यजुर्वेद अध्याय 1, हिन्दी भाष्य स्वामी दयानन्द सरस्वती
इ॒षे त्वो॒र्जे त्वा॑ वा॒यव॑ स्थ दे॒वो वः॑ सवि॒ता प्रार्प॑यतु॒ श्रेष्ठ॑तमाय॒ कर्म॑ण॒ऽआप्या॑यध्वमघ्न्या॒ऽइन्द्रा॑य भा॒गं प्र॒जाव॑तीरनमी॒वाऽअ॑य॒क्ष्मा मा व॑ स्ते॒नऽई॑शत॒ माघश॑ꣳसो ध्रु॒वाऽअ॒स्मिन् गोप॑तौ स्यात ब॒ह्वीर्यज॑मानस्य प॒शून् पा॑हि ॥१॥
हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
इसके प्रथम अध्याय के प्रथम मन्त्र में उत्तम-उत्तम कामों की सिद्धि के लिये मनुष्यों को ईश्वर की प्रार्थना करनी अवश्य चाहिये, इस बात का प्रकाश किया है ॥
पदार्थान्वयभाषाः -हे मनुष्य लोगो ! जो (सविता) सब जगत् की उत्पत्ति करनेवाला सम्पूर्ण ऐश्वर्ययुक्त (देवः) सब सुखों के देने और सब विद्या के प्रसिद्ध करनेवाला परमात्मा है, सो (वः) तुम हम और अपने मित्रों के जो (वायवः) सब क्रियाओं के सिद्ध करानेहारे स्पर्श गुणवाले प्राण अन्तःकरण और इन्द्रियाँ (स्थ) हैं, उनको (श्रेष्ठतमाय) अत्युत्तम (कर्मणे) करने योग्य सर्वोपकारक यज्ञादि कर्मों के लिये (प्रार्पयतु) अच्छी प्रकार संयुक्त करे। हम लोग (इषे) अन्न आदि उत्तम-उत्तम पदार्थों और विज्ञान की इच्छा और (ऊर्जे) पराक्रम अर्थात् उत्तम रस की प्राप्ति के लिये (भागम्) सेवा करने योग्य धन और ज्ञान के भरे हुए (त्वा) उक्त गुणवाले और (त्वा) श्रेष्ठ पराक्रमादि गुणों के देने हारे आपका सब प्रकार से आश्रय करते हैं। हे मित्र लोगो ! तुम भी ऐसे होकर (आप्यायध्वम्) उन्नति को प्राप्त हो तथा हम भी हों। हे भगवन् जगदीश्वर ! हम लोगों के (इन्द्राय) परम ऐश्वर्य्य की प्राप्ति के लिये (प्रजावतीः) जिनके बहुत सन्तान हैं तथा जो (अनमीवाः) व्याधि और (अयक्ष्माः) जिनमें राजयक्ष्मा आदि रोग नहीं हैं, वे (अघ्न्याः) जो-जो गौ आदि पशु वा उन्नति करने योग्य हैं, जो कभी हिंसा करने योग्य नहीं, जो इन्द्रियाँ वा पृथिवी आदि लोक हैं, उन को सदैव (प्रार्पयतु) नियत कीजिये। हे जगदीश्वर ! आपकी कृपा से हम लोगों में से दुःख देने के लिये कोई (अघशंसः) पापी वा (स्तेनः) चोर डाकू (मा ईशत) मत उत्पन्न हो तथा आप इस (यजमानस्य) परमेश्वर और सर्वोपकार धर्म के सेवन करनेवाले मनुष्य के (पशून्) गौ, घोड़े और हाथी आदि तथा लक्ष्मी और प्रजा की (पाहि) निरन्तर रक्षा कीजिये, जिससे इन पदार्थों के हरने को पूर्वोक्त कोई दुष्ट मनुष्य समर्थ (मा) न हो, (अस्मिन्) इस धार्मिक (गोपतौ) पृथिवी आदि पदार्थों की रक्षा चाहनेवाले सज्जन मनुष्य के समीप (बह्वीः) बहुत से उक्त पदार्थ (ध्रुवाः) निश्चल सुख के हेतु (स्यात) हों। इस मन्त्र की व्याख्या शतपथ-ब्राह्मण में की है, उसका ठिकाना पूर्व संस्कृत-भाष्य में लिख दिया और आगे भी ऐसा ही ठिकाना लिखा जायगा, जिसको देखना हो, वह उस ठिकाने से देख लेवे ॥१॥
भावार्थभाषाः -विद्वान् मनुष्यों को सदैव परमेश्वर और धर्मयुक्त पुरुषार्थ के आश्रय से ऋग्वेद को पढ़ के गुण और गुणी को ठीक-ठीक जानकर सब पदार्थों के सम्प्रयोग से पुरुषार्थ की सिद्धि के लिये अत्युत्तम क्रियाओं से युक्त होना चाहिये कि जिससे परमेश्वर की कृपापूर्वक सब मनुष्यों को सुख और ऐश्वर्य की वृद्धि हो। सब लोगों को चाहिये कि अच्छे-अच्छे कामों से प्रजा की रक्षा तथा उत्तम-उत्तम गुणों से पुत्रादि की शिक्षा सदैव करें कि जिससे प्रबल रोग, विघ्न और चोरों का अभाव होकर प्रजा और पुत्रादि सब सुखों को प्राप्त हों, यही श्रेष्ठ काम सब सुखों की खान है। हे मनुष्य लोगो ! आओ अपने मिलके जिसने इस संसार में आश्चर्यरूप पदार्थ रचे हैं, उस जगदीश्वर के लिये सदैव धन्यवाद देवें। वही परम दयालु ईश्वर अपनी कृपा से उक्त कामों को करते हुए मनुष्यों की सदैव रक्षा करता है ॥१॥
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