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सार्थक प्रतिज्ञा

 

सार्थक प्रतिज्ञा 


        बहुत समय पहले की बात है, एक लाली नाम की स्त्री थी जिसका पति एक बार लंबी विदेश यात्रा पर गया और कभी अपनी यात्रा से वापिस नहीं आया। इसके बाद साल के साल गुजरते गए, और वह कभी नहीं आया। और इन सालों के बीच हर एक दिन में लाली अपने पड़ोसियों और युवाओं के तानो को सुन-सुन कर बहुत अधिक दुःखी होती रही, जो उसकी सुंदरता को देख कर उसकी तरफ आकर्षित होते थे। जिस प्रकार से मधुमक्खियाँ फूलों की खूशबु और उसके सौन्दर्य को देख कर आकर्षित होती हैं। जितना ही अधिक वह उन लोगों को अपने से दूर करने का प्रयास करती उतना ही अधिक वह सब उसके करीब आने के लिये उत्सुक होते थे। इस प्रकार से ऐसे लोगों के आचरण से वह बहुत अधिक दुःखी हो कर एक रात्रि को उसने एक दीपक लिया, और उसमें उसको तेल से भर दिया, और उस दीपक को अपने साथ लेकर गंगा नदी के किनारे चली गई। और उसने अपने आप से कहा कि मैं इस दीपक को जला कर गंगा नदी की धारा में बहा दूंगी, जब यह दीपक गंगा नदी के पानी में बुझ कर डुब जायेगा, तो मैं इस नदी में डुब कर अपने जीवन का अंत कर लुंगी, और यदि यह दीपक नदीं के पानी में बिना बुझे तैरता ही रहा, तो मैं नदीं में डुब कर अपनी आत्महत्या नहीं करूंगी। यद्यपि अपने पति के यात्रा से आने का इंतजार करूंगी। फिर उसने ऐसा ही किया अर्थात दीपक को जला कर नदी की धारा में बहा दिया, और अब उस रात को अचानक बहुत बड़ा और खतरनाक तूफान आ गया, जिससे गंगा नदी की लहरें समंदर के समान उठने लगी, फिर भी इसका ध्यान दिये बगैर, वह नदी के पानी के ऊपर अपने दीपक को जलते हुए देखती रही, क्योंकि ईश्वर पर उसकी श्रद्धा बहुत अधिक मजबूत थी। उस समय आकाश में अनगिनत तारें चमक रहें थे, जो उस औरत के इस छुद्र कृत्य को देख कर अनादर भाव से हंसते हुए आपस में कह रहें थे, कि देखो इस बेचारे छोटे से दुःखी दीपक को नश्वर संसार के छोटी-सी नदी में, जिसको बहा कर यह औरत दीपक को तारा समझती है। कि यह कभी बुझेगा ही नहीं और ठीक इसी समय आकाश मार्ग से भ्रमण करते हुए त्रीकालदर्शि भगवान शिव ने नीचे लाली को एक छोटे से दीपक को जला कर गंगा नदी के धारा में बहाते हुए देखा, उन्होंने तत्काल अपनी दिव्य शक्ति का प्रयोग करके भंयकर तूफान को बिल्कुल शांत कर दिया, जिसके कारण गंगा नदी की लहरें बिल्कुल शांत हो कर अपने निद्रा अवस्था में चली गयी, और उनके ऊपर फूल कि तरह से खिलता छोटा दीपक जलता रहा, जिसकी ज्वाला बिना किसी अस्थिरता के बहता रहा, शांत पानी के अंदर उसका प्रतिबिंब किसी दूसरे आकाश के तारों के मध्य में झिलमिला रहा था। इस प्रकार से जैसे वह उपर्युक्त उन तारों की नकल में मुसकुरा रहा हो। फिर दयालु भगवान ने कहा आकाश से क्या आप नीचे अपने सभी सितारों के साथ आकाश को देखते हैं? और आकाश ने उत्तर दिया हां लेकिन वह आकाश अपने सितारों के साथ एक भ्रम है। और महेश्वर शिव इस पर हँसे और उन्होंने कहा तू मूर्खता पूर्ण आकाश है, जानता है कि तू अपने सभी सितारों के साथ स्वयं को अकेला समझता है और नीचे कोई दूसरा भ्रम रुपी आकाश नहीं है। सभी की एकमात्र वास्तविकता थोड़ी हल्की है, जो जिस प्रकार से गंगा में दीपक तैरता है, ऊपर की अनंतता और नीचे के बीच बनाई गई है। इसके लिए एक वफादार पत्नी की अच्छी गुणवत्ता के साथ यह उसकी श्रद्धा का प्रतीक है।

 

       इस प्रकार से दीपक गंगा नदी के पानी में तैरते हुए जल रहा था, जब तक कि वह लाली के आंखों से ओझल नहीं हो गया। और इसके बाद उस औरत ने अपने पति को भगवान को अपने पक्ष में कर फिर से दुबारा प्राप्त कर लिया।

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