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दिनांक - -२७ नवम्बर २०२४ ईस्वी

 *🕉️🙏ओ३म् सादर नमस्ते जी 🙏🕉️*



*🌷🍃 आपका दिन शुभ हो 🍃🌷*


दिनांक  - -२७ नवम्बर २०२४ ईस्वी


दिन  - - बुधवार 


  🌘 तिथि -- द्वादशी ( ३०:२३ तक तत्पश्चात  त्रयोदशी )


🪐 नक्षत्र - - चित्रा  ( पूरी रात्री )

 

पक्ष  - -  कृष्ण 

मास  - -  मार्गशीर्ष 

ऋतु  - - हेमन्त 

सूर्य  - -  दक्षिणायन 


🌞 सूर्योदय  - - प्रातः ६:५४ पर  दिल्ली में 

🌞 सूर्यास्त  - - सायं १७:२४ पर 

 🌘चन्द्रोदय  --  २८:०६ पर 

 🌘 चन्द्रास्त  - - १४:५३ पर 


 सृष्टि संवत्  - - १,९६,०८,५३,१२५

कलयुगाब्द  - - ५१२५

विक्रम संवत्  - -२०८१

शक संवत्  - - १९४६

दयानंदाब्द  - - २००


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 *🚩 ‼️ओ३म्  ‼️🚩*


🔥ओम् लिखने का सही तरीक़ा है  ॥ ओ३म् ॥

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   'ओ३म्'। ओम् अक्षर बनता है ढाई अक्षरों से अर्थात् अ+उ+म् से। व्याकरण के अनुसार अ और   उ की सन्धि (मिलान) करने से वह 'ओ' बन जाता है अतः अ+उ=ओ और उसमे म् जोड़ने से ओम् शब्द बनता है। वैदिक ढंग से ओम् को लिखने का सही तरीक़ा है 'ओ३म्' क्योंकि ओ का उच्चारण ३ गुणा लम्बा होना चाहिए - यही दर्शाने के लिए ओ और म् के मध्य में ३ लिखा जाता है। 


    ओ३म् ईश्वर का सर्वप्रिय निज नाम जाना और माना जाता है क्योंकि इस में ईश्वर के सभी प्रकार के गौणिक, कार्मिक तथा अलंकारिक नाम समाहित हो जाते हैं। वेद और आर्ष ग्रन्थों में इसी ओ३म् नाम की व्याख्या उपलब्ध है। इस ओ३म् नाम के मन में उच्चारण से परम् शान्ति का अनुभव प्राप्त होता है। आर्ष ग्रन्थों में ओ३म् नाम की अनेक विशेषताएँ बताई गई हैं।


  १- ओ३म् के उच्चारण मात्र से मृत कोशिकाएँ जीवित हो जाती है ।


   २- मन के नकारात्मक भाव सकारात्मक में परिवर्तित हो जाते है ।


   ३-  तनाव से मुक्ति मिलती है ।


४-  स्टेरॉयड का स्तर कम हो जाता है ।


   ५- चेहरे के भाव तथा  हमारे आसपास के वातावरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है ।


   ६- मस्तिष्क में सकारात्मक परिवर्तन होते हैं तथा हृदय स्वस्थ होता है ।


   ७-महर्षि पतंजलि जी ने योगदर्शन सूत्र १.२९ में उपदेश किया है कि ओ३म् का अर्थ सहित जप करने से आत्मा परमात्मा का साक्षात्कार होता है और सब विघ्नों का नाश होता है ।


   ८- वेद में परमात्मा ने स्वयं ओम् जप का उपदेश किया है- *ओ३म् क्रतो स्मर- यजुर्वेद ४०.१५*


हे कर्मशील जीव! तू ओ३म् का स्मरण कर ।


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 *🕉️🚩 चाणक्य नीति श्लोक 🕉️🚩*

              

   *🌷 वृश्चिकस्य विषं पृच्छे मक्षिकायाः मुखे विषम्।

तक्षकस्य  विषं  दन्ते  सर्वांगे दुर्जनस्य तत्॥*


   💐 अर्थ  :-  बिच्छु की पूंछ में विष होता है, मक्षिका (मक्खी) का विष उसके मुँह में होता है, तक्षक (साँप) का विष उसके दाँत में होता है, परन्तु दुष्ट मनुष्य का प्रत्येक अंग विषैला होता है, अतः दुष्ट मनुष्य का संग सबसे भयानक होता है।


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 🔥विश्व के एकमात्र वैदिक  पञ्चाङ्ग के अनुसार👇

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 🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏


(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त)       🔮🚨💧🚨 🔮


ओ३म् तत्सत् श्रीब्रह्मणो द्वितीये प्रहरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- पञ्चर्विंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२५ ) सृष्ट्यब्दे】【 एकाशीत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०८१) वैक्रमाब्दे 】 【 द्विशतीतमे ( २००) दयानन्दाब्दे, काल -संवत्सरे,  रवि- दक्षिणायने , हेमन्त -ऋतौ, मार्गशीर्ष - मासे, कृष्ण पक्षे, द्वादश्यां

 तिथौ, चित्रा

 नक्षत्रे, बुधवासरे

 , शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे भरतखंडे...प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ,  आत्मकल्याणार्थ,रोग,शोक,निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे।


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