🙏परमात्मा का इंतजार🙏
एक बार कि बात है एक बहुत बड़ा मंदिर दक्षिण भारत में था। उसमें सैकड़ों पुरोहित कार्य करते थे। एक रात जो मुख्य पुरोहित था, उसके स्वप्न में परमात्मा आया और उससे कहा की कल मैं तुम्हारे मंदिर में आऊँगा, तुम्हारा आतिथ्य स्वीकार कर लिया गया है और परमात्मा अदृश्य हो गया। अगले दिन सुबह मुख्य पुरोहित ने अपने और दूसरे सहयोगी पुरोहितों से कहा- की आज परमात्मा हम सब से मिलने के लिए आ रहा है। उसके साथी जो दूसरे पुरोहित थे उन्होंने कहा कि क्या बकवास करते हो कहां है परमात्मा? और उसका आना असंभव है, क्योंकि परमात्मा नाम की कोई वस्तु है ही नहीं यह तो हम सब का पैसा या यूं कहें की यह तो हमारा धंधा या व्यापार है। हम सब यह अच्छी तरह से जानते हैं, कि हमारी सारी प्रार्थना और उपासना तो केवल दिखावा है यह सब तो खाली आकाश में जाकर विलीन हो जाती है। उस मुख्य पुरोहित ने जिसके स्वप्न में परमात्मा आया था, उसने कहा की मान लो यदि परमात्मा सच में ही आ गया तो हम सब के लिये समस्या आ जायेगी, हमारा जाता ही क्या है? किसी तरह से वह सभी लोग तैयार हो जाते है और पूरे मंदिर को साफ-सुथरा किया गया और सब तरफ से मंदिर को खुब सजाया, संवारा गया, तरह-तरह के धूप अगर बत्ती फूल मालाओं से अलंकृत किया गया, और बावन प्रकार के सुस्वादु व्यंजन पकवान को तैयार किया गया। जब सब कुछ तैयार हो गया तब वह सारे पुरोहित बैठकर परमात्मा के आने का इंतजार करने लगे। दोपहर हो गई और परमात्मा का कहीं कोई भी खबर नहीं आई, तब मुख्य पुरोहित ने अपने एक सेवक को बुलाया और उससे कहा कि तुम बाहर चौरास्ते पर देख कर आए, कि परमात्मा का कहीं कोई आने का पता है या नहीं। वह सेवक गया काफी दूर तक देख कर वापस आ गया, और उसने सूचना दी की परमात्मा का कहीं भी कोई अता-पता नहीं है। इंतजार करते हुए अन्त में शाम हो गई, धिरे -धिरे मंदिर में रात्रि उतरने लगी और परमात्मा नहीं आया। जब सारे इंतजार करते हुए निराश हो गये। तब सभी पुरोहितों ने मिलकर मुख्य पुरोहित का बहुत मजाक उड़ाया, और बहुत बुरा-भला कहते हुए कहा अच्छा हुआ जो हमने गांव वालों को परमात्मा के आने का समाचार नहीं बताया, नहीं तो वह सभी गांव वाले हमारा सब का जीना मुश्किल कर देते, और वे मिल कर हम सब को पागल समझ कर मजाक भी उड़ाते और हमें मूर्ख कहते। इसके बाद में उन सब ने मिल कर भोजन किया जो परमात्मा के लिए बनाया गया था। उसके बाद सब अपने-अपने बिस्तर पर चले गए। मध्य रात्रि को जब सारे पुरोहित सो गए, तब एक पुरोहित अचानक जाग गया और जोर-जोर से चिल्लाकर सभी को जगाते हुए कहने लगा की सभी लोग उठ जाओ जिस परमात्मा का हम सब दिन भर इंतजार कर रहे थे। वह आ रहा है उसके रथ के आने की आवाज मंदिर के बाहर से आ रही है। तब दूसरे पुरोहितों ने मिलकर उस पुरोहित को बहुत डांटा, और कहा मूर्ख सो जा कोई परमात्मा नहीं आ रहा है, यह आवाज तो बादल के गण-गड़ाने से आ रही है। फिर वह सभी सो गए, कुछ देर के बाद जब सभी सो गए, तभी पुरोहित कि नींद खुल गई, और उसने कहा की कोई जाकर दरवाजे को खोलें परमात्मा आ रहा है, उसके कदमों की आहट आवाज आ रही है। फिर कुछ मजबूत पुरोहितों ने मिल कर उसको खुब डांटा फटकारा, और कहा क्या तू हम सब को पागल समझता है, क्यों हम सब से मार खाना चाहता है। दिन भर परमात्मा-परमात्मा कहता रहा और तेरा परमात्मा नहीं आया, अब जब जमीन पर हवा के चलने की और धुल- धूसर की आवाज आ रही है, जिसे तू परमात्मा के कदमों की आहट समझता है। तू तो महा मूर्ख है सो जा, इस तरह से फिर सारे सो गए। जब थोड़ा समय और गुजर गया, तब फिर पुरोहित फिर जाग गया, और उसने कहा अब मत सोओ, क्योंकि परमात्मा सच में ही आ गया है। वह दरवाजा को खट-खटा रहा है। तब तो आश्चर्य ही हो गया, उन सारे पुरोहितों ने मिलकर उस पुरोहित की अच्छी पिटाई कर दी, वह पुरोहित बुरी तरह से घायल लहू- लुहान हो गया, तब मारने वाले पुरोहितों ने कहा कि यह तो खिड़की पर हवा के टकराने की आवाज आ रही है। उसके बाद एक बार फिर चद्दर डाल कर घोड़ा बेच कर सब सो गए। जब सुबह हुई तो जो मुख्य पुरोहित था वह जब दरवाजा खोल कर बाहर आया, तो उसने देखा की सच में परमात्मा आया था उसके रथ के पहिये का निशान और कदमों के चिन्ह मौजूद थे, यह देख कर वह बहुत आश्चर्य चकित हुआ, और अपनी छाती पीट कर फुट-फुट कर रोने लगा, उसको देख कर गांव वाले आ गये और उन्होंने पूछा क्या बात है? क्यों रो रहे हैं? तो उस पुरोहित ने कहा की परमात्मा हमारे दरवाजे पर आ कर हमें बुला रहा था और हम सब घोड़ा बेच कर सो रहे थे, वह वापिस चला गया। ऐसा सिर्फ उन पुरोहितों के साथ नहीं हुआ, हम सब के साथ भी यही हो रहा है। हम सब भी सदियों से सोने के आदि हो गए हैं परमात्मा तो हम सब के हृदय में उपस्थित है और हम सब को हर पल बुला रहा है, हम सब सोने में ही जीवन को सार्थक समझते हैं। स्वयं को जगाने के लिये ही यह एक प्रयास है। परम पिता परमेश्वर की असीम कृपा से यह शुभ और पवित्र दिन मुझे और आप सब को दिया हमारी योग्यता ही क्या थी? फिर भी उसने हम सब को हमारी योग्यता से कही अधिक दिया है, और हर क्षण बिना किसी स्वार्थ के दे रहा है। इस लिये सर्व प्रथम आदर, श्रद्धा, प्रेम और अहो भाग्य कृतज्ञता से भर कर उसको नमस्कार प्रणाम करते हैं।
0 Comments
If you have any Misunderstanding Please let me know