👉 छोटा और तुच्छ काम
🔶 काम वे छोटे गिने जाते है जो फूहड़पन और बेसलीके
से किये जाते हैं। यदि सावधानी, सतर्कता और खूबसूरती के साथ, व्यवस्था पूर्वक कोई काम किया जाये तो वही अच्छा, बढ़ा
और प्रशंसनीय बन जाता है। चरखा कातना कुछ समय पूर्व विधवाओं और बुढ़ियाओं का काम
समझा जाता था, उसे करने में सधवायें और युवतियाँ सकुचाती थी।
पर गाँधी जी ने जब चरखा कातना एक आदर्शवाद के रूप में उपस्थित किया और वे उसे
स्वयं कातने लगे तो वही छोटा समझा जाने वाला काम प्रतिष्ठित बन गया। चरखा कातने
वाले स्त्री पुरुषों को देश भक्त और आदर्शवादी माना जाने लगा।
🔷 संसार में कोई काम छोटा नहीं। हर काम का अपना
महत्व है। पर उसे ही जब लापरवाही और फूहड़पन के साथ किया जाता है तो छोटा माना
जाता है और उसके करने वाला भी छोटा गिना जाता है।
कड़वी बहु
🔶 जानकी के बहु बेटे शहर में बस चुके थे लेकिन
उसका गाँव छोड़ने का मन नहीं हुआ इसलिए अकेले ही रहती थी। वह रोजाना की तरह मंदिर
जा कर आ रही थी। रास्ते में उसका संतुलन बिगड़ा और गिर पड़ी।
🔷 गाँव के लोगों ने उठाया, पानी
पिलाया और समझाया 'अब इस अवस्था में अकेले रहना उचित नहीं।
किसी भी बेटे के पास चली जाओ।' जानकी ने भी परिस्थिति को स्वीकार
कर बेटे बहुओं को ले जाने के लिए कहने हेतु फोन करने का मन बना लिया।
🔶 जानकी की तीन बहुएँ थी। एक बड़ी अति आज्ञाकारी
मंझली मध्यम आज्ञाकारी और छोटी कड़वी। जानकी अति धार्मिक थी। कोई व्रत त्यौहार आता पहले
से ही तीनों बहुओं को सचेत कर देती। 'अति' खुशी
- खुशी व्रत करती। माध्यम भी मान जाती थी लेकिन कड़वी विरोध
पर उतर जाती।
🔷 "आप हर त्योहार पर व्रत रखवा कर उसके
आनंद को कष्ट में परिवर्तित कर देती हैं।" "तेरी तो जबान लड़ाने की आदत है।
कुछ व्रत तप कर ले। आगे तक साथ जाएंगे।"
दोनों की किसी न किसी बात पर बहस हो
जाती। गुस्से में एक दिन जानकी ने कह दिया था।
🔶 "तू क्या समझती है! बुढ़ापे में मुझे तेरी
जरूरत पड़ने वाली है। तो अच्छी तरह समझ ले। सड़ जाऊँगी लेकिन तेरे पास नहीं आऊँगी।"
सबसे पहले उसने अति को फोन किया "गिर गई हूँ। आजकल कई बार ऐसा हो गया है। सोचती
हूँ तुम्हारे पाया ही आ जावो।"
🔷 "नवरात्र में? अभी
नहीं माँ जी। नंगे पाँव रह रही हूं आजकल। किसी का छूआ भी नहीं खाती।" मध्यम
को भी फोन किया लेकिन उसने भी बहाना कर टाल दिया।
🔶 जब अति और मध्यम ही टाल चुकी तो कड़वी को फोन
करने का कोई फायदा नहीं था और अहम अभी टूटा था लेकिन खत्म नहीं हुआ था। फोन पर हाथ
रख आने वाले कठिन समय की कल्पना करने लगी थी। तभी फोन की घण्टी बजी। आवाज़ से ही
समझ गई थी कड़वी है।
🔷 "गिर गये ना? आपने
तो बताया नहीं लेकिन मैंने भी जासूस छोड़ रखे हैं। पोते को भेज रही हूँ लेने।"
🔶 "क्या तुझे मेरे शब्द याद नहीं?"
🔷 "जिंदगी भर नहीं भूलूँगी। आपने कहा
था सड़ जाऊँगी तो भी तेरे पास नहीं आऊँगी। तभी मैंने व्रत ले लिया था इस बुढ़िया
अम्मा को सड़ने नहीं देना है। मेरा तप अब शुरू होगा।"
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