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महर्षि दयानन्द सरस्वती जी के अमूल्य उपदेश

🕉️🙏ओ३म् सादर नमस्ते जी 🙏🕉️
🌷🍃 आपका दिन शुभ हो 🍃🌷

दिनांक  - २४ सितम्बर २०२४ ईस्वी

दिन  - - मंगलवार 

  🌗 तिथि -- सप्तमी ( १२:३८ तक तत्पश्चात अष्टमी )

🪐 नक्षत्र - - मृगशिर्ष ( २१:५४ तक तत्पश्चात  आर्द्रा )
 
पक्ष  - -  कृष्ण 
मास  - -  आश्विन 
ऋतु  - - शरद 
सूर्य  - -  दक्षिणायन 

🌞 सूर्योदय  - - प्रातः ६:११ पर  दिल्ली में 
🌞 सूर्यास्त  - - सायं १८:१५ पर 
 🌗चन्द्रोदय  -- २३:०२ पर 
  🌗 चन्द्रास्त  - - १२:५७ पर

 सृष्टि संवत्  - - १,९६,०८,५३,१२५
कलयुगाब्द  - - ५१२५
विक्रम संवत्  - -२०८१
शक संवत्  - - १९४६
दयानंदाब्द  - - २००

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 🚩‼️ओ३म्‼️🚩

🔥महर्षि दयानन्द सरस्वती जी के अमूल्य उपदेश
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१. चारों वेदों में ऐसा कहीं नहीं लिखा जिससे अनेक ईश्वर सिद्ध हों किन्तु यह तो लिखा है कि ईश्वर एक है। (सत्यार्थप्रकाश समुल्लास ७)

१. जो परमात्मा उन आदि सृष्टि के ऋषियों को वेद विद्या न पढ़ाता और वे अन्य को न पढ़ाते तो सब लोग अविद्वान् ही रह जाते। (सत्यार्थप्रकाश समुल्लास ७)

३. वेद परमेश्वरोक्त है इन्हीं के अनुसार सब लोगों को चलना चाहिए और जो कोई किसी से पूछे कि तुम्हारा क्या मत है तो यही उत्तर देना कि हमारा मत वेद, अर्थात् जो कुछ वेदों में कहा है हम मानते हैं। (सत्यार्थप्रकाश समुल्लास ७)

४. जो परमात्मा वेदों का प्रकाश न करे तो कोई कुछ भी न बना सके इसलिए वेद परमेश्वरोक्त है इन्हीं के अनुसार सब लोगों को चलना चाहिए। (सत्यार्थप्रकाश समुल्लास ७)

५. जो बाहर भीतर की पवित्रता करनी, सत्यभाषणादि आचरण करना है वह जहां कहीं करेगा आचरण और धर्म भ्रष्ट कभी न होगा और जो आर्यावर्त्त में रह कर दुष्टाचार करेगा वही धर्म और आचार भ्रष्ट कहलायेगा। (सत्यार्थप्रकाश समुल्लास १०)

६. कलियुग नाम काल है, काल निष्क्रिय होने से कुछ धर्माधर्म के काज में साधक बाधक नहीं। (सत्यार्थप्रकाश समुल्लास ११)

१७. आपस की फूट से कौरव पाण्डव और यादव का सत्यानाश हो गया। परन्तु अब तक भी वही रोग पीछे लगा है। न जाने यह भयंकर राक्षस कभी छूटेगा या आर्यों को सब सुखों से छुड़ा कर दुःख सागर में डुबा मारेगा? (सत्यार्थप्रकाश समुल्लास १०)

८. पारस मणि पत्थर सुना जाता है, वह बात झूठी है। परन्तु आर्यावर्त्त देश ही सच्चा पारस मणि है कि जिसको लोह रूपी दरिद्र विदेशी छूते के साथ ही सुवर्ण अर्थात् धनाढ्य हो जाते हैं। (सत्यार्थप्रकाश समुल्लास ११)

९. जब लोग वर्तमान और भविष्यत में उन्नतशील नहीं होते तब लोग आर्यावर्त्त और अन्य देशस्य मनुष्यों की बुद्धि नहीं होती। जब बुद्धि के कारण वेदादि सत्य शास्त्रों का पठनपाठन, ब्रह्मचर्य्यादि आश्रमों के यथावत् अनुष्ठान, सत्योपदेश होते हैं तभी देशोन्नति होती है। (सत्यार्थप्रकाश समुल्लास ७)

१०. जो ब्राह्मणादि उत्तम करते हैं वे ही ब्राह्मणादि और जो नीच भी उत्तम वर्ण के गुण कर्म स्वभाव वाला होवे तो उसको भी उत्तम वर्ण में और तो उत्तम वर्णस्थ होके नीच काम करे तो उसको नीच वर्ण में गिनना अवश्य चाहिए। (सत्यार्थप्रकाश समुल्लास ४)

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 🕉️🚩 आज का वेद मंत्र 🕉️🚩

   🌷 ओ३म् देवो देवानामसि मित्रो अद्धतो वसुर्वसूनामासि चारूरध्वने।शर्मन्त्स्याम तव सप्रथस्तेमेऽग्रे सख्ये मा रिषामा वयं तव।। ( ऋग्वेद १|९४|१३)

  💐 अर्थ:- हे ज्ञानस्वरूप जगदीश्वर  ! तू देवों का भी देव है, तू अदभुत मित्र हैं, तू वसुओ का वसु है, अध्वर - यज्ञ मैं सुन्दर श्रेष्ठतम तू ही है।

 हे प्रकाशस्वरूप प्रभु  ! हम तेरी अतिविस्तृत सुखमयी शरण में सदा वर्तमान रहें।

  हे प्राणप्रिय प्रभो ! हम तेरी निश्छल, नि:स्वार्थ पावन मित्रता में कभी हिंसित न हो।

   हे अग्रणी परमेश्वर  ! तू देवों का देव है, विद्वानों का विद्वान हैं, ज्ञानियो का ज्ञानी, दानियों का दानी है।

   तू अदभुत मित्र हैं, आश्चर्यजनक सखा है, पापों से पृथक करनें वाला है।

  हे प्यारे और सबसे न्यारे प्रभुवर  ! हम तेरी अति विस्तृत, आनन्दमयी शरण में सदा वर्तमान रहें।हम तेरी निश्छल, नि: स्वार्थ पावन मित्रता को कभी अपनी आखों से ओझल न करें ।

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🔥विश्व के एकमात्र वैदिक  पञ्चाङ्ग के अनुसार👇
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 🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏

(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त)       🔮🚨💧🚨 🔮

ओ३म् तत्सत् श्रीब्रह्मणो द्वितीये प्रहरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- पञ्चर्विंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२५ ) सृष्ट्यब्दे】【 एकाशीत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०८१) वैक्रमाब्दे 】 【 द्विशतीतमे ( २००) दयानन्दाब्दे, काल -संवत्सरे,  रवि- दक्षिणायने , शरद -ऋतौ, आश्विन - मासे, कृष्ण पक्षे , सप्तम्यां
 तिथौ, मृगशिर्ष 
 नक्षत्रे, मंगलवासरे
 , शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे भरतखंडे...प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ,  आत्मकल्याणार्थ,रोग,शोक,निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे

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