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जीवन संग्राम है, जीना है तो युद्ध लोड़ना होगा

 

   जीवन संग्राम है, जीना है, तो युद्ध लड़ना होगा, और स्वयं को जीतना होगा, इसके लिए किसी को मारना भी पड़ सकता है। यहां आपको अपने लिए जमीन अपने लिए आकाश, अपने पानी अपने लिए भोजन, अपने लिए कपड़ा अपने लिए घर, अपने लिए स्वास्थ्य अपने लिए सम्मान अपने लिए प्रतिष्ठा अपने लिए न्याय, अपने लिए शिक्षा, अपने लिए धन इत्यादि वस्तुओं के लिए आपको इस संसार में जीवन संग्राम करना होगा, और अपने अधिकार के लिए आपको लड़ना होगा, जिसको लिए आपको जख्म खाना होगा, आपको हर एक क्षेत्र में अपने जीवन के अधिपत्य को बनाए रखने के लिए आपको संग्राम करना होगा। 

  आपका जीवन कोई आसान नहीं है, जो कहते हैं, की जीवन आसान है, वह लोग गलत कहते हैं, वह सभी लोग आपको मूर्ख बनाते हैं, वह लोग आपके शोषण में आनंद लेते हैं, जो लोग यह कहते हैं, कि जीवन आसान है, जो चाहोंगे वह आपको मिलेगा, वह सभी लोग हिजड़े हैं, वह सभी लोग धूर्त है, वह सभी लोग कायर हैं, वह सब लोग केवल अपने शरीर को ढोने वाले गधे से अधिक नहीं है, उनकी स्व्यं की आत्मा मर चुकी है, संसार में नवजात बच्चे को भी मां तब तक दुध नहीं देती है, जब तक वह रोता नहीं है, उस नवजात को अपने जीवन को बचाने के लिए अपने मां बांप की चापलुसी करनी पड़ती है। उनको अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए झुठा रोना और झुठा हंसना पड़ता है। तो साहब आपको तो वह सब कुछ करना होगा, जिसके लिए आपके जीवन में प्यास है, जिसके लिए आप भुखे हैं, उसको अपको छीनना होगा, नहीं तो आपके अधिकार की भी वस्तु कोई दूसरा उपभोग करेगा, परीश्रम आप करेंगे, और उसका फल कोई और भोगेगा।

  आपको अपने अधिकार के लिए संग्राम करना होगा, आपको अपनी बुरी आदतो से लड़ना होगा, जो आपसे अधिक ताकतवर हैं, उनको आप को पराजित करना होगा, यदि आप ऐसा नहीं करते हैं, तो जो लोग आपसे अधिक ताकतवर शक्तिशाली हैं वह आपको कदम - कदम पर परास्थ करेंगे आपको उनके सामने धूटने टेकना होगा।

  यह दुनीया बहुद अधिक निष्ठुर और पत्थर की है, यहां पर दोष हमेशा आपका ही लोग निकालते हैं, हर बार आपही गलत सिद्ध किए जाते हैं, यहां कोई आपके जस्बात को समझने वाला नहीं हैं, आप अपने जीवन को बनाए रखने के लिए क्या क्या नहीं करते हैं, लेकीन पर्याप्त नहींं होता है, यहां सब कुछ झुठा और नाशवान हैं, इस नाशवान जगत में जो आप हैं वह नाशवान नहीं हैं, इसलिए आपको इनके बीच में स्वयं को रखने में बहुत भयंकर दिक्कते होती हैं, लेकिन आप इसको किसी से कह नहीं सकते हैं, यदि आप अपनी परेशानी और दुःखों कोकिसी से कहते हैं, तो यहां पर आपका मजाक उड़ाया जाता है, आपको पागल और मूर्ख कहते हैं, लोग आपको कहते हैं की तुम संघर्ष से भागते हो मैदान में लड़नेका सामर्थ्य नहीं हैं, तुम भगौड़े हो, जबकि सत्य यह की आपने अपनी एड़ी से चोटी तक जोर लगा दिया, फिर भी आपको इस संसार में अपने मनमाफिक स्थाना नहीं प्राप्त हुआ। इसीलिए किसी शायर ने कहा है कि इस भरी दुनीया में कोई हमारा ना हुआ हम किसी के ना हुए और कोई हमारा ना हुआ। या फिर इस तरह से कह सकते हैं, इस दुनीया में किसी को मुकम्ल जहां नहीं मिलता किसी जमीन तो किसी को आसमान नहीं मिलता है। 

  यहां आपकी कोई किसी प्रकार की सहायता करने वाला नहीं है, लोग अपनी सहायता करने में इतने अधिक व्यस्त हैं, की वह आपके बारे में सोच ही नहीं सकते हैं, जो लोग आपकी सहायता करने का दिखावा करते हैं सच में देखें तो वह आपकी दयनियता को वह प्रकट करते हैं, और आपके लिए कोई छोटा सा कार्य आपके लिए वह इस प्रकार से करते हैं, जैसे उन्होंने आपके लिए दुनीया को खरीद को दे दिया है।    

  आज के मानव की सबसे बड़ी समस्या भौतीक रूप से है, मुझसे अधिकतर लोग यहीं पुछते हैं कि आप हमें धन कमाने का धन प्राप्त करने का मार्ग बताईए, धन को सब प्राप्त करना चाहते हैं, और धन कैसे प्राप्त होगा, इसके लिए वह तरह -तरह के मार्ग को पुछते हैं, मैं कहता हूं की आप अपनी योग्यता के अनुसार कार्य को करें जिसमें आपको धन कमाने में सहायता मिलगी।

   धन से क्या नहीं मिलता है, धन ही आज का भगवान है, आपके पास धन है, तो आप अपने लिए एक अच्छा घर खरीद सकते हैं, आपके पास धन है, तो आप अपने लिए एक सुन्दर लड़की प्राप्त कर सकते हैं, आपके पास है तो आप अपने लिए अच्छी से अच्छी गाड़ी को खरीद सकते हैं, आप के पास धन हैं तो आप अपने लिए अच्छा व्यवसाय कर सकते हैं, धन से क्या नहीं होता है, धन के बीना तो इस संसार में सिवाय दुःख के कुछ नहीं मिलता है, जहां जाएंगे वहां आपको अपमान और निराशा ही मिलता है, आपके अपने भी आपके शत्रु बन जाते हैं, जिन्होंने आपके साथ जिने मरने की कसम खाई थी वह आपको मारना चाहते हैं।  यह इस दुनीया का नग्न सत्य है, और हर आदमी इस दुनीया में स्वयं को सत्य कहता है, हर आदमी यहां सब कुछ जानता है, आपको भी लगता होगा आप भी सब कुछ जानते हैं, और आपको यह सब भी बकवास लग रहा होगा, क्योंकि यहां सत्य में सब कुछ बकवास ही है, लेकिन जब आप अपनी वासना इच्छा को किसी भी वस्तु के साथ जोड़ देते हैं तो वह रुचीकर लगने लगता है। 

  यहां ना कोई वस्तु सुन्दर है, ना कोई कुरुप है, हम अपनी समझ के अनुसार सुन्दर और कुरूप वस्तु को देखते हैं, उदाहरण के लिए जिसको हिन्दू धर्म के अनुयाई श्रेष्ठ और अपना श्रद्धा का श्रोत आस्था परमेश्वर मानते हैं, उसी को दूसरे धर्म के लोग उदाहरण के लिए मुस्लिम उसको मुर्खता समझते हैं, ऐसा ही मुस्लिम जिसे अपना सब कुछ मानते हैं, जिसके लिए वह अपना सब कुछ दाव पर लगाने के लिए तैयार हैं, अर्थात मरने मारने के लिए तैयार हैं, वही हिन्दूओं को मूर्खता प्रतित होता है, आज हमारे देश में ऐसी ही हवा बह रही है, जहां हिन्दू और मुस्लिम को आपस में लड़ने का अच्छा अवसर मिल गया है। लेकिन जहां पर लोग किसी धर्म को नहीं मानते हैं, वह भी आपस में लड़ रहें हैं। इसके पीछे जो मुख्य कारण है, वह लोगों की मानसीकता है। लोग अपनी मानसीक स्थिति के अनुसार प्रत्येक वस्तु का आकालन करते हैं। 

   आप भी अपने मन बुद्धि के अनुसार ही किसी वस्तु का आकलन करते हैं, आपको कोई वस्तु अच्छी और कोई वस्तु बुरी लगती होगी। वह वस्तु जो आपकोअच्छी लगती है, या आपको बुरी लगती है, उस वस्तु के लिए आपका अच्छा या बुरा लगना कोई मायने नहीं रखता है। कुछ लोगों को मांस खाना दारू पीना गांजा भाग का सेवन करना बहुत अच्छा लगता है, और वह अपने तर्क से इसको सही भी सिद्ध करते हैं, कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जिनको यह ठीक नहीं लगता है। वह इन सब वस्तु को बुरा मानते हैं, और इससे स्वयं को दूर रखते हैं। 

     यह पागलों की भीड़ हैं, यहां निरंतर लोगों की पागलपनता बढ़ रही है, यह जो दो अती है जीवन की यह किसी तरह से ठीक नहीं कही जा सकती है, या आप को प्रकाश अच्छा लगता है, या किसी को अंधेरा अच्छा लगता है, जबकी सत्य यह की यह जगत अंधेरा और प्रकाश दोनो के समिश्रण से ही दीन रात को बनाता है, जिसको जीवन कहते हैं, किसी को भौतिक्ता की चकाचौध बहुत अच्छी लगती है, किसी यह सब भौतीक्ता का चकाचौध अच्छा नहीं लगता वह वह इससे दूर भागता है। किसी को चरीत्रहिनता में व्यभिचार में आनंद आता है तो किसी को ब्रह्मचर्य और सदाचार में सुख मिलता है। कोई नास्तिक्ता के चरमउत्कर्ष पर आरुढ़ करके स्वयं को बहुत बड़ा विद्वान समझता है, तो कोई दूसरा दूसरे अती पर खड़ा हो जाता है। वह कहता है, की साधु बन जाओ बैरागी बन जाओ, उसके लिए धर्म की बाते ही अच्छी लगती है। यहां पर जो स्वयं को साधु कहता है, वह निर्धनता से ग्रस्त है, और जो धनता से ग्रस्त है, वह स्वयं भोग वीलाश से और ठाठ बाट से ग्रस्त है। साधु भोगबीलास के सारे साधन को संग्रहित करना चाहते हैं, और जो भोगी बीलासी हैं धनाढ्य हैं वह स्वयं को बैरागी साधु और योगी बना रहा हैं। यहां संसार में बड़ा भ्रमित करने वाला प्रत्येक कार्य चल रहा है, कोई कहता है, ईश्वर है, तो कोई कहता है, की ईश्वर नहीं है। जो धनाढ्य हैं वह अपनी धनाढ्यता में अंधे हो चुके हैं, उनको ईश्वर से कोई मतलब ही नहीं हैं, और जो निर्धन हैं वह कहते हैं, की ईश्वर नहीं हैं, धर्म वर्म सब बकवासा हैं, लोग ढोंग करते हैं, उनका अपना तर्क हैं, यदि ईश्वर है तो वह हमें संसार सागर जो दुःखों से भरा है, जिसमें हम तड़प रहें वह हमें क्यों नहीं निकालता है। वह हमें दुःखों में देख कर हमारी मददत क्यों नहीं करता है, इसलिए वह कहते हैं, की ईश्वर है ही नहीं है। मेहनत कर कर के हड्डियां टुटती जारही है, निर्धनता से लड़ते लड़ते कमर टुट रही, अज्ञानता से लड़ लड़ कर स्वयं को समाप्त होने के कगार पर ला कर खड़ा कर दिया यह जीवन की समस्या कभी खत्म ही नहीं होती है, एक समस्या का समाधान नहीं होता है, उससे पहले कितनी नई समस्याएं अपना शर उठा कर खड़ी हो जाती हैं।  बुद्धि चकरा जाती है, सोच कर आदमी पागल होने की कगार पर आकर खड़ा हो गया पागल ही हो गया और समाधान नहीं मिल रहा है, जो समाधान मिल रहा ऐसा हमें दिखाई देता है वास्तव में एक पर्दा की तरह से वह समाधान होता है, उसके पीछे समस्या उससे  बड़ी खड़ी है। जो हम पर हंसती है और हमारी मर्दानगी को ललकारती है। और बार बार कहती हैं, की तू असफल है, तू अभी सफल नहीं हुआ है, असफलता तो मानव जीवन में अपना जन्म सिद्ध अधिकार समझती है। हर वस्तु में संसय है, कितना पुरुषार्थ करने पर भी निराशा मृत्यु ही सभी को हाथ क्यों लगती है। 

   यह सब ऐसी समस्या है, जो सत्य हैं, लेकिन क्या यह सार्भौमिक सत्य है, विज्ञान जिस सत्य की स्थापना कर रहा है, क्या वह सार्भौमिक सत्य है, सत्य का निर्णय कैसे होगा? यहां जो बहुत लड़ रहें हर समय युद्ध के मैदान में ही रहते हैं वह कहां पर सब कुछ जीत पाते हैं, बहुत कुछ हारने पर यहां जीवन की बहुमूल्य संपत्ती जो जीवन है उसको जोखीम में डाल कर जीवन को जीत नहीं पाते हैं, वह भी मर जाते हैं। 

    यह सब बाते समझने के बाद यह तो सिद्ध होता है, की संसार में भयंकर दुःख हैं, हर आदमी अपने दुःखों को दूसरे से छीपा रहा है, क्योंकि इसके लिए ही उसे इस संसार में प्रशिक्षित किया जाता है, यद्यपि वह स्वयं से इसको छीपाने में हमेशा असफल ही होता है। इसलिए वह जब तक शरीर में रहता है तब तक इस असफलता से संघर्ष करता ही रहता है। यह मानव का स्वभाव बन चुका है। संसार में कितना दुःख है, वह रोज देखता है, और रोज उसको झुठलाने का प्रयत्न करता है, वह संसार से दुःख को दूर करने का प्रयाश करता है, यदि वह संसार से दुःख को दूर करने का प्रयाश करता है तो उसको उनसे संघर्ष करना पड़ता है, जो संसार में दुःख को सृजन करने वाले हैं। 

    मेरा यहीं कहने का मतलब है, की आपको संसार से दुःख को दूर करने का प्रयत्न करना होगा, कोई ईश्वर नहीं हैं, इस बाहर जगत में बाहर जगत में  या संसार अधिकतर लोग देैत्य हैं। क्योंकि सतपथ ब्राह्मण में बताया गया है, की मनुष्य दो प्रकार के होते हैं, एक वह जो सत्य मार्ग का अनुसरण करते हैं, धर्मात्मा ज्ञानी जन हैं, जो दूसरों के दुःखों जानते हैं और उसको दूर करने का पुरुषार्थ करते हैं, वह देवता कहे जाते हैं, दूसर वह मनुष्य होते हैं, जो छल कपट झूठ पाखंड व्यभीचार करते हैं वह दैत्य कहते जाते हैं ।   

    हमें इस संसार और समाज में सत्य को स्थापित करने के लिए संघर्ष को करना ही होगा, क्योंकि यही ईश्वर का कार्य है, हमें स्वयं ईश्वर बनना होगा हमें हमारे आने वाली पीढ़ी को पावना पोषना होगा, उनको चरीत्रवान बनाना देवता के समान दिव्य गुणों से सुसज्जीत करना होगा, यही उनके लिए उनका रक्षा कवच होगा। आज हमारी शिक्षा पद्दती लोगों को चरीत्रवान बनाने पर जोर नहीं देती है, जबकी हमारी संस्कृति और सभ्यता का आधार ही सदाचार संयम और त्याग है, इस तीन सूत्र का ही अनुसरण करके हमारे महापुरुषोंं ने स्वयं को इस संसार में अमर कर दिया है, हमें अपने महापुरुषों से प्रेरणा लेते हुए ज्ञान विज्ञान ब्रह्मज्ञान के कार्यक्रम को आगे बढ़ाना होगा, जहां तक मैं अपनी बात करता हूं, मैं एक विद्यालय चलाता हूं, और यह विद्यालय हमारे समाज में लोगों को चरीत्रवान संयमी और त्यागी बनाता है, मैं स्वयं बहुत बड़ा आदमी नहीं हूं लेकनि मैं इस कार्य को करता हूं, क्योंकि इस कार्य के द्वारा ही मुझे समाज में शांति और आनंद का मार्ग दिखता है, लोगों से मैं दान लेता हूं, और उस दान का उपयोग हमारे विद्यालय में पढ़ने वाले विद्यार्थीयों पर खर्च किया जाता है, जिसमें उनके लिए शिक्षा,  भोजन, और निवास उपलब्ध कराया जाता है, मैं चाहता हूं की आप सब जो इस पोष्ट को पढ़ रहें हैं, अपनी तरफ से कुछ दान हमारी संस्था ज्ञान विज्ञान ब्रह्मज्ञान में अवश्य करें, इसमें आपके नाम के साथ आपके दान से कितने बच्चों के जीवन का उद्धार होगा। आप लोग स्वयं समझ सकते हैं, की मेरे पास इतना अधिक धन नहीं है की हम अपने संस्था की एक अच्छी साइट को बना सके, इस लिए हम लोगों से स्वयं को जोड़ने के लिए ब्लाग पोष्ट करते हैं, और हमारी संस्था का यह एक छोटा सा मंच है, जो हमें इस दुनीया से जोड़ता है, हमारा कोई बहुत बड़े लोगों से संपर्क भी नहीं है, जिससे मैं बड़े लोगों से दान प्राप्त कर सकता हूं। आपका 1 रूपये का दान भी हमारे वैदिक विद्यालय के लिए अमृत का काम करेगा, और हमारे वच्चोंं के लिए वह उनके लिए रोटी कपड़ा और शिक्षा को खरीदने में मददत करेगा। हमारी आप आपस सब आत्मीय अनुरोध है, की आप इस दान की पद्दती को आगे बढ़ाए, आप स्वयं हमसे संपर्क कर सकते हैं। आज जिस प्रकार से अग्रेजी विद्यालय बढ़ रहें है, उनके मध्य में स्वयं के अस्तित्व की रक्षा करना हमारे लिए बहुत दुस्कर प्रतीत हो रहा है, मैं स्वयं एक साधु हूं, मेरा अपना कोई नहीं अर्थात सारा संसार ही अपना है, और मैं इस संसार को सुन्दर बनाने के लिए कार्य करता हूं, मैं चाहता हूं , लोगों को भोजन, शिक्षा और ज्ञान मिले वह जिससे उनकी आत्मा का विकास हो सिर्फ उनकी शरीर का विकास ना हो। 

      हम निस्वार्थ भाव से चैरीटेबल ट्र्स्ट चलाते हैं, जो समाज में लोगों के जीवन को हर प्रकार से ऊचां उठाने के लिए कार्य करती है। 

         हमारे बहुत से कार्य नहीं है, एक छोटा सा कार्य है, और इस कार्य के लिए आप सभी का सहयोग चाहिए, और यह सहयोग आप अपनी तरफ से थोड़ा सा दान करके कर सकते हैं, मैं चाहता हूं, हमारे ब्लाग पर आने वाला हर बीजीटर एक रूपए का दान अवश्य करें। और यह आपके द्वारा एक रूपए का दान हमारे लिए हमारी संस्था हमारे नन्हे मुन्ने निर्दोंष बच्चों के लिए इस जीवन संग्राम को लड़ने में सहयता करेगा।

   धन्यवाद 

मनोज पाण्डेय 

अध्यक्ष ज्ञान विज्ञान ब्रह्मज्ञान वैदिक विद्यालय

     

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