👉 अपनी स्थिति पर विचार करें?
एक सेठ बड़ा धनवान था। उसे अपने
ऐश्वर्य धन सम्पत्ति का बड़ा अभिमान था। अपने को बड़ा दानी धर्मात्मा सिद्ध करने
के लिए घर पर नित्य एक साधु को भोजन कराता था। एक दिन एक ज्ञानी महात्मा आये उसके
यहाँ भोजन करने को। सेठजी ने उनकी सेवा पूजा करने का तो ध्यान नहीं रखा और उनसे
अपने अभिमान की बातें करने लगा “देखो महाराज वहाँ से लेकर इधर तक यह अपनी बड़ी
कोठी है,
पीछे भी इतना ही बड़ा बगीचा है। पास ही दो बड़ी मीलें हैं।
अमुक−अमुक शहर में भी मीलें हैं। इतनी धर्मशालायें, कुँए
बनाये हुए हैं। दो लड़के विलायत पढ़ने जा रहे हैं आप जैसे साधु संन्यासियों के पेट
पालन के लिए यह रोजाना का सदावर्त लगा रखा है।” सेठ अपनी बातें कहता ही जा रहा था।
महात्मा जी ने सोचा इसको अभिमान हो गया है इसलिए इसका अभिमान दूर करना चाहिए। बीच
में रोककर सेठ जी से कहा आपके यहाँ दुनियाँ का नक्शा है। सेठ ने कहा “महाराज बहुत
बड़ा नक्शा है।” महात्मा जी ने नक्शा मंगाया। उसमें सेठ से पूछा “इस दुनियाँ के
नक्शे में भारत कहाँ है।” सेठ ने बताया। “अच्छा इसमें बम्बई कहाँ है” सेठ ने हाथ
रखकर बताया। महात्मा जी ने फिर पूछा “अच्छा इसमें तुम्हारी काठी, बगीचे, मीलें बताओ कहाँ हैं।” सेठ बोला महाराज
दुनियाँ के नक्शे में इतनी छोटी चीजें कहाँ से आई। महात्मा ने कहा “सेठजी अब इस
दुनियाँ के नक्शे में तुम्हारी कोठी बगीचे महल का कोई पता नहीं तो विश्व ब्रह्माण्ड
जो भगवान के लीला ऐश्वर्य का एक खेल मात्र है उनके यहाँ तुम्हारे ऐश्वर्य का क्या
स्थान होगा?” सेठ समझ गया और उसका अभिमान नष्ट हुआ। वह साधु
के चरणों में गिरकर क्षमा याचना करने लगा।
थोड़ी−सी समृद्धि ऐश्वर्य पाकर
मनुष्य इतना अभिमानी और अहंकारी बन जाता है। यदि वह अपनी स्थिति की तुलना अन्य
लोगों से,
फिर भगवान के अनन्त ऐश्वर्य से करे तो उसे अपनी स्थिति का पता चले।
धन सम्पत्ति ऐश्वर्य का अभिमान वृथा है। मूर्खता ही है। प्रथम तो यहाँ की सम्पदा
पर मनुष्य का अपना अधिकार जताना अज्ञान है क्योंकि यह सदा यहीं की धरोहर है और
यहीं रहती है। यह भगवान की सम्पदायें हैं, कोई भी व्यक्ति
इन्हें नहीं ले जा सकता। तिस पर भी अपनापन मानकर थोड़े से धन ऐश्वर्य पर बौरा जाना
पागलपन, अज्ञान ही है।
📖 अखण्ड ज्योति अगस्त 1961
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