👉 त्याग करो-और मिलेगा
🔷 सारपत नगर में एक विधवा स्त्री रहती थी। उसके
केवल एक ही पुत्र था। एक बार उस नगर में भारी दुर्भिक्ष पड़ा। गाँव के गाँव उजड़ने
लगे। भूख के मारे लोग काल के गाल में समा रहे थे।
🔶 एक दिन इलियाह नामक एक धर्मी पुरुष परमेश्वर
की ओर से इस स्त्री के पास भेजा गया। इलियाह ने जाकर उससे रोटी माँगी। स्त्री ने उत्तर
दिया कि उसके पास घड़े में केवल एक मुट्ठी आटा तथा कुप्पी में थोड़ा सा तेल है जिससे
रोटी बनाकर एक ही बार भोजन करके वे दोनों माता-पुत्र मर जायेंगे, क्योंकि
दूसरी बार के लिये एक दाना तक शेष नहीं है। इलियाह ने कहा- “जैसा मैं कहता हूँ,
वैसा ही कर”, क्योंकि परमेश्वर कहता है कि “न
तेरे घड़े का आटा और न तेरी कुप्पी में का तेल चुकेगा।” इसलिये परमेश्वर पर
विश्वास करके अपनी चिन्ता उसी पर डाल और पहिले मुझे भोजन बनाकर खिला।
🔷 यह बड़ा ही टेढ़ा सवाल था। स्त्री ने सोचा
कि यहाँ तो खुद भूखे मरने की नौबत है, अब क्या करूं। इतने ही में
उसके हृदय से आवाज आई कि त्याग का प्रतिफल अवश्य ही मिलता है। उसने तुरन्त ही भोजन
बनाया और उसे खिला दिया।
🔶 आश्चर्य की बात है कि वह जितना आटा निकालती
थी उतना ही बढ़ता जाता था। उस दिन से उस स्त्री को मालूम हो गया कि भगवान हमारी कठिन
से कठिन परिस्थिति में भी हमारा विश्वास बढ़ाता है। क्या हम भी इस विधवा स्त्री के
सदृश्य त्याग करते हैं? और परमेश्वर पर विश्वास रखते हैं?
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