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संसार को देखने की भीन्न दृष्टि

संसार को देखने की भीन्न दृष्टि 


      एक बार एक युवा राजा था और संसार में जिसने के तरीके से बिल्कुल अनुभवहीन था, वह एक पत्नी को चाहता था जिससे वह बहुत अधिक प्रेम करता था। लेकिन वह मर गई, जिसके बाद उस युवा राजा ने सांसारिक व्यापारिक क्रिया कलाप और संसार की भोग विलास को आपकी तरह से त्याग कर दिया। और बहुत दूर एकांत जंगल में चला गया। और स्वयं के लिए जीने लगा, जैसा कि आप करते हैं, इस तरह के एक और पुराने उजड़े जंगली मंदिर में, निराशा के साथ जो अपने दिल-दिल में जल रहा था। और जब कोई भी उसके राज्य का आदमी या अधिकारी उसके राज्य के प्रति दाईत्व और जिम्मेदारियों, कर्तव्यों को समझाने में या उसके इरादे को बदलने में या उसको जंगल से वापिस महल में ले जाने के लिए, अथवा उसके वैराग्य के भाव के त्यागने के लिये तैयार नहीं कर सका।

 

 

            तब अंत में वहाँ पर उस राजा को देखने के लिए, वह मेरी तरह कोई एक युवा और बेवकूफ नौकरानी नहीं थी। बल्कि झुर्रियों वाले एक वृद्ध ऋषि, जो उसके परिवार के आध्यात्मिक गुरु थे वह आये, और जब वह राजा के पास आये, जिन्होंने वृक्ष के छाल के वस्त्रों को बहुत कलाकारी के साथ पहन रखा था। और वह उस राजा के सामने आकर खड़े हो गए, किसी प्रकार के शब्द के उच्चारण किये वगैरह। इस तरह से वह एक साथ शांत होकर खड़े रहे, अचानक वहां एक बांस के कोठी से एक उसका पत्ता जमीन पर नीचे गिरा, और वह तत्काल पिला बांस का पत्ता इधर-उधर उड़ता हुआ, झिल के शांत पानी में चला गया। औ वहाँ पानी के ऊपर तैरने लगा और तत्काल पत्ते को गिरते हुए देख कर वृद्ध आध्यात्मिक गुरु के हृदय में दुःख का सागर उमड़ आया। और वह जमीन असहाय हो कर गीर गया, और अपने कपड़ों को फाड़ने के साथ अपने बाल को पागलों कि तरह से नोचने लगा, और मिट्टी के साथ धुल को अपने दोनों हाथों से अपने सर पर फेंकने लगा। इसको देखकर राजा ने कहा पिता ऐसा क्या आपके साथ अचानक हो गया? जिससे आप इतने अधिक दुःखी और पागलों कि तरह से व्यवहार करने लगे हैं, वृद्ध ऋषि ने ओ-ओ कहा क्या तुमने ध्यान से नहीं देखा कि एक बांस के वृक्ष से पत्ता नीचे जमीन पर गिर गया है? राजा को यह सुन कर आश्चर्य हुआ, जिसके कारण उसने कहा पवित्र आत्मा निश्चित रूप से अब तुम्हारी मूर्खता आज तुम्हारे ऊपर हावी हो चुकी है। जिसके कारण ही तुम इस तरह से व्यवहार कर रहें हो। यह असाधारण दुःख मात्र एक साधारण पत्ते के लिए, जो वृक्ष से गिर गया है। फिर वृद्ध ऋषि ने उस राजा से कहा हे राजा तुम्हारे लिये यह मूर्खता है, क्या आप इस मूर्खता के लिए मुझको दोषी मानते हैं? कि मैं पत्ते के गिरने के लिए क्यों दुःखी हो रहा हूं? तो क्या आप जिसने स्वयं के सुख पूर्ण जीवन का त्याग कर दिया है, वो भी मात्र एक औरत के मृत्यु के कारण, क्या आप नहीं जानते हैं? कि यह मृत्यु हर एक वस्तु के साथ एक जैसा व्यवहार करती है। तो हमें हर किसी छोटी से छोटी वस्तु की मृत्यु पर दुःखी और अपने सुखों को त्याग कर देना चाहिए। जैसा कि मैंने किया, जिसमें आपको मेरी मूर्खता का साक्षात्कार हो रहा है।

 

        फिर नश्वर औरत के शरीर के लिए दुःखी होने का आपके लिए इतना बड़ा क्या कारण हैं? यद्यपि किसी वृक्ष से पत्ते का गिरना उसी प्रकार से है जिस प्रकार से किसी मानव की मृत्यु होती है। और क्या, हे राजा, क्या यह मूर्खता नहीं है? कि सारी वस्तुओं का त्याग कर दिया जाना चाहिए, वह भी केवल एक औरत के चंचलता भरे आकर्षण और स्नेह के कारण, क्या औरत का शरीर बहुत अधिक आकर्षक और स्थिर है। बांस के पत्तों की तुलना में? जिसके लिए आप जैसा राजा जो दुःख के असीमित सागर में डुबकियां लगा रहा है। जबकि इसके बाद भी बांस का पत्ता झील के पानी में तैर रहा है।

 

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