सूर्य के वंशज (एक प्रेम कथा ) Part-4
(लेखक मनोज पाण्डेय)
कमल की भूमि में आत्मा के समुद्र की थाह
उमर सिंह समुद्र के पानी से ऐसे निकला जैसे कोई विशाल पक्षी अपने पंखों को फैला कर जमीन से आकाश में उड़ने के लिए निकलता है और उसने समुद्र के मध्य में सूर्य के कमल की भूमि को देखा और वह आनन्द और से खुशी से चिल्लाने लगा और उसी दिशा में वह तैरना शुरु कर दिया और दिन भर तैरता रहा, और अन्त में बड़ी कठिनाई से तैरते हुए समुद्र के किनारे पर पहुंच गया। तब तक वह थक कर पुरी तरह से चुर हो चुका था और किसी तरह से वह रेंगते हुए पानी से बाहर निकला, उस समय सूरज अस्त हो रहा था और उसके ऊपर उसकी थकान भारी पड़ रही थी। इसलिए वह वही समुद्र के किनारे पर ही लेट गया, क्योंकि उसको निंद आ रही थी और पुरी रात्रि पूरे दिन तक वही सोया रहा और जब आकाश में पूर्ण चंद्रमा का दुबारा उदय हो गया, फिर वह निंद से उठा और उसने देखा कि अब तक वह वहीं शांत पड़ा था।
और वह अपनी आंखों को
मलते हुए खड़ा हुआ और चिल्लाया, हाँ
अब मेरी यात्रा का अंत करीब आ गया है और यात्रा की सारी भयावह पीड़ा स्वप्न की तरह
खत्म हो चुकी है, और यह सूर्य के कमल की भूमि एक आश्चर्यमय स्थान है, जिसके बारे में अब तक इन्द्रियालय के किसी
व्यक्ति को कुछ भी जानकारी नहीं है। इसलिए अब मैं यहाँ पर पहुंच चुका हूं, अब मुझको यहाँ करने के लिए कुछ भी नहीं हैं, मुझे जितना जल्दी हो यहाँ से वापिस जाना चाहिए, मुझे इसको पाने की कामना थी और मैं पहुंच कर कहूंगा
की मैंने सूर्य के कमल भूमि को देख लिया है, लेकिन
मेरी बातों पर कौन विश्वास करेगा? मेरे
लिए यही अच्छा होगा कि मुझे यहाँ पर क्या-क्या है? इसके बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त करनी चाहिए और इसकी क्या
विशेषता है उसको जानना चाहिये, जिससे
मुझे दोबारा धोखेबाजों के धोखे का शिकार नहीं होना पड़ेगा।
इसलिए वह समुद्र के
किनारे से ऊपर सूर्य के कमल की भूमि के शहर की गलियों की तरफ चल दिया, जो उसके सामने थी, चंद्रमा के श्वेत प्रकाश में काले और सफेद रंग
के प्रतीत हो रहे थे, जहाँ पर उसको कोई भी व्यक्ति नहीं
मिला। वह शहर पुरी तरह से खाली और जैसे बंजर भूमि की काली कोख हो और पत्थर की तरह
से शांत मृत्यु के अवतरण आत्मा की तरह की से प्रतीत हो रहा थ और वह वहाँ पर ऊपर नीचे
ऐसे ही घुमक्कड़ों की भाती घूमता रहा, अन्त
में वह एक विशाल दरवाजे के पास पहुंच कर खड़ा हो गया, जैसे कि वह दरवाजा उससे कह रहा हो की अन्दर
आइये, इसलिए वह दरवाजे के अन्दर चला गया और घूमते
हुए काफी अंदर चला गया, जहाँ पर केवल उसके पैरो की गुंज उसके
कानों में पड़ रही थी, इस तरह से उस महल एक कमरे से दूसरे कमरे
में। फिर अचानक एक दूसरे दरवाजे के अंदर प्रवेश किया, जो सभी कमरों में वह कमरा बहुत बड़ा था, एक विशाल हाल के समान, जिसके दीवाल की बड़ी-बड़ी खिड़कियों से चंद्रमा
की रोशनी हाल में झांक रही थी। हाल कपूर की तरह से ठंण्डा और शान्त था, जिसकी छत पर चंद्रमा के समान श्वेत झुमरें
पत्थर की लटक रही थी। जिसमें से धीरे-धीरे बूंद - बूंद कर के चंद्रमा का अमृत हाल
की जमीन पर टपक रहा था और उस हाल के अंत से काफी दूरी पर एक सोफे पर उसने देखा कि
एक शरीर पड़ी थी जिसको सफेद चद्दर से ढका गया था।
फिर उसने अपने आप से
कहा, यह आश्चर्य क्या है? और कौन यहाँ पर से इस तरह से हो सकता है, अकेले इस खाली हाल में? और धिरे-धिरे चलकर वह उसके पास गया, खिड़कियों से आने वाले प्रकाश से दीवाल की छाया
में जब तक की वह हाल के अंत तक नहीं पहुंच गया और सोफे के करीब जा कर वह खड़ा हो गया
और उसने उस शरीर पर पड़े चद्दर के एक कोने को पकड़ कर उस शरीर के चेहरे से ऊपर
उठाया और यह कोई और नहीं यद्यपि श्री का चेहरा था।
जिसको देख कर उमर सिंह
बहुत अधिक आश्चर्यचकित हुआ और उसके होंठों से रोने की आवाज हवा के साथ निकल कर हवा
में बहने लगी और उसने अपनी तलवार को क्रिस्टल तल पर दुर्घटना ग्रस्त होने दिया और
उसने खुद से कहा क्या यह एक सपना है? या
यह एक भ्रम है? लो! मैंने उसे इन्द्रालय में जीवित
छोड़ दिया था और मैं उसे फिर से मिल गया, इस
खाली हाल में मृत पड़ी है और यहाँ! जो अंतरिक्ष के अंत में तीनों लोकों के ऊपर
उपस्थित है।
इस तरह से वह दीवार पर
एक तस्वीर की तरह खड़ा था,
श्री के चेहरे को चुप्पी से देख रहा था, जबकि रात अपनी खुमारी के नशे में थी और चंद्रमा
अपनी यात्रा कर रहा था और चांदनी से अमृत धीरे-धीरे जमीन पर गिर रहा था, जिसकी छाया फर्श पर चारों ओर फैल रही था और अंत
में, थोड़ी देर के बाद, वह खुद के होश में आया और अपने हाथों से चद्दर
के द्वारा उसके चेहरे को फिर से पहले की भाती ढक दिया और वह नीचे झुक कर अपनी
तलवार को उठाया और धिरे-धिरे उस विचित्र हाल से बाहर निकलकर मार्बल के पत्थरों से
बने तालाब की सिढीयों पर बैठ गया, उसने
महसूस किया जैसे वह स्वयं स्वप्न में चल रहा हो और खुले मैदानों के पार उसने देखा
नीले समुद्र को जो श्री के आंखों के समान थे, उसकी
याददाश्त एक बार फिर जागृत हो गई, जिसमें
वहीं ध्वनि गुंज रही थी। जिसको उसने इन्द्रालय में छोड़ा था, जिसमें लोग नगाड़े बजा-बजा कर चिल्ला रहे थे कि
किसी ने सूर्य के कमल की भूमि को देखा हो तो राजा के पास आये और उसके राज्य के आधे
हिस्से के साथ राजा की पुत्री से विवाह करें और उसने महसूस किया की उसकी आत्मा में
वह सब कुछ भर गया हैं। जिसको उसने कई साल पहले अलगाव के अनन्त दूरी पर छोड़ दिया, इतनी दूरी जितनी दूरी पर पृथ्वी से सूर्य उगता
है।
फिर भी उमर सिंह अपने
स्थान से उठ कर खड़ा हो गया और अपने हाथों से अपने सर को झकझोरने का साथ जोर से
चिल्लाते हुए कहा, मैं नहीं कह सकता की यह स्वप्न है या
यह मेरा यथार्थ हैं। लेकिन यह अवश्य मैं जानता हु की मुझको यहाँ से बिना किसी देरी
को किये इन्द्रालय वापिस जाना होगा, इन
सब को पार कर के जो यहाँ से कहीं और है, जिसके
लिए मुझे फिर से समुद्र को पार करके उससे आगे भयानक रेगिस्तान और अंधेरे जंगलों के
परे जा कर अपनी कहानी राजा से कहनी है और अपनी दुल्हन के लिए दावा करना है। लेकिन
सबसे पहले मैं इस विचित्र तालाब में स्नान करूंगा। क्योंकि मेरा दिल भारी हो रहा
है और मेरे सिरदर्द भी है,
जो मैंने रात के दौरान सहन किया है और
जो कुछ मैंने देखा है।
और वह तालाब की सिढ़ियों
से एक-एक कदम नीचे तालाब के पानी में चला गया और उसमें डुबकी लगाया।
और जैसे ही वह तालाब के
पानी से अपना सर बाहर निकाला, उसके
कानों में साफ स्पष्ट और तेजी से ध्वनि गुंजने लगी, जिसमें नगाड़े को बजा कर उसके बादक कह रहे थे, की जो कोई उच्च जाती का आदमी सूर्य के कमल की भूमि
को देखा हो, वह राजा के पास आये और उसके आधा राज्य
के साथ उसकी पुत्री से विवाह करें और उसने चारों तरफ देखा, उसे आश्चर्य हुआ की वह उस समय इन्द्रालय के
राजा के तालाब में ही वह खड़ा था, जहाँ
से उसने कई साल पहले उस सूर्य के कमल की भूमि को तलाशने के लिए चला था। फिर उसे
अद्भुत आश्चर्य के साथ उसके शरीर में शिहरन-सी दौड़ने लगी और अंत में उसके सर के
बाल खड़े हो गये और वह तालाब में एक पत्थर की शिला के समान खड़ा था। जिसके शरीर के
साथ पानी बह रहा था। जिसके कारण संदेह से उसकी आत्मा घबरा रही थी और उसने अपने आप
से कहा वास्तव में यह इन्द्रालय ही है, या
केवल यह मेरा स्वप्न हैं और सूर्य के कमल के भूमि के साथ मेरे कठिन परिश्रम का
क्या हुआ? मैं इस समय इन्द्रालय में हूं। क्योंकि
मेरे कानों में वहीं शोर गुल और नगाड़े की ध्वनि पहले के समान गुंज रही है, जिसको मैंने कई साल पहले छोड़ कर अपनी यात्रा
पर चला था।
और अचानक उसके होंठ
चिल्लाने लगे की ठीक है, अब मैं राजा के पास जाऊंगा, क्योंकि अब समय आ गया है कि अपना दावा पेश करके
उनसे अपना पारितोषिक प्राप्त कर लूं, और कुंद कर तालाब के पानी से बाहर निकला, सिढ़ियों पर पागलों की तरह से दौड़ते हुए, उन चिल्लाने वाले लोगों के पास में गया और उनसे
कहा कि इस खाली नगाड़े के साथ इस तरह से बेकार का चिल्लाने बंद करो और मुझे पकड़
कर जल्दी ही राजा के पास ले चलों, क्योंकि
मैंने सूर्य के कमल की भूमि को देख लिया है। नगाड़े को बजाने वाले लोगों ने उसको
उस समय नहीं पहचाना, लेकिन वे सब यह सुनते ही खुशी और आनन्द
से उछलने लगे, क्योंकि उनका इस प्रकार से नगाड़ा को
बजा-बजा कर चिल्लाना उनके जीवन के दुःख का बहुत बड़ा कारण बन चुका था। इस प्रकार
से उन्होंने तैयारी की उसको अपने साथ लेकर राजा के पास जाने की, उन्होंने अपनी तालियों को बजाकर कहा दुबारा
जल्दी करो, बिना किसी देरी को किये, जल्दी और बहुत शीघ्र करो अन्यथा मेरा हृदय फट
जायेगा, जिसके लिए मुझे अलगाव के कष्ट को झेलना
पड़ेगा, जब एक होना बहुत दूर प्रतीत हो रहा हो, सरलता के साथ, लेकिन अब वह पल आ चुका है। कि हमारे एक होने का समय इतना पास आ गया
है, मेरा हृदय टूट रहा है हर पल मुझे ऐसा
लग रहा हैं जैसे युगों का हो, अगर
तुम सब ने और अधिक देरी की तो मैं उसको सह नहीं पाऊंगा। तब उन नगाड़े वादकों ने
बहुत शीघ्रता के साथ जितना जल्दी उनके लिये संभव था, वह उसको ले कर राजा के पास गये।
लेकिन जब राजा ने उमर
सिंह को देखा, तो वह उसको पहचान गया, वह उनको बहुत कमजोर दिखाई दे रहा था, जैसे सब कुछ बदला हुआ था और उन्होंने अपने आप
से कहा, निश्चित ही यह आदमी बहुत ही कठोर किस्म
का हैं, जो मेरे पास पहले मुझको धोखा देने के
लिए आया था और अब दुबारा फिर आ गया हैं और उन्होंने उमर सिंह से कहा धोखेबाज मैं
तुमको जानता हूँ, सावधान हो जाओ, इस बार तुम्हारे पास बचने का कोई रास्ता नहीं
होगा, फिर उमर सिंह ने राजा से कहा ठीक है, आपको जैसा ठीक लगे वैसा ही करना, लेकिन उससे पहले मुझे अपनी पुत्री से मिलने का
एक मौका अवश्य दीजिये और जितना जल्दी हो सके उतना जल्दी कीजिये, क्योंकि सच में मैंने सूर्य के कमल की भूमि को
देख लिया हैं। इसलिए मुझे अपनी शर्त के अनुसार मौका दीजिये अपनी सत्यता क सिद्ध
करने का, इसके बाद उमर सिंह जैसे ही आगे कुछ
बोलने वाला हुआ, तभी अपरिवर्तनीय अधीरता और व्यग्रता ने
उसको चारों तरफ से घेर लिया और वह क्रोध में आवेशित हो कर अपने पैर को जमीन पर
पटकता है, जिससे उसकी आंखों में आंसू आ गये और
अचानक वह हँसने लगा और राजा ने बड़ी जिज्ञासा से उसके चेहरे को देखा, जिसमें उनको आश्चर्य प्रतीत हुआ, राजा ने अपने मन में विचार किया, या तो यह आदमी पागल हो चुका है, अथवा इसने सच में सूर्य के कमल की भूमि को देख
लिया है। फिर भी राजा ने उमर सिंह से कहा कि अब तुम याद रखना जो तुम हमारे साथ झूठ
का खेल - खेल रहे हो, इसके लिए तुम्हें निश्चित रूप से
मृत्यु को पुरस्कार के रूप में तुमको मिलेगी। उमर सिंह ने कहा आप अपनी पुत्री से
मुझको मिलने की अनुमति दीजिये और आपकी जैसी इच्छा हो मृत्यु दे दीजिये।
तब राजा ने अपनी पुत्री
श्री के पास उमर सिंह को भेजता है, कुछ
देर के बाद श्री उमर सिंह से मिलने के लिए आती है।
लेकिन जैसे ही उमर सिंह
ने श्री को अपने पास आते हुए देखा, वह
तेजी से सिसकने और उसको देख कर घबरा गया और जैसे श्री ने उमर सिंह की आंखों में भय
को देखा, तत्काल उमर सिंह स्वयं को उसके आंखों
के सागर में अपनी आत्मा के साथ डुब गया और तत्काल वह अपनी दुष्कर यात्रा की पीड़ा
और कठिनाई को भी भूल गया और प्राप्त पर लालसा की भूख, जुदाई के दर्द के साथ आतंक से उस पल मुक्ति की
अमृत असामयिक मौत के समान प्रतीत हुई और श्री ने उसकी तरफ देखा, जैसे ही वह उसके सामने आकर खड़ी हुई और तत्काल
वह उसको पहचान गई और उसका हृदय नगाड़े के समान उसके शीने में धड़कने लगा और वह सुन्न
हो गई, भय और संदेह के कारण, जिसके कारण वह उमर सिंह से कुछ भी नहीं बोल
सकी। थरथराते हुए दुबारा वह सब कुछ भूल गई, अपने
पिछले जन्म के प्रेमी और उसकी यादों को भी, जिससे
उसने अपनी आत्मा की आवाज को दबा दिया और फिर उससे स्वयं को आतंकित महसूस किया, उसकी गुस्ताखी और उसकी दरिद्रता के लिये, उसका तिरस्कार किया, पहले की तुलना में इस बार उमर सिंह दस गुना
दुबला हो चुका था और उसके शरीर पर वस्त्र के नाम पर कुछ चिथड़ों के कुछ भी नहीं था
और उसने लंबे समय तक बिना कुछ बोले ही उसको देखती रही और अंत में उसने कुछ बोलने
की इच्छा जाहिर की और धीरे से कहा कि तुम कैसे मिट्टी के लोदें के बने हुए और अजीब
जीवन के यात्री हो? और तुम फिर हमारे पास एक नई कहानी बना
कर आ गये, परमेश्वर करें यह तुम्हारी कहानी
तुम्हारे लिए शुभ को लाने वाली हो, क्योंकि
इसके बाद तीसरी झूठ बोलने के लिए तुम जीवित नहीं बचोगे।
लेकिन उमर सिंह अपनी भूखी
आंखों को लेकर उसकी तरफ झुक गया, क्योंकि
उसकी पिछली जुदाई के प्रायश्चित के दुःख को उसकी आत्मा को याद आ चुका था, क्योंकि उसकी आत्मा एक भूले हुए अतीत की
पुनरावृत्ति के लिए उत्सुक थी और जब तक उसकी नज़र रुक गई, तब तक उसने अपनी तीव्र बुद्धि के साथ उसको देखा, क्योंकि उसकी आत्मा को उसके साहस और उसके प्यार
में महारत हासिल कर लिया था और दो बार उसने बोलने की कोशिश की और दोनों बार वह
असफल रहा, जबकि उसकी आँखों से आँसुओं का फौवारे
जमीन पर गिरने लगा और अंत में वह स्वयं के भावों को नियंत्रित करने में सफल रहा और
उसने कहा कि प्रिये अब तुम्हारी जैसी इच्छा हो तुम वैसा ही व्यवहार मेरे साथ करो
और जैसी तुम्हारी इच्छा हो उस प्रकार की मृत्यु मेरे लिए निश्चित करो, लेकिन मेरे मरने से पहले मुझको यह अवश्य बता दो, यह कैसे संभव हुआ? की तुम यहाँ पर मेरे सामने जीवित हो, जबकि मैं तुम्हारी शरीर को सूर्य के कमल की भूमि
पर चांदनी रात में सोफे पर मृत देखा था।
फिर श्री ने एक वीभत्स चीख
मारते हुए अपनी बांहों को फैला कर उमर सिंह की तरफ बढ़ी और उसने कहा हाँ यह सत्य
है, की इस आदमी ने सच में सूर्य की कमल की
भूमि को देख लिया है और अचानक, विस्मृति
का पर्दा एक पल के लिए फिर से ताजा हो गया था और उसने अपने पूर्व जन्म की एक झलक
पायी और फिर उसको अपने पति के बारे में पता चल गया। तुरन्त वह उसके पास भाग कर आ गई
और अपनी बाँहों में उमर सिंह को लपेट लिया। और अपनी छाती पर लगा लिया, और एक महान
पेड़ पर जैसे एक चमेली की बेल की तरह उसके शरीर से चिपक गई। जिसके साथ आँसुओं की
बारिश उसकी आँखों से गिरने लगी और वह खुशी से हँसने लगी और उसने अपने चेहरे को
उसके हाथ से सहारा दिया और कहा बहादुर और क्या आप उस दूर कमल भूमि पर अकेले जाने
की हिम्मत कर लिया? आखिर में इस जीवन में आप वास्तव में
मेरे पति हैं और अब, एक लंबे समय के बाद अलगाव, मैंने तुम्हें एक पल के लिए पाया है और तुमने
मुझे प्राप्त किया है। केवल वही खोज करें और हम एक बार फिर मिलेंगे और पारस्परिक
आनंद के अमृत की एक और बूंद का स्वाद लेंगे, इससे
पहले कि हम मर जाए, क्योंकि ऐसा होता है। मैं कहती हूँ, याद रखो हम फिर से ज़रूर एक पल के लिए मिलेंगे।
फिर वह उठ कर खड़ी हो गई
और उसने उमर सिंह को पीछे की तरफ धक्का दे दिया, लगभग वह गिरने वाला ही था, किसी
तरह से उसने स्वयं को सम्हाला और दूसरे लोग वहीं पास में खड़े होकर उन्हें आश्चर्य
से देख रहे थे, जैसे ही लोग उसको देख रहे थे उन्होंने
देखा कि उसकी खुबशुरती पहले से अधिक बढ़ गई थी, जैसे
पूर्णमासी की चंद्रमा के समान हो और इस प्रकार चमक रही थी जैसे कोई बहुमूल्य रत्न
हो, उसकी आंखों से किसी दिव्य प्रकार की
प्रकाश चारों तरफ फैलने लगा था, उसकी
आंखों से निकलने वाले प्रकाश से पूरा कमरा जगमगाहट के साथ भर गया था और उस कमरे की
दीवालों पर इस प्रकार से प्रकाश की किरणें पड़ रही था जैसे कि सूर्य अस्त हो रहा
हो, यह सब देख कर राजा पूर्ण रूप से आनन्द
से भर गया और उसने सोचा कि अब वह विवाह की लिए तैयार हो चुकी है और अब मेरा जन्म
सफल हो गया है। लेकिन ज्योतिषियों ने एक-दूसरे को निराशा के साथ देखा, क्योंकि उन्हें पता था कि वह मरने वाली थी।
इसलिए वह सब उसको ध्यान से देख रहे थे, अचानक
वह नीचे जमीन पर गिर गई और उनके सामने ऐसे पड़ी थी जैसे कमल का फूल अपनी डाली से
गिर कर मुरझा जाता हैं, इस प्रकार से वह निर्जीव बन कर जमीन पर
पड़ गई।
फिर ज्योतिषियों ने
उदासी से कहा, इसने अपनी शरीर को त्याग दिया है, और
शरीर को छोड़ कर कही और जा चुकी हैं, राजा
ने जब उसको इस तरह से गिरते हुए देखा और लोगों का बातों को सुना, वह अपनी सोचने समझने की क्षमता को तत्काल खो
दिया और उसके पास में ही वह भी गिर गया, लेकिन
उमर सिंह वहाँ से तत्काल खड़ा हुआ और महल को छोड़ कर बाहर गलियों में चला गया।
और वह एक शराबी आदमी की
तरह सड़क पर इधर उधर घूमने लगा और लोगों ने इस तरह उसको देखा, जिस पर उन सब को अलौकिक आश्चर्य हो रहा था और
मजाक में वे सब कह रहे थे,
देखो देखो इस बिगड़े राजपूत को, जो राजा की पुत्री से विवाह करने के लिए आया था, जिसकी निकृष्ट आंखों ने उसको मार दिया, लेकिन इसने कुछ भी नहीं सुना सिवाय श्री के नाम
के और कुछ भी नहीं देखा सिवाय उसकी आंखों के और लड़खड़ा कर चल रहा है जैसे कि कोई
कठपुतली की तरह से हो, उसके पैर बिना किसी लक्ष्य के बस चले
जा रहे थे, जैसा की वह पहले तालाब के किनारे पहुंचा
और उसमें डुब गया, उसे कुछ भी नहीं पता था कि वह कहाँ पर
है? और उसने क्या किया है? वह इस संसार के कोने में अनसुलझी पहेली की तरह
से भटक रहा था। जैसे एक आदमी का जिसका सारा संसार खत्म हो चुका हो और उसकी शरीर के
सारें तत्व काम करना बंद कर दिया हो, वह
अकेले खाली रिक्त स्थान में पड़ा था, मूर्खों
की तरह से जिसकी आंखों से सारा पानी सुख चुके थे, फिर अचानक उसकी याददाश्त वापस आ गई, और उसने रोना शुरु कर दिया, और
जैसे उसने अपने अंदर खारे समुद्र के जल के फव्वारे को भर रखा हो और अंत अपने दुःख
और चिन्ता से थक कर तालाब के किनारे पर सो गया और उसके स्वप्नों में श्री उसके पास
आकर खड़ी थी और अपनी दयालु आत्मा को अपने दयालु नज़र के अमृत के साथ पुनर्जीवित
किया, क्योंकि एक भक्त की बेटी पानी के साथ
ताज़ा हो जाती है, जो उसके प्रभारी के लिए आश्रम के पौधे
लगाती है।
और करुणा और प्यार के उन
दो फव्वारे से गहरी बुंदों को पीने के बाद, वह
जाग गया और पाया कि अब रात थी और फिर वह चांदनी के प्रकाश में चमकते तालाब पर
अकेला था और उसने खुद से कहा हाँ! हाँ! मैंने अपनी दुल्हन को पाया और उसी जन्म में
उसे फिर से खो दिया, एक पूर्व जन्म में किए गए पापों के
भयानक संचालन के माध्यम से। अब वास्तव में मैं अकेला हूँ, इस बार वह चली गई है, मुझे नहीं पता कि मैं कहाँ हूँ और मैं उसे कैसे
ढूंढूं? और फिर भी उसने मुझे बताया कि मुझे
निराशा से दूर रखने के लिए हमें फिर से मिलना चाहिए।
इसलिए अब मैं व्यापक
दुनिया में भटक जाऊंगा और अपनी जान बचाने में उसकी ज़िन्दगी बिताऊंगा, क्योंकि अब इस जीवन में कुछ भी नहीं बचा है और
पुनर्मिलन की आशा महान कछुआ के पीछे की तरह है, मेरी
अकेली शरण के लिये तीनों लोक पर्याप्त नहीं हैं।
तो इस प्रकार से वह
उठकर शहर से बाहर चला गया और समय की लहरों पर एक बुलबुले की तरह, यहाँ और वहाँ घूमता रहा और इस गांव से उस गांव
में और इस शहर से उस शहर में गया, उन
सभी के बारे में पूछ रहा था जिन्हें उन्होंने मुलाकात की, क्या आपने श्री, मेरी पत्नी को देखा है? तुम
उसे उसकी आंखों से जानोगे,
क्योंकि वे स्वर्ग के रंग से भरी हुई
हैं। लेकिन उन्होंने जितना पूछा, उन्हें
कोई जवाब नहीं मिला और न ही कोई उसे उसके बारे में कुछ बता सकता था। इसके विपरीत, सभी ने उस पर आश्चर्यचकित होकर उसे उपहास के
रूप में बदल दिया और कोई कहता है, यह
चंद्रमा की आवाज वाला कौन सनकी पागल है? जो
नीली आंखों की सुंदरता की तलाश में घूमता है? और
दूसरा क्या आश्चर्य है? कि श्री ने इतने घबराए हुए विद्रोही को
त्याग दिया है, जो अच्छी तरह से करने के लिए भी त्याग
देता है! और अन्य ने कहा,
यह विचलित राजपूत चंद्रमा चाहता है, लेकिन उसे दवाओं की आवश्यकता है और आखिरकार
उसने मनुष्यों के घरों को त्याग दिया और जंगल में लगातार घूमते हुए, कोई साथी नहीं, बल्कि उसकी छाया और उसकी तलवार, जिस
मार्ग से वह कमल की भूमि पर अपनी पूर्व यात्रा पर गया था और दिन में नीले रंग के
कमल के तालाब में देखकर और रात को स्वर्ग में अपने सितारों के साथ देखकर, क्योंकि वे सब श्री की आंखों के रंगों और
छायाओं के दर्पण और छवियों की तरह थे।
इसी बीच ऐसा हुआ की
भगवान महेश्वर रोज की भाती आकाश मार्ग से अपनी पत्नी पार्वती के साथ उन्हें अपने
सीने से लगाये हुए घूम रहे थे, तभी
उन्होंने नीचे पृथ्वी पर देखा कि उमर सिंह जंगल में पागलों की तरह से घूम रहा था
और शोकातुर होकर पुकार-पुकार कर चिल्ला रहा था, श्री
तुम कहाँ छुप गई हो? जैसे किसी रेगिस्तान में कोई पक्षी
प्यास से व्याकुल हो कर दम तोड़ देता हैं, उसी
प्रकार से मेरी स्थिति हो गई है, बिना
तुम्हारी आंखों के मुझे कही चैन नहीं मील रहा है और तभी अचानक भगवान महेश्वर को
याद आ गया जो वर उन्होंने उसको पिछले जन्म में दिया था और उनके सामने उसकी पिछली
कहानी सारी स्मृति उनके मन पर ताजा हो गई। इसलिए उन्होंने अपनी पत्नी उमा से हंसते
हुए कहा, तुम अभी अपने पिता के घर जाओ और वहाँ
मेरा इन्तजार करो, क्योंकि कुछ ऐसा मामला है जिसपर मुझको
अभी ध्यान देना है। फिर उनकी पत्नी ने उनको फुसलाते हुए पुछा, क्या बात है? भगवन कृपया इसके बारे में मुझको बताइये। फिर भगवान महेश्वर ने उनसे
कहा मैं तुम्हें कुछ समय के बाद बताऊंगा, अभी
मेरे पास समय नहीं हैं तुम जाओ, फिर
देवी अपना मुंह फुला कर उनसे दूर बरफीले पर्वत के ऊपर चली गई, यद्यपि भगवान महेश्वर जो अपने बालों के जुड़े में
चंद्रमा को धारण करने वाले हैं। वह पृथ्वी पर उतर कर आ गये और उन्होंने अपना रूप
एक तपस्वी जैसा बना कर जंगल में प्रवेश कर लिया और जंगल के सबसे घने भाग में कर
खड़े हो गये, उनके शरीर पर उस समय सफेद भस्म
आच्छादित हो रहा था। मंडियों के माला के साथ मानव खोपड़ीयों से जो सुसज्जित हो रहा
था, जिसके साथ उनके भूरे बालों में आधा
चंद्रमा झलक रहा था, उन्होंने अपनी दिव्य शक्ति के द्वारा
एक बड़ा घंटा बना कर, जंगल के मध्य में एक बट वृक्ष पर लटका
दिया। अपने द्वारा बनाये गये घंटे पर अपने त्रिशूल से बार-बार प्रहार कर के उसको
बजाने लगे, जिसकी आवाज जंगल में ऐसे गुंजने लगी
जैसे कि आकाश में बिजली कड़क रही हो।
फिर तत्काल इस भयानक
बुलावा को सुन कर जंगल के सारे जीन, यक्ष
और पिशाच, राक्षस और वन देवी इत्यादि, अपने जंगली जानवरों पर अपनी सवारी के साथ
एकत्रित होकर जहाँ से आवाज आ रही थी, सभी
उसी तरफ चल पड़े, इस प्रकार की भीड़ में जैसे मक्खियों
का झुंड अथवा, मधु मक्खियों का झूण्ड मधु पर धावा
बोलता हैं, अथवा मक्खियाँ किसी मृत शरीर पर
मंडराती हैं। वे सारे प्राणी अपने स्वामी के पास विनम्रता के साथ जाने से पहले
जांच पड़ताल करने लगे, की कौन हो सकता हैं कोई जीवित है या
निर्जीव वस्तु है, मालिक ने अपने सभी सेवकों को किस आदेश
के लिये याद किया हैं और हम सब को यहाँ पर क्यों बुलाया गया हैं? और जब सब की हाजिरी एक साथ भगवान महेश्वर के
सामने लग गई और वह सब उस महान तपस्वी के पास पहुंच गये तो उनसे पूछा।
भगवान महेश्वर ने अपने
एकत्रित सेवकों से कहा कि इस जंगल में एक पुराना प्रेमी अपनी पत्नी को खोज रहा हैं
और उसकी पत्नी उससे कुछ समय पहले अलग हो चुकी है, अथवा वह दुबारा उससे मिलने के लिए व्याकुल है। वह दोनों प्रेमी पहले
अमर थे मगर एक श्राप के कारण उन्होंने नश्वर शरीर को धारण किया हैं। लेकिन जब वह
तुम्हें इस जंगल में कही मिले तो और उनकी परिस्थितियाँ जब अच्छी होगी तो उनका
श्राप समाप्त हो जायेगा, इसलिये तुम सब उनको अपनी इच्छा के
अनुसार उनको चकमा और धोखा देना, लेकिन
सावधान रहना कि तुम सब उनके बाल को भी नहीं छुओगे, उसको तुम सब देखो लेकिन एक बात का तुम सब ध्यान रखना हैं कि उसको तुम्हारे
द्वारा किसी प्रकार का नुकसान ना पहुंचने पाये और ना तुम में से किसी के द्वारा
उसको खा कर खत्म करना है। इस तरह से वह सब भगवान महेश्वर के गण अपने कार्य पर लग
गये और जंगल में चारों तरफ खोजने लगे उस प्रेमी को पुनः प्राप्त करने के लिए, अपने भाग्य के उदय होने के लिये और भगवान
महेश्वर के आदेश और उनकी प्रसन्नता के लिए।
फिर वह सब एक साथ भगवान
महेश्वर के पैरो को पकड़ कर उनको प्रणाम किया और उन सब ने नाचना शुरु कर दिया, इसके साथ उत्तेजित मस्त होकर अपने उत्थान को
ध्यान में रखकर उत्सव मनाने लगे, परमेश्वर
की भक्ति का ऐसा नशा सभी को पकड़ा जैसे वह सब पागल हो गये थे और परमेश्वर के
प्रशंसा में उनकी स्तुति और गुणगान करने लगे, अपनी-अपनी
भाषाओं में, फिर कुछ समय के बाद परमेश्वर ने उन सब
का पर्याप्त मात्रा में सहयोग किया और उन सब के लिए अपनी उपस्थित के अमृत की धारा
को बहा कर तृप्त किया, फिर परमेश्वर को अपनी अर्धांगिनी की
याद आई जिससे उन्होंने मिलने का वादा किया था और उनको कहानी बताने के लिए, जो उन्होंने पर्वत रुपी राजा दक्ष की पुत्री से
किया था और इसके साथ भगवान महेश्वर अपने स्थान कैलाश पर्वत के ऊपर बर्फ से
आच्छादित चोटियों पर चले गये, खोपड़ियों
की माला को अपने गले से उतार कर दूर रख दिया।
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