🔥 वैदिक बाते कल्याणकारी
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ओ३म् भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।। (ऋगवेद )
अर्थ : उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अंत:करण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे। इस मंत्र या ऋग्वेद के पहले वाक्य का निरंतर ध्यान करते रहने से व्यक्ति की बुद्धि में क्रांतिकारी परिवर्तन आ जाता है। उसका जीवन अचानक ही बदलना शुरू हो जाता है। यदि व्यक्ति किसी भी प्रकार से शराब, मांस और क्रोध आदि बुरे कर्मों का प्रयोग करता है तो उतनी ही तेजी से उसका पतन भी हो जाता है। यह पवित्र और चमत्कारिक मंत्र है।
ओ३म उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति।।१४।। -कठोपनिषद् ( यजुर्वेद)
अर्थ : (हे मनुष्यों) उठो, जागो (सचेत हो जाओ)। श्रेष्ठ (ज्ञानी) पुरुषों को प्राप्त (उनके पास जा) करके ज्ञान प्राप्त करो। त्रिकालदर्शी (ज्ञानी पुरुष) उस पथ (तत्वज्ञान के मार्ग) को छुरे की तीक्ष्ण (लांघने में कठिन) धारा के (के सदृश) दुर्गम (घोर कठिन) कहते हैं।
ओ३म् प्रथमेनार्जिता विद्या द्वितीयेनार्जितं धनं।तृतीयेनार्जितः कीर्तिः चतुर्थे किं करिष्यति।।
अर्थ : जिसने प्रथम अर्थात ब्रह्मचर्य आश्रम में विद्या अर्जित नहीं की, द्वितीय अर्थात गृहस्थ आश्रम में धन अर्जित नहीं किया, तृतीय अर्थात वानप्रस्थ आश्रम में कीर्ति अर्जित नहीं की, वह चतुर्थ अर्थात संन्यास आश्रम में क्या करेगा?
ओ३म् विद्या मित्रं प्रवासेषु भार्या मित्रं गृहेषु च।रुग्णस्य चौषधं मित्रं धर्मो मित्रं मृतस्य च।।
अर्थ : प्रवास की मित्र विद्या, घर की मित्र पत्नी, मरीजों की मित्र औषधि और मृत्योपरांत मित्र धर्म ही होता है।
ओ३म् असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योर्मामृतं गमय।।
अर्थ: हे ईश्वर (हमको) असत्य से सत्य की ओर ले चलो। अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो। मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो।उक्त प्रार्थना करते रहने से व्यक्ति के जीवन से अंधकार मिट जाता है। अर्थात नकारात्मक विचार हटकर सकारात्मक विचारों का जन्म होता है।
ओ३म् सह नाववतु। सह नौ भुनक्तु। सह वीर्यं करवावहै। तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै।।१९।। (कठोपनिषद यजुर्वेद)
अर्थ : परमेश्वर हम शिष्य और आचार्य दोनों की साथ-साथ रक्षा करें, हम दोनों को साथ-साथ विद्या के फल का भोग कराए, हम दोनों एकसाथ मिलकर विद्या प्राप्ति का सामर्थ्य प्राप्त करें, हम दोनों का पढ़ा हुआ तेजस्वी हो, हम दोनों परस्पर द्वेष न करें। उक्त तरह की भावना रखने वाले का मन निर्मल रहता है। निर्मल मन से निर्मल भविष्य का उदय होता है।
ओ३म् मा भ्राता भ्रातरं द्विक्षन्, मा स्वसारमुत स्वसा। सम्यञ्च: सव्रता भूत्वा वाचं वदत भद्रया।।२।। (अथर्ववेद ३. ३०. ३)
अर्थ : भाई, भाई से द्वेष न करें, बहन, बहन से द्वेष न करें, समान गति से एक-दूसरे का आदर- सम्मान करते हुए परस्पर मिल-जुलकर कर्मों को करने वाले होकर अथवा एकमत से प्रत्येक कार्य करने वाले होकर भद्रभाव से परिपूर्ण होकर संभाषण करें। उक्त तरह की भावना रखने से कभी गृहकलय नहीं होता और संयुक्त परिवार में रहकर व्यक्ति शांतिमय जीवन जी कर सर्वांगिण उन्नती करता रहता।
ओ३म् यथा द्यौश्च पृथिवी च न बिभीतो न रिष्यतः। एवा मे प्राण मा विभेः।।१।।- अथर्ववेद
अर्थ : जिस प्रकार आकाश एवं पृथ्वी न भयग्रस्त होते हैं और न इनका नाश होता है, उसी प्रकार हे मेरे प्राण! तुम भी भयमुक्त रहो।अर्थात व्यक्ति को कभी किसी भी प्रकार का भय नहीं पालना चाहिए। भय से जहां शारीरिक रोग उत्पन्न होते हैं वहीं मानसिक रोग भी जन्मते हैं। डरे हुए व्यक्ति का कभी किसी भी प्रकार का विकास नहीं होता। संयम के साथ निर्भिकता होना जरूरी है। डर सिर्फ ईश्वर का रखें।
ओ३म् अलसस्य कुतः विद्या अविद्यस्य कुतः धनम्। अधनस्य कुतः मित्रम् अमित्रस्य कुतः सुखम्।।
अर्थ : आलसी को विद्या कहां, अनपढ़ या मूर्ख को धन कहां, निर्धन को मित्र कहां और अमित्र को सुख कहां।
ओ३म् आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो।।
अर्थ : मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही (उनका) सबसे बड़ा शत्रु होता है। परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा) कोई अन्य मित्र नहीं होता, क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता।
ओ३म् सहसा विदधीत न क्रियामविवेकः परमापदां पदम्। वृणते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वयमेव संपदः।।
अर्थ : अचानक (आवेश में आकर बिना सोचे-समझे) कोई कार्य नहीं करना चाहिए, कयोंकि विवेकशून्यता सबसे बड़ी विपत्तियों का घर होती है.
🕉️🚩 चाणक्य नीति श्लोक 🕉️🚩
🌷 मूर्खशिष्योपदेशेन दुष्टास्त्रीभरणेन च। दु:खितै सम्प्रयोगेण पण्डितोऽप्यवसीदति ।।
💐 अर्थ :- मूर्ख शिष्य को पढ़ाने पर, दुष्ट स्त्री के साथ जीवन बिताने पर तथा दु:खियों - रोगियों के बीच रहने पर विद्धान व्यक्ति भी दु:खी हो ही जाता है ।
🌷 दुष्टा भार्या शठं मित्रं भृत्यश्चोत्तरदायक:। ससर्पे गृहे वासो मृत्युरेव न संशय ।।
💐 अर्थ:- दुष्ट पत्नी, शठ मित्र, उत्तर देने वाला सेवक तथा सांप वाले घर में रहना, ये मृत्यु के कारण है इसमें सन्देह नहीं करना चाहिए ।
🌷 जानीयात्प्रेषणेभृतयान बान्धवान्व्यसनाऽऽगमे। मित्रं याऽऽपत्तिकालेषु भार्या च विभवक्षये।।
💐 :- किसी महत्वपूर्ण कार्य पर भेजते समय सेवक की पहचान होती हैं। दु:ख के समय में बन्धु- बान्धवों की, विपत्ति के समय मित्र की तथा धन नष्ट हो जाने पर पत्नी की परीक्षा होती है।

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