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वैदिक बाते राग



 *🚩‼️ओ3म्‼️🚩*


*🕉️🙏नमस्ते जी🙏🕉️*


दिनांक - - 14 मई 2025 ईस्वी


दिन - - रविवार 


   🌖तिथि--द्वितीय (26:29 तक तृतीया)


🪐 नक्षत्र - - अनुराधा ( 11:47 तक सवा लाख ज्येष्ठा )

 

पक्ष - - कृष्ण 

मास - - ज्येष्ठ 

ऋतु - -ग्रीष्म 

सूर्य - - उत्तरायण 


🌞सूर्योदय - - प्रातः 5:31 पर दिल्ली में 

🌞सूरुष - - सायं 19:04 पर 

🌖चन्द्रोदय--20:51 पर 

🌖 चन्द्रास्त - - 6:12 पर 


 सृष्टि संवत् - - 1,96,08,53,126

कलयुगाब्द - - 5126

सं विक्रमावत - -2082

शक संवत - - 1947

दयानन्दबद - - 201


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 *🚩 ‼️ ओ3म् ‼️🚩*


*🔥वैदिक बाते राग* 

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   *ओ3म् भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।। (ऋग्वेद)*


   अर्थ: वह प्राणस्वरूप, दुःखनाक्ष, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, उदय, पापनाक्ष, देवस्वरूप परमात्मा को हम अंत:करण में धारण करते हैं। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे। इस मंत्र या ऋग्वेद के पहले वाक्य का निरंतर ध्यान करने से व्यक्ति की बुद्धि में क्रांतिकारी बदलाव आता है। उनका अचानक जीवन ही बदल जाता है। यदि कोई व्यक्ति किसी भी प्रकार से शराब, मांस और क्रोध आदि बुरे कर्मों का प्रयोग करता है तो उतनी ही तेजी से उसका पतन भी हो जाता है। यह पवित्र और चमत्कारिक मंत्र है। 


  *ओ3म् उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।क्षुरस्य धारा निशिता दूर्त्यया दुर्गं पथस्तकवयो वदन्ति।।14।। -कठोपनिषद् (यजुर्वेद)*


   अर्थ : (हेसंगठन) उठो, जागो (सचेत हो जाओ)। श्रेष्ठ (ज्ञानी) पुरुषों को प्राप्त (उनके पास जा) करके ज्ञान प्राप्त करो। त्रिकालज्ञानी (ज्ञानी पुरुष) उस पथ (तत्वज्ञान के मार्ग) को छुरे की तीक्ष्ण (लांघने में कठिन) धारा के (के सदृश) दुर्गम (घोर कठिन) कहते हैं।


 *ओ3म् प्रथमेनार्जिता विद्या द्वितीयेनार्जितं धनं तृतीयेनार्जितः कीर्तिः चतुर्थे किं करिष्यति।।*


  अर्थ : जिसने प्रथम अर्थात ब्रह्मचर्य आश्रम में विद्या अर्जित नहीं की, द्वितीय अर्थात गृहस्थ आश्रम में धन अर्जित नहीं की, तृतीय अर्थात वानप्रस्थ आश्रम में विद्या अर्जित नहीं की, चतुर्थ अर्थात वानप्रस्थ आश्रम में धन अर्जित नहीं की, चतुर्थ अर्थात वानप्रस्थ आश्रम में धन अर्जित नहीं की, चतुर्थ अर्थात वानप्रस्थ आश्रम में धन अर्जित नहीं की, चतुर्थ अर्थात वानप्रस्थ आश्रम में धन अर्जित नहीं की, चतुर्थ अर्थात वानप्रस्थ आश्रम में धन अर्जित नहीं की, चतुर्थ अर्थात वानप्रस्थ आश्रम में धन अर्जित नहीं की, चतुर्थ अर्थात वानप्रस्थ आश्रम में धन अर्जित नहीं की, चतुर्थ अर्थात वानप्रस्थ आश्रम में धन अर्जित नहीं की, चतुर्थ अर्थात वानप्रस्थ आश्रम में धन अर्जित नहीं की, चतुर्थ अर्थात वानप्रस्थ आश्रम में धन अर्जित नहीं की, चतुर्थ अर्थात वानप्रस्थ आश्रम में धन अर्जित नहीं की, चतुर्थ अर्थात वानप्रस्थ आश्रम में विद्या अर्जित नहीं की, चतुर्थ अर्थात वानप्रस्थ आश्रम में धन अर्जित नहीं की, चतुर्थ अर्थात वानप्रस्थ आश्रम में धन अर्जित की नहीं, चतुर्थ अर्थात वानप्रस्थ आश्रम में धन अर्जित नहीं की, चतुर्थ अर्थात वानप्रस्थ आश्रम में विद्या अर्जित नहीं की, चतुर्थ अर्थात वानप्रस्थ आश्रम में धन अर्जित नहीं की, चतुर्थ अर्थात वानप्रस्थ आश्रम में धन अर्जित नहीं की, चतुर्थ अर्थात वानप्रस्थ आश्रम में विद्या अर्जित नहीं की, चतुर्थ अर्थात वानप्रस्थ आश्रम में धन अर्जित नहीं की.


 *ओ3म् विद्या मित्रं भ्रमणेषु भार्या मित्रं गृहेषु चारुगणस्य चौषधं मित्रं धर्मो मित्रं मृतस्य च।।*


   अर्थ : यात्रा की मित्र विद्या, घर की मित्र पत्नी, यात्रा की मित्र औषधि और मृत्योपारंत मित्र धर्म ही होता है।


 *ओ3म् असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योर्मामृतं गमय।।*


   अर्थ: हे ईश्वर (हमको) असत्य से सत्य की ओर ले चलो। डार्कनेस से लाइट की ओर ले चलो। मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो। उक्त प्रार्थना से व्यक्ति के जीवन से अंधकार मिट जाता है। अर्थात नकारात्मक विचार हटकर सकारात्मक दृष्टिकोण का जन्म होता है।


  *ओ3म् सह नाववतु। सह नौ भुनक्तु। सह वीर्यं करवावहै। तेजस्विनावधीतमस्तु मा विदविशावहै।।19।। (कठोपनिषद् यजुर्वेद)*


   अर्थ: भगवान हम दोनों शिष्य और आचार्य दोनों एक साथ-साथ रक्षा करें, हम दोनों एक साथ मिलकर विद्या के फल का सिद्धांत प्राप्त करें, हम दोनों एक साथ मिलकर विद्या प्राप्ति का सिद्धांत प्राप्त करें, हम दोनों का पढ़ा हुआ बचपन हो, हम दोनों एक साथ द्वेष न करें। उक्त प्रकार की भावना रखने वाले का मन निर्मल रहता है। निर्मल मन से निर्मल भविष्य का उदय होता है।


 *ओ3म् मा भ्राता भ्रातरं द्वितीयं, मा स्वसारमुत् स्वसा। सम्यञ्च: सवृता भूत्वा वाचं वदत् भद्रया।।2।। (अथर्ववेद 3. 30. 3)*


   अर्थ: भाई, भाई से द्वेष न करें, बहन, बहन से द्वेष न करें, समान गति से एक-दूसरे का आदर-सम्मान करते हुए मिल-जुलकर कर्मों को करने वाले या एकमत से प्रत्येक कार्य करने वाले, भद्र भाव से भोजन संबंधी संभाषण करें। उक्त प्रकार की भावना से कभी गृहकलह नहीं होता और संयुक्त परिवार में एकमात्र व्यक्ति शांतिमय जीवन जी कर सर्वांगिन उन्नत रहता है। 


 *ओ3म् यथा द्यौश्च पृथिवी च न बिभीतो न ऋषितः। एवा मे प्राण मा विभेः।।।- अथर्ववेद*


  अर्थ : जिस प्रकार आकाश एवं पृथ्वी न भयग्रस्त होते हैं और न ये नाश होते हैं, उसी प्रकार हे मेरे प्राण! तुम भी भयमुक्त रहो। अर्थ व्यक्ति को कभी किसी प्रकार का भय नहीं पालना चाहिए। भय से जहां शारीरिक रोग पैदा होते हैं वहीं मानसिक रोग भी पैदा होते हैं। डरे हुए व्यक्ति का कभी किसी प्रकार का विकास नहीं होता। संयम के साथ निर्भीकता आवश्यक है। डर सिर्फ ईश्वर का। 


 *ओ3म् अलसस्य कुतः विद्या अविद्यस्य कुतः धनम्। अधनस्य कुतः मित्रम् अमित्रस्य कुतः सुखम्।।*


  अर्थ : आफ़तान को विद्या स्थान, अनपढ़ या मूर्ख को धन स्थान, निर्धन को मित्र स्थान और अमित्र को सुख स्थान। 


 *ओ3म् अलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो।।*


अर्थ: प्रयोग के शरीर में रहने वाला अलस्या ही (उनका) सबसे बड़ा शत्रु होता है। जैसा परिश्रम दूसरा (हमारा) कोई और मित्र नहीं होता, क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुःखी नहीं होता।


 *ओ3म् सहसा विद्धीत न क्रियामविवेकः परमपदां पदम्। वृणते हि विमर्शकारिणं गुणलुब्धाः स्वयमेव संपदाः।।*


अर्थ : अचानक (आवेश में ज्ञान बिना सोचे-समझे) कोई कार्य नहीं करना चाहिए, क्योंकि विवेकशून्यता सबसे बड़ी विपत्तियों का घर होती है।


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 *🕉️🚩चाणक नीति श्लोक 🕉️🚩*


        *🌷मूर्खशिष्योपदेश दुष्टेनास्त्रीभरणेन च। दु:खितै सम्प्रयोगेण पण्डितोऽप्यवसीदति।।*


          💐अर्थ:-मूर्ख शिष्यों को अनुयायी पर, दुष्ट स्त्री के साथ जीवन पर तथा दु:खियों - समुद्र तट के बीच रहने पर विद्वान व्यक्ति भी दु:खी हो जाता है।


         *🌷 दुष्टा भार्या शठं मित्रं भृत्यश्चोद्दय:। सर्पे गृहे वासो मृत्युरेव न संशय।।*


       💐अर्थ:- दुष्ट पत्नी, शठ मित्र, उत्तर देने वाला नौकर तथा सांप वाले का घर में रहना, इस मृत्यु का कारण इसमें सन्देह नहीं करना चाहिए।


          🌷 *जानियात्प्रेशानेभृत्यन् बंधवान्व्यासनाऽऽगमे। मित्रं याऽऽपत्तिकालेषु भार्या च विभवक्षये।।*


            💐 :- किसी महत्वपूर्ण कार्य पर अंतिम समय सेवक की पहचान होती है। दु:ख के समय में बंधुओं की, विपत्ति के समय मित्र की तथा धन नष्ट हो जाने पर पत्नी की परीक्षा होती है।


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 🔥विश्व के एकमात्र वैदिक पंचांग के अनुसार👇

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 🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏


(सृष्टयादिसंवत-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि-नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त) 🔮🚨💧🚨 🔮


ओ3म् तत्सत् श्री ब्राह्मणो दये द्वितीये प्रहर्धे श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वते मन्वन्तरे अष्टविंशतितम कलियुगे

कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-शन्नवतिकोति-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाष्टसहस्र- षड्विंशत्य्युत्तरशतमे ( 1,6,08,53,126 ) सृष्ट्यबडे】【 द्वयशीत्युत्तर-द्विशहस्त्रतमे (2082) वैक्रमब्दे 】 【 मदद्विशतीतमे ( 201) दयानन्दबदे, काल -संवत्सरे, रवि - उत्तरायणे, ग्रीष्म -ऋतौ, ज्येष्ठ - मासे, कृष्ण - पक्षे, द्वितीयायां तिथौ, अनुराधा - नक्षत्रे, बुधवासरे, शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे भारतखंडे...प्रदेशे.... प्रदेशे...नगरे...गोत्रोत्पन्न....श्रीमान्।( पितामह)... (पिता)।


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