Panchtantra ki kahani in hindi by vishnu sharma-शरारती बंदर
Panchtantra ki kahani in hindi by vishnu sharma-शरारती बंदर
किसी शहर में, एक व्यापारी रहता था। उसने अपने व्यापार से बहुत सा धन जमा कर लिया। उससे उसने एक मंदिर बनवाना चाहा। उसने तय किया कि मंदिर के निर्माण के लिए वह अपनी सारी बचत दान कर देगा। मंदिर निर्माण के लिए काफी धन की आवश्यकता थी, इसलिए उसने अपने आभूषणों को बेचकर भी धन इकट्ठा किया। फिर उसने मंदिर का बहुत सुंदर नक्शा तैयार करवाया।
मंदिर में काम करने के लिए दूर-दूर से हुनरमंद कारीगरों को बुलवाया गया ताकि एक दर्शनीय मंदिर तैयार किया जा सके। कुछ ही दिनों में वहां बहुत से मूर्तिकार, पत्थर काटने वाले, बढ़ई और मजदूर भी आ गए। अब जब तक मंदिर का निर्माण न हो जाए, तब तक वे सब वहीं रुकने वाले थे।
व्यापारी ने उनके लिए वहीं अस्थायी रूप से रहने और खाने का प्रबंध भी कर दिया था। डेरे के चारों ओर लोग काम करने लगे। सभी अपने-अपने कार्यों में व्यस्त रहते। व्यापारी चाहता था कि मंदिर का निर्माण कार्य जल्दी से जल्दी पूरा हो जाए इसलिए वह नहीं चाहता था कि उनके काम में किसी तरह रुकावट हो। लेकिन उनके काम में एक रुकावट बार-बार आ जाती-पास वाले जंगल से कुछ बंदर वहां आ जाते। उन्हें वहां लोगों को देखकर ऐसा लगता था कि शायद कुछ खाने को मिल जाए।
सारे कारीगर उन्हें वहां से भगाना चाहते, पर बंदर बहुत नटखट और चालाक थे। कई बार तो वे उनका भोजन भी चुरा कर ले जाते। और कभी कुछ समय के लिए वे वहां से हट जाते, पेड़ों की शाखाओं या पत्थरों के पीछे छिप कर बैठ जाते, उन कारीगरों को देख कर तरह-तरह मुंह बनाते और चिढ़ाते तथा मौका मिलते ही मजे से उनका चुराया हुआ भोजन खाकर मौज-मस्ती करते।
वहां काम करने वाले लोग बंदरों के इस दल से बुरी तरह तंग आ गए थे। उन बंदरों के कारण उनका काम करना मुश्किल हो गया था। सारे कारीगर मिल कर कुछ पटाखे ले आए। जब भी बंदर उधर आते तो वे उन्हें डराने के लिए पटाखे चला देते, जिनसे बंदर पेड़ों पर चले जाते।
कुछ दिनों के बाद बंदर इतना परेशान हो गए कि उन्होंने जंगल में वापस जाने का फैसला कर लिया। वे वहां सुरक्षित थे। कम से कम वहां कोई पटाखे चला कर उन्हें डराने वाला तो नहीं था। अगले ही दिन वहां बंदर दिखाई देने बंद हो गए। सभी कारीगरों ने चैन की सांस ली और वे अपने-अपने काम में लग गए। जल्दी ही दोपहर हो गई। सारे कारीगर अपने औजार रख कर खाना खाने चले गए।
एक बढ़ई लकड़ी के लट्टे को बीच से चीर रहा था, जिसके लिए वह एक कुल्हाड़ी और आरी का इस्तेमाल कर रहा था। जब दोपहर तक उसका काम पूरा नहीं हुआ तो उसने लकड़ी का एक टुकड़ा उस आधे चिरे हुए हिस्से में फंसा दिया। इसके बाद वह खाना खाने चला गया।
एक बंदर बड़ी हैरानी से यह सब देख रहा था। वह बंदर नासमझ था। वहां कोई पटाखे चलाते हुए भी दिखाई नहीं दे रहा था इसलिए उसे लगा कि वह आराम से वहां जा सकता है। उसने वहां से कुछ औजार और पत्थर उठाए और उनके साथ खेलने लगा। तभी उसे वह लट्ठा दिखाई दिया जिसे चीरते हुए बीच में छोड़कर बढ़ई चला गया था। बंदर को समझ नहीं आया कि वह क्या है इसलिए वह उसके ऊपर उछल-कूद करने लगा। उसे लढे में एक लड़की का टुकड़ा फंसा हुआ दिखाई दिया। उसने उसे निकालना चाहा, पर वह निकाल नहीं । सका। फिर उसने अपनी टांग बीच में रखी और जोर लगाया। इस तरह वह टुकड़ा तो बाहर आ गया लेकिन उसकी टांग उस आधे चिरे हुए लट्टे के बीच में फंस गई। वह बहुत जोर से चिल्लाया, परंतु वहां कोई नहीं था। सब खाना खाने गए हुए थे। जब वे वापस आए तब तक तो मूर्ख बंदर चिल्ला-चिल्ला कर दम तोड़ चुका था। इस तरह उसकी शरारत उसे बहुत महंगी पड़ी थी।
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