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मानव का स्वभाव

मानव का स्वभाव 

  

     बहुत समय पहले कि बात हैं एक बहुत बड़ा व्यापारी था जिसका केवल अपना एक ही पुत्र था जो अपने व्यापार के शील- शीले में अपनी नाव के साथ दूर किसी दूसरे देश की यात्रा कर रहा था, जिसके कारण उसने हजारों किलोमिटर समुद्र कि लहरों पर अपनी नाव के साथ सवारी करता रहा, जब तक कि वह समुद्र के मध्य में नहीं आ गया। तभी अचानक समुद्र में तूफान आ गया, जिसके कारण उसके जहाज की पाल नाव से निकल कर उससे दूर जाकर गीर गई। और जहाज ने यात्रा करना बंद कर दिया और अचानक समन्दर कि हरी-हरी लहरों के मध्य में उसके सामने एक मुंगा का वृक्ष प्रकट हो गया और उस वृक्ष की एक शाखा पर उस समन्दर की देवी बैठी हुई थी। और उसके अंगों से समन्दर का झाग बूंद- बूंद करके टपक रहा था, उसकी छातियों पर जैसे मोती जड़ा हुआ हो ऐसा प्रतीत हो रहा था, जो समन्दर में मलाई कि तरह से बह रहा था। और उसके लंबे बाल लहरों पर पड़े हुए थे, जो उसके स्तनों के नीचे हिलकोरें ले रहे थे। और उसने व्यापारी के पुत्र को अपने पास बुलाया, और कहाँ की तुम तुरंत समन्दर में छलांग लगा कर मेरे पास आ जाओ। और मेरे साथ अपने जीवन को व्यतीत करो, और मैं तुमको ऐसे आभूषणों को दूंगी जिसको कभी भी किसी व्यापारी ने नहीं देखा होगा। और मैं तुमको कुछ दिव्य अद्भुत अनुभूतियों के आनंद से अभिभूत करूंगी। जिसका अब तक कभी किसी नश्वर मनुष्य ने स्वाद भी नहीं पाया है। इस पर उस व्यापारी के डरपोक बेटे की आत्मा ने और लहरों की भयावह आतंक से किसी तरह से स्वयं को संतुलित कर लिया था । और वह समन्दर में कुदने का प्रयास करने लगा, लेकिन वह समन्दर में कुदने के लिए, स्वयं की आत्मा के अंदर इतनी हिम्मत को नहीं पैदा कर सका, जिसके कारण कुछ ही पलो में समन्दर में उगने वाले मुंगें के वृक्ष के साथ उस पर बैठने वाली समन्दर की पुत्री भी पानी में समा गई। और उसकी आँखों से अदृश्य हो गई, और वह विस्तृत समन्दर में अकेला रह गया। जहाँ पर उसके चारों तरफ पानी और ऊपर आकाश के कुछ भी नहीं दिख रहा था। फिर वह अपनी यात्रा को किसी तरह से आगे जारी रखा, प्रायश्चित और अनिच्छा की भावनाओं से भरे हुए हृदय के साथ, फिर वहाँ कुछ देर में समन्दर की हवाओं में अचानक बदलाव आ गया और वह बहुत अधिक प्रचंड हो गई, जिसके कारण उस डरपोक व्यापारी के पुत्र की नाव समन्दर में डुब गयी। और वह स्वयं समन्दर में ही डुब कर मर गया। जिसके कारण ही जो उसको मिलने वाला खजान था। उससे तो हाथ धोया ही, साथ में अपने जीवन हाथ से भी अपने हाथ धो लिया। जिसे वह बचा सकता था, इस प्रकार उसने अपना खजाना खो दिया और स्वयं को खतरे से बाचा लिया, लेकिन अपनी आत्मा को अपनी शरीर से अलग कर दिया।

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