हमारे मन की भाषा | जागरूकता हिंदी में ओशो की नैतिक कहानी
जागरूकता पर सर्वश्रेष्ठ हिंदी नैतिक कहानी
एक आदमी ने शराब पि ली थी और वह रात बेहोश हो गया। आदत के वश अपने घर चला आया, पैर चले आए घर लेकिन बेहोश था घर पहचान नहीं सका।
सीढियों पर खडे होकर पास-पडोस के लागों से पूछने लगा कि मैं अपना घर भूल गया हूं, मेरा घर कहां हैं मुझे बता दो लोगों ने कहा, यही तुम्हारा घर है। उसने कहा, मुझे भरमाओ मत, मुझे मेरे घर जाना है, मेरी बुढी मां मेरा रास्ता देखती होगी। और कोई कृपा करो मुझे मेरे घर पहूंचा दो।
शोरगुल सुन कर उसकी बुढी मां भी उठ आई, दरवाजा खोल कर उसने देखा, उसका बेटा चिल्ला रहा है, रो रहा है कि मुझे मेरे घर पहुंचा दो। उसने उसके सिर पर हाथ रखा और कहा, बेटा यह तेरा घर है और मैं तेरी मां हूं।
उसने कहा, हे बुढिया, तेरे ही जैसी मेरी बुढी मां है वह मेरा रास्ता देखती होगी। मुझे मेरे घर का रास्ता बता दो। पर ये सब लोग हंस रहे हैं, कोई मुझे घर का रास्ता नही बताता। मैं कहां जाऊं ? मैं कैसे अपने घर जाऊं ? तब एक आदमी ने, जो उसके साथ ही शराब पी कर लौटा था, उसने कहा, ठहर, मैं बैलगाडी ले आता हूं, तुझे तेरे घर पहूंचा देता हूं।
तो उस भीड में से लोगों ने कहा कि पागल इसकी बैलगाडी में मत बैठ जाना, नही तो घर से और दूर निकल जाएगा; क्योंकि तू घर पर ही खडा हुआ है। तुझे कहीं भी नहीं जाना है सिर्फ तूझे जागना है, तुझे कहीं जाना नहीं है सिर्फ जागना है, सिर्फ होश में आना है और तुझे पता चल जाएगा कि तु अपने घर पर खडा है। और किसी की बैलगाडी में मत बैठ जाना, नही तो जितना, जितना खोज पर जाएगा उतना ही दूर निकल जाएगा।
हम सब वहीं खडे हुए है, जहा से हमें कहीं भी जाना नहीं है। लेकिन हमारा चित्त एक ही तरह की भाषा समझता है जाने की, दौड की, लालच की, पाने की, खोज की, उपलब्धि की । तो वह जो हमारा चित्त एक तरह की भाषा समझता है……
उसे ही गृहस्थ कहते है, असल में अगर ठीक से समझें, तो जो पाने की, खोज ने की, पहूंच ने की, लोभ (greed) की भाषा समझता है- ऐसे चित्त का नाम ही गृहस्थ है। गृहस्थ का कोई मतलब नहीं होता।
0 Comments
If you have any Misunderstanding Please let me know