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मृतक श्राद्ध एक पाखण्ड!!!

🕉️🙏ओ३म् सादर नमस्ते जी 🙏🕉️
🌷🍃 आपका दिन शुभ हो 🍃🌷

दिनांक  - २१ सितम्बर २०२४ ईस्वी

दिन  - - शनिवार 

  🌖 तिथि -- चतुर्थी ( १८:१३ तक तत्पश्चात पंचमी )

🪐 नक्षत्र -  भरणी ( २४:३६ तक तत्पश्चात कृत्तिका )
 
पक्ष  - -  कृष्ण 
मास  - -  आश्विन 
ऋतु  - - शरद 
सूर्य  - -  दक्षिणायन 

🌞 सूर्योदय  - - प्रातः ६:९ पर  दिल्ली में 
🌞 सूर्यास्त  - - सायं १८:१९ पर 
 🌖चन्द्रोदय  -- १८:२९ पर 
  🌖 चन्द्रास्त  - - ९:३४ पर

 सृष्टि संवत्  - - १,९६,०८,५३,१२५
कलयुगाब्द  - - ५१२५
विक्रम संवत्  - -२०८१
शक संवत्  - - १९४६
दयानंदाब्द  - - २००

🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁🍀

 🚩‼️ओ३म्‼️🚩

🔥मृतक श्राद्ध एक पाखण्ड!!!
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   श्राद्ध और तृपण के सत्य वैदिक स्वरूप को जाने... और अन्ध विश्वास को त्यागे...!!!

प्रिय बन्धुओं ! 
                  अपने समाज में अनेक भ्रान्त प्रथायें प्रचलित हैं । उनमें मृतकों का श्राद्ध भी एक बहुत ही विचित्र तथा भ्रान्ति पूर्ण प्रथा है । वास्तव में बहुत से लोगों ने पितर, श्राद्ध और तृपण शब्दों के अर्थ का अनर्थ कर इन्हे अपनी जीविका का साधन बना रखा है ।

   "पितर, श्राद्ध और तृपण" के वैदिक स्वरूप को जाने जिससे आप "मृतक श्राद्ध "रूपी पाखण्ड से बच सके और अपना व समाज का उपकार कर सके ।

  महर्षि दयानन्द सरस्वती जी के अनुसार...

  "श्रत्सत्यं दधाति यया क्रियया सा श्रद्धा, श्रध्दया यत्क्रियते तच्छ्राध्दम्"

अर्थात् 
         जिससे सत्य को ग्रहण किया जाये उसको 'श्रद्धा' और जो-जो श्रद्धा से सेवारूप कर्म किये जाए उनका नाम श्राद्ध है ।।

  "तृप्यन्ति तर्पयन्ति येन पितृन् तत्तर्पणम्"

अर्थात् 
         जिस-जिस कर्म से तृप्त अर्थात् विद्यमान मातादि पितर प्रसन्न किये जायें, उसका नाम तर्पण है ।।

  उपर्युक्त परिभाषा से स्पष्ट है कि श्रध्दा से सेवाकर पितरो को तृप्त करना ही श्राद्ध और तृपण कहलाता है |

  अब प्रश्न उठता है कि पितर किसे कहते है जिसकी सेवा द्वारा श्राध्द और तर्पण किया जा सके...

  महर्षि मनु के अनुसार पितर पाँच है या अग्रलिखित पाँच को कहते हैं...

  "जनकश्चोपनेता च यश्च विद्यां प्रयच्छति । अन्नदाता भयत्राता पञ्चेते पितरः स्मृतः ।।

अर्थात् 
         पितर पाँच है...
(१) जन्म देने वाले 'माता-पिता' ।
(२) उपनयन की दीक्षा देने वाला             'आचार्य' ।
(३) विद्या पढ़ाने वाला 'गुरू' ।
(४) अन्न देने वाला ।
(५) रक्षा करने वाला ।

  यदि थोड़ी सी बुद्धि लगाए तो ये पाँचों ही 'जीवित पितर' है न कि मृतक ।

  अतः श्रद्धा से उपर्युक्त आये पाँचो यथा माता पिता, आचार्य आदि जीवित जनों की प्रति दिन सेवा करना ही श्राद्ध कहलाता है ।

  तथा वो सेवा ऐसी हो जिससे ये जीवित पितर तृप्त अर्थात् संतुष्ट हो जाये इसी का नाम तृपण है ।

  परन्तु मित्रों आज कल उलटा ही देखा जा रहा है जब तक माता पिता जीवित रहते है तब तक तो सन्तान प्रायः उनकी उपेक्षा करता है । सेवा आदि की बात तो दूर उनको जल और भोजन भी समय पर नहीं दिया जाता । गुरूओं के साथ भी विद्यार्थी प्रायः अभद्र व्यवहार करते है ।

   और मृतक श्राद्ध को करना अपने कर्त्तव्य की मूर्ति मान रहे है । यही कारण है कि वर्तमान में प्रत्येक गृहस्थी दुःखी है ।

  अतः मृतक श्राद्ध रूपी पाखण्ड का त्याग करो और जीवित माता पिता आचार्य आदि की सेवा करो यही सच्चा और श्राद्ध का वैदिक स्वरूप है ।

  धर्म की जय हो ! पाखण्ड का नाश हो !!

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 🕉️🚩आज का वेद मंत्र 🕉️🚩

🌷ओ३म् अहानि शं भवन्तु न: शं रात्रि: प्रतिधीयताम्।शं न इन्द्राग्नी भवतामवोभि: शं न इन्द्रावरूणा रातहव्या। शं न इन्द्रापूषणा वाजसातौ शमिन्द्रासोमा सुविताय शं यो: (यजुर्वेद ३६|११ )

💐अर्थ  :- हे ईश्वर  ! दिन हमें सुखकारी हो, रातें शान्ति देने वाली हो , विद्युत् वा अग्नि रक्षक सामग्री सहित सुखकारक हो, विद्युत् व जल के ग्रहण करने योग्य सुख हमें शान्ति दायक हो, विद्युत् और पृथ्वी हमारे लिए अन्नो के सेवनार्थ सुखदायी हों तथा विद्युत्और उत्तम औषधियां रोगनाशक एवं भय निवर्तक हो,ऐसी कृपा करों।

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 🔥विश्व के एकमात्र वैदिक  पञ्चाङ्ग के अनुसार👇
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 🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏

(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त)       🔮🚨💧🚨 🔮

ओ३म् तत्सत् श्रीब्रह्मणो द्वितीये प्रहरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- पञ्चर्विंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२५ ) सृष्ट्यब्दे】【 एकाशीत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०८१) वैक्रमाब्दे 】 【 द्विशतीतमे ( २००) दयानन्दाब्दे, काल -संवत्सरे,  रवि- दक्षिणायने , शरद -ऋतौ, आश्विन - मासे, कृष्ण पक्षे , चतुर्थयां
 तिथौ, भरणी
 नक्षत्रे, शनिवासरे
 , शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे भरतखंडे...प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ,  आत्मकल्याणार्थ,रोग,शोक,निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तं वृणे

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