👉 बुद्ध और उनकी प्रव्रज्या
🔶 बुद्ध को आत्मबोध हुआ। कठोर तपश्चर्या के बाद
प्राप्त इस उपलब्धि से वे निर्वाण- मोक्ष की ओर भी बढ़ सकते थे। पर उनका लक्ष्य था- अनाचार, कुरीति से भरे समाज का
परिशोधन तथा विवेक रूपी अस्त्र द्वारा जन- मानस का परिष्कार। आत्मबोधजन्य ईश्वरीय
सन्देश को व्यापक बनाने वे निकल पड़े और जन- जन तक पहुँचकर विचार- क्रांति कर सकने
में सफल हुए।
🔷 परिव्रज्या बौद्ध धर्म का प्रधान अंग मानी
जाती थी। भिक्षुक गण सतत चलते रहते थे व बुद्ध के साथ 'संघं,
धर्म शरणम् गच्छामि' का नारा लगते। फलत:
भारतवर्ष ही नहीं, सारे विश्व भर में उनका सन्देश पहुँचाने
का लक्ष्य पूरा कर सके। सिद्धार्थ के अन्दर विश्व कल्याण की कामना रूप में जो बीज
पला वह गौतम बुद्ध के रूप में विकसित, पल्लवित होकर सारी
मानवता को धन्य कर गया।
👉 नौरोज का मेला
🔶 अकबर की महानता का गुणगान तो कई
इतिहासकारों ने किया है लेकिन अकबर की औछी हरकतों का वर्णन बहुत कम इतिहासकारों ने
किया है।
🔷 अकबर अपने गंदे इरादों से प्रतिवर्ष दिल्ली
में नौरोज का मेला आयोजित करवाता था जिसमें पुरुषों का प्रवेश निषेध था अकबर इस मेले
में महिला की वेष-भूषा में जाता था और जो महिला उसे मंत्र मुग्ध कर देती उसे
दासियाँ छल कपट से अकबर के सम्मुख ले जाती थी ।।
🔶 एक दिन नौरोज के मेले में महाराणा प्रताप सिंह
की भतीजी,
छोटे भाई महाराज शक्तिसिंह की पुत्री, मेले की
सजावट देखने के लिए आई जिनका नाम बाईसा किरण देवी था जिनका विवाह बीकानेर के
पृथ्वीराज जी से हुआ। बाईसा किरण देवी की सुंदरता को देखकर अकबर अपने आप पर काबू
नही रख पाया और उसने बिना सोचे समझे दासियों के माध्यम से धोखे से जनाना महल में
बुला लिया।
🔷 जैसे ही अकबर ने बाईसा किरण देवी को
स्पर्श करने की कोशिश की किरणदेवी ने कमर से कटार निकाली और अकबर को नीचे पटकर छाती
पर पैर रखकर कटार गर्दन पर लगा दी और कहा नींच, नराधम तुझे पता नहीं मैं उन महाराणा
प्रताप की भतीजी हूं। जिनके नाम से तुझे नींद नहीं आती है। बोल तेरी आखिरी इच्छा
क्या है।
🔶 अकबर का खून सुख गया कभी सोचा नहीं होगा कि
सम्राट अकबर आज एक राजपूत बाईसा के चरणों में होगा ।
🔷 अकबर बोला मुझे पहचानने में भूल हो गई मुझे
माफ कर दो देवी।
🔶 तो किरण देवी ने कहा कि आज के बाद दिल्ली में
नौरोज का मेला नहीं लगेगा और किसी भी नारी को परेशान नहीं करेगा अकबर ने हाथ जोड़कर
कहा आज के बाद कभी मेला नहीं लगेगा उस दिन के बाद कभी मेला नहीं लगा।
🔷 इस घटना का वर्णन गिरधर आसिया द्वारा रचित
सगत रासो मे 632 पृष्ठ संख्या पर दिया गया है।
🔶 बीकानेर संग्रहालय में लगी एक पेटिंग मे भी
इस घटना को एक दोहे के माध्यम से बताया गया है।
किरण सिंहणी सी चढी उर पर खींच कटार।
भीख मांगता प्राण की अकबर हाथ पसार।
🔷 अकबर की छाती पर पैर रखकर खड़ी वीर बाला किरन
का चित्र आज भी जयपुर के संग्रहालय में सुरक्षित है।
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