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सूर्य के वंशज (एक प्रेम कथा ) Part -5

 सूर्य के वंशज  (एक प्रेम कथा ) Part -5

(लेखक मनोज पाण्डेय)


अन्य शरीर के साथ इस शरीर का स्वप्न



           इसके पहले जब श्री ने अपने शरीर को इन्द्रालाय में त्यागने के बाद, वह अपनी आत्मा के साथ जैसे उसकी आंखें चमकती थी उसी प्रकार से वह सिधा सूर्य के कमल की भूमि पर पहुंची और वहाँ बड़े खाली हाल में उपस्थित सोफे पर अपनी मृत शरीर में प्रवेश कर लिया, जिस मृत शरीर को कमल भूमि पर पहले उमर सिंह ने आकर देखा था। फिर शरीर में प्रवेश करते ही तत्काल अपनी आंखों को खोला और वहाँ पर उठ कर खड़ी हो गई, जैसे कि वह किसी स्वप्न को देख रही हो, इसको साथ वह स्वयं आश्चर्य के भाव से पूर्णतः भर गई, आतंक और निराशा के बदल उसके चित्त पर छा गये, जब उसने अपने आप को अकेले उस बड़े मरुस्थल रुपी खाली हाल में पाया। वह अपने दुःख और पीड़ा को याद कर चिल्लाने लगी, आह यह सब मेरे साथ क्या हो रहा है प्रभु? यह कैसा रहस्य है? और मैं कैसे इस मरुस्थल रेगिस्तानी खाली बड़े हाल में आ गई? और यह संसार के किस हिस्से में है, जहाँ पर मैं इस समय में हूँ। और मेरे पति साथ क्या हुआ? अब मैं क्या कर रही हूँ क्या मैं अपने पिछले जन्म के किए हुए पाप के भयानक परिणाम को भुगत रही हूं? आह, मैं यहाँ से वापिस कैसे जा सकती हूं? और वह मेरा पति मुझको कहाँ पर मिलेगा? निश्चित रूप से हम दोनों छोटी मछली की तरह से असीम समय के समुद्र में कहीं खो चुके हैं। अब तक हमारा जो अलगाव हुआ है, अदृश्य निराशा के सागर में, क्या सीता ने राम से बिछड़ने के बाद उनको नहीं पाया था और क्या शकुतंला ने दुशयंत को नहीं पाया था, या फिर जिस प्रकार से दमयन्ती नल से अलग होने के बाद उससे नहीं मिली थी, जैसे यह सब अपने प्रियतम से बिछड़ने के बाद फिर से मिल कर आनंद को प्राप्त किया था। उसी प्रकार से मैं भी अपने प्रियतम से अवश्य मिलूंगी। सच में प्रेम के पास सर्वव्यापक के समान सामर्थ्य है और क्या मेरे प्रेम से बड़ा भी कोई दूसरा प्रेम हो सकता है? जो एक शरीर से दूसरी शरीर में यात्रा कर रहा हैं, जैसे, नए हर एक जन्म के साथ जीवन की अग्नि नए और ताजे रूप में प्रकट होती है।


      फिर उसने अपने शरीर पर पड़े सफेद पर्दे को पहन लिया और जल्दी से खड़ी हो कर उस खाली बड़े हाल से बाहर निकल गई, डुबते हुए हृदय के साथ जैसे एक पक्षी किसी शान्त तालाब में डुबता है, उसी प्रकार से वह अपने पैरो के ध्वनियों की गुंज में डुबती हुई, उस महल के दरवाजे से बाहर निकल कर मरुस्थली सड़क और गलियों में इधर उधर भागने लगी और अंत में वह समुद्र के किनारे पर पहुंच गई और बड़ी उत्सुकता के साथ समुद्र के दूसरे किनारे की तरफ देखने लगी, उन आंखों के साथ जो नीली समुद्र के समान थी, जो वह उसका मजाक उड़ा रही हो, इसके साथ उसे अपनी सुन्दरता पर बहुत भयानक निराशा होने लगी, जैसे चंद्रमा के प्रकाश के द्वारा उसको उत्साहित और प्रोत्साहित किया जा रहा हो, जबकि हवा बिना उसकी इजाजत के उसके होंठों का मधुर चुंबन को ले रहा था और उसके बालों और वस्त्रों के साथ आँख मिचौनी का खेल-खेल रहा था। फिर उसने कहा हे महासागर, क्या आप भी किसी से अलग हैं कि आप लंबे समय तक श्वास लेते हैं? क्या तू भी दु:ख में मेरे साथ डूब गया है कि तूने मुझ पर अपने नमक के बौछार रुपी आँसू को छिड़क दिया हैं?


     और जैसे ही वह सागर के ऊपर देख रही थी, उसे देख कर आश्चर्य हुआ, की एक जहाज सागर की लहरों पर हिलकोरे मारते हुए उसकी तरफ चला आ रहा था, जैसे सागर उसकी आंतरिक इच्छाओं के बारे में समझ गया हो कि वह सागर को पार करना चाहती है। वह जहाज एक बड़े व्यापारी के कप्तान का था, जो अपने व्यापार को कर के अपने घर के लिए वापिस या रवाना हुआ था और जब उसने देखा एक स्त्री को सागर के किनारे पर अकेले खड़े हुए, वह तत्काल अपनी एक छोटी नाव लेकर किनारे की तरफ चल पड़ा उस स्त्री को पकड़ने के लिए, लेकिन जब वह सागर के किनारे पर पहुंचा और उसने अति सुन्दर औरत को देखा जिसकी गहरी नीली आंखें थी और उसने सफेद बर्फ के समान वस्त्रों को धारण किया था, उसे आश्चर्य के साथ एक बड़ा धक्का लगा और वह उसे देख कर बहुत अधिक भयभीत हो गया और उसने डरते हुए श्री से कहा निश्चित रूप से तुम परमेश्वर की दिव्य कृतियों में से सबसे श्रेष्ठ कृति हो और तुम्हारे समान इस नश्वर संसार में कोई भी दूसरी स्त्री नहीं हैं। मुझे अपना नाम बताइये जिससे मुझको पता चल सके की मैं किसको सम्मान दे रहा हूँ, फिर श्री ने कहा साहब मैं कोई दिव्य औरत नहीं हुं, मैं एक राजा की पुत्री हूँ और अपने पति की खोज कर रही हूँ, कृपया दया कर के आप मुझको अपने साथ ले चल कर सागर के दूसरे किनारे पर छोड़ दीजिये। जिससे मैं निश्चित रूप से इन्द्रालय का मार्ग तलाश लुंगी, लेकिन इसको सुनने के बाद व्यापारी खुशी से हंसने लगा और उसने सोचा इन्द्रालय के बारे में जो संसार के दूसरे हिस्से में विद्यमान हैं और मैं इसका पति बन जाऊंगा, क्योंकि वह उस समय तक उसकी सागर के समान गहरी नीली आंखों में डुब चुका था। इसलिए उसने श्री से कहा ओ सच्ची राजा की पुत्री मेरी जहाज ज़्यादा बड़ा और शानदार नहीं हैं और वह पूर्णरूप से भरी हुई है, आवो अब जहाँ तक हमसे संभव होगा हम तुम्हें ले जायेंगे, जैसा की तुम्हारी इच्छा है, इस तरह से श्री उसके साथ चलने के लिए तैयार हो गई और इसके साथ व्यापारी बहुत अधिक प्रसन्न हुआ। और श्री के सामने संपूर्ण संसार का संसाधन कुड़ें के समान उसको प्रतीत हो रहा था। जैसे कि उसने किसी बहुमूल्य खजाने को प्राप्त कर लिया हो और वह सोचता था कि उसने अपनी पत्नी को प्राप्त कर लिया है।


      इस तरह से जब जहाज का व्यापारी श्री को लेकर अपने जहाज पर पहुंचा, तो उसने उससे कहा सच में तुम्हारा पति वास्तव में बहुत दुष्ट किस्म का मानव है। जिसने अतुलनीय तुम्हारी तरह सुन्दर औरत को इस तरह संसार में भटकने के लिए अकेला छोड़ दिया है। अब तुम उसको भूल जाओ उसके स्थान पर तुम्हारा पति मैं बनने के लिए तैयार हुं, फिर श्री ने कहा यह तो बहुत बड़ा पाप हैं और हमारी इस परिस्थिति के लिए हमारे पति को दोषी ठहराना कदापि उचित नहीं है, वह अपनी पत्नी के लिये एक दिव्य और अद्वितीय पुरुष इस दुनिया में सिर्फ एक है, फिर उस व्यापारी ने कहा कि तुम हाँ ना में जबान दो मुझसे विवाह करना चाहती हो या नहीं, मुझको पाप पुण्य से कोई फर्क नहीं पड़ता हैं। मुझे परवाह केवल इन आंखों की है और अब मैं इनका हो चुका हूं जिसको लिए मैं इनको अपने पास रखना चाहूंगा। इस तरह से वह उसको बड़ी सावधानी से अपनी जहाज में करीबी सुरक्षागार्डों की देख रेख में रख कर अपने शहर में ले आया और उसको अपने घर के ऊपर के महलों में रख कर दरवाजा बाहर से बन्द कर दिया, उसको इस प्रकार से आशा थी कि एक दिन इस तरह से अपने पहले प्रेमी को भूल जायेंगी और हार कर उसके साथ विवाह कर लेगी।


      फिर श्री ने अपने आप से कहा, आह मेरी सुन्दरता मेरे लिए अभिशाप बन चुकी है, यह मेरे लिए किसी प्रकार का आशीर्वाद नहीं लाने वाली है, इस सुन्दरता के कारण इस व्यापारी ने मुझको समुद्र पार लाकर, इस कमरे में कैदी की तरह से बन्द कर के रखा है, हमें इसके बारे में सोचने के बजाय मुझको कुछ ऐसा रास्ता तलाशना चाहिये, इस दुष्ट धूर्त कामुक पापात्मा से बचने का, नहीं तो स्थिति इससे भी बुरी हो सकती है। इस तरह से वह कमरे की खिड़की पास गई और उससे बाहर झांकने लगी। तभी उसने देखा उसके दुर्भाग्य से बचने के लिए उसे एक रास्ता सुझा, क्योंकि उसी समय उस शहर का राजा अपनी हाथी पर सवारी करते हुए उधर से ही गुजर रहा था और जब श्री ने उसको देखा, तो श्री ने अपने आप से कहा यहां मेरी मुक्ति के मार्ग पर ले जाने वाले हाथी पर सवारी करने वाला ही है। और इसके लिए मुझे छोटा-सा पाप करना होगा, अपने आप को बचाने के लिए एक बड़े भयंकर अपराध से। फिर उसने हाथी चालक महावत को बुलाया, मेरे पास आवो हाथी चलाने वाले चालक। मैं हाथी की सवारी करने के लिए बहुत व्याकुल हो रही हूं, इसको सुनते ही महावत ने राजा की तरफ देखा और राजा ने श्री के चेहरे को देखा, जहाँ से आवाज आई थी और श्री ने अपनी गहरी नीली आंखों से राजा को अपनी मनमोहक एक दृष्टि का झलक मात्र से घायल कर दिया और तत्काल राजा अपनी सुध बुध को भूल गया और अपने महावत से कहा वैसा ही करो जैसा की वह कह रही है, इस तरह से महावत ने अपनी हाथी को खिड़की के नीचे ले आया और श्री ने तत्काल खिड़की से बाहर छलांग लगा दिया, सिधा राजा की गोद में और स्वयं को बचाने के लिए राजा को पकड़ लिया, इससे तरह से राजा आनंद से बेहोश जैसा हो गया, उसके शरीर को छूने के अमृत को पाकर और बिना एक क्षण गवाये उसने अपने स्थान को उसके लिए छोड़ दिया और उसे ऐसा आनंद प्रतीत हो रहा था, जैसे कि उसने सम्पूर्ण संसार को विजय कर लिया हो, लेकिन जब व्यापारी को पता चला की श्री उसके चुंगल से फरार हो चुकी हैं। तो वह भयानक निराशा के कारण अपने शरीर को त्याग दिया।


     और फिर जैसे ही श्री राजा के साथ उसके महल में पहुंची, राजा ने श्री से कहा तुम्हारा नाम क्या है? और तुम्हारा परिवार कहा का रहने वाला है? श्री ने कहा यहाँ से बहुत दूर एक देश के राजा की मैं पुत्री हूं और मेरा नाम श्री है और मेरे साथ क्या-क्या हुआ उसको ना ही पुछो तो अच्छा ही होगा हम दोनों के लिए, फिर राजा ने कहा वह कैसे लोग थे? जो तुमको इस तरह से अकेला छोड़ दिया हैं, यह जान कर मुझे बहुत अधिक दुःख हो रहा है। तुम्हारी तरह सुन्दर और शेरनी जैसी औरत को सियारों के साथ छोड़ दिया और मैं तुमको अपने महल में ले आया हूं, तुम्हें जो भी आभूषण और बहुमूल्य वस्तु चाहिये, मेरे खजाने से लेकर अपने को आनंदित करो और मेरे साथ रह कर अपने सौभाग्य के शिखर पर चढ़कर इतराओ, फिर श्री ने राजा से कहा इस प्रकार से मत बोलिये, क्योंकि मैं किसी और की पत्नी हूं और मैं अपने किसी दुर्भाग्य प्रबल होने के कारण उनसे विक्षण गई हूं, यह मेरा मनमाफिक नहीं हैं, इससे पहले जिस व्यापारी ने मुझे समुद्र पार करा करें अपनी जहाज पर यहाँ लाया था। वह भी मेरे साथ जबरदस्ती विवाह करना चाहता था। इसलिए मेरे साथ न्याय कीजिये मैं आपकी पत्नी नहीं बन सकती हूं।


      फिर राजा ने कहा तुम्हारी नीली गहरी आंखों ने मेरी समझ को पुरी तरह से नष्ट कर दिया हैं, इस समय मुझे कुछ भी नहीं समझ में आ रहा है कि क्या सही है और क्या ग़लत हैं? यह तुम्हारे द्वारा कहे गये शब्द मेरे लिए कोई भी अर्थ नहीं रखते हैं। इन नीली गहरी आंखों ने मुझको वैसे ही अपने वश में कर लिया हैं जैसे कमल नाल से पागल मदमस्त हाथी को बांध कर उसको असहाय कर देते है। इस प्रकार की बात करके तुम अपने आप को स्वयं कष्ट दोगी, यद्यपि मेरे ऊपर इनका कोई प्रभाव पड़ने वाला नहीं है। तुमसे मैं कहता हुं की तुम मेरे जीवन को बचा लो और अपना आत्म समर्पण करके मेरे लिए अन्यथा मेरी स्थिति खराब हो रही है, मैं तुम्हारी अगम्य गहरी नीली सागर जैसी आंखों में डुब कर मर जाऊंगा। जिसने मेरे चैन को चुरा लिया हैं। इसके बिना मैं स्वयं को जिन्दा नहीं रख सकता हूं, केवल तुम्हारी सहमती ही मुझे इस भयंकर काम रुपी वाणों के आक्रमण से बचा सकती हैं। मेरी भक्ति और समर्पण सिर्फ तुम्हारे लिए हैं, तुम अपने पुराने पति को भूल जाओ जैसे उथले तालाब से सूर्य अपना नाता तोड़ लेता है। लेकिन श्री ने कहा आप ऐसा मेरे पति के लिए ना कहें वह तालाब नहीं है, यद्यपि सागर के समान हैं, जिसमें सूर्य हमेशा चमकता रहता है, और कभी भी वह अपनी चमक को कम नहीं करता है, इसी प्रकार का मेरा प्रेम मेरे पति के प्रती है।


      लेकिन राजा ने श्री के शब्दों पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया, जो उसके कानों में तो प्रवेश किए मगर वह उसके मस्तिष्क तक नहीं पहुंचे, उसकी सम्पूर्ण आत्मा श्री की आंखों में वश कर रह गई थी। वह बरा बर श्री की आंखों को देख कर अपनी अतृप्त वासना की प्यास को बुझा रहा था, वह उसी प्रकार से था जैसे वह सोम रस का पान कर रहा था, जिसका गुणगान वेद करते हैं।


        इस बद से बदतर परिस्थिति को देख कर श्री ने स्वयं से कहा आह! मैं छोटे खतरे से बचने के लिए बड़े खतरे को प्राप्त कर लिया है, जैसे नदी के पानी के जानवर से बचने के लिए सागर के जानवरों के चंगुल में कोई आ जाता हैं और-और उसी प्रकार से मैं निकृष्ट स्वभाव वाले इस राजा के जाल में फंस चुकी हुं और अब मेरी सहायता करने वाला यहाँ कोई नहीं हैं, जो मुझे किसी तकनीकी से बचा सके और जैसा की प्राकृतिक स्वभाव किसी योग्य औरत का होता है। यह सब जान कर उसने राजा के ऊपर अपनी तिरछी निगाह का एक वाण चलाया और राजा को बड़े ध्यान से एक बार देखा, इस तरह से जैसे कि वह राजा की मनसा को जानकर मन ही मन उसको स्वीकृति प्रदान करना चाहती है, इस प्रकार से धिरे से उसने राजा से अपनी भौंहों के वाण को चढ़ा कर हल्की-सी मुस्कुराहट के साथ कहा, जिस प्रकार से कोई औरत अपने हृदय की बात किसी अजनबी पुरुष से कहती है। फूलों के कोमलता के सामान मधुर और मीठे ध्वनि में, जैसे उसको राजा में बहुत अधिक अगाध श्रद्धा हो गई हैं, की आप मुझको कुछ समय के लिए अकेला छोड़ दीजिये इसके बारे में थोड़ा विचार करने के लिए और तब तक आप मुझसे ज़्यादा दूर मत रहिये, यद्यपि आप में वह सारे गुण है जो मेरा पति होने के लिए चाहिये, जबकि मैं पहले से किसी और पुरुष की पत्नी हुं और फिर भी, बहुत दूर नहीं रहो, क्योंकि आप देखना चाहते हैं और मेरे पति होने के लिए अच्छी तरह फिट है, क्या मैं पहले से ही किसी अन्य व्यक्ति की पत्नी नहीं थी। लेकिन यह सुनकर, राजा पूरी तरह से परेशान था और उसने अपने कान की गवाही पर संदेह किया और उसने सोचा अब वह थोड़ा सहानुभूति के बाद सहमति देगी और उसने उसे देखा क्योंकि वह उस पर मुसकुरा रही थी, उसके स्तन के वजन से उसकी कमर एक फूल की डाली की तरह झुकी थी और उसकी कमर जैसे अंगड़ाई ले रही थी और वह उसके नशे में हँस रहा था, उसके अंगों की गोलाकार और उसकी आंखों की उदासीनता से वह बेकार हो गया और यह भूलकर कि निर्माता ने शहद को बाहरी हिस्से में और जहर को अन्तर तम के साथ रख कर भ्रम का साधन बनने के लिए महिला बनाई है और उसने अपने राजा के कर्तव्यों का पालन करना छोड़ दिया, बिना किसी देरी के लौटने का इरादा रख कर वहाँ से चल दिया और विचार करने लगा की यह उसके पिछले अपने जन्म के फल को प्राप्त करने का समय आ गया है।


      लेकिन जैसे ही राजा श्री को अकेले कमरे में छोड़ कर गया, श्री ने तत्काल कमरे की सेविका को अपने पास बुलाया और उससे कहा कि बिना किसी प्रकार की देरी किए हुए, तुम मुझको तत्काल मुख्य रानी के पास ले कर चलो, अन्यथा उनके लिए बहुत ही बुरा होने वाला है, पहले तो सेविका ने उसकी आज्ञा मानने से आना कानी की फिर वह उसकी शक्ति से भयभीत हो कर अपने आप से कहा, जब राजा उसकी केवल एक झलक पाकर ही अपने संपूर्ण राज्य को सागर की गहराई में कुड़े के समान फेंकने के लिए तैयार हो गया है। तो उस राजा के लिए अब मेरा जीवन उसकी उंगलियों पर है, इस लिए वह तुरंत श्री को अपने पीछे लेकर सिधा मुख्य रानी के पास गई और श्री ने मुख्य रानी से कहा मेरी आत्मा की तुम मालकिन हो, इसको तुम जानती हो जब राजा को इसके बारे में पता चलेगा तो वह मेरी हत्या करा करके मेरी लास को फेंकवा देगा, फिर श्री ने कहा आपके पति राजा ने मुझको नगर की सड़को पर प्राप्त किया है और मुझको चुरा कर यहाँ लाया है और वह मुझको अपनी पत्नी बनाने के लिए अत्यधिक व्याकुल है, अब आप मुझे उससे बचाने में और यहाँ से भगाने में मेरी मदद कीजिये, क्योंकि मैं किसी दूसरे पुरुष की पत्नी हूं और मैं किसी प्रकार से उनकी पत्नी नहीं बन सकती हूं और मुझको यहाँ से निकलने में जितनी अधिक जल्दी हो, उतना ही आप सब के लिए अच्छा होगा। जिससे ऐसा घटना दुबारा घटने से रोका जा सके, फिर रानी ने उसको ध्यान से देखा और श्री से कहा, तुम बिल्कुल ठीक कह रही हो, मैं तुमको बिना किसी प्रकार के देरी किए जल्दी से जल्दी यहाँ से बहुत दूर भेज दूंगी और तुम यहाँ रही तो निश्चित ही राजा तुमको अपनी पत्नी बना लेगा और राजा अपना सब कुछ त्याग देगा तुम्हारी चाहत में और सारा राज्य पुरी तरह से बर्बाद हो जायेगा। इससे वह कभी भी ना मुझ पर कोई ध्यान देगा, ना किसी और दूसरी रानी को ही कोई महत्व देगा, क्योंकि तुम्हारी सुन्दरता अतुलनीय है। तुम किसी दैवी शक्ति सम्पन्न औरत की तरह हो, तुम्हारे सुन्दरता के सामने कुछ भी नहीं हैं। तुम कामदेव के वाणों के समान किसी को भी घायल करने में पूर्णतः समर्थ हो।


      इसलिए रानी ने अपने विश्वस्त औरतों को तत्काल बुलाया और श्री को एक नृत्याङ्गना के भेस में तैयार करके, बिना किसी देरी के उसको महल से बाहर भेज दिया, लेकिन जब दुबारा राजा महल में आया और श्री को वहाँ नहीं पाया तो वह पुरी तरह से पागल हो गया और उसने तत्काल अपनी सब कुछ अपने आदमियों को समर्पित करके आत्महत्या कर लिया।


       लेकिन जब श्री महल से बाहर निकली, तत्काल वह नगर से बाहर निकल गई, अनजाने मार्गों पर चलते हुए और एक बीहड़ जंगल में प्रवेश कर लिया, क्योंकि उसने स्वयं से कहा यदि वह नगर में ही रहती है, तो राजा अपनी शक्ति का प्रयोग कर अपना कैदी पुनः बना सकता है और यह पहले से बहुत बुरा होगा। आह हर आदमी जो मुझे देखता है उसके ज्ञान चक्षु हमेशा के लिए बंद हो जाते हैं और इस प्रकार से अगर मैं किसी भी व्यक्ति के पकड़ में आ गई, तो उसके चंगुल से निकलना मेरे लिये अत्यन्त कठिन हो जायेगा। यद्यपि इस सुन्दरता के साथ बिना किसी के रक्षा के इन्तजाम के यूं ही जंगल में चलना अच्छा होगा, जंगली जानवर मनुष्यों से कम खतरनाक होते हैं, जबकि की एक मानव की आत्मा में जब काम का वासना हावि हो जाती है तो वह मानव कहलाने वाले प्राणी जानवरों को भी अपने से बहुत पीछे छोड़ देता है, मेरे लिए यही अच्छा होगा की मैं किसी जंगली खतरनाक जानवर के मुख का नेवाला बन जांऊ, जो किसी मानव की असहाय पत्नी बनने से अच्छा होगा।


      इस लिए वह जंगल में वह कई दिनों तक यूं ही चलती रही, अपने जीवन को बचाने के लिए जंगली फलों की जड़ो फूलों और तालाब और झरनों का पानी पी कर किसी तरह से गुजारा करते हुए, इस तरह से चलते हुए झड़ियों में फंस कर उसके कपड़े तार-तार हो गये थे, और उसके पैरो में बहुत सारें काटें चुभ गये थे, जिससे खून निकलने लगा, वह जहाँ भी जाती उसके पैरो से निकलने वाली खून की बुंदे घास और पत्तों पर गिरते रहते थे, लाल मड़ी की तरह से और उसके साथ उसकी आंखों से आंसू मोतियों की तरह से टपकते रहते थे। जैसे ओस की बुंदे पत्तों पर पड़ी हो सुबह - सुबह, और इस बीहड़ जंगल में वह पति को याद करके रोती रहती थी, इस तरह से जंगल के बहुत घने भाग में उसने प्रवेश कर लिया, जहाँ पर उसकी आत्मा पहले से और अधिक सिकुड़ने लगी अनजाने भय और जंगली जानवरों के आतंक के कारण और उसकी आत्मा उतना ही अधिक अपने पति की बाँहों से मिलने वाले अमृत के लिए व्याकुल हो रही थी। आह! औरत का उत्साह भी अदम्य होता हैं, अपने पति के अनुपस्थिति में वह अपने बारे में सब कुछ भूल चुकी थी, लेकिन फिर भी आकाश के तारों के पिले प्रकाश में वह अपने पति की छवि को देखती थी और अंत में एक ऐसा दिन आया जब-जब उसको एक भयंकर दर्द ने पकड़ लिया और उसके हृदय के अन्दर एक अनजाने भय ने अपना स्थाई निवास बना लिया और वह एक वृक्ष के नीचे अचेत पड़ गई और अपने आंसुओं से वृक्ष की जड़ को सिंचने लगी।


       तभी ऐसा हुआ की कुछ जंगली भील शिकार करने के लिए उस जंगल में आ गये, जिसकी आहट उनको हो गई और उसका पीछा करने लगें उसी रास्ते से जिस रास्ते से चलकर श्री यहाँ तक पहुंची थी, उसके पैर से निकलने वाले, उन खून की बुंदों को देखकर, जो पत्तों पर पड़ें थे, और वह सब उस खून को देखते हुए, आगे बढ़ रहे थे। और अपने लोगों के साथ कह रहे थे, कि कोई घायल जानवर इस रास्ते से गया है, जैसे ही वह सब जंगल में कुछ दूर आये, वह सब एक स्थान पर खड़े होकर कुछ सुनने का प्रयास करने लगे, और अचानक उन सब ने एक औरत के रोने की आवाज को सुना, जो घने जंगल के मध्य में रो रही थी। फिर उन सब को बहुत अधिक आश्चर्य हुआ, वह उसी दिशा में आगे बढ़ने लगे, जिधर से रोने की आवाज आ रही थी। और कुछ ही समय में वह सब श्री के सामने पहुंच कर उसको देखा, जो एक वृक्ष के नीचे बैठी हुई थी। जो दिखने में एक अद्वितीय रति की भाती थी, जो अपने पति की याद में तड़प-तड़प कर रोये जा रही थी, जो भगवान महेश्वर के द्वारा भस्म किया गया था। उसके सारे कपड़े फट चुके थे और उसके बाल धुल से भर आपस में उलझ चुके थे, उसकी आँखें आसूंओं से भर गई थी, जो किसी नीले कमल के पुष्प की पंखुड़ियों की भाती पानी की बुंदों के समान चमक रहे थे, जैसे तालाब में किसी हंस को पाल रही हो,। इस तरह से भीलों ने उसको देख कर बहुत अधिक आश्चर्य चकित होकर उसको देखा, जैसे इस प्रकार की किसी अद्वितीय औरत को अपनी जिंदगी में कभी नहीं देखा हो, और अपने लोगों में बातें करने लगे कितनी सुन्दर नृत्याङ्गना है। जो इस तरह से व्यथित होकर जंगल में बैठ कर रो रही है और वह सब उसके पास गये और उसके चारों तरफ घेरा बना कर सभी भील खड़े हो गये। और वह उन सब काले जंगली कसाइयों के मध्य में ऐसी दिख रही थी, जैसे अकेले चंद्रमा को राहु ने चारों तरफ से घेर लिया हो। इसके कुछ समय के बाद जब उन सब ने उसके सुन्दरता का वर्णन कर लिया। फिर उन भीलों के हृदय में मानो जहर घुल गया हो, जैसे उनका स्वयं का वाण उनको चुभने लगा हो। और उन सब ने गुप्त रूप से कहना शुरु कर दिया, की यह मेरी पत्नी है और निश्चित ही यह मेरी पत्नी होने के योग्य है और इसके बारे में वह सब आपस में बहस करने लगे। और कहा कि वे सब उसको छोड़ कर चले जायें, लेकिन उनमें से कोई भी उसको छोड़ने के लिए तैयार नहीं था, जिसके कारण वह सब आपस में झगड़ने लगे, वहाँ ऐसा स्थिति उपस्थित हो गई जैसे किसी सर्प के घोसले में से कोई पत्थर उनके ऊपर गीर गया हो।


      फिर एक ने अपना हाथ श्री के ऊपर रख दिया और इसके साथ दूसरे ने रखा, इस तरह से वह सब जैसे उसको टुकड़ों में विभाजित करना चाहते थे और श्री को ऐसा लगा जैसे वह उनके खींचा तानी में अपने शरीर से कई टुकड़ों में विभक्त हो जायेगी, और अंत में वह उसके नीचे आ गये और आपस में उसके शरीर को प्राप्त करने के लिए मरने मारने के लिए उतारू हो गये, वह श्री की सुन्दरता इस कदर से मोहित हो कर ज्ञान शून्य हो गये, और सभी उसको अपना माल समझने लगे और जल्दी ही वह सब भील आपस में मार काट करने लगे, अपने खतरनाक हथियारों से जिसके कारण उनमें से कितनों के बहुत खतरनाक घाव शरीर पर हो गये। और वह सब खून से लथ पथ होकर एक दूसरे की हत्या करने लगे, जिसकी वजह से उन सब ने एक दूसरों को मार डाला, कोई भी किसी की सहायता या बचाने की तुलना में हत्या को सर्वोपरि मान कर सभी लड़ मरने और नष्ट करने लगे। और वह सब एक दूसरे के पास जिन्दा लाश की तरह से हो गये, जिसकी वजह से वह सब हिलने डुलने में बिल्कुल असमर्थ हो गये। इसी बीच श्री को उनके आतंक से बच निकलने का अवसर दिखाई दिया। और वह अपने स्थान से खड़ी हो कर, अपनी रक्षा के लिए, उन सब के मध्य में से अपने खून और उनके खून से लथ पथ हो कर, वहाँ से अपनी पुरी शक्ति के साथ घने जंगल में भागी, क्योंकि वह सब अपने लिए खूनी संघर्ष में उसको पुरी तरह से भूल एक दूसरे के साथ लड़ मर रहे थे। वह वहाँ से वृक्षों की जड़ों में छुपते हुए भागी, जैसे कोई जमीन पर रेंगने वाला जंगली जानवर अपने शिकारी को देख कर भागता है। और तब तक भागती रही, जब तक की वह अंत में एक जंगली तालाब के किनारे पर नहीं पहुंच गई, और वहाँ पर पहुंच कर तालाब से जी भर कर पानी को पिया। और वहीं तालाब के किनारे पर थक हार कर लेट गई. और कुछ देर के बाद वह उठी और उसने अपने शरीर से जख्मों और अपने पैरो को तालाब के शीतल जल से धोया। इसके बाद उसके ऊपर उसकी थकान भारी पड़ गई और वह वहीं पर गहरी निद्रा में सो गई। और फिर चंद्रमा का उदय हुआ, जिसमें चंद्रमा की किरणों ने अगड़ाई लेते हुए उसकी प्रशंसा के साथ, वृक्षों की ओट में छुप कर उसके शरीर का चुंबन लिया। और जंगली जानवर एक-एक करके सभी वृक्षों से बारी-बारी जमीन पर उतरने लगे, तालाब में पानी पीने के लिए, जैसा की भगवान महेश्वर शिव ने उन सब जानवरों को आदेश दिया था। कि कोई भी उसको किसी प्रकार से हानी नहीं पहुंचायेगा, यद्यपि उसके हाथों और पैरो को प्रेम से चाट सकते थे।


     अब जैसा की उसका दुर्भाग्य अपने प्रबल चरमोत्कर्ष पर उदित हो चुका था, जिस तालाब पर उमर सिंह पहले आकर दैत्यों की पुत्री उलोपी से मिला था। रोज की भाती रात्रि होने पर जैसा की वह प्रायः इस तालाब पर आती थी, वह आई और उसने श्री को वहाँ पर गहरी निद्रा में सोते हुए देखा, और इसके साथ वह उसके पास आकर खड़ी हो कर उसको ध्यान से देखने लगी, उसकी शरीर के अद्भुत सुन्दर अंगों को देख कर आश्चर्य चकित हुई, यद्यपि उस समय श्री की आंखें बन्द थी और अन्त में उलोपी ने जिज्ञासा वश अपनी उंगलियों से उसके स्तनों को छूआ और अपने आप से कहा क्या यह कोई माया है? या यह कोई वास्तव में सच्ची औरत है। और यह क्या जिंदा है, या मर चुकी है? लेकिन श्री को जैसे ही उलोपी ने अपनी उंगलियों से छूआ, उसका शरीर थरथराने लगा और तंद्रा की स्थित में उसकी आत्मा ने उसको सुझाव दिया कि यह कोई शैतान है, और श्री ने तत्काल अपनी आंखों को खोला और उसकी गहरी नीली सागर जैसी गहरी आंखों को खुलते ही, दैत्य की पुत्री उलोपी उसके प्रती पहले से अधिक आश्चर्य के साथ ईर्ष्या से भर गई।


     फिर उन दोनों ने एक दूसरे को देखा जैसे कोई अँधेरा प्रकाश को देख रहा हो और दोनों को एक दूसरे को सौन्दर्य को देख कर आश्चर्य चकित हुआ, और वह दोनों कुछ पल के लिये अपने आप को भूल गई, और अंत में उलोपी ने श्री से कहा तुम कौन हो? और तुम्हारा और तुम्हारे परिवार का क्या नाम है? और तुम कैसे और कब मेरे तालाब पर आई हो, और क्यों? और श्री ने उत्तर में कहा कि मैं एक राजा की पुत्री हूं, मैं अपने पति की तलाश कर रही हूं, जिसको मैंने खो दिया है, अपने पूर्व जन्म के अपराध के परिणाम के कारण से और कुछ समय के लिए मैंने उनको दोबारा पाया था, जब वह सूर्य के कमल की भूमि पर से वापिस आने के बाद। लेकिन जब उलोपी ने उसके बारे में सुना तो वह एक बार फिर दुःख और पीड़ा से उदिग्न हो गई। और उसने अपने आप से कहा, हाँ! तो यह सब होने का कारण है कि सूर्य के कमल की भूमि का दिन में अनुपस्थित होना, जिसके कारण ही मेरी सुन्दरता का कोई प्रभाव उस अजनबी पर नहीं पड़ा था। जिसने मुझे पहले तालाब के किनारे नाचते और गाते हुए देखा था। और तुरन्त उसने शुरू किया, और एक भयानक रूप धारण किया, उसने श्री को अपने दांतों के साथ कुचल दिया, और उसको भयानक रूप से आतंकित कर दिया और कहा, तुम अब इस जंगल को कभी नहीं छोड़ पाओगी, यद्यपि अपने आप को इन जंगली पेड़ों के बीच शापित सौंदर्य के साथ हमेशा के लिए खो जाओगी। जब तक तुम्हारी मृत्यु किसी लंबे समय तक घृणास्पद भ्रम से प्रेतवाधित और परेशान होकर नहीं हो जाती है। तुम्हारा अपना अनुपस्थित पति यदि वह कर सकता है तो बचाए तुमको और वह तालाब के समान झाग के रूप में परिवर्तित हो कर, हंसी के ठहाके के साथ वहाँ से गायब हो गई।


     उलोपी वहाँ से उड़ कर जाने के बाद जंगल में श्री को उसी वैरागी निशाचर ने पाया और उससे सब कुछ समझ गया, और उसके लिये विनती करते हुए कहा कि वह एक दुःख से व्यथित नश्वर औरत है, इसको अपनी माया से धोखा दो, क्योंकि उसने मेरी सद्भावनाओं को बुरी तरह से आहत किया है और इस अवसर को पाकर निशाचर वैरागी बहुत अधिक प्रसन्न हुआ, क्योंकि उसको अब तक याद था कि किस प्रकार से उमर सिंह ने उसके साथ वार्तालाप करके उसको गुमराह किया था और अंत में अपनी तलवार से उसने उसकी जीभ को जंगल में काट दिया था। लेकिन उसने कहा यह कोई आसान मामला नहीं हैं, क्योंकि वह स्वयं महेश्वर के द्वारा त्यागे गये हैं, और भगवान ने कहा है उनको किसी प्रकार से हानि नहीं पहुंचानी है। मैं इस घुमक्कड़ी करने वाली स्त्री के पति के रूप को धारण करके उसको चकमा दूंगा, तब तक की जब तक वह स्वयं परेशान हो कर अपनी इच्छा से शरीर को त्यागने के लिए तैयार नहीं हो जाती है।


   जब उलोपी के जाने जब श्री को होश आया, तो वह बैठ कर रोने लगी, अपने भविष्य के आने वाले अनजाने खतरे के बारे में विचार करके, क्योंकि यह भविष्यवाणी दैत्य की उस निर्दय पुत्री के द्वारा किया गया था। जिसने उसको भयंकर रूप से दुःखी और आतंकित किया था और अब तक उसको पता नहीं था, किस किसी प्रकार से उसने उसे इस प्रकार से जिन्दा छोड़ दिया था, अथवा वह उसके क्रोध के अयोग्य थी और दिन का प्रारंभ होने लगा और सूर्य की किरणें चारों तरफ अपनी छटा को बिखेरने लगी, जिससे श्री उठ कर खड़ी हो गई और गिरते लड़खड़ाते हुए जंगल में आगे बढ़ने लगी, तब तक की जब रात्रि ने अपना पांव जंगल में चारों तरफ नहीं पसार लिया और चारों तरफ भंयकर अंधकार छा गया था, वहाँ केवल रात्रि के सन्नाटे को चीरते हुए वृक्षों के पत्ते शोर मचा रहें थे, और उसी बीच उसे ऐसा लगा जैसे उसका विछड़ा पति वहाँ पर उपस्थित हो। फिर थोड़ी देर के बाद, उसने स्वयं को रोका और ध्यान से सुनने लगी, क्योंकि उसने पेड़ों के मध्य किसी मानव के चरणों के चलने की आहट को सुना, जैसे वह उसकी ही दिशा में आ रहा था और उसका दिल हिंसक रूप से भयभीत हो गया, जैसे कि कोई कहना चाहता है, मुझे अपने शरीर को त्याग देना चाहिये, जिससे मुझ पर आने वाले खतरे से बच सकती हूं। तो वह एक खोखले पेड़ के पीछे छुप गई और आतंकित होकर बाहर उस खोखले में से झांकने लगी, और अचानक, अजीब! वहाँ मंद धुंध में उसने देखा कि उसका पति उसके पास आ रहा है, जैसा कि उसने किया था, जब उसने इंद्रालय के महल में उसको छोड़ा था, और तुरन्त वह अपने पति के पास भाग कर गई, भावना और आश्चर्य से उबर गई, और उसे अपनी बाहों में पकड़ा और कहा अंत में, आखिरकार, मैंने तुम्हें फिर से पाया है। और वह जोर से रोने लगी, और उस पल भूल गयी उस क्षण उसके सारे दुख; और उसने उसे देखा और खुशी के लिए हँसी और उसकी अपनी आँखें बंद कर लिया, जैसे कि सूर्य की तरह, उसकी दृष्टि मंद हो गई, और दृष्टि के संकाय को खत्म कर दिया। फिर थोड़ी देर के बाद, उसने उन्हें फिर से खोल दिया और देखना शुरू किया और चिल्लायी और उसका खून बर्फ बन गया और उसका दिल रुक गया। क्योंकि जिसने उसे अपनी बाँहों में रखा था, वह उसका पति नहीं था, बल्कि घृणित आंखों वाली और बालों वाली एक वीभत्स चीज थी, जो मानव आकार में क्रूरता के अवतार जैसा था; और उसने उन भयभीत आंखों को अपने आप से दूर कर दिया, और हँसता हुआ कटे हुए जीभ से उसके चेहरे पर गर्म त्वरित सांस के साथ एक जानवर की तरह छोड़ दिया। जब उसकी इंद्रियों ने उसे डरपोक की तरह त्याग दिया, और वह धरती पर गीर कर बेहोश हो गई।


     और जब वह लंबे समय के बाद पुनर्जीवित हुई, तो उसने देखा कि पश्चिमी कोने में सूर्य अस्त हो रहा था। लेकिन चंद्रमा अभी तक नहीं उभरा था, क्योंकि यह महीने के अंधेरे आधा की शुरुआत थी। तब सब एक बार स्मृति वापस आ गई और उसने स्वयं को आंदोलन के साथ हिलाकर रख दिया और उसने खुद से कहा: क्या यह एक वास्तविकता थी, या यह केवल एक बुरा सपना था? निश्चित रूप से यह एक सपना था; क्योंकि मैं बहुत कमजोर और थक गयी हूँ और अब भी मैं नहीं बता सकती, चाहे मैं जागीं या सोई हूं।


      तो वह अपनी आँखों को बंद करके बैठ गई; उन्हें खोलने से डरते हुए, न कि उसे देखना चाहिए कि वह पेड़ों की छायाओं में से नहीं जानती थी और फिर उगता हुआ चंद्रमा गुलाब की तरह से खिल रहा था और पत्तियों के अंतराल के माध्यम से अपने प्रकाश की किरणों को जंगल में फैला रहा था, जैसे कि अपने आतंक को साझा करना चाहता हो और अंत में वह अब चुप्पी और एकांत को सहन करने में असमर्थ हो गई और वह उठकर धीरे-धीरे कदम उठाने लगी, अंधेरे जंगल में जंगल के माध्यम से, यह नहीं जानती कि वह कहाँ जाना है, फिर भी वह यहाँ कहाँ रहने के लिए भी साहसी नहीं है।


       और अचानक, जैसे ही वह चली, उसने अपने सामने देखा और वहाँ, एक खुली जगह में, फिर उसने अपने पति को देखा, अभी भी एक पेड़ के नीचे खड़ा हो कर झूठ बोल रहा है। तुरंत वह रुक गई और खड़ी हो गई, भ्रम और आतंक से खाली होने के लिए लहराते हुए संतुलित हो कर। पुनर्मिलन की खुशी और सुरक्षा की इच्छा के लिए और एकांत के भय ने उसे तीन गुना अंदर तक हिल कर रख दिया और हृदय की तरह खींचा: जबकि उसके धोखे की यादें और भ्रम का भय और अज्ञात खतरे की प्रत्याशा ने उसे ठीक कर दिया, वह जड़ों की तरह जमीन में धंस गई और उसने अपने पैरो पर लहरें और घुमाए, जैसे कि एक युवती हवा का विरोध करके उसमें फंस गई: जबकि बड़े आँसू उसकी आंखों से गिर गए, जैसे चंद्रमा की चोटी से कपूर की बूंदें और जैसा कि वह वहाँ खड़ा था पर शक है कि क्या वह उसके पति के रूप में मृत या जीवित, उसके चेहरे स अद्वितीय चंद्रमा का प्रकाश फैल रहा था, उसने अपनी आंखें खोली और खुद से मुलाकात की और वह भाग कर उसके पास आया और उसकी ओर भाग गया, जबकि वह हलचल में असमर्थ रही और उसे अपनी बाँहों में ले गया, जबकि वह अपनी गले से गिर गई और उसने कहा: तुम्हारी दृष्टि ने मुझे मृत्यु के मुंह से बाहर निकाला है, क्योंकि मैंने शरीर को त्यागने का दृढ़ संकल्प किया था और फिर उसने फिर कहा: हाँ! और क्यों, हे सुन्दर आंखों से, क्या तुम मुझसे हटती हो? लेकिन श्री चुप रह गई, संदेह से फाड़ा और अपने दिल की धड़कन से हिलाकर रख दिया और कभी और अचानक उसने अपनी आंखें उठाईं और संदेह से उसे देखा और फिर आखिर में उसने धीरे-धीरे कहा: क्या तुम वास्तव में मेरे पति हो? क्या यह वास्तव में स्वयं है और कोई और नहीं? तब उसने कहा: आपका प्रश्न या आपका संदेह क्या है? है क्या तुम मुझे पहले से भूल गई हो? निश्चित रूप से यह थोड़ी देर के बाद से है, क्योंकि मैं इंद्रालय के महल में तीन दिन खो गया था। तब आह भर कर कहा श्री, वहाँ मेरे पास आया, लेकिन अब एक है जो तुमको हर सुविधा में मची और धोखा मुझे: और अब भी, मैं कंपकंपी जब मैं इसके बारे में लगता है, ऐसा न हो कि तू भी रूप में इस तरह के एक और होना चाहिए वह।


        तब उसने कहा: प्रिय, तुम कमज़ोर हो और एक सपने ने तुम्हें धोखा दिया है: लेकिन इस बार, यह कोई सपना नहीं है। पता है कि मैं खुद के अलावा कोई नहीं हूँ और तुम मेरे साथ हो। मुझे अपने आतंक को चुंबन से दूर करने दो और वह नीचे झुक गयी और उसने मुस्कुराहट के साथ अपना चेहरा उठाया, खुद से कहा: यह एक सपना के अलावा कुछ भी नहीं था। लेकिन जैसे ही उसने अपने चेहरे को छूआ, वह बदल गया और विशाल और पिशाच बन गया, एक बड़ी जीभ जो गाय के समान होंठ से लटका हुआ था; और यह जोर से हंसी में टूट गया और गायब हो गया। लेकिन श्री जमीन पर गिर गई, जैसे कि मौत के विस्तारित अग्रदूत द्वारा परेशान की गई हो।


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