बारहवीं रात (नाटक कहानी के रूप में) : विलियम शेक्सपियर
इल्यूशियम नगर में एक स्त्री ने जुड़वाँ बच्चों को जन्म दिया। रंग-रूप, शक्ल-सूरत एवं कद-काठी में दोनों समान थे। बस इतना ही अंतर था कि उनमें एक लड़का था और दूसरी लड़की। माँ ने बेटे का नाम सैबेस्टियन रखा और बेटी का व्यूला। जैसे-जैसे दोनों बच्चे बड़े होने लगे, वैसे-वैसे एक विशेष बात स्पष्ट होने लगी। प्रकृति ने दोनों बच्चों की किस्मत भी एक जैसी लिखी थी। कुदरत के ऐसे करिश्मे को देखकर सभी अचंभित थे।
धीरे-धीरे समय बीतता गया और दोनों बच्चे युवा हो गए। फिर एक दिन ऐसा भी आया जब वे दोनों जलयान पर सवार होकर विदेश यात्रा के लिए चल पड़े। लेकिन अभी वे नगर से कुछ ही दूर गए थे कि समुद्र में भयंकर तूफान आ गया। लहरों के प्रंड प्रहारों से जहाज डगमगाने लगा। नाविकों ने उसे सुरक्षित निकाल ले जाने की बहुत कोशिश की, परंतु सब व्यर्थ गया। कुछ ही पलों में वह जहाज एक विशाल चट्टान से टकराकर टुकड़े-टुकड़े हो गया।
इस दुर्घटना में कई यात्री समुद्र की लहरों में समाकर काल के ग्रास बन गए; अनेक लोग तैरते हुए इधर-उधर बह गए। परंतु विधाता ने भाई-बहन दोनों का जीवन सुनहरी कलम से लिखा था। उनका जीवन अभी शेष था। वे इस दुर्घटना में सुरक्षित बच गए, लेकिन एक-दूसरे से बिछड़ गए। पानी में डूबता-तैरता सैबेस्टियन लकड़ी के एक तख्ते तक जा पहुँचा। वह तख्ता उसके जीवित रहने का एकमात्र साधन था। अतः उसने उसे मजबूती से पकड़ लिया। लहरों के थपेड़े खाता वह तख्ता पानी पर तैरने लगा।
स्वयं को सुरक्षित पाकर उसे अपनी बहन व्यूला की याद आई। उसने बेचैन होकर इधर-उधर देखा। तभी उसे एक नाव दिखाई दी, जिस पर कुछ मल्लाह सवार थे। वे एक लड़की को जल से नाव पर खींच रहे थे। वह लड़की व्यूला ही थी। उसने आवाज लगाने की बहुत कोशिश की, लेकिन नाव के दूर होने तथा लहरों के शोर के कारण उसकी आवाज दबकर रह गई। फिर भी उसे बहुत संतोष था। उसकी बहन सुरक्षित बच गई थी।
‘यदि जीवन रहा तो वह उससे पुनः मिल लेगा’, यह सोचकर उसके मन में एक नई शक्ति का संचार हुआ और वह तख्ते को किनारे की ओर खेने लगा।
इधर व्यूला ने भी भाई को सुरक्षित देख लिया था। उसके मन में भी भाई से पुनः मिलने की आशा जाग उठी। इस प्रकार तूफान ने दोनों भाई-बहन को एक-दूसरे से अलग कर दिया।
बचे हुए यात्रियों को लेकर नाव किनारे पर पहुँची और सभी ईश्वर का धन्यवाद करते हुए एक-एक कर उतरने लगे। लेकिन व्यूला जहाज के कप्तान के पास गई और धीरे से बोली—‘‘श्रीमान, मेरा भाई मेरी जिंदगी का एकमात्र सहारा था। परंतु तूफान ने उसे मुझसे छीन लिया। न जाने वह कहाँ और किस हाल में होगा? मैं ईश्वर से सिर्फ इतनी प्रार्थना कर सकती हूँ कि वह जहाँ भी रहे, खुश और स्वस्थ रहे। मुझे पूरी उम्मीद है कि एक-न-एक दिन मैं उससे जरूर मिलूँगी। परंतु वह दिन कब आएगा, मैं इसके बारे में कुछ नहीं जानती। कप्तान साहब, क्या आप बता सकते हैं कि मुसीबत की इस घड़ी में मैं कहाँ जाऊँ और किसके पास रहूँ?’’
कप्तान दोनों भाई-बहन को पहले ही दिन से पिता के समान चाहने लगा था। उसने व्यूला के सिर पर हाथ फेरा और प्रेम भरे स्वर में बोला, ‘‘बेटी, मैं जहाज का कप्तान हूँ। मेरा कोई ठिकाना नहीं है। आज यहाँ तो कल वहाँ। मेरी सारी जिंदगी इसी प्रकार सफर में निकल गई है। इसलिए चाहकर भी मैं तुम्हें अपने पास नहीं रख सकता। लेकिन तुम पास के द्वीप पर चली जाओ। वहाँ ओर्सिनो नामक बड़ा ही धर्मात्मा और दयालु राजकुमार रहता है। वह युवा है, फिर भी अभी तक उसने विवाह नहीं किया है।’’
‘‘क्या मैं जान सकती हूँ कि उसने विवाह क्यों नहीं किया?’’व्यूला ने पूछा।
‘‘वह राजकुमार ओलिविया नामक एक युवती से प्रेम करता है। वह भी उससे बहुत प्रेम करती थी। ओलिविया का एक छोटा भाई था। वह उसे अपने प्राणों से अधिक प्रेम करती थी। लेकिन छह महीने पूर्व उसका भाई रोगी होकर काल का ग्रास बन गया। भाई की मृत्यु ने उसके मन पर ऐसा गहरा आघात किया कि उसने स्वयं को एक कमरे में बंद कर लिया। तभी से वह सभी सुख त्यागकर उस कमरे में बंद रहती है। वह कभी भी अपने दिल से भाई की याद को निकाल नहीं सकी। यही कारण है कि वह न तो किसी से मिलती-जुलती है और न ही स्वयं पर किसी परपुरुष की छाया पड़ने देती है। इसी के चलते उसने स्वयं को राजकुमार से भी दूर कर लिया। इधर राजकुमार दिन-रात उसके लिए तड़पता रहता है।’’
व्यूला दुखी स्वर में बोली, ‘‘न जाने मुझे भी मेरा भाई मिलेगा या नहीं। उसके बिना जीवित रहना बहुत कठिन है। कप्तान साहब, आपने जिस ओलिविया के बारे में बताया है, मैं भी उसकी तरह भाई के बिछोह से दुखी हूँ। यदि आप मुझे उस तक पहुँचा दें तो मैं आपका उपकार कभी नहीं भूलूँगी। मुझे पूरा विश्वास है कि अपने भाई की मृत्यु के दुख में डूबी ओलिविया मेरे मन की पीड़ा को अवश्य समझेगी और सैबेस्टियन को ढूँढ़ने में मेरी पूरी सहायता करेगी।’’
कुछ देर सोचने के बाद कप्तान बोला, ‘‘बेटी, शायद तुम ठीक कह रही हो। लेकिन उससे मिलना इतना सरल नहीं है। बिना परिचय के वह किसी से नहीं मिलती। उचित यही होगा कि तुम राजकुमार के पास जाओ। वह तुम्हारी कोई-न-कोई सहायता अवश्य करेगा और तुम्हें तुम्हारा भाई मिल जाएगा।’’
व्यूला को यह परामर्श उचित लगा। उसने कप्तान से विदा ली और राजकुमार से मिलने चल पड़ी।
कुछ दिनों की यात्रा के बाद वह द्वीप पर जा पहुँची। उसने एक देहाती युवक का वेश बनाया और राजकुमार के पास नौकरी करने लगी। सभी उसे सिसेरियो के नाम से जानते थे। जुड़वाँ होने के कारण वह बिलकुल अपने भाई जैसी दिखाई देती थी। ऊपर से पुरुष वेश ने उसे पूरी तरह से सैबेस्टियन की तरह बना दिया था।
चूँकि वह प्रत्येक कार्य में निपुण थी, इसलिए शीघ ही उसने अपने सेवाभाव से राजकुमार का मन जीत लिया। धीरे-धीरे वह राजकुमार की इतनी विश्वासपात्र बन गई कि वह उसे अपने दिल की सारी बातें बताने लगा। उसने उसे अपने प्रेम-संबंधों के बारे में भी विस्तार से बताया और उससे सहायता करने के लिए कहा।
परंतु अब तक व्यूला स्वयं भी राजकुमार से प्रेम करने लगी थी। राजकुमार का सुंदर, सलोना और सौम्य चेहरा बार-बार उसे आकर्षित करता था। वह मोहित होकर उसकी ओर खिंची चली जाती थी। वह मन-ही-मन सोचा करती थी कि ओलिविया कितनी पत्थरदिल है, जिसने इतने सुंदर राजकुमार को रोने के लिए छोड़ दिया है। उसके मन पर इसकी आहों का कोई असर नहीं होता। यदि राजकुमार मुझे मिल जाएँ तो मैं इन्हें पलकों पर बिठाकर रखूँगी, इनके चरणों को माथे से लगाऊँगी।
एक दिन ओलिविया को याद करते हुए ओर्सियो आँसू बहा रहा था। सिसेरियो से यह देखा न गया। वह उसके पास आया और स्नेह भरे स्वर में बोला, ‘‘राजकुमार, आप दिन-रात ओलिविया का गुणगान करते हुए आँसू बहाते रहते हैं। इसके चलते न तो आपको खाने-पीने की सुध रहती है और न ही किसी और काम में आपका मन लगता है। मुझसे आपकी यह दशा नहीं देखी जाती। आखिर यों कब तक आप उसे याद करके स्वयं को दुख पहुँचाते रहेंगे? आप तो उसके नाम की माला जपते रहते हैं, लेकिन क्या उसने कभी आपकी फिक्र की है? मुझे लगता है कि उस पत्थर दिल पर आपकी प्रार्थनाओं का कोई असर नहीं होगा।’’
राजकुमार तड़पते हुए बोला, ‘‘सिसेरियो, शायद ईश्वर ने स्त्रियों का मन ही पत्थर का बनाया है। इसलिए उनका दिल दुख भरी आहों से भी नहीं पसीजता । एक ओर तो पुरुष अपना सब कुछ स्त्री पर न्योछावर करके भी स्वयं को ऋणी मानते हैं, वहीं दूसरी ओर पत्थरदिल नारी को उनकी भावनाओं और जज्बातों से कोई सरोकार नहीं होता।"
राजकुमार के मुँह से स्त्रियों के लिए कठोर वचन सुनकर सिसेरियो का दिल तड़प उठा। उसने पुरुष का वेश बना रखा था, लेकिन वास्तव में वह थी तो एक नारी ही। वह राजकुमार को बताना चाहती थी कि हर नारी का दिल पत्थर का नहीं होता। उसके दिल में उसके लिए कितनी कोमल और स्नेहयुक्त भावनाएँ हैं। लेकिन चाहकर भी वह ये सब बातें उसे नहीं बता सकती थी। काश, वह विवश न होती तो अपना दिल निकालकर दिखा देती कि वह उसे कितना प्रेम करती है।
राजकुमार पुनः बोला, "इस दुनिया में स्त्री के प्यार पर विश्वास करना सबसे बड़ी मूर्खता है। उसका प्यार चंचल हिरणी की तरह होता है, जो कभी भी किसी एक स्थान पर नहीं टिकती।"
इस बार सिसेरियो अपने आप को नहीं रोक पाया। आखिरकार उसके मन की बात जुबान पर आ ही गई। वह थरथराते होंठों से बोला,"राजकुमार, इस प्रकार नारी के प्यार का अपमान न करें। आप नहीं जानते, नारी का प्यार कितना महान् होता है। यदि मैं स्त्री होता तो बता देता कि नारी का प्यार आसमान से भी ऊँचा और अनंत होता है। उसके सामने संसार के सभी सुख छोटे प्रतीत होते हैं। मुझे इसका बहुत गहरा अनुभव है।"
राजकुमार आश्चर्य में भरकर बोला, "यह क्या कह रहे हो तुम, सिसेरियो? क्या तुम अपनी बात का प्रमाण दे सकते हो?"
"उचित समय की प्रतीक्षा करें, राजकुमार! एक दिन मैं इस बात को प्रमाण सहित सिद्ध कर दूंगा।"सिसेरियो ने आत्मविश्वास के साथ कहा।
“सिसेरियो, मेरे लिए ओलिविया ही प्रत्यक्ष प्रमाण है। यदि तुम उसके मन में मेरे लिए पुनः प्रेम उत्पन्न कर दो तो मैं तुम्हारी बात मान लूँगा। मुझे तुम्हारे अंदर वह शक्ति दिखाई दे रही है जिससे तुम ओलिविया को मोहकर मेरे पास ला सकते हो। मित्र, तुम उसके पास मेरे प्रेम का संदेश लेकर जाओ और उसे मेरी वास्तविक स्थिति से अवगत कराओ। मुझे पूरा विश्वास है कि उसका पत्थरदिल अवश्य पिघल जाएगा। यदि तुमने ऐसा कर दिया तो मैं तुम्हारा अहसान जिंदगी भर नहीं भूलूँगा।"राजकुमार ने उसके हाथ पकड़कर विनती की।
व्यूला के मन पर जैसे किसी ने तलवार से वार किया हो। इस आघात ने उसके चेहरे को पीड़ा से भर दिया। जिसे वह दिलोजान से प्यार करती है, उसका प्रेम-संदेश दूसरी युवती के पास ले जाने की कल्पना तक से उसका दिल टुकड़े-टुकड़े हो गया। अपने प्रेमी को दूसरे के हाथ सौंपने की बात उसे अंदर-ही-अंदर बुरी तरह से कचोटने लगी। कितनी विकट स्थिति उत्पन्न हो गई थी। न चाहते हुए भी इस कार्य के लिए उसे ही चुना गया था।
परंतु वह राजकुमार को दिल से चाहती थी; उसके लिए उसकी खुशी ही सबसे अधिक महत्त्व रखती थी। सच्चा प्यार भी वही होता है, जिसमें आप अपने प्यार की अधिक परवाह करते हैं। इसलिए सीने पर पत्थर रखकर वह ओलिविया के पास जा पहुँची और राजकुमार की व्यथा बताते हुए बोली, "राजकुमारी, वे आपके बिना पल-पल मर रहे हैं। उनकी आँखें हमेशा आँसुओं से भीगी रहती हैं। उन्हें न तो खाने-पीने का होश रहता है, न ही सोने-जागने का। वे आपसे बहुत प्यार करते हैं। यदि आप उन्हें नहीं मिली तो वे ऐसे ही घुट-घुटकर अपने प्राण त्याग देंगे। इसलिए आप उन्हें स्वीकार करके उनकी प्राणरक्षा करें। इसी में आपकी और उनकी भलाई है।"
ओलिविया के मन में प्यार का सागर उमड़ आया। किंतु यह राजकुमार के लिए नहीं था। सिसेरियो की प्रेमयुक्त बातों, कोमल आवाज और सौम्य चेहरे ने उसे मोहित-सा कर दिया। चूँकि सिसेरियो पुरुष वेश में था, इसलिए वह उसे पुरुष समझकर मन-ही-मन उससे प्रेम करने लगी। उस पर सिसेरियो का जादू ऐसा चला कि वह भाई के दुख को भी भूल बैठी। उसने सिसेरियो का हाथ पकड़ लिया और प्रेमपूर्वक उसे चूमने लगी।
सिसेरियो ओलिविया के मन के भावों को समझ गया। उसने हाथ पीछे खींच लिया और पुनः उसका मन राजकुमार की ओर मोड़ने का प्रयत्न करने लगा।
पानी की धारा का मुख तो मोड़ा जा सकता है, किंतु समुद्र का रास्ता मोड़ना असंभव होता है। ऐसा ही कुछ ओलिविया के साथ भी हुआ। सिसेरियो उसे जितना राजकुमार के बारे में बताता, उतना ही वह उसकी ओर आकर्षित होती जाती। अंत में वह विनम्र स्वर में बोली,“युवक, तुम मेरी ओर से राजकुमार से क्षमा माँग लेना और उन्हें कह देना कि वे मेरे लिए इतने दीवाने न हों। मैं उनके योग्य नहीं हूँ। इसलिए वे मुझे भूल जाएँ। मैं कभी उनकी नहीं हो सकती।"
आखिरकार सिसेरियो उसे समझा-समझाकर हार गया और निराश होकर राजकुमार के पास लौट आया।
सिसेरियो के बाद ओलिविया का मन बेचैन हो गया। ऐसा लगने लगा मानो कोई उसका मन निकालकर ले गया हो। बार-बार उसकी आँखों के सामने सिसेरियो का चेहरा घूमने लगा। कानों में उसी की मधुर आवाज गूंजने लगी। वह उससे पुनः मिलना चाहती थी। लेकिन उसे कोई रास्ता नजर नहीं आया। इसी प्रकार सारी रात कट गई।
सुबह कुछ सोचकर उसने कागज-कलम उठाई और सिसेरियो के नाम एक पत्र लिखने लगी-
'प्रिय सिसेरियो,
मैं अपने आप में डूबी हुई चुपचाप दिन काट रही थी। मुझे किसी से कोई मतलब नहीं था। लेकिन कल तुम बारिश की बूंदों की तरह आए और मुझे अपने प्रेम से पूरी तरह भिगो दिया। तुम्हारी बातों ने मेरे मन में विचारों की उथल-पुथल पैदा कर दी। राजकुमार का संदेश लेकर तुम मेरे पास क्यों आए थे? तुम तो चले गए, साथ में मेरा सुख-चैन और मन चुराकर ले गए। तुम्हारे साथ बीता हुआ एक-एक पल मुझे याद आ रहा है। तुमसे मिलने के बाद मैं तुम्हारी हो गई हूँ। प्रियतम! अगर तुम्हारे दिल में मेरे लिए जरा सी भी दया है तो एक बार आकर मेरी आँखों को तृप्त अवश्य करो। मैं पलकें बिछाए बड़ी बेसब्री से तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही हूँ।
तुम्हारी ओलिविया'
पत्र लिखने के बाद उसने अपने एक विश्वस्त सेवक के हाथों वह संदेश सिसेरियो तक पहुँचा दिया। पत्र पढ़कर एक पल के लिए सिसेरियो भौचक्का रह गया। फिर जोरदार ठहाका लगाकर हँसने लगा। उसके मन में ओलिविया के लिए सहानुभूति उमड़ आई। उसकी कोमल भावनाओं पर उसे दया आने लगी। यह वही ओलिविया थी, जो पुरुष के साए से भी दूर रहती थी। परंतु आज एक स्त्री के प्रेम में पड़कर सुधबुध खो बैठी थी।
लेकिन यह मजाक का विषय नहीं था। इससे स्थिति और भी गंभीर हो सकती थी। यही सोचकर व्यूला पुनः ओलिविया के पास गई और समझा-बुझाकर उसका मन अपनी ओर से हटाने का प्रयत्न करने लगी। लेकिन अनेक प्रयत्न करने के बाद भी वह उसकी दीवानगी दूर नहीं कर सकी। अंत में थक-हारकर वह महल की ओर लौट पड़ी।
जैसे ही व्यूला ओलिविया के घर से बाहर निकली, उसका सामना एक शराबी से हो गया। नशे के कारण वह बुरी तरह से लड़खड़ा रहा था। उसने व्यूला का मार्ग रोक लिया और उत्तेजित होते हुए बोला,
"अच्छा, तो तुम ही वह व्यक्ति हो जिसके हाथ राजकुमार अपने प्रेम संदेश ओलिविया तक पहुँचाता है। मैं ओलिविया से प्रेम करता हूँ; वह सिर्फ मेरी है। उसे कोई मुझसे नहीं छीन सकता। अगर राजकुमार सोचता है कि वह तुम्हें भेजकर ओलिविया के मन में अपने लिए प्रेम पैदा कर लेगा तो यह उसकी भूल है। मैं अभी तुम्हें इसका मजा चखाता हूँ। इसके बाद मैं उस राजकुमार को सबक सिखाऊँगा।"
यह कहकर शराबी ने तलवार निकाल ली और सिसेरिया की ओर लपका।
उसे अपनी ओर आते देख सिसेरिया के होश उड़ गए। आखिरकार थी तो वह एक लड़की ही। वह भला उस शराबी का सामना कैसे कर पाती! भय से उसका चेहरा पीला पड़ गया। वह पसीने से नहा उठी।
वह सहायता के लिए चिल्लाना ही चाहती थी कि तभी उसे एक पुरुष स्वर सुनाई दिया, "घबराओ मत सैबेस्टियन! मैं अभी इस दुष्ट को सीधा करता हूँ।"
अपने भाई का नाम सुनकर व्यूला चौंक पड़ी। उसने पलटकर देखा तो गली के कोने से एक व्यक्ति तेज-तेज चलता हुआ आ रहा था। वह व्यूला के लिए अजनबी था। पास आते ही उस अजनबी ने शराबी का हाथ पकड़ लिया और उसके साथ भिड़ गया। पलक झपकते ही उसने शराबी की तलवार छीन ली और उसे लात-घूसों से मारने लगा।
अचानक घटी इस घटना ने व्यूला को बेसुध-सा कर दिया। इससे पहले कि वह कुछ कर पाती, दो सैनिकों ने आकर अजनबी के हाथों में हथकड़ी पहना दी और उसे घसीटकर थाने ले जाने लगे।
अजनबी चीखते हुए बोला, "देख क्या रहे हो, सैबेस्टियन! मेरी मदद करो।'
व्यूला को जैसे कुछ सुनाई दे रहा था; वह एकटक उस अजनबी को देख रही थी।
अजनबी ने उसे पुनः पुकारा, "सैबेस्टियन, इस प्रकार बुत बनकर क्यों खड़े हो? मेरी मदद करो। भूल गए, मैंने तुम्हें समुद्र में से निकालकर तुम्हारी रक्षा की थी। इस समय भी मैं तुम्हारी प्राणरक्षा के लिए ही इस शराबी से उलझा था। लेकिन मेरी मदद करने के बदले तुम चुप खड़े हो।"
अजनबी की बात सुनकर व्यूला जैसे नींद से जागी। उसकी चेतना लौटने लगी। धीरे-धीरे उसके मस्तिष्क में सारी स्थिति स्पष्ट होने लगी। वह समझ गई कि यह अजनबी अवश्य उसके भाई का मित्र है। इसका मतलब यह था कि उसका भाई अभी जीवित है। यह सोचकर उसका मन प्रसन्नता से भर उठा। लेकिन इससे पूर्व वह सैनिकों को कुछ कह पाती, वे उसे घसीटते हुए वहाँ से ले गए।
व्यूला ने इधर-उधर देखा, तब तक शराबी भी वहाँ से नौ-दो ग्यारह हो चुका था। कहीं वह न लौट आए, यह सोचकर व्यूला तेजी से आगे बढ़ गई।
जैसे ही व्यूला गली से बाहर निकली वैसे ही दूसरे छोर से सैबेस्टियन ने गली में प्रवेश किया। अभी वह गली के बीचोबीच पहुँचा ही था कि शराबी पुनः लौट आया। इस बार उसके साथ दो हट्टे-कट्टे गुंडे भी थे।
उसने सैबेस्टियन को व्यूला समझकर घेर लिया और उसे झिड़कते हुए बोला, "तूने मुझे अपने साथी के हाथों पिटवाकर बहुत बुरा किया। मैं तुझे नहीं छोड़ेंगा। देख, मैं तेरी कैसी दुर्गति करता हूँ।" यह कहकर तीनों गुंडों ने तलवारें निकाल ली और सैबेस्टियन पर हमला कर दिया।
लेकिन सैबेस्टियन भी एक उत्कृष्ट कोटि का तलवारबाज और बड़ा ही चुस्त लड़ाका था। वह उनके वार बचा गया और तेजी से अपनी तलवार निकालकर उनका सामना करने लगा। देखते-ही-देखते उसने तीनों की तलवारें काट डाली और मार-मारकर उन्हें भागने के लिए विवश कर दिया।
तब तक शोर-शराबा सुनकर ओलिविया भी बाहर आ गई थी। सैबेस्टियन को अकेले तीनों गुंडों को धूल चटाते देख वह बुरी तरह से उस पर आसक्त हो गई। वह उसे सिसेरियो समझ रही थी। उसने उसका हाथ पकड़ा और उसे प्रेमपूर्वक अपने महल के अंदर ले आई। सैबेस्टियन बड़ा हैरान था। इस शहर में नया होने के कारण वह न तो किसी को जानता था और न ही पहले कभी यहाँ आया था। फिर भी बिना किसी कारण के वे गुंडे उससे लड़ने को उतावले हो रहे थे। इसके बाद एक अनजानी राजकुमारी उस पर स्नेह और प्रेम की वर्षा कर रही थी। इन सबने उसे सोच में डाल दिया। वह इसे जितना सुलझाने की कोशिश करता, उतना ही और उलझता जाता।
धीरे-धीरे ओलिविया के प्रेम ने सैबेस्टियन पर अपना असर दिखाना शुरू कर दिया। वह सोचने लगा कि शायद मेरी वीरता और सुंदरता देखकर यह युवती मुझसे प्रेम करने लगी है। उसका मन भी ओलिविया की ओर आकर्षित हो रहा था। अत: वह भी उसके प्रेम का प्रत्युत्तर प्रेम से देने लगा।
ओलिविया भी उसका व्यवहार देखकर आश्चर्यचकित हो रही थी। कुछ देर पहले तक सिसेरियो उससे दूर रहने की बात कर रहा था। लेकिन अब उसके प्रति प्रेम प्रदर्शित कर रहा था। उसमें यह परिवर्तन देखकर ओलिविया बहुत प्रसन्न हुई। अंततः सिसेरियो भी उसे प्रेम करने लगा था। उसकी मन की मुराद पूरी हो गई थी।
उधर थाने में सैनिक उस अजनबी से पूछताछ कर रहे थे।
"तुम्हारा नाम क्या है? क्या करते हो?"
"मेरा नाम एंटोनियो है। मैं एक जहाज का कप्तान हूँ।"उसने शालीनता से उत्तर दिया।
"तुम उस शराबी के साथ लड़ाई क्यों कर रहे थे?"
"वह मेरे मित्र सैबेस्टियन को मारने वाला था। उसे बचाने के लिए ही मैंने उस शराबी से लड़ाई की थी।"
"अगर वह तुम्हारा मित्र था तो तुम्हारे पुकारने पर वह कुछ बोला क्यों नहीं?"सिपाही ने अगला प्रश्न किया।
एंटोनियो का चेहरा गुस्से से लाल हो गया। वह भभकते हुए बोला, “जब वह समुद्र में डूब रहा था, तब मैंने उसके प्राण बचाए, उसे अपने जहाज पर शरण दी, उसकी सुख-सुविधाओं का ध्यान रखा। आज भी उसे बचाने के लिए मैंने अपने प्राण संकट में डाले थे। लेकिन मुझे नहीं पता था कि वह मक्कार और कृतघ्न है।"
"अब तुम क्या करोगे?"
"मैं इस शहर में परदेशी हूँ। मेरा इरादा किसी को नुकसान पहुँचाने का नहीं था। मैंने जो कुछ किया, बचाव में किया। अब आप पर निर्भर करता है कि इसके लिए मुझे दंडित करें या छोड़ दें।"एंटेनियो ने शांत स्वर में कहा।
उसकी विनम्रता देखकर सैनिक बड़े प्रभावित हुए और उसे चेतावनी देकर छोड़ दिया।
सैबेस्टियन की दगाबाजी ने एंटोनियो के तन-बदन में आग लगा दी थी। वह उससे प्रतिशोध लेने के लिए तड़प रहा था। उसने निश्चय कर लिया था कि चाहे कुछ भी हो जाए, वह उसे सबक सिखाकर रहेगा। वह शीघता से उस स्थान पर जा पहुंचा, जहाँ से उसे बंदी बनाया गया था। लेकिन सैबेस्टियन का दूर-दूर तक कोई पता नहीं था।
उधर, सिसेरियो अभी तक महल में नहीं पहुंचा था। राजकुमार को उसकी चिंता होने लगी। जब बहुत देर हो गई तो उसे ढूँढ़ते हुए वह ओलिविया के घर पहुंचा। घर के अंदर प्रवेश करते ही उसकी आँखें फटी-की-फटी रह गई । उसने देखा, सिसेरियो पलंग पर शॉल लपेटे बैठा हुआ है। पास ही ओलिविया बैठी हुई उसे अपने हाथों से फल खिला रही थी।
यह दृश्य देखकर राजकुमार का रोम-रोम जल उठा। उसने स्वप्न में भी ऐसी कल्पना नहीं की थी। वह गरजते हुए बोला, “सिसेरियो! विश्वासघाती. मैंने तुझे अपना राजदार बनाकर ओलिविया के पास भेजा था, ताकि तू उसके दिल में मेरे लिए प्रेम पैदा कर सके। लेकिन तू अपनी ही दाल गलाने लगा। ऐसा करते हुए तुझे लज्जा नहीं आई! तू भूख से तड़पते हुए मेरे पास आया था। मैंने तुझे खाना दिया, नौकरी दी, यहाँ तक कि तुझे मित्र की तरह समझा। परंतु तूने मेरी पीठ में ही छुरा घोंप दिया!"
राजकुमार की जली-कटी सुनकर सैबेस्टियन भी गुस्से में भर आया और पलंग से खड़े होते हुए बोला, "कौन है तू, जो इस तरह से मुझे अपशब्द बोल रहा है? किसने कहा कि मैं तेरे पास भूख से पीडित होकर आया था? लगता है, तेरा दिमाग फिर गया है, इसलिए मुझे सिसेरियो के नाम से पुकार रहा है। कान खोलकर सुन ले, मेरा नाम सैबेस्टियन है और मैं आज ही इस शहर में आया हूँ। अगर अब तूने कुछ गलत बोला तो मैं तेरी जुबान खींच लूँगा!"
सैबेस्टियन का स्वर इतना ऊँचा था कि बाहर खड़े एंटोनियो ने भी उसकी आवाज सुन ली। वह शीघ्रता से घर के अंदर आया और सैबेस्टियन से बोला"दुष्ट, मैंने तुझे अपना मित्र समझा और तूने मेरे साथ ही विश्वासघात किया! मैंने तुझे डूबने से बचाया था। यहाँ भी तुझे बचाने के लिए मैंने अपने प्राण संकट में डाले। लेकिन तू मक्कार और दगाबाज निकला। तुझ जैसे धोखेबाज को तो भूखे कुत्तों के सामने डाल देना चाहिए।"
यह कहकर उसने सैबेस्टियन को पकड़ लिया और बाहर घसीटने लगा। इस कार्य में राजकुमार भी उसकी सहायता करने लगा। तभी आश्चर्य से दोनों की आँखें खुली-की-खुली रह गई । उन्होंने सैबेस्टियन को छोड़ दिया और दरवाजे की ओर देखने लगे। वहाँ से व्यूला अंदर आ रही थी। उस समय भी वह पुरुष-वेश में ही थी।
एक समान कद-काठी, रंग-रूप एवं चेहरेवाले दो व्यक्तियों को देख राजकुमार और एंटोनियो बारबार पलकें झपकने लगे। दोनों में बाल भर भी अंतर नहीं था। ओलिविया भी दुविधा में पड़ गई कि इसमें से उसका प्रेमी कौन है।
उनके रहस्य को कोई नहीं जानता था। परंतु सैबेस्टियन और व्यूला एक-दूसरे को पहचान गए। प्रसन्नता से उनकी आँखें भर आई और उन्होंने आगे बढ़कर एक-दूसरे को गले से लगा लिया। आसपास खड़े लोग बड़े आश्चर्य के साथ उनके इस भावुक मिलन को देख रहे थे।
व्यूला भाई को जोर से बाँहों में भरते हुए बोली, "आप कहाँ चले गए थे, भैया? आपके बिना मैंने एक-एक पल पहाड़ की तरह काटा है। आज आपको जीवित देखकर मेरे सभी दुख और कष्ट समाप्त हो गए हैं।"
"मेरी बहन! तुम्हारे बिना मेरा हाल भी बहुत बुरा था। हर पल मुझे तुम्हारी याद आती रहती थी। तुम्हें देखकर मुझमें फिर से प्राणों का संचार हो गया है। सैबेस्टियन ने बहन की आँखों से आँसू पोंछते हुए कहा।
अब तक शांत खड़ा राजकुमार सैबेस्टियन के मुख से सिसेरियो के लिए 'बहन' शब्द सुनकर बुरी तरह से चौंक पड़ा। वह धीमे से बोला, "तो क्या सिसेरियो पुरुष वेश में एक लड़की है? लेकिन इसने ऐसा क्यों किया?"
"राजकुमार, यह मेरा भाई सैबेस्टियन है। जहाज-दुर्घटना में हम एक-दूसरे से बिछड़ गए थे। जिस व्यक्ति ने मुझे डूबने से बचाया था, उसने मुझे बताया कि सैबेस्टियन को ढूँढ़ने में केवल आप ही मेरी सहायता कर सकते थे। इसलिए पुरुष वेश बनाकर मैं आपके पास सहायता के लिए आई थी। परंतु यहाँ आकर आपकी सौम्यता, दयालुता और शालीनता ने मेरे मन को जीत लिया और मन-ही-मन मैं आपसे प्रेम कर बैठी। यह आप पर निर्भर करता है कि आप मुझे स्वीकार करें या नहीं, लेकिन मैं जीवन भर आपकी सेवा करती रहूँगी।"आखिरकार व्यूला ने अपने मन की बात कह ही दी। व्यूला के प्रेम को लेकर राजकुमार के मन में कोई संदेह नहीं था। उसने आगे बढ़कर उसे मन से लगा लिया।
अब सैबेस्टियन की बारी थी। वह ओलिविया से बोला, "जब मैं डूब रहा था तब एंटोनियो ने मुझे बचाया था। मैं इसका उपकार जिंदगी भर नहीं भूल सकता। हम दोनों व्यूला को ढूँढ़ने के लिए ही इस शहर में आए थे। परंतु संयोगवश मेरी भेंट ओलिविया से हो गई। ओलिविया, मैं तुमसे प्यार करने लग गया हूँ। क्या तुम मेरे साथ जीवन बिताना पसंद करोगी?"
ओलिविया ने सैबेस्टियन का हाथ थामकर अपनी स्वीकृति दे दी। अब तक एंटोनियो भी सारी बात समझ चुका था। उसने सैबेस्टियन से अपने किए की माफी माँग ली। इसके बाद राजकुमार व्यूला को लेकर वहाँ से चला गया।
(रूपांतर - महेश शर्मा)
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