🕉️🙏ओ३म् सादर नमस्ते जी 🙏🕉️
🌷🍃 आपका दिन शुभ हो 🍃🌷
दिनांक - -२४ नवम्बर २०२४ ईस्वी
दिन - - रविवार
🌗 तिथि -- नवमी ( २२:१९ तक तत्पश्चात दशमी )
🪐 नक्षत्र - - पूर्वाफाल्गुन ( २२:१६ तक तत्पश्चात उत्तराफाल्गुन )
पक्ष - - कृष्ण
मास - - मार्गशीर्ष
ऋतु - - हेमन्त
सूर्य - - दक्षिणायन
🌞 सूर्योदय - - प्रातः ६:५१ पर दिल्ली में
🌞 सूर्यास्त - - सायं १७:२४ पर
🌗चन्द्रोदय -- २५:२९ पर
🌗 चन्द्रास्त - - १३:३३ पर
सृष्टि संवत् - - १,९६,०८,५३,१२५
कलयुगाब्द - - ५१२५
विक्रम संवत् - -२०८१
शक संवत् - - १९४६
दयानंदाब्द - - २००
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🚩‼️ओ३म्‼️🚩
🔥धर्म संसार का आधार है, जीवन जीने की कला है।
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धर्म के अनुरूप आचरण करने से ही इस मानव शरीर की सार्थकता है। संसार की विषम से विषम परिस्थितियों में भी धर्म ही मनुष्य का सहायक होता है। धर्म के ऊपर ही विश्व का समस्त भार है। यदि धर्माचरण ही समाप्त हो गया तो सबको अपने प्राण बचाने और दूसरों को कुचलने की चिंता ही रात-दिन बनी रहेगी। सर्वत्र लूट-खसोट, मार-पीट, अराजकता, अनाचार व अत्याचार का ही बोल बाला दिखाई देगा। सारा सुख चैन नष्ट हो जाएगा। आज चारों ओर अधिकांश यही हो रहा है। इसका कारण है कि लोगों ने अपने स्वार्थ के आगे धर्म को भुला दिया है। माया, मोह, लोभ की पट्टी उनकी आंखों पर बंधी है और उन्हे यह दिखता ही नहीं कि वे एक दूसरे की जडें खोदने में लगे हैं और सबके लिए नारकीय परिस्थितियां उत्पन्न कर रहे हैं।
धर्म कितना महत्वपूर्ण है, कितना सुदृढ है, इसका अनुमान इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि दुष्ट लोग भी धर्म की आड में अनुचित लाभ उठाने व ठगी का जाल फैलाने का प्रयास करते हैं। जहां श्रेष्ठता होती है वहां बुराई भी घुस आती है। लोग धर्म पालन को बहुत महत्व देते हैं। और इसके लिए हर प्रकार का त्याग व बलिदान करने को भी तत्पर रहते हैं। ऐसे में स्वार्थपरता भी अपनी जडें जमाने लगती हैं। अनेक व्यक्ति लाल पीले कपडे पहनकर तिलक चंदन लगाकर धर्म गुरू बनने का ढोंग रचते हैं और लोगों की धार्मिक भावनाओं का शोषण करते हैं। न जाने कितनी नकली धार्मिक संस्थाएं चारों ओर इसी आधार पर फल फूल रहीं हैं। वहां अनीति पूर्वक एकत्रित किए धन से हर प्रकार के दुराचार होते हैं। जिस धर्म के मजबूत आधार का आश्रय लेकर दुराचारी व्यक्ति भी अपना काम चलाना चाहते हैं उसे हम क्यों छोड़ दें? मनुष्य जीवन की इमारत का निर्माण ही धर्म के सुदृढ आधार पर होना चाहिए।
दान-पुण्य, धार्मिक कर्मकांड आदि तो धर्म के साधन मात्र हैं। वास्तविक धर्म तो कर्तव्य पालन, दूसरों की सेवा, परोपकार,
सच्चाई और संयम में ही है। जो इन तत्त्वों को अपने विचार और आचरण में प्रमुख स्थान देता है वही सच्चा धर्मात्मा है। अन्यथा धर्म का ढोंग करने से कोई लाभ नहीं है। जीवन की सफलता तभी है जब यह धर्म हमारे रक्त में घुला हुआ हो, रोम रोम में व्याप्त हो। जो कुछ भी हम देखें, सोचे, करें सब कुछ धर्मानुकूल ही हो। दूसरों को अधर्माचरण से यदि कुछ लाभ हो रहा है तो उसे देखकर अपनी नियत मत बिगाडों। कांटे में लिपटी हुई आटे की गोली खाकर मछली की जो दशा होती है वही अनीति से लाभ उठाने वालो की भी होती है। कोई भी बुद्धिमान और दूरदर्शी व्यक्ति इस मार्ग के अनुसरण करने की मूर्खता नहीं कर सकता।
धर्म-अधर्म का निर्णय करने के लिए सदबुद्धि हमारे पास है। अल्पबुद्धि और बिना पढे लिखे लोगों को भी सदबुद्धि का वरदान मिला हुआ है। उसका निष्पक्ष, निर्भय होकर उपयोग करना चाहिए अपनी सदबुद्धि की सहायता से उपयोगी रीति रिवाज व आचरण को निर्धारित करके पालन करना ही सच्चा मानव धर्म है ।
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🚩‼️आज का वेद मन्त्र,‼️🚩
🌷ओ३म् पुरीष्यासोऽअग्नय: प्रावणेभि: सजोषस:।
जुषन्तां यज्ञमद्रुहोऽनमीवाऽइषो मही:॥ यजुर्वेद १२-५०॥
💐हे विद्वान, मनुष्य अपने आप को मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ कर। अपने आप को ईर्ष्या और घृणा से मुक्त कर। दिव्य ज्ञान से अपने आप को प्रकाशित कर और फिर यज्ञ अर्थात दूसरों के कल्याण के लिए काम कर।
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🔥विश्व के एकमात्र वैदिक पञ्चाङ्ग के अनुसार👇
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🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏
(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त) 🔮🚨💧🚨 🔮
ओ३म् तत्सत् श्रीब्रह्मणो द्वितीये प्रहरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- पञ्चर्विंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२५ ) सृष्ट्यब्दे】【 एकाशीत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०८१) वैक्रमाब्दे 】 【 द्विशतीतमे ( २००) दयानन्दाब्दे, काल -संवत्सरे, रवि- दक्षिणायने , हेमन्त -ऋतौ, मार्गशीर्ष - मासे, कृष्ण पक्षे,नवमी
तिथौ, पूर्वाफाल्गुन
नक्षत्रे, शनिवासरे
, शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे भरतखंडे...प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ, आत्मकल्याणार्थ,रोग,शोक,निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे
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