निराशा के बादल
बहुत समय पहले कि बात है एक बार जब पूर्णिमा की रात्रि थी और उस रात्रि के समय में चन्द्रमा नीचे जंगली झिल में खिले कमल पुष्पों को प्रेम से निहार रहा था। उस झील के पानी में गुलाबी कमल पुष्पों के मध्य में एक शुद्ध सफेद कमल पुष्प भी था, जो झील के पानी के नीचे पड़े काले कीचड़ में खिल रहा था। लेकिन ठीक उसी दिन दो नर हाथी उस झील के पास आये, और वह झील के पानी में आपस में लड़ने लगें। और उन्होंने अपने सुड़ से लग- भग सभी तरफ प्रहार किया, जिसके कारण उनके शरीर से निकलने वाली खून कि धारा झिल के पानी में चारों तरफ फैल गयी, जिसके कारण झील के पानी में उपस्थित सारें कमल पुष्पों पर खून के छीटें आच्छादित हो गये, जिसके कारण कमल पुष्पों का पंखुड़िया लाल हो गई। इस तरह से चन्द्रमा ने आकाश से झील के पानी में विद्यमान खूनी लाल कमल पुष्पों को देख कर दुःखी मन से आह भरते हुए कहा इनमें कोई भी मेरे काम की तृप्ति के लिए उपयोगी नहीं हैं। इसलिए वह दुःखी मन से अपने आपको व्यथित करने लगा, और हर एक रात्रि के बाद वह पहले और छोटा और छोटा होने लगा, और अंत में वह स्वयं को लेकर आकाश में पूर्णतः अदृश्य हो गया। जैसे कि वह कभी आकाश में था ही नहीं। लेकिन फिर भी वह अदृश्य रूप में भी विद्यमान था, तभी अचानक आकाश में बादलों का झुंड छा गया और झमा-झमा कर मूसलाधार वारिस होने लगी। जिसके कारण जंगल के झील में खिले कमल पुष्पों के ऊपर लगें हुए खून को पुरी तरह से धो दिया, और जब कुछ एक दिनों के बाद जब वह पुनः आकाश में अवतरित हुआ तो उसने देखा उसी तालाब में सभी कमल पुष्पों में उसका सबसे प्रिय शुद्ध कमल पुष्प दिखा जिसके कारण वह उसके प्रेम में आह्लादीत हो गया। और उसकी आँखों में प्रेम के आँसू बहने लगा।
0 Comments
If you have any Misunderstanding Please let me know