👉 संतोषी बनो
🔶 आप किसी के लिये कितना भी कुछ कर दीजिये पर
यदि सामने वाले के मन में आत्मसंतुष्टी नहीं है तो वह कभी सुखी नहीं रह सकता है वह
हमेशा दुःखी का दुःखी ही रहेगा क्योंकि बिना आत्मसंतुष्टी के आत्मशान्ति की
प्राप्ति कभी नहीं हो सकती है!
🔷 एक नगर में श्री मन नाम के एक सेठजी रहा करते
थे बहुत बड़ा व्यापार था उनका और बहुत बड़ी सम्पदा भी थी पर उनके आगे पीछे कोई न था!
सन्तों की संगत मिल जाने से धीरे - धीरे वह भगवत प्रेम की तरफ बढ़ने लगे निरंतर
साधनात्मक जीवन से धीरे - धीरे उन्हें संसार से वैराग्य होने लगा!
🔶 और एक दिन उन्होंने अपनी सारी सम्पति परमार्थ
के निमित्त दान कर दी और स्वयं गंगा माँ की शरण-स्थली में जाकर वही साधूओ की सेवा करने
लगे और हरी भजन में डूब गये!
🔷 उनका एक बहुत ही दूर का रिश्तेदार
दुर्भागी लाल था उन्होंने उसके लिये अपने एक सेवक के हाथों दस लाख रुपये भिजवायें
सेवक वहाँ तक पहुँचा और दुर्भागी को दस लाख रुपये दिये दुर्भागी ने बहुत आदर सत्कार
किया और सेठजी के गुणगान करता हुआ नहीं रुका भोजन के दौरान बातों ही बातों में
सेवक ने सेठजी का सारा वृतान्त सुनाया और जैसे ही दुर्भागी को पता चला की सेठजी ने
करोड़ों अरबों की सम्पति दान कर दी और मुझे दस लाख रुपये दिये वह वही पर सेठजी को
गाली देने लगा की अरे खुद के आगे पीछे तो कोई न था और मुझे केवल दस लाख रुपये दिये
मूरखों की तरह सारी सम्पति लुटाने की क्या जरूरत थी पागल की बुद्धि सटिया गई!
🔶 और इस तरह से उसने धन्यवाद देना तो दूर रहा
गालियाँ देने लगा!
🔷 ईश्वर ने हमें जितना दिया क्या वास्तव में
हम उसके उतने लायक है? जब हम ईमानदारी से अपना अवलोकन करें तो हमें
हमारे भीतर बहुत गन्दगी दिखेगी और हमारे पापों के विशाल पर्वत है हमें जो उसने
दिया वह तो उसने दया करके दिया है हम उसके लायक नहीं है फिर भी दिया है उस करुणानिधि
का आभार प्रकट करना तो दूर और उसे कोसते हैं!
🔶 ये जितने भी कोसने वाले है वह सब दुर्भागी
लाल है उन्हें संतुष्टी नहीं है और ऐसे असंतुष्टों के लिये आप कितना भी कुछ कर दो
वह कभी सुखी नहीं रह सकते है! जिसने दिल से आभार प्रकट किया उसके दुःख स्वतः ही
समाप्त हो गये और जिसने केवल शिकायत की उसके सुख स्वतः ही समाप्त हो गये है!
🔷 सन्तोष से बड़ा कोई सुख नहीं है और ये कभी न
भुलना की संतोषी हर पल सुखी और आनन्द में जीता है तो असंतोषी हर पल दुःखी ही रहता
है!
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