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क्षथा विज यथा फल

 


*जो सोच है,वह आन्तरिकता (संस्कार ) के आधार पर ही है, इसलिए जो भीतर है वही बाहर दिखेगा ही निश्चित रूप से....चाहे जितना अभिनयात्मक छल प्रस्तुत किया जाये सत्य बताकर ।*


*यथा बीजं फलं तथैव जीवने आदान-प्रदानस्य ।*

*सिद्वान्तमेतत् संशय रहितं जानन्ति ये शिष्टाचारी: स्यात् ।।*

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