बुद्ध की प्रेरणा
भगवान् वुद्ध के जीवन में एक घटना हुई। वे चचेरे भाई देवदत्त के साथ बगीचे में घूम रहे थे। उन्हें एक हंस उड़ता हुआ दिखा। तभी देवदत्त ने अपने एक बाण से निशाना साधा और हंस लहुलुहान हो कर जमीन पर आ गिरा। बुद्ध ने दौड़कर हंस को उठा लिया, बाण निकालकर उसकी मरहम-पट्टी की। वुद्ध घायल हंस की सेवा कर रहे थे। देवदत्त आया और हंस पर अपना अधिकार जताने लगा। बुद्ध के मना कर देने पर विवाद हुआ और दोनों राजा शुद्धोधन के पास पहुंचे।
उन्होंने दोनों की बातें सुनी और निर्णय दिया, "प्राण लेनेवाले से प्राण बचाने वाला बड़ा होता है। इसलिए हंस पर बुद्ध का ही अधिकार है।"
मानव-समाज को शांति की ओर बढ़ाना पड़ेगा। व्यर्थ के तर्कों से बाहर निकलने में ही उसकी भलाई है। जब तक मन में स्वार्थ है, तब तक मानव सुखी नहीं हो सकता। अधिकार और कर्तव्य की परिभाषा को बड़ी सूक्ष्मता से समझने की जरूरत है।
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