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पत्थर की दुनीया

 पत्थर की दुनिया है साहब यहां पत्थर के लोग रहते हैं।

यहां पर कांच का दिल ले कर चलते हो टूटना निश्चित है।।

आसमां लाल हो गया सूर्य के गर्म तपिश से।

हृदय में अंगारा भरा है, किसी ज्वाला मुखी तरह से।।

परीश्रम क्या होता है यह मत पूछो सुबह से शाम इसी में जिन्दगी तमाम होती है, ख्वाब ख्वाब होते हैं,साहब हकिकत कभी ख्वाब नहीं बनता, यहां तो कठोर तराशा संगमरमर भी खुरुदरा चुभन युक्त बिस्तर जैसा ही होता है। 

पत्थर भी क्या चीज बनाई बनाने वाले दिल उसमें हृदय डाला होता शायद वह भी धड़कता और कहता यह कैसा मानव है जो हमारी नकल करता है?

लोग इस पत्थर की दूनीया में जींदा रहते हैं, रोज सुबह से साम तक उनका हृदय शीशे का टुटता रहता है, और वह शिसकियों को भरते हुए कहते हैं, क्यों इस जीवन में मृत्यु को बनाया जो डराती है, मारती तो केवल एक बार ही है, लेकिन यह रोज सुबह से शाम तक कहती है की तू क्यों सो रहा है, जाग जा मैं तेरे शर पर खड़ी हूं, ब हम जागजाते है तो वह कहती है कि तू सोता क्यों  नहीं हैं क्या तू पागल है।    


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