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वैदिक तैंतीस कोटि देव*
आश्चर्य की बात मानव अस्तित्व का कोई शुभचिंतक नहीं है।
संगठन (ग्रुप
मेरा अगला जन्म मनुष्य के रूप में ही होना चाहिए आचार्य श्री, इसके लिए मुझे क्या करना पड़ेगा ? आज मुझे इसी पाप–पुण्य  बारे कुछ प्रश्न पूछने हैं गुरुदेव ।
चौदह प्रकार के लोग जो मृततुल्य हैं।
जगत् के प्रभु हैं कल्याणकारी जो भी काम किया तेरा नाम लिया ज़िदगी तेरे ही बल पे सारी ।।
मांस भक्षण विवेचन
हे पावन त्रिभुवन ! तुम अपने जगत् को पावन कर रहे तुम्हरे बिन संसार है बिल्कुल मलिन, पापों में रहे
आओ!  संसार के प्रिय मानवो मिल जुल के मित्र बन जाएँ आपस में भुला दें वैर और द्वेष प्रभु गोद में बैठ खिल जाएँ
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