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तीन पैगम्बर



तीन पैगम्बर


फ्रेंच लेख वॉल्तेयर (फ्रैंकुई मेरी ऐरुए-1694-1774) फ्रेंच गद्य के श्रेष्ठतम लेखकों में से था। उसकी कहानियों को प्रायः नीतिकथाएँ माना गया है, जो निश्चित तौर पर उसके अपने समय की माँग थीं।

तीन पैगम्बर थे। तीनों महत्त्वाकांक्षी थे और अपनी स्थिति से असन्तुष्ट थे। तीनों राजा बनना चाहते थे। यों तीनों पैगम्बरों के स्वभाव और रुचियों में बड़ा अन्तर था। पहला अपने समक्ष एकत्र हुए बन्धुओं को शानदार उपदेश देता था और सुननेवाले तालियाँ बजाकर उसकी प्रशंसा करते थे। दूसरे को संगीत का बेहद शौक था और तीसरे को औरतें बहुत अच्छी लगती थीं।

एक दिन की बात है। वे तीनों शाही सम्मान की चर्चा कर रहे थे कि फरिश्ता इथूरियल उनके सामने प्रकट हुआ। ‘‘सृष्टि के संचालक ने मुझे आपके पास भेजा है,’’ वह बोला। ‘‘आप न केवल राजा ही बनेंगे, बल्कि अपनी मुख्य रुचियों को भी निरन्तर सन्तुष्ट कर पाएँगे।’’ इसके बाद फरिश्ते ने उन तीनों को क्रमशः मिस्र, फारस और भारत का राजा बना दिया।

जो पैगम्बर मिस्र का राजा बनाया गया था, उसने अपने शासन की बागडोर दरबारियों की सभा बुलाकर सँभाली, इस सभा में दो सौ सन्त ही थे। उनके समक्ष उसने एक लम्बा भाषण दिया। श्रोताओं ने जोर-जोर से तालियाँ बजाकर प्रशंसा की और राजा उस प्रशंसा के नशे में चूर हो उठा। अन्य सभाओं में यही हुआ और जल्दी ही मिस्र के इस राजा की ख्याति संसार भर में फैल गयी।

फारस के पैगम्बर-राजा ने अपना शासन एक इतालवी ऑपेरा से शुरू किया, जिसके कोरस में पन्द्रह सौ जनखे थे। उनकी आवाज उसके कानों को बींध कर आत्मा तक जा पहुँची। फिर इसके बाद एक और ऑपेरा हुआ, और उसके बाद एक और... एक और... एक और...

भारत के राजा ने अपनी प्रेमिका के साथ अपने को महल में बन्द कर दिया। वह वासना में डूब गया और जब भी उसे अन्य दोनों पैगम्बरों का ध्यान आता, तो उसका हृदय उनके लिए दया से भर उठता। काश! उन्होंने भी स्त्री-सुख माँगा होता!

अब हुआ यह कि कुछ ही दिनों में तीनों राजा अपने-अपने ‘काम’ से ऊब गये। तीनों को एक दिन अपनी-अपनी खिड़की के बाहर कुछ लकड़हारे दिखाई दिये, जो किसी मयखाने से चले आ रहे थे और जंगल की तरफ जा रहे थे। वे अपनी पत्नी-प्रेमिकाओं की बाँहों में बाँहें डालकर चल रहे थे और बेहद खुश थे। तीनों राजाओं ने तब फरिश्ते इथूरियल को पुकारा और उससे गुजारिश करने लगे कि दुनिया के शासक से कहो कि वह हमें लकड़हारा बना दे।

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