👉 ऐश्वर्य का अभिमान निरर्थक
🔷 एक धनिक ने एक संन्यासी को निमन्त्रण
दिया। संन्यासी आये तो धनिक ज्ञान चर्चा करना तो भूल गया, उन्हें
बैठा कर अपने वैभव की बात कहने लगा-मेरे इतने मकान हैं, बम्बई
में मैंने एक विशाल भवन और धर्मशाला बनवाई हैं, शीघ्र ही
तुम्हारे जैसे भूखों के लिए अन्न क्षेत्र खोलने वाला हूँ, अब
भी आधे सेर खिचड़ी तो हर भिखारी को मेरे घर से मिल जाती है। मेरे लड़के विलायत
घूमने जा रहे है।’ संन्यासी उसकी सभी बात चुपचाप सुनते रहे। जब वह चुप हो गया तो
दीवार पर टँगे एक नक्शे को देखकर बोले- यह कहाँ का नक्शा हैं?’ धनिक ने कहा-दुनिया का?’ संन्यासी बोले- इसमें
हिन्दुस्तान कहाँ हैं?’ धनिक ने उँगली रख कर बताया तो
उन्होंने फिर पूछा- और बम्बई?’ धनिक ने उँगली रखकर बम्बई भी
बता दी। संन्यासी बोले- इसमें तेरा भवन और धर्मशाला कहाँ हैं?” धनिक बोला-संसार के नक्शे में यह सब चीजें कहाँ से आतीं?’ संन्यासी ने कहा- जब संसार के नक्शे में तुम्हारे वैभव का नाम निशान भी
नहीं तो उसका अभिमान ही क्या करना? धनिक ने सिर झुका लिया और
अभिमान की बातें सदा को त्याग दीं।
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