अहिंसा परमो धर्मः
भगवान् बुद्ध ने बताया कि सही मार्ग न तो भोग का है, न कठिन साधना का है। एक बार गौतम बुद्ध ने देखा कि सामने से भेड़-बकरियों का एक झुंड निकल रहा है। चरवाहा इस झुंड को कठिनता से घेर रहा था। बुध ने कहा, "अरे, क्या कठिनाई है?"
चरवाहे ने कहा, "भगवान! मेरे इस झुंड में एक लँगड़ा मेमना है। वह अन्य पशुओं के साथ कठिनाई से आगे बढ़ रहा है।" बुद्ध ने प्रेमपूर्वक पूछा, "इस भरी दोपहरी में इन भेड़-बकरियों को घेरकर तुम कहाँ से जा रहे हो?" चरवाहे ने उत्तर दिया, "मुझे राजा की आज्ञा मिली है कि आज सायंकाल राजा यज्ञ करा रहे हैं, उसमें बलि के लिए एक सौ भेड़-बकरियों की आवश्यकता है। अतः इनको वहाँ पहुँचाने जा रहा हूँ।" वुद्ध ने कहा, "चलो, मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूँ।" उन्होंने लंगड़े मेमने को कंधे पर बिठा लिया और दोनों साथ-साथ चल पड़े। जब वे नगर में घुसे तो लोगों ने देखा कि बुद्ध अपने कंधे पर एक मेमने को रखकर चले आ रहे हैं। कुछ लोग उनको जानते थे और कुछ नहीं भी जानते थे, पर उनके बारे में सुन रखाथा।।
लोग बोले, "देखो, यह वे तपस्वी जा रहे हैं, जो सामने पहाड़ी पर रहते हैं। कैसे शांति के अवतार है?" वे दोनों यज्ञस्थल पर पहुँचे। राजसेवकों ने भेड़-बकरियों को गिना, पर जैसे ही वधस्थल पर नियुक्त व्यक्ति पशु की गरदन काटने को उद्धत हुआ, बुद्ध ने कहा, "राजन्! वधकर्ता को खड्ग मत चलाने दो। पहले वह मेरी गरदन पर खड्ग चलाए। हे राजन! पशुओं को छोड़ दो।" वह राजा भगवान् बुद्ध के आगे नतमस्तक हो गया, उसने बली के लिए मंगवाए सभी पशुओं को छोड़ दिया। और इस प्रकार उस राज्य से हिंसा का हमेशा-हमेशा के लिए नामोनिशान मिट गया।
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