👉 मनुष्य की पहचान
🔷 स्वामी विवेकानन्द जब अमेरिका की एक सड़क
पर से गुजर रहे थे तो उनकी विचित्र वेशभूषा को देखकर लोग उन्हें मूर्ख समझने और
मजाक बनाने लगे। अपने पीछे आती हुई भीड़ के सम्मुख स्वामी जी रुके और उनने पीछे
मुड़कर कहा-सज्जनों मेरी वेषभूषा को देखकर आश्चर्य मत करो। आपके देश में सभ्यता की
कसौटी पोशाक है। पर मैं जिस देश से आया हूँ वहाँ कपड़ों से नहीं मनुष्य की पहचान
उसके चरित्र से होती है।
👉 लोकसेवा का आदर्श
🔷 कुछ पत्रकारों को डा० श्यामाप्रसाद मुखर्जी
से भेंट करनी थी। स्टेशन पर पहुँचे। जब उन्होंने डाक्टर साहब को तीसरी श्रेणी के डिब्बे
में यात्रा करते देखा, तो उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ। एक पत्रकार तो
उस विस्मय को छिपा नहीं सका और डा० मुखर्जी से पूछ ही बैठा- ''आप संभवत: जीवन में पहली बार तीसरी श्रेणी में यात्रा कर रहे है ?"
🔶 ''नहीं, मैं अकसर इसी में यात्रा करता हूँ ''-डा० मुखर्जी ने
उत्तर दिया-''आप जानते हैं कि हमारी संस्था निर्धन है। इस
बचत से संस्था को अन्य आवश्यक काम चलाने में सहायता मिलती है।'' पत्रकार मुखर्जी की इस सहज सादगी से बड़े प्रभावित हुए। इस घटना में ही
लोक-सेवक का सच्चा आदर्श, सच्चा मर्म छुपा पड़ा है। भक्त
आराध्य भगवान से कभी ऊपर नहीं बैठता। तो फिर जनता को जनार्दन मानकर उसकी
सेवा-साधना में निरत साधक को ही क्यों स्वयं
को जनता से अलग और पृथक वर्ग मानना चाहिए।
📖 प्रज्ञा पुराण से
👉 अहंकार सत्कर्म का भी बुरा।
🔶 एक बार एक स्त्री पहाड़ पर धान काट रही थी।
इतने में एक दुष्ट मनुष्य उधर आया और उसके साथ दुष्टता करने पर उतारू हो गया। पहले
तो स्त्री ने आत्मा रक्षा के लिए लड़ाई झगड़ा किया पर शरीर से दुर्बल होने के कारण
जब उसे विपत्ति आती दिखी तो पहाड़ से नीचे कूद पड़ी। ईश्वर ने उसकी रक्षा की। उसे
जरा भी चोट न लगी और प्रसन्नता पूर्वक घर चली गई।
🔷 अब उसे अपने पतिव्रत का अभिमान हो गया। हर
किसी से शेखी मारती कि मैं ऐसी सतवन्ती हूँ कि पहाड़ से गिरने पर भी मेरे चोट नहीं
लगती। पड़ोसी इस बात पर अविश्वास करने लगे और कहा ऐसा ही है तो चल हमें आँखों के
सामने पहाड़ पर से कूद कर दिखा। दूसरे दिन उस स्त्री ने सारे नगर में मुनादी करा
दी कि आज मैं पहाड़ पर से कूदकर अपने सतवन्ती होने को परिचय दूँगी। सभी गाँव
इकट्ठा हो गया और उसके साथ चल पड़ा। वह पहाड़ पर से कूदी तो उसकी एक टाँग टूट गई।
मरते मरते मुश्किल से बची।
🔵 उस असफलता पर उसे बड़ा दुःख हुआ। और दिन रात
खिन्न रहने लगी। उधर से एक ज्ञानी पुरुष निकले तो स्त्री ने अपनी इस असफलता का कारण
पूछा। उन्होंने बताया कि पहली बार तू धर्म की रक्षा के लिए कूदी थी, इसलिए
धर्म ने तेरी रक्षा की। दूसरी बार तू अपनी प्रशंसा दिखाने और अभिमान प्रकट करने के
उद्देश्य से कूदी तो उस यश कामना और अभिमान ने तेरा पैर तोड़ दिया।
🔶 स्त्री की अपनी भूल मालूम हुई और उसने पश्चाताप
करके अपनी मानसिक दुर्बलता को छोड़ दिया।
📖 अखण्ड ज्योति मई 1961 पृष्ठ 25
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