लु बनाने के लिये यह डमरु तुमको दिया है।
लेकिन माली कि पुत्री ने डमरु बजाने से इनकार कर दिया और मैं ऐसा करके उनकों शिकार से वापिस क्यों बुलाउंगी? जबकि अभी उनकी मुझे कोई आवश्यक्ता नहीं है।
फिर उन चार रानियों ने कहा कि तुम राजा के शिकार कि बिल्कुल चिन्ता मत करों, इस समय तुम केवल इस डमरु को बजा कर इसकी परिक्ष लो कि राजा सच में आता भी है कि नहीं और अनंत में जब ली की पुत्री ने डमरु को बजाया राजा तत्काल उसके सामने आकर खड़ा होगा।
और राजा ने माली का पुत्री से पुछा कि तुमने मुझे इस समय क्यों बुलाया है? मैं तुम्हारे बुलाने पर अपने शिकार छोड़ कर तुम्हारें पास आया हुं।
उसने कहा मुझे कोई ज़रूर नहीं है, मैंने केवल यह जानने के लिये इसको डमरु को बजाया है कि आप इसकी आवाज सुनकर यहाँ आतें भी है कि नहीं।
राजा ने उत्तर में कहा ठिक है, लेकिन आगें से ध्यान देना जब तुमको मेरी सच में बहुत अधिक ज़रूरत हो तभी मुझे बुलाना, यह कह कर राजा शिकार करने के लिये वापिस चला गया।
अगले दिन जैसा कि प्रायः राजा शिकार करने के लिये जाया करता था, जब वह शिकार करने के लिये चला गया, तो उसकी चारों रानियाँ फिर उस माली की पुत्री के देखने लिये आई और वह सब उस माली की पुत्री से यह विनती करने लगी की वह एक बार फिर से डमरु को बजाये और देखे कि राजा आता है कि नहीं, पहले तो उसने मना किया, लेकिन उन चार रानियों के बार-बार अनुरोध करने पर उसने एक बार फिर डमरु को बजाया और तत्काल राजा उसको सामने आकर खड़ा हो गया। लेकिन जब उसको पता चला कि उसको बिना किसी ज़रूरत के ही युं ही बुलाया गया हैं। लगातार दो बार तो वह राजा उस माली की पुत्री पर बहुत अधिक क्रोधित हुआ और उससे कहा तुम्हें ना किसी प्रकार कि परेशानी है ना ही तुम विमार ही हो, फिर भी तुमने मुझकों दो बार बुलाया, जिसके कारण मैं अपने शिकार के खेल को छोड़ कर तुम्हारें पास आया और तुमको मेंरी कोई ज़रूरत नहीं है, इस लिये अब तुम मुझे जितना बार भी बुलाओंगी मैं नहीं आउंगा, यह कर राजा वहाँ से क्रोध में फिर वापिस शिकार करने के लिये चला गया।
तीसरे दिन माली की पुत्री सच में बीमार होगई और उसने बार-बार राजा के द्वारा दिये गये डमरु को बाजाया, जिसको राजा ने सुना भी लेकिन वह नहीं आया, उसने यही सोचा कि वह केवल यह देखने के लिये बजाया होगा कि मैं आता हुं की नहीं।
इसके बाद जब राजा कि चार रानियों को पता चला कि माली की पुत्री सच में बीमार है, तो वह सब उसके पास आई और उससे कहा कि हमारें यहाँ का पुराना यह रिवाजा है कि जब कोई औरत अपने बच्चें को जन्म देती है। तो उसकी आंखों को रुमाल से बांध देते है। जिससे वह यह सब पहले ना देख सके, इस तरह से माली की पुत्री अपने आँख पर पट्टी बंधवाने के लियें तैयार होगई. इस तरह से उन सब चार रानियों ने उस माली की पुत्री की आंखों पर पट्टी को बांध दिया।
इसके कुछ देर के बाद ही माली की पुत्री ने एक सुन्दर पुत्र को जन्म दिया, जिसके माथें पर चन्दा का निसान और उसकी ठुड्डी पर तारें के चिह्न थे। इससे पहले कि उस बच्चें कि बेचारी माँ अपने बच्चें को देख पाती। उन कुरुप चार रानियों नें दाई से उस बच्चें को ले लिया और उससे कहा तुम्हें यह ध्यान देना है कि यह बच्चा बिल्कुल भी आवाज ना करें, जिससे इसकी माँ इसकी अन्तिम आवाज को भी नहीं सुन सके और इसको रात्री के अंधेरें में यहाँ से दूर ले जाकर इसकी हत्या कर देनी है, या फिर यहाँ से कही दूर ले जा कर छोड़ दोगी। जिससे इसकी माँ इसको कभी भी ना देख सकें, अगर तुमने हमने जैसा कहा वैसा ही किया तो हम तुम्हें तुम्हारा मुंह मांगा इनाम देगें। यह सब बाहर करने के बाद, दाई ने छोटे बच्चें को एक छोटे बक्सें में रख दिया। इसके बाद राजा की चार रानिया माली के पुत्री के पास गई.
पहले उन सबने कुछ इट और पत्थर को छोटे बच्चें के विस्तर पर रखा और फिर उन सबने माली की आंखों से पट्टी को खोल दिया, इसके बाद उन इट पत्थरों को दिखाते हुयें कहा दि देखों यही तुम्हारा पुत्र है। इसको देखते ही माली की लड़की बुरी तरह से रोने लगी और बहुत भयभित होगई कि जब राजा को पता चलेगा कि उसने लड़के स्थान पर इन इट पत्थरों को जन्म दिया तो वह क्या सोचेगे? लेकिन वह कुछ भी नहीं कर सकी, औऱ जब राजा शिकार करके अपने महल में वापिस आया और उसको पता चला कि माली की पुत्री ने पुत्र के स्थान पर इट पत्थरों को जन्म दिया है, अपने वादे के खिलाफ कि वह उसको एक सुन्दर पुत्र को पैदा करके देगी, तो वह बहुत अधिक क्रोधित हुआ और उसने उसे अपने महल की एक नौकरानी बना दिया और उससे वह कभी भी बात नहीं किया।
रात्री के मध्य में दाई ने उस बक्से को लेकर जंगल में गई जिसमें सुन्दर लड़का रखा गया था। जब वह दाई जंगल में नगर से काफ़ी दूर आगई, तो वहाँ पर उसने एक बक्से के आकार जमिन में गड्ढा को खोदा और उस गड्ढें में उस बक्से को रख कर गड्ढें को मिट्टि से ढक दिया। यद्यपी उस वक्सें में अभी तक बच्चा जीन्दा था। राजा का एक कुत्ता था जिसका नाम शंकर था वह उस औरत का पिछा करते हुए जंगल तक आया और वह सब कुछ उसने देखा जो उस दाई ने उस लड़के के साथ किया था। जिसके जमिन में दफनाने के बाद वह दाई चारों रानियों के पास गई और उन रानियों ने उसको पुरुष्कार में काफी रुपया देकर उसको विदा कर दिया। इसके बाद राजा का कुत्ता शंकर उस गड्ढें के पास आया जिसके अन्दर राजा की दाई ने बच्चें को जीन्दा दफन किया था। शंकर ने उसको खोद कर बक्से को खोद कर जमिन से बाहर निकाला और उस बक्से को खोल कर देखा, उसके अन्दर उसने जब सुन्दर लड़के को देखा तो वह उसको देख कर उसे बहुत अधिक खुसी की अनुभुती हुई और उसने कहा यदि ईस्वर ने चाहा तो यह लड़का अवश्य जीवीत रहेगा। मैं इसको कोई नुकसान नहीं पहुंचाउगां और ना ही मैं इसको खाउंगा ही, यद्यपी मैं इसको पुरा का पुरा युं ही निगल जाउंगा और अपने पेट में इसको सुरक्षित रखुंगा। फिर उसने ऐसा ही किया उस बच्चे को पुरा का पुरा निगल कर अपने पेट में रख लिया।
इसके छः महिने के बाद, कुत्ता रात्री के समय में एकान्त जंगल में गया और उसने सोचा कि इतने दिन से मैं घुम रहा मुझको यह देखना चाहियें कि लड़का मेंरे पेट में जीन्दा है या मर गया है, इसलिये उसने अपने पेट से उस बच्चे को बाहर निकाला और जब लड़के की सुन्दरता को देखा तो वह बहुत अधिक प्रसन्न हुआ। कुछ देर तक उसको लाड़-प्यार करने के बाद फिर उस लड़के को वह निगल गया। अब वह लड़का छःमहिने का हो चुका था। एसे ही एक बार फिर कुछ समय के बाद वह जंगल में आय और लड़के को अपने पेट से बाहर निकाल कर उसकी देख भाल कर रहा था, अब वह लड़का एक साल का हो चुका था जिसके साथ उसका सौन्दर्य भी पहले से और अधिक निखर गया था जिसको देखकर शंकर वहुत अधिक आनन्दित हुआ। जब शंकर उस बच्चे का ध्यान से देख भाल कर रहा था और चाट रहा था उसी समय राजा का आदमी जो उस शंकर की देखभाल करता था, वह उसका पिछा करता हुआ जंगल में आगया और उसने उस लड़के के साथ उस कुत्ते को देखा जिसके माथें पर चन्द्रमा और ठुड्डी पर तारे का निशान था। वह तुरंत भाग कर रानियों के पास गया और उनसे कहा कि वह सुन्दर बच्चा शंकर के पेट में जीन्दा है और वह बहुत सुन्दर हो चुका है। ऐसा बच्चा मैंने कभी नहीं देखा, यह सुनते ही चारों रानियों बहुत अधिक भयभित गई, औऱ राजा जैसे ही शिकार से वापिस आया तत्काल उन रानियों ने राजा से कहा कि जब आप शिकार करने के लिये चले जाते है, आपका कुत्ता हमारें कमरों में आकर कपड़ों को खिच-खिच कर फाड़ देता है और हमारी वस्तुओं को इधर उदर विखेर कर फैला देता है, हमें भय कि वह हम सब को मार सकता है। राजा ने कहा भयभित होने की ज़रूरत नहीं है। खुश रहों खानों खाओ और आराम करों, कल सुबह मैं कुत्ते को मार दुंगा।
राजा ने अपने सेवको तत्काल आदेश दिया कि सुबह होते ही कुत्ते को मार दिया जाये। लेकिन कुत्ते ने यह सब कुछ सुन लिया और वह सोचने लगा कि मेरे साथ यह लड़का भी मारा जायेगा, इसको किसी तरह से बचाना चाहिये। क्योंकि राजा ने मुझे मारने का आदेश जारी कर दिया है। मेरे लिये तो कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन मेरे बाद इस लड़के का क्या होगा?
इस तरह से शंकर सोचता हुआ रात्री के समय में ही राजा की गाय के पास गया, जिसका नाम शुरा था। औऱ उससे इस तरह से कहा कि शुरी मैं तुमको कुछ देना चाहता हूँ, क्योकि राजा मेरी हत्या कल सुबह करने का आदेश जारी कर दिया है? क्या तुम उसकी बहुत अच्छी तरह से देखभाल कर सकती हो? जिसको मैं तुमको देने वाला हूँ।
शुरी ने कहा आवो पहले मैं देखती हूँ कि तुम मुझे दे क्या रहे हो? मैं उसकी देखभाल करने में समर्थ हो सकी तो मैं अवश्य उसकी देखभाल करुगी। फिर वह दोनों वहा से एकांन्त जंगल में गयें और वहाँ पर शंकर नें अपने पेट से उस सुन्दर लड़के को बाहर निकाला जिसको देखर शुरी अत्यधिक प्रसन्नता के साथ आश्चर्य चकित हुई और उसने कहा कि ऐसा सुन्दर लड़का तो मैंने कभी पूरे देश में नहीं देखा है, देखों इसके माथें पर चन्द्रमा और ठुड्डी पर तारें का निशान है, अवश्य ही मैं इसका पूर्ण रूप से देखभाल करुगी यह कह कर वह उस छोटे बच्चे को अपने मुह से अपने पेट में निगल कर छुपा लिया, जिससे शंकर बहुत अधिक प्रसन्न हुआ और उसका बहुत आभार व्यक्त किया, वह जानता था कि उसको कल सुबह मार दिया जायेंगा और गाय वहाँ से सिधा गौशाला में चली गई.
अगले दिन सुबह कुत्ते को जंगल में सेवक ले कर गये और उसको मार दिया।
वह लड़का अब शुरी के पेट में जीवीत था और जब पुरा साल बित गया, फिर दूसरा साल बीत गया तब एक दिन वह स्वयं अकेल जंगल में गई, यह देखने के लिये जिस लड़के को वह अपने पेट में रखा है उसको निकाल कर देखने के लिए की वह कैसा है? जिन्दा भी यहै या पेट में ही मर गया। लेकिन मैं उसको कभी चोट नहीं पहुंचाया है, इसलिए मुझे उसको निकाल कर देखना चहिए. फिर उसने लड़के को अपने पेट से बाहर निकाला, तब उसने देखा कि लड़का बिल्कुल हिष्टता पुष्टता के साथ प्रसन्नता से खेल रहा था। शुरी यह देख कर बहत अधिक प्रसन्न हुई. उसने उस बच्चे का प्रेम पूर्वक देख-भाल के साथ उससे से बात चित भी किया। फिर उसने उसको अपने पेट में निगल लिया और फिर वह अपने गौशाला में वापिस चली गई.
और कुछ और साल बितने के बाद वह एक बार जंगल के एकान्त में गई और उस लड़के को अपने पेट से बाहर निकाला और उसकी देखभाल करने के बाद उससे खुब अपने मन कि बात की, साथ में इधर उधर दौण कर उसके साथ एकाक घंटे तक खेलने का भरपुर आनन्द लिया। उस लड़के के सौन्दर्य को देख कर उसे बड़ी प्रसन्नता मिली। फिर एक बार उस लड़के को अपने पेट में निगल लिया और अपने गौशाला में चली गई. अब वह लड़का पांच साल को होगया था।
लेकिन जब शुरी उस लड़के साथ खेल रही थी तो उसका देख-भाल करने वाला ग्वाला भी उसका पिछा करते हुए, उसके पिछे-पिछे आगया और शुरी को बच्चें को निगलते हुए देख लेता है। उस सुन्दर लड़के को जिसके मांथे पर चन्द्रमा का निशान और ठुड्डी पर तारा के निशान था, ऐसा सुन्दर और अलौकिक लड़का अपने जीन्दगी में कभी नहीं देखा था, इसलिये वह वहाँ से तुरंत भाग कर रानियों के पास गया और जो कुछ उसने देखा था सब कुछ कह दिया। जिसको सुनते ही रानीयाँ भयभित होगई और उनकी हालत बिगड़ने लगी, उन्होंने अपने कपड़ों को स्वयं फाड़ लिया और अपने बालों को बिखेल कर रोने और चिल्लाने लगी, जब शाम को राजा अपने शिकार से वापिस आया, तो उन सबसे राजा ने पुछा तुम सब के इतना अधिक अवसाद और तनाव का कारण क्या है? उन रानियों ने कहा कि आपकी गाय आज हमारें कमरे में आगई थी और उसने हमें मारने कि कोशिश की, उसी ने हम सब का यह सब कपड़ा फाड़ दिया और बाल को खिच-खिच कर बुरा हाल किया है, हम उससे भाग कर किसी तरह से अपनी जान बचाई है। राजा ने कहा कोई बात नहीं। तुम सब खाना खाओं और प्रसन्नता से आराम करों, गाय कल सुबह निश्चित ही मार दि जायेगी।
जब राजा के इस आदेस को अपने सेवको दिया तो इसके बारें में शुरी ने सुना जिसमें उसको मारने की बात राजा ने की थी। फिर उसने विचार किया कि मैं तो अब मार दी जाउंगा, लेकिन मैं इस लड़के को बचाने के लिये क्या कर सकती हूँ? जब रात्री का समय हुआ, वह राजा के घोड़े जिसका नाम कर्तार था उसके पास गई, वह बहुत बुरे स्वभाव बिल्कुल जंगली किस्म का था अबी तक उस पर कोई भी सवारी करने में समर्त नहीं हो सका था, इसलिये उसके पास अपनी सुरक्षा को ध्यान में रख कर कोई भी आदमी नहीं जाता था। वह बहुत अधिक बर्बर और हिन्सक था, शुरी ने घोड़े से कहा कर्तार क्या तुम हमारी किसी वस्तु की अच्छी तरह से देखभाल कर सकते हो, जिसको मैं तुमको देने वाली हूँ क्योंकि राजा ने कल सुबह मुझे मारने का आदेश दे दिया है।
कर्तार ने कहा अच्छा, दिखाओं तुम मुझे क्या देना चाहती हो? फिर शुरी ने अपने पेट से लड़को को बाहर निकाल, जब घोड़ें ने लड़के को देखा तो वह बहुत अधिक प्रसन्न हुआ, फिर उसने कहा अवश्य मैं इसकी अच्छी तरह से देखभाल करुगां। अब तक कोई भी मुझ पर सवार करनें में सफल नहीं हुआ हैं लेकिन यह लड़का अवश्य सफल होगा मेरे ऊपर सवारी करने में, फिर सने उस लड़के को निगल गया, जिसके लिये शुरी ने उस घोड़े का बहुत अधिक अहसान माना और उसका इसके लिये स्वागत के साथ अभिनन्दन करने के बाद अपने गौशाल में चली गई. इस बच्चें के लिये मेरा मर जाना ही अच्छा होगा और सुबह होने पर शुरी को गौपालक जंगल में ले गया और उसकी हत्या कर दी।
वह अलौकिक लड़का अब कर्तार के पेट में सुरक्षित और जीवीत शांसे ले रहा था। इस तरह से कर्तार के पेट में वह लड़का कुछ एक साल तक रहा, फिर एक दिन कर्तार ने विचार किया कि मुझे लड़के को अपने पेट से निकाल कर देखना चाहिए वह जीन्दा भी है मर गया है। फिर उसने उस लड़के को अपने पेट से बाहर निकाल कर देखा, तो वह लड़का मस्त और स्वस्थता के साथ पहले से अधिक सुन्दर और शक्ति शाली हो चुका था। कर्तार ने उसको काफी प्रेम थप-थपाय और छोटे राजकुमार के साथ काफी देर तक स्तबल में खेलता रहा, ऐसा कई बार किया, उसने छोटे राजकुमार को स्तबल से बाहर निकलने से मना कर रखा था, कर्तार छोटे राजकुमार को देख कर बहुत अधिक प्रसन्न होता था, अब तक राज कुमार पांच साल का हो चुका था, कुछ समय उसके साथ केलने के बाद कर्तार एक बार फिर उसको निगल गया और अगले एक साल के अंत के बाद उसने छोटे राजकुमार को अपने पेट से फिर बाहर निकाला, उसकी देख-रेख कि उसके साथ खेला, लेकिन इस बार उसको जब वह लड़के को वापस निगल रहा था। तभी स्तबल की देख भाल करने वालें ने उसको ऐसा करते हुए देख लिया।
और यह सुबह का ही समय था राजा शिकार करने के लिये जा चुका था, वह तुरंत कुरुप चार रानियों के पास गया और उसने जो कुछ भी देका था वह सब कुछ उन सब से कह सुनाया कि एक बहुत सुन्दर आश्चर्यजनक लड़का राजा के घोड़े के पेट में जीवीत है। जिसके माथे पर चन्द्रमा ठुड्डी पर तारा का निशाना है। स्तबल की देखभाल करने वाले की इस कहानी को सुनने के बाद चारों रानियों का भय और आतंक से चेहरा लाला पिला पड़ गया, इसके साथ वह सब रोते हुए अपने कपड़ों को फाड़ने लगी और खाने को त्याग दिया। जब राजा शाम को वापिस आया उनकी बदहाली को देखने के बाद उसने उन सबसे पुछां क्या कारण है तुम सब के दुःख और परेशानी का, तो उन सब रानियों ने एक साथ एक स्वर में कहा कि आपका घोड़ा कर्तार हमारें कमरें में घुस आया था उसने हमारें सभी के कपड़ों को फाड़ दिया और हमारें सभी के सामनों को अस्त व्यस्त कर दिया है। हम सब अपनी जान बचाने के लिए उससे दूर भाग गये, नहीं तो वह हमारी जान से मार डालना चाहता था।
राजा ने कहा कोई बात नहीं है। केवल अपने खाने को खाओं और प्रसन्नता से आराम करो अपने कमरें में, मैं कल सुबह ही कर्तार को मार दुंगा, फिर उसने विचार किया कि उसको केवल यह दो जंगली घोड़े को मार नहीं सकते है इसलिये उसने पुरी अपनी एक सेना की टुकड़ी को ही सुबह होते ही कर्तार को मारने का आदेश जारी कर दिया।
अगले दिन सुबह राजा ने अपनी सेना की टुड़की पूरे स्तबल को चारों तरफ से घेरने का हुक्म दिया और उनके मध्य में वह स्वयं खड़ा हो कर कहा कि वह स्वयं कर्तार को मारेगा और किसी दूसरें से वह बच सकता है,
यह सब जब तैयारी चल रही थी कर्तार को मारने की तो उसने यह सब अपने कानों से सुन लिया उसने तुरंत छोटे राजकुमार को अपने पेट से बाहर निकाला औऱ कहा, जाओं उस छोटे कमरें में जो स्तबल के बाहर है जहाँ तुम निश्चित रूप से मेरे पीठ पर बाधंने के लिये कांठी और लगाम वगैरह होगा उसको लाकर मेरे ऊपर रख कर मुजे तैयार करों, फिर तुम देखना वही कहीं सुन्दर कपड़े भी गे जिसको राजकुमार पहनते है, उसको तुम स्वयं पहन लो, इसको अलाव वहीं पर तुम्हें तलवार और बंदुक के अलावा और जो कुछ अस्त्र होगे उनको भी ले लो अपने साथ और मेरे पिठ पर आकर बैठ जाओ. क्योंकि कर्तार परियों का घोड़ा था जो परियों के देश से आया हुआ था। यह वह कुछ भी कर सकता था जिसकी जानकारी ना ही राजा को हो सकती थी नाही किसी और दूसरे आदमी को हो सकती थी। जब सब कुछ तैयार हो गया, कर्तार अपने पिठ पर छोटे राजकुमार को बैठाये हुए स्तबल से सारें बन्धनो को तोड़ते हुए बाहर निकला, हवा कि तरह से राजा भी उस पर निसाना साधने से चुक गया पलक झपकते ही उसने चौकड़ी भरना शुरु कर दिया और विहड़ जंगल में गुम होगया, राजा और उसके सारें सैनिक यह सब मात्र मुक दर्शक बन कर देखते ही रह गये। राजा ने देखा कि घोड़े की पिठ पर एक लड़का बैठा हुआ था लेकिन साफ-साफ लड़के के चेहरे को नहीं देक पायें थे। सैनिकों ने कर्तार का पिछा किया लेकिन कर्तार की रप्तार अत्यधिक होने के कारण सभी जंगल में विखर गये, जब राजा ने देखा कि कर्तार को पकड़ना मुस्किरल ही नहीं असंभव है तो उन्होंने अपने सैनिको को आदेश दिया अपने छावनी में वापिस जाने के लिये और स्वयं राजा भी अपने महल को वापिस चला गया। राजा ने किसी भी अपने सैनिक को घोड़ा ना पकड़ने के दण्ड स्वरुप किसी को भी नहीं मारा क्योंकि राजा स्वयं ही उसको छोड़ देना चाहता था।
कर्तार ने चौकड़ी भुरते हुए दूर और बहुत दूर निकल गया, जब उसकी लग-भग उसकी सारी शक्ति खत्म हो चुकी तो वह एक छायादार एक वृक्ष के निचे जा कर वह और राजकुमार का लड़का रुक गये, घोड़े ने वहाँ पर उपस्थित घास को खाया औऱ राजकुमार ने वहा पर उपस्थित जंगली कुछ स्वादिष्ट फलों को खाकर अपनी भुख को मिटाया। अगले दिन सुबह उन्होंने एक नई यात्रा को शुरु किया और बहुत दूर निकलने के बाद जब वह एक दूसरें देश के घनें जगं में पंहुचें, जो छोटें राजकुमार के पिता का नहीं था। वह किसी दूसरें राजा के राज्य में थे उस समय, यहाँ पर कर्तार नें छोटे राज कुमार से कहा अब तुम मेरी पिठ पर से निचें उतर जाओं। जब राजकुमान घोड़े के पिठ पर से कुचद कर जमिन पर खड़ा हो गया तो घोड़ें नें कहा कि तुम मेरी काठी को निचे उतार दो और मेरी लगाम को निकाल दो और तुम अपने सुन्दर कपड़ों को यही पर निकाल दो इसके साथ अपनी बंदुक और तलवार को भी एक पोटली में बाधं दो, राजकुमार ने ऐसा ही किया जैसा कि कर्तार घोड़े नें उससे कहा, फिर कर्तार ने उस लड़के को कुछ साधारण और सामन्य कपड़ों को दिया उसको पहनने के लिये। जब राज कुमार ने वह साधारण कपड़ों को पहन लिया, तो कर्तार ने उस लड़के से कहा कि अपनी इस गठरी को जिसमें उसके सामान थे उसको यहाँ घास के निचें छुपा दो अच्छी तरह से, मैं इसकी यहाँ पर जंगल में रह कर इस गठरी को तुम्हारें लिये रक्षा करुगा, जब तुम मुझसें मिलना चाहने यहाँ पर आ जाना मैं तुमसे यहीं पर मिलुंगा। तुम तुरंत यहाँ से इस देश के किसी शहर में जा कर अपने लिये किसी नौकरी को तलास करों रुपया कमाने के लिये।
यह सुन कर छोटा राज कुमार बहुत अधिक उदाश हो गया, उसने कहा मैं इसके बारें में कुछ भी नहीं जानता हु, मैं अकेला इस देश में क्या करुगा?
कर्तार ने कहा तुम्हें ज़रा भी भयभित होने कि ज़रूरत नहीं है, तुम अपने लिये नौकरी तलास लोगों और मैं हमेशा यहाँ रहुंगा जब भी तुमको मेरी ज़रूरत होगी आजाना, इसलिये तुम यहाँ से जाओं और जाने से पहले तुम मेंरे दाहिने कान को मरोड़ दो, लड़के ने ऐसा ही किया घोंड़ा तत्काल एक गधे में बदल गया, फिर उसने कहा अब तुम अपना दाहिना कान मरोड़ों ऐसा करते ही राजकुमार अब एक सामान्य-सा कुरुप लड़के में बदल गया अब उसकी सारी सुन्दरता समाप्त हो गई और उसका चाद औऱ तारा उसके चेहरे से सब अदृश्य हो चुके थे।
फिर वह वहाँ से बहुत दूर देश के अन्दर एक नगर में आनाज के व्यापारी के पास गया, व्यापारी ने जब उससे पुंछा की वह कौन है और कहाँ से है? तो उसने व्यापारी से कहा कि मैं एक बहुत गरिब आदमी हूँ और मुझें एक नौकरी की तलास है, आनाज व्यापारी ने कहा अच्छी बात है, तुम मेरे आज से नौकर हो।
यह आनाज व्यापारी राज के महल के पस में ही रहता था, एक दिन रात्री के मध्य के समय में जब बहुत अधिक गर्मि लड़को लग रही थी, इसलियें वह आनाज व्यापारी के घर से निकल कर राजा के बगिचें में गया, जहाँ पर उसने ठण्डी और सुहावनी हवा को पाया जहाँ पर उसको काफी आराम महसूस हुआ, तब उसने वहाँ पर एक सुन्दर गानें को गानें लगा। राजा की सात पुत्रियों में सबसे बड़ी राजकुमारी नें जब उसके गित मिठे शबमदों को सुना, तो उसको आश्चर्य हुआ कि कौन है जो इस तरह से मुधुर गित को गारहा है। फिर उसने अपने कपड़ें को पहना और अपने बालों को बांधा और अपने महल से निकल कर वहाँ बगिचें में आई जहाँ पर वह साधारण-सा लड़का लेट कर गित को गा रहा था। उसने उस लड़के से कहा तुम कौन हो उर यहाँ पर कहाँ से आये हो?
लेकिन उस लड़के ने कोई भी उत्तर नहीं दिया।
यह आदमी कौन है, जब मैं इससे पुछंती हुं तो यह मेरे प्रश्नों का उत्तर क्यों नहीं देता है? छोटी राजकुमार ने विचार करते हुए वहाँ से दूर चली गई. दूसरी रात्री को भी यहीं घटना घटी और तीसरी रात्री को भी ऐसा ही हुआ। लेकिन तीसरी रात्री को उसने उस लड़के से कहा कि तुम किस तरह के विचित्र लड़के हो, मेरे बार-बार पुछने पर भी तुम कुछ बोलते क्यों नहीं हो? इतना कहने पर भी जब वह लड़का बिल्कुल शांत रहा, तो वह राजकुमारी वहाँ से चली गई.
अगले दिन जब अपना कार्य पुरा कर लिया छोटे राजकुमार ने तो वह जंगल में घोड़े को देखने के लिये, जिसने उससे पुछा कि तुम बिल्कुल अच्छें और प्रसन्न लग रहे हो, लड़के ने कहाँ हाँ मैं बिल्कुल खुश और प्रसन्न हुं। मैं एक बड़े अनाज व्यापारी का सेवक बन गया हुं, पिछली तीन रातों से मैं राजा के बगिचें में जा कर गित गाता हुं, औऱ हर रात्री को बड़ी राजकुमारी मेरें पास आती है और बार-बार मुझसे पुछती है कि मैं कौन हुं और मैं कहाँ से आया हूँ? और मैने कोई भी उत्तर नहीं दिया है। कर्तार ने कहा मैं अब तुम्हारें लियें क्या कर सकता हूँ? अगली बार जब वह तुमसे वह पुछें तो तुम कहना की एक गरिब आदमी हो, यहा पर अपने देश से नौकरी की तलास में आयें हो।
फिर लड़का आनाज बेचने वाले व्यापरी के घर गया और रात्री के समयं, जब सभी आदमी सो गये, वह फिर राजा के बगिचे में गया और अपना वहीं मधुर गित को गाने लगा। जब सबसे बड़ी राजकुमारी ने उसके गीत की मदुर ध्वनियों को सुना, वह तुरंत उठ कर खड़ी होगई और अपने कपड़े को बदल कर उस लड़के पास बगिचे में आ गई और उसने पुछा कि तुम कौन हो और यहाँ तुम कब आये?
उस लड़के ने उत्तर दिया की वह बहुत गरिब है और अपने देश से यहाँ नौकरी का तलास में आया है। इस समय मैं यहाँ पर एक आनाज के व्यापारी के यहाँ पर काम करता हुं। फिर वह राजकुमारी वहाँ से चली गई. अगले तीन रातों को वह युं ही उस लड़के गीत को सुन कर उसके पास बगिचें में हर रात को आती और उससे यही पुछती की वह कौन है? और यहाँ पर कहाँ से आया है? इसके जबाब में छोटा राज कुमार बार-बार यहीं कहता की वह एक गरीब आदमी है, वह अपने देश से यहाँ नौकरी की तलास के लिये आया है और आनाज व्यापारी के यहाँ इस समय कार्य करता है।
फिर वह राज कुमारी अपने पिता के पास गई और उससे कहाँ की मैं वीवाह करना चाहती हुं, लेकिन मैं अपने पति स्वयं को चुनूगीं। उसके पिता ने उसकी बात को मान लिया और उसने पत्र लिख कर पूरे पृथ्वी के सभी राज्य के राजाओं और राजकुमारों को अपने यहाँ स्वयंबर में आने के लिये आमंत्रण भेज कर बुलाया और उन सबसे उसने कहा कि मेरी बड़ी लड़की अपना विवाह करना चाहती है, लेकिन उसकी एक सर्त है कि वह अपने पति को स्वयं चुनेगी और मैं नहीं जानता हूँ कि वह अपने पति के रूप में किसको चुनेगी? इसलिये मैं आप सब से विनती करता हुं कि निश्चित दिन पर आईए, जिससे हमारी पुत्री अपने पति को आप में से किसी एक को चुन सके.
बहुत सारें महान राजा और उनके राजकुमारों नें उनके आमंत्रण को स्विकार करके निश्चित दिन पर राजुमारी से विवाह करने के लिये उसके राज्य में आने लगे, जब सभी राजा और राजकुमार आगये तो राजकुमारी के पिता ने उन सब से कहाँ कि कल सुबह आप सब निश्चित ही हमारें बगिचें में एक साथा आ कर बैठिए. हामारा बगीचा काफी बड़ा और आरामदायक है वहाँ पर आपकी हर प्रकार की सुख सुविधा का विशेष ध्यान रखा जायेगा। फिर हमारी बड़ी लड़की आयेगी और आप सब को देखेगी और आप में से ही किसी एक को अपना पति चुनेगी, मैं नहीं जानता कि वह किसको अपने पति के रूप में स्विकारेगी।
सबसे बड़ी राजकुमारी ने अपने शानदार हाथी को अगले दिन बुलाया और अगली दिन सुबह को सब कुछ तैयार होगया स्वयंबर के लिये, फिर राजकुमारी ने सुन्दरतम परिधानों को पहन कर और बहमुल्य दिव्य अलौकिक आभुषणों सो स्वयं को सुसज्जीत करके, अपने हाथों में सोने के हार को लेकर, वह शानदार हाथी पर सवार हो कर जिसको हरे रंग से रंगा गया।
फिर वह बगिचे में गई, जहाँ पर सभी राजा और उनके राजकुमारा पुत्र बैठे हुए थे, वह लड़का जो आनाज व्यापारी के यहाँ पर नौकरी करता था वह भी उस समय वह बगिचें में ही उपस्थित था। वह वहाँ राज कुमारी से विवाह करने के लिए नहीं आया था, यद्यपी वह अपने और दूसरें सहयोगी नौकरों के साथ राज कुमारी के विवाह को देखने के लिए वहाँ पर आया हुआ था।
राजकुमारी ने बगिचे में अपनी हाथी पर बैठ कर भ्रमण करके वहाँ उपस्थित सभी राजाओं और उनके पुत्रों को देखा, फिर उसने जिस हार को अपने हाथ में लिये था उसकों उस लड़के के गले में डाल दिया, जो लड़का आनाज व्यापारी के गोदाम में नौकरी करता था। इस व्यवहार को देख कर वहाँ उपस्थित सभी लोग राजकुमारी का उपहास करने लगें, यह देख कर स्वयं राजकुमारी का पिता भी बहुत अधिक आश्चर्यचकित हुआ। लेकिन इसके बाद राजा और दूसरें लोगों ने एक साथ मिल कर कहा यह क्या मुर्खता है? और उन सब ने उस गरींब भेश में छोटे राजकुमार को वहाँ से भगाने का प्रयाश किया और उसके गले से स्वर्णहार को निकाल लिया, इसके बाद उन सब ने कहा कि तुम यहाँ से तुरंत बाहर निकल जाओ गरीब और बदसुरत गन्दें आदमी, तुम्हारें कपड़े भी कितने अधिक गंदें है तुम्हारी हीम्मत कैसे हुई इस प्रकार से हमारें पास आने की? इसको बाद लड़का वहाँ से बहुत दूर चला गया और वहाँ खड़ा हो कर देखने लगा कि अब क्या होने वाला है?
फिर राज कुमारी ने अपने स्वर्णहार को हाथ में ले कर हाथी पर सवार हो कर चारों तरफ बगिचें में घुमने लगी और एक बार वह उसी लड़के पास पहुंच कर वह स्वर्ण हार लड़के गलें में दोबारा डाल दिया। एक बार फिर वहाँ उपस्थित सभी लोग उसके इस कार्य पर हसने लगे और कहने लगे की यह राजकुमारी इस दरिद्र साधारण लड़के से विवाह कैसे कर सकती है? फिर राजा और दूसरें जो राजा और राजकुमार बाहर से राजकुमारी से विवाह करने के लिए वहाँ बगिचें में उपस्थित हुए थे वह सब लड़के के गले से स्वर्णहार निकालने का प्रयास करने लगें, इस पर राज कुमारी नें उन सबसे कहा उस स्वर्णहार को वहीं रहनें दो जहाँ पर वह है, कोई भी उसको इस आदमी के गलें से निकालने का प्रयाश ना करें, इसको अकेला छोड़ दे, क्योंकि इसकों ही मैंने अपना पति चुन लिया है और उसने लड़के को अपने हाथी पर बैठा कर महल में लेकर चली गई.
यह सब देख कर राजा और दूसरें राजा के मेहमान आगंतुक राजा राजकुमार बहुत अधिक आश्चर्यचकित हुए और कहा, इस का मतलब क्या हुआ? राजकुमारी नें हम सब राजा और राज कुमार की कोई भी परवाह नहीं किया और हममें से किसी से विवाह ना करके उसने एक गरिब औऱ साधारण मानव का चुनाव कर लिया। उसे अवश्य ही उससे ही विवाह करना होगा? और इसके बाद राजकुमारी और उस लड़के की खुब धुम-धाम पुर्वक शानदार तरिके से विवाह सम्पन्न होगया। उसके माता पिता और राजा, राजकुमार उसके विवाह से काफी खुश हुए और इसके बाद सारें लोग अपनें अपने राज्य को वापिस चलें गये।
इसके बाद राजकुमारी ६ दूसरी बहनों ने भी अपना-अपना विवाह सभी एक से बढ़ कर एक अमिर राजकुमार से कर लिया और वह सब कहती देखों हमारी बड़ी बहन ने अपने लिए कैसा पति चुना हैं? जो भद्दा, बदसुरत और दरिद्र साधरण आदमी-सा उनके पतीयों के सामने दिखता था, जिसके कारण वह सब उस पर बहुत अधिक हसती और उसका मखौल उड़ाती थी। उनके ६ पति रोज शिकार पर जाते थे और रोज काफी मात्रा में शिकार करके लाया करते थे, जिसका रात्री के समय में भोजन बनता था जिसको वह सब राजा के साथ मजें लेकर वह सब खाते थे। जबकि इसके विपरित बड़ी राजकुमारी का पति वह साधारण-सा दिखने वाला लड़का कभी शिकार पर नहीं जाता था, हमेंशा घर पर ही रहता था। जिसके कारण राजकुमारी अत्यधिक परेशान और उदास रहा करती थी।
अन्त में एक दिन उसनें अपने पति से कहा कि मेरी बहनों के पति रोज शिकार करने के लिये जाते हैं और रोज पर्याप्त मात्रा में शिकार करके ले आते है, आप वह सब क्यों-क्यों नहीं करते है जो वह सब करते है और शिकार करने के लिए कभी नहीं जाते है? तो उस लड़के ने कहा कि आज मैं हवा खाने के लिए जाउंगा। तो राजकुमारी ने कहा वहुत अच्छा अपने साथ घोड़ा भी ले जाना।
लेकिन उस लड़के ने कहा कि मैं घोड़े की सवारी नहीं करता मैं पैदल ही जायेगा। फिर वह जंगल में गया, जहाँ पर उसने अपने घोड़े कर्तार को छोड़ा था, जो सारे समय तक एक गधे के रूप में जंगल में बिचरण करता था और उस लड़के ने कर्तार से सब कुछ बताया कि सुनों मैने यहाँ की सबसे बड़ी राजकुमारी से विवाह कर लिया है और जब हमने विवाह किया तो सभी उसके ऊपर हंस रहे थे और कह रहे थे कितने गरिब और साधरण आदमी से यह विवाह कर रही है, हम सब की राजकुमारी, इसके बजाय हमारी पत्नी बहुत अधिक दुःखी थी, उसकी दूसरी ६ बहनों ने अमिर राजकुमारों से विवाह कर लुया है, जो रोज शिकार करने के लिये जाते है और रोज काफी अधिक शिकार कर के वापिस महल में आते है। जिसके कारण उन सब की पत्नियों को अपने पतियों के ऊपर बहुत अधिक अभिमान करती है। लेकिन मैं रोज वहीं घऱ पर रहता था और कभी भी शिकार करने के लिए नहीं जायै करता था। इसलिये मैं आज बहुत अधिक शिकार करना चाहता हुं।
इन सब बातों को सुनने के बाद कर्तार ने कहा कि बहुत सुन्दर बात है, तुम मेरे बाएँ कान को मरोंणों, ऐसा करते ही कर्तार जो गधे के रूप में था तुरंत अपने पुराने शानदार घोड़े के रूप में आ गया और फिर इसके बाद उसने कहा कि अब तुम अपने बायें कान को मरोणों जिससे तुम स्वयं को देखोगे कि तुम कितने शानदार राजकुमार के रूप में होचुके होगे। लड़के ने जैसे ही अपने बायें कान को मरोणा, तो अब वह गरिब, साधारण, कुरुप आदमी के स्थान पर वह तत्काल ही अलौकिक सुन्दर युवा राजतुमार के रूप में परिवर्तित हो चुका था जिसके माथें पर चांद का निशान और ठुड्डी पर तारें का निशान था। फिर उसने अपने शानदार कपड़ों को पहन लिया और कर्तार के पिठ पर काठी को रखा और लगाम उसे सुसज्जीत करने के बाद, अपनी तलवार और बंदुक को ले कर उसकी पिठ पर बैठ कर शिकार करने के लिए निकल पड़ा।
वह घोड़े पर सवार करके काफी दूक और धने जंगल में गया, जहाँ पर वह अपने घोड़ें और हथियार की सहायता से बहुत प्रकार के शिकार को किया जिसमें बहुत से पक्षी और कुछ हिरण वगैरह थे। उसी दिन जंगल में उसके अतिक्त दूसरी छः छोटी राजकुमारियों के पति भी शिकार के लिये आयें हुए, सभी शिकार बड़ी राजकुमारी के पति के कर लेने के कारण उन सब छः राजा के दामादों को कोई भी शिकार नहीं मिला वह सब जंगल में भुखे प्यासे शिकार की तलास में घमु रहें थे, उन्होनें पानी की बहुत तलास किया लेकिन उनको कहीं भी पानी के दर्शन नहीं हुआ और उनके पास अपने खाने के लिये भोजन भी नहीं लिये था। इस समय जंगल में उनसे कुछ ही दुरी पर वह सुन्दर राजकुमार एक छायादार वृक्ष के निचें अपने शिविर में भोजन करने के बाद आराम कर रहा था। तभी वह छः छोटी राजकुमारीयों के पतियों के निगाह उस सुन्दर राज कुमार पर पड़ी, वह सब उस राजकुमार कि पास आया तो देखा कि वह पर भुना हुआ स्वादिष्ट मान्स के साथ पिने के लिये मिठा पानी भी विद्यमान था। जिसको देखकर उन सब के मुह में से लार टपकने लगा।
इसके बाद वह सभी छः राज कुमार अपने आप में बातें करने लगें और एक दूसरें से कहा देखों कितना सुन्दर राजकुमार है, इसके माथे पर चन्द्रमा और ठुड्डी पर तारें का निसान है। हमने ऐसा सुन्दर राजकुमार जंगल कभी भी नहीं देखा है इस जंगल में ज़रूर या किसी औऱ दूसरे देंश से यहाँ पर शिकार करने के लिये आया है। इस के साथ वह सब उस सुन्दर राजकुमार के पास गयें और वहाँ अपने सर झुका कर उस राज कुमार का स्वागत और अभिनन्दन किया और उनसब ने भोजन और पानी की मांग की, इनकी मांग को सुन कर उस सुन्दर राज कुमार नें उन सब से पुछा कि तुम लोग कौन और कहाँ से हो? क्योंकि कोई भी उन छः राज कुमार में से उसको पहचान नहीं रहा था। तब छः राजकुमारों ने उत्तर में कहा कि वह सब इस देश के राजा की छोटी छः राजकुमारियों के पति है और हमनें पूरे दिन शिकार की खोज की लेकिन हमें कोई भी आज शिकार नहीं मिला, हम सब थक चुके हैं, जिसके वजह से हम सब भुख प्यास से व्याकुल हो रहे है।
युवा सुन्दर राज कुमार ने कहा अच्छी बात है, मैं तुम सब को कुछ खाने के लिये और थोड़ा पिने के लिये पेय भी दुंगा लेकिन इसके लिये तुम सब को मेरी एख सर्त को मानना होगा। उन सब छः भुखे प्यासे राजकुमारों ने का हमें आपकी सभी हर प्रकार कि सर्त मंजुर है, क्योंकि यदि हमें पिने के लिये पानी इस थकान और गर्मि में नहीं मिला तो हम सब मर जायेगें। उस राजकुमार ने कहा कि अच्छी बात है इसके लिए तुम सब को अपनी-अपनी पिठ पर इस गरम लोहें की मुहर से दगवाना होगा, जिसके लिये वह सब यह सोच कर तैयार हो गये कि यह दाग हमारें कपड़ें ढक जायेंगा जिससे इसके बारे में किसी को भी पता नहीं चलेगा और यदि हम सब ने पानी नहीं पिया तो यहाँ जंगल में हमारी मौत निश्चित हो जायेगी इस तरह से उन सबने अपने कपड़े उतार कर अपनी-अपनी पिठ पर लाल लोहें से दगवा लिया और बदलें में खाना और पानी को लेकर खा पि कर अपनी-अपनी जान को बचाया। इसके बाद उन सब ने उस सुन्दर राजकुमार को धन्यवाद और नमस्कार किया इसके साथ सब अपने घर के लिये वहाँ से चल पड़े।
वह युवा सुन्दर राज कुमार वहीं जंगल में ठहरा रहा, जब शाम होने को आई तो वह अपने घोड़े पर सवार हो कर को राजा के महल कि तरफ चल पड़ा, लोगों ने भी जब उसको देखा तो कहा कि यह कितना सुन्दर राज कुमार है ज़रूर किसी दूसरें देश से यहाँ आया है। इसके माथे पर चन्द्रमा औऱ तारें का निसान ठुड्डी पर है, लेकिन उसको कोई भी पहचान नहीं रहा था, वह सब सोचने लगे की यह कौन है और कहाँ से यहाँ पर भटकते हुए आगया है? और जब वह राजकुमार महल से कुछ दूसी पर अपने-अपने घोड़े को छोड़ कर राजा के महल के दरवाजें के पास पहुंचा, जहाँ पर उसको दरवानो ने रोक लिया और कहा कि आप कौन है और कहाँ से है? हम सब आपको पहचानते नहीं है इसलिये आप अंदर महल में प्रवेश नहीं कर सकते है।
इस पर राजकुमार ने कहा कि तुम सब मुझको पहचान नहीं रहे हो, मैं बड़ी राज कुमारी का पति हूँ।
उन सब सेवको को कहाँ नहीं वह तुम नहीं हो क्योंकि बड़ी राजकुमारी का पति तो बद्सुरत-सा एक साधरण आदमी है, यद्यपी आप एक अति सुन्दर राजकुमार है, राजकुमार ने कहा मैं वहीं हूँ, लेकिन वहाँ पर ऐशा कोई नहीं था जो उसकी बातों पर भरोशा कर सकें सभी को उसकी बातों पर अविश्वास व्यक्त किया।
फिर नौकरों ने एक साथ पुछा की सच-सच बताओ कि तुम कौन हो औऱ यहाँ तुम किस मकसद से आये है?
इस पर राजकुमार ने कहा सायद तुम सब सायद मुझको नहीं पचान रहे हो तुम यहाँ कि बड़ी राजकुमारी को बुलाओ मैं उससे ही बात करना चाहता हूँ। नौकरों ने बड़ी राजकुमारी को तुरंत वहाँ पर बुला कर ले आयें। वह राज कुमारी वहाँ आतें ही तपाक से कहाँ कि यह आदमी हमारा पति नहीं हैं, मेरे पति इसके जैसा इतनै खुबसुरत नहीं हैं। यह आदमी अवश्य ही किसी देश का राजकुमार है।
फिर राजकुमारी ने उस राजकुमार से कहा कि तुम कौन हौ औऱ तुम यह क्यों कह रहें हो कि तुम हमारे पति हो?
युवा राजकुमार ने कहा क्योंकि मैं हि तुम्हारा पति हुं, मैं सत्य कह रहा हूँ।
राजकुमारी नें उत्तर में कहा कि नहीं तुम सच नहीं बोल रहें हो, सच-सच मुझको बताओ आखिर तुम क्या कहना चाहते हो? मेरा तुम्हारे जैसा सुन्दर अदमी नहीं है, मैं ने एक ऐसे आदमी से विवाह किया हो जो साधारण-सा आम आदमी की तरह से दिखता है।
राजकुमार ने कहा यह बिल्कुल सत्य है, इसके बजाय यह भी सत्य है कि मैं तुम्हार पति हूँ, मैं पहले आनाज व्यापारी का नौकर था और एक रात्री के समय में मैं राजा के बगिचें में आया औऱ गाने लगा, जहाँ पर तुम आई और तुमने मुझसे पुछा कि मैं कौन हुं और कहाँ से आया हुं, जिसका कोई जबाब मैंने नहीं था और ऐसा ही एक दिन, दो दिन, तीन दिन और चौथे दिन मैंने तुमको बताया था कि मैं एक गरिब आदमी हु, यहाँ पर तुम्हारें देश में नौकरी कि तलास में आया हुं और आनाज व्यापरी के यहाँ मैं नौकरी करता हुं, फिर तुमने अपने पिता से अपने विवाह कि इच्छा के बारें में कहाँ, लेकिन तुम अपने पति का चुनाव स्वयं करोगी और जब तुम्हारे बगिचे में सारे राजा और राजकुमार तुमसें विवाह करने के लिये आ कर बैठे हुए थे उनके विच में तुम हाथी पर सवर हो कर आई और चारों तरफ सभी राजाओं को देखा, उसके बाद तुमने मेरे गलें में दो बार अपने हाथ से स्वर्ण हार को डाला था, दोखो य हार अभी भी मेरे गले में वैसे ही पड़ा हुआ है और इसके साथ वब अंगुठी और रुमाल भी मेरे पास इसको तो तुम पहचान सकती है। जिसको तुमने विवाह के दिन मुझको दिया था।
यह सब सुनने बाद वह राजकुमार उस राजकुमार को पहचान गई और उसे अपने पति स्विकार कर लिया और अपने साथ महल में ले कर गई और इतने अधिक सुन्दर पति को पाकर वह बहुत अधिक प्रसन्न हुई. तुम कितने विचित्र किस्म के आदमी हो, उसने राजकुमार अपने पति से कहा। अब तुम ना ही गरिब हो ना ही कुरुप हो, अब तुम बहुत सुन्दर हो और एक राजकुमार की तरह से दिखते हो, मैने इतना अधिक सुन्दर पुरुष अपने जीवन में कभी पहले नहीं देखा है और अब मैं जान चुकी हुं कि तुम मेरे पति हो। फिर उशने ईशवर से प्रार्थना किया की परमेंश्वर ने उसको इतना सुन्दर पति दिया है। जिसके जैसा पुरुष कोई हमारें पूरे देश में नहीं है, जिसके सर पर चन्द्रमा और ठुड्डी पर तारें का निसान है। फिर वह अपने पति को ले कर अपने माता-पिता के पास गई, जिसके देखकर सभी लोग बहुत अधिक प्रसन्न हुए और युवा राज कुमार पहले कि तरह से ही राजकुमारी के साथ उसके महल में रहने लगा और अपने घोड़े कर्तार को महल के स्तबल में रख लिया।
एक दिन राजा अपने सातों दामाद के साथ राजदरार में बैठा हुआ था, जो उस समय पुरी तरह से आदमियों से भरा हुआ था, तभी बड़ी राजकुमारी का सुन्दर राजकुमार पति ने कहा कह की आपके दरबार में छः चोर भी बैठे है, जिसको सुनने के बाद राजा ने कहा-कहा है वह छः चोर? मुझे दिखाओं उनको। वहाँ पर वे सब बैठे हुए है, छः छोटी राजकुमारियों के पतीओं की तरफ इसारें करते हुआ कहा। इसको देखकर राजा और दूसरें लोग भी बहुत अधिक अश्चर्यचकित हुए और उन सबने राजकुमार के बातों पर बिल्कुल भी विश्वास नहीं किया। तब राजकार ने कहाँ कि इन सब के कोट को निकला कर देखें इनके पिठ पर लोहें के मौहर से दाग का निसान मिलेगा। राजा ने उन सब लोगों को अपने-अपने कपड़े उतारने के लिये कहा और राजा और दूसरें लोगों नें भी देखा कि सच में उनके पिठ पर दाग के निसान थे। जिसके कारण वह छः के छः राजकुमार बहुत अधिक शर्मिन्दा हुए. लेकिन यह सब देख कर बड़ा राजकुमार बहुत अधिक प्रसन्न हुआ। क्योंकि उसको वह सब याद था कि किस प्रकार से उसका मखौल और मजाक उड़ाकर यह लोग उसके ऊपर हसते थे जब वह बदसुरत और सामान्य-सा दिखने वाला आदमी के जैसा था।
जब कर्तार जंगल में रहता था और राजकुमार की जब शादी नहीं हुई थी, कर्तान ने राजकुमार को उसके जन्म कि सारी कहानी के बता दिया था और उसके माँ के साथ क्या हुआ था, औक उससे कहा था कि जब तुम्हारा विवाह हो जायेगा तो मैं तुमको वापिस तुम्हारें पिता के देश में ले कर चलुगा। तो इस तरह से जब दो महिने वित गये और जब राजकुमार ने अपने अपमान का बदला अपने दूसरे साढ़ुओं से ले लिये तो कर्तार ने राजकुमार से कहा कि अब समय आ चुका है कि तुमको मैं तुम्हारें पिता के देश में ले कर चलु। इस लिये तुम यहाँ के राजा से आज्ञा ले-ले जिससे मैं तुमको तुम्हारें पिता के राज्य में ले कर चलु और तुमको बताउंगा कि वहा अपने पिता के देश में पहुच कर तुमको क्या करना है?
राजकुमार हमेंसा वहीं करता था जो उसका घोड़ा कर्तार उससे करने के लिए कहता था। इस तरह से वह अपनी पत्नी राजकुमारी के पास गया और उससे कहा कि वह अपने पिता के देश में जा कर अपने माता पिता को देखना चाहता हैं। उसकी पत्नी ने उससे कहा यह तो बहुत अच्छी बात हैं, इस तरह से उसने अपने पति को सहमती दे दिये कि वह अपने पिता के देश में जा कर उनको देख सकता है। राजा ने ऱाजकुमारी के साथ राजकुमार के अतिरिक्त बहुत से सुन्दर घोड़े और हाथियों के साथ कई प्रकार के दूसरे उपहारों को भी दे कर, अपने कुछ सिपाहियों को उनकी रक्षा के लिए दे कर राजकुमार के कि विदाई अपने देश की। इस प्रकार से राज कुमारी सभी वस्तुओं और अपने सभी आदमी के साथ काफी दूर कई सौ मिलों तक की यात्रा की और जब वह अपने पिता के देश में पहुंच गया, जहा पर उसका दाई ने उसको बक्सें में बन्द करके जमिन में दफनाया था, जब उसका जन्म हुआ था और उसके कुत्ते शंकर और उसकी गाय ने उसको निगल कर उसकी जान को कई बार बचाया था, उस स्थान पर पहुंच कर वहीं पर उसने अपने शिविर को लगाया।
जब राजकुमार के राजा पिता औऱ माली के पुत्री के पति ने राजकुमार के शिविर को देखा, वह बहुत अधिक सतर्क हो गया और उसने विचार किया की कोई बड़ा राजा आया है जो उसके साथ युद्ध करना चाहता है। इसलिए राजा ने अपने एक कर्मचारी को उस सिविर के पास भेजा यह जानने के लिए कि यहाँ पर आकर किसनें अपने शिविर लगाया है और उसके यहाँ आने का मकसद क्या है? यह जानने के लिए. जब राजा का कर्मचारी राजकुमार के शिविर में आया उससे पुछ ताछ करने के लिए तो राजकुमार ने उस कर्म चारी को एक पत्र राजा के नाम से लिख कर देदिया, जिसमें उसने लिखा था कि आप एक महान राजा है, आपको मुझसे डरने कि ज़रा भी ज़रूरत नहीं मुझे अपने पुत्र के समान ही समझें, मैं यहा पर आपसे युद्ध करने के लिए नहीं आयया हुं। मैं एक देश का राज कुमार हूँ यहाँ पर मैं आपको देखने और आपसे बातचित करने के लिए आया हुं। मैं आप सबको एक बड़ा भोजन का दावत देना चाहता हूँ। जिसमें आप अपने पुरें देश के सभी आदमियों के साथ हमारें निमंत्रण पर आईयें, जिसमें सभी आदमी, औरत, युवा, वृद्ध, गरिब, अमिर, हर जाती के लोग और सभी बच्चें, फकिर, साधु, संत और आपके सभी शिपाही भी सामिल हो। आपको सभी लोगों को लेकर यहाँ पर हमारे पास मात्र एक सप्ताह के लिए आना है और मैं सभी को बोजन काराउंगा।
इस पत्र को देख कर राजा बहुत अधिक प्रसन्न हुआ और उसने अपने सभी आदमियों, औरतों, सभी बच्चों को, हर जाती के लोगों के साथ सभी फकिर, साधु और अपने सिपाहियों को आदेश दिया कि सभी लोग उस महान राजकुमार के भोजन भण्डारें में उपस्थित हो कर उसके यहाँ पर एक सप्ताह तक भोजन का अवश्य आनन्द ले, जिसके लिए राजकुमार ने उन सब को आमंत्रित किया है। इस तरह से सभी लोग उस राजकुमार के यहाँ उसके शिविर में पहुंच गये जिसमें राजा भी अपने चार रानी पत्नीयों के साथ भी पहुंचा, सब वहाँ पहुंच गये लेकिन उसमें वह माली की पुत्री उस राजकुमार की माँ नहीं थ, जिसको उन सब के विच में राजकुमार की निगाह बड़ी बे सब्री से तलास रही थी। क्योंकि किसी ने भी माली के पुत्री को भोजन भण्डारें में आने के लिये निमन्त्रित नहीं किया था।
जब सभी लोग वहाँ राजकुमार के शिविर में एकत्रित हो गयें तो राज कुमार नें जब अपने माँ को वहाँ पर नहीं देखा तो, उसने राजा से पुछा कि क्या यहाँ पर आपके राज्य के सभी लोग हमारें भोजन भण्डारें में आ चुके है?
राजा ने कहाँ हा सबलोग आचुके हैं।
राजकुमार ने कहाँ आप इसके लिये पूर्ण रूप से आश्वस्थ है ना।
राजा ने कहाँ विल्कुल अवश्य सभी लोग यहाँ पर आचुके है।
राजकुमार ने कहाँ मुझे पुर्ण विश्वास है कि एक औरत यहाँ पर आपके राज्य की यहाँ पर नहीं आई है, जो आपके मली की पुत्री है, जो कभी आपकी पत्नी थी जो अब आपके महल की नौकरानी है।
राजा ने कहा कि मैं उसको भुलगया हुं, फिर राजकुमार ने अपने नौकर को आदेश दिया की तुरंत जा कर एक अच्छी पालकी मैं बैठा कर यहाँ पर लाया जायें, वे सब सेवक और सेविका राजा के महल में गयें और उस माली की पुत्री को अच्छी तरह से नहला कर सफ सुथरें सुन्दर परिधान और आभुषणों से सुसज्जीत करके पालकी में बैठा कर राजकुमार के शिविर में ले कर आये।
जब राजकुमार के सेवक माली के पुत्री को ले कर उसके पास आयें, तो राजा ने विचार किया यह राजकुमार कितना अधिक सुन्दर है जिसके माथें पर चन्द्रमा और ठुड्डी पर तारें का निसान है, इस तरफ उसका ध्यान गया और उसे आश्चर्य हुआ कि इसका किस देश में जन्म हुआ है।
राजकुमार स्वयं पालकी के पास गया और उसने माली की पुत्री का काफी स्वगत और अभिनंदन करके उसके चरणों को स्पर्श करके उसे पालकी से निचे उतारा और उसको लेकर अपने तंबु में गया, जिसको देखकर राजा की दूसरी चार रानियाँ ईर्श्या से कुढ़ने लगी और बहुत अधिक आश्चर्य के साथ वह क्रोध से लाल होगई. क्योंकि उनको याद आया कि जब वह यहाँ पर आई थी तो राजकुमार ने उनका किसी प्रकार का आदर सत्कार नहीं किया था, नहि उनके तरफ किसी प्रकार का ही उसने ध्यान ही दिया था। लेकिन जिस प्रकार से वह इस माली की पुत्री का बहुक अधिक प्रसन्नता के साथ आदर सत्कार प्रेंम पूर्ण हो कर रहा था।
जब वह खाने के लिए बैठ हुए थे तब फिर एक बार राजकुमार ने माली के पुत्री को विशेष आदर के साथ भोजन करा रहा था और उसको सबसे सुन्दर भोजन और सबसे सुन्दर बर्तनों में स्वयं परोश रहा था। यह देख कर माली के पुत्री उसका उदारता को देख कर बहुत अधिक प्रसन्न हुई और उसने विचार किया कि यह राजकुमार कितना अधिक सुन्दर है और यह कौन है? जिसके माथें पर चन्द्रमा और ठुड्डी पर तारें का निसान हैं। मैंने ऐसा सुन्दर राजकुमार अपने जीवन में कभी नहीं देखा है, यह किस देश से यहा पर आया हुआ है?
इस प्रकार से भोजन भण्डारे का खातें पितें जब दो या तीन दिन बित गया और सारें समय राजा और उसके सभी आदमी उस राजकुमार के बारें में विचार करते औऱ बातें कर रहें थें कि यह कौन है? और कहाँ से यह सुन्दर राजा घुमतें हुए यहाँ पर आ पहुंचा है?
एक दिन राजकुमार ने राज से पुछा क्या आपका कोई पुत्र नहीं है, राजा ने कहाँ नहीं मेरा कोई पुत्र नहीं है।
राजकुमार ने कहाँ क्या आप जानते कि मैं कौ हूँ?
राजा ने कहाँ कि नहीं मुझे बताओं कि तुम कौन हो और तुम यहाँ पर कहाँ से आयें हो?
राजकुमार ने कहा कि मैं आपका पुत्र हुं और माली की पुत्री ही मेरी माँ हैं।
राजा ने उदासी के साथ अपने सर को झटकते हुए कहा कि तुम मेरे कैसे पुत्र हो सकते हो जबकी मेरी तो कोई कभी संतान ही नहीं हैं।
राजकुमार ने कहाँ लकिन मैं आपका ही पुत्र हुं, आपकी कुरुप चार रानियों नें आपसें कहा था कि माली की पुत्री नें इट पत्तथर को जन्म दिया था, यह उन सब ने झुठ आपसे कहा था और उन सबने मुझें मारनें का प्रयाश किया था।
राजकुमार की बातों पर राजा को भरोशा नहीं हुआ, राजा ने कहाँ कि मैं चाहता हुं कि तुम मेरे पुत्र के समान रहों, लेकिन यहीं सत्य है कि मेरी कोई भी कभी संतान नहीं थी। राजकुमार ने कहाँ क्या आपको अपने कुत्तें शंकर और अपनी गाय शुरी के बारें में याद हैं और आपने किस प्रकार से उनकी हत्या को करा दिया था। क्योंकि आपकी पत्नियों ने उनकों मारने के लिए कहा उसके पिछे कारण मैं था क्योंकि वह मुझें मारना चाहती थी और वह राजा को लेकर अपने घोडें कर्तार के पास गया और कहाँ क्या आप इस घोड़े को पहचानते हैं और यह किसका है?
राजा ने कर्तार को ध्यान से देखा और उसको पहचान गये और कहा कि यह तो मेरा घोड़ा कर्तार है। राजकुमार ने कहाँ कि आप सच कह रहें हैं। क्या आपको याद नहीं है? कि किस तरह से यह अपने पिठ पर बैठा कर मुझको आपके अस्तबल से भागा था? फिर कर्तार ने राजा से कहा कि सच में राजकुमार आपका ही पुत्र है और सारी कहानी राजकुमार के जन्म की राजा को बताया और अपने कहानी तब से अब तक क्या-क्या उसके साथ हुआ है। जब राजा को पता चला कि यह सुन्दर राजकुमार सच में उसका अपना ही पुत्र है तो वह बहुत अधिक प्रसन्नता से आनन्दित हुआ। उसने राजकुमार को अपने गलें लगा कर रोते हुए चुमने लगा आनन्द के साथ।
फिर राजा ने राजकुमार से कहाँ कि तुम्हें अब निश्चित रूप से चल कर हमेशा मेरे साथ में मेरे महल में रहना चाहियें।
राजकुमार ने कहा नहीं मैं ऐसा नहीं कर सकता हुं, मैं आपकें साथ आपके महल में चल कर नहीं रह सकता हुं, मैं यहाँ पर केवल अपनी माँ को अपने साथ लेजानें के लिये आया हुं और अब मैं उसको पा लिया हैं, मैं अब उसको लेकर अपने शशुराल में राजा के महल में रहुउंगा, मैंने राजकुमारी से विवाह कर लिया है और मैं अब वहीं पर उसके पिता के साथ रहता हुं।
राजा ने कहा कि अब मैंने तुमको पा लिया है और यहाँ से अब तुमको नहीं जाने दुंगा, तुम और तुम्हारी पत्नी अब अपनी माँ के साथ मेरें महल में ही रहोगें।
राजकुमार ने कहाँ ऐसा कभी नहीं हो सकता है, जब तक कि आप अपनी चार रानियों की हत्या नहीं कर देते हैं, यदि आपने ऐसा किया तो अवश्य ही हम आपके साथ आपकें महल में रह सकते है।
इस तरह से राजा ने अपनी चारों रानियों कि हत्या करा दिया और इसके बाद राजुकुमार और उसकी पत्नी अपनी माँ माली की पुत्री के साथ अपने पिता राजा के साथ महल में गये और आनन्दपूर्वक रहने लगें और राजा ने अपने शुन्दर पुत्र के लियें परमेश्वर को धन्वाद दिया और किस प्रकार से वह अपनी चार कुरुप रानियों कि बातों में आकर इतने दुःख पुर्ण जीवन से मुक्त हुआ।
कर्तार भी अब राजकुमार के साथ महल के स्तबल में ही रहने लगा और कभी भी लौट कर परियों के देश में वापिस नहीं गया।
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