2 . विदुर जी कहते हैं जो व्यक्ति अपना कर्तव्य छोड़कर दूसरे के कर्तव्य का पालन करता है तथा मित्र के साथ गलत आचरण करता है वह मूर्ख कहलाता है।
अपना कर्तव्य छोड़कर दूसरे के कर्तव्य का पालन करने वाला विद्वान नहीं समझा जाता, मित्र मन्त्र के साथ सही आचरण करने से विद्वान समझा जाता है।
3.जो मनुष्य न चाहने वालों को चाहता है और चाहने वालों का त्याग कर देता है तथा जो अपने से बलवान के साथ बैर करता है ऐसा व्यक्ति महामूर्ख कहलाता है।
चाहने लायक वस्तु को चाहें, और जो आपको चाहते हैं उनका त्याग विद्वान नहीं करते हैं तीसरी बात अपने समान शत्रुओं से ही लड़ना चाहिए, पाण्डव कौरवो से लड़े वह मूर्ख थे क्योंकि कौरव तो पांडव से बहुत बड़े थे पाण्डव की तुलना में, रावण भी राम की सेना से शक्तिशाली था अर्थात राम ने रावण से युद्ध करके मूर्खता की थी|
4.विदुर की माने तो जो व्यक्ति शत्रु को मित्र बनाता है और मित्र से ईर्ष्या करते हुए उसे कष्ट पहुंचाता है तथा सदा बुरे कर्म में ही लिप्त रहता है ऐसा मनुष्य भी मूर्ख कहलाता है।
पहली बात शत्रुओं को कभी मित्र मत बनाओ, दूसरी बात मित्र को कभी कष्ट ना दें, उनसे सदा प्रेम करे, तथा हमें न श्रेष्ठ कर्म करे भले ही आप श्रेष्ठ कर्म करने योग्य ना हो, फिर आप विद्वान है|
5.जो मनुष्य अपने कर्मों को बढ़ा-चढ़ाकर बताता है,सभी को संदेह की नजर से देखता है तथा शीघ्र संपन्न होनेवाले कार्यों को भी देर से संपन्न करता है ऐसा मनुष्य भी मूर्ख माना जाता है।
विद्वानों के लक्षण वह अपने कर्मो को बढ़ा चढ़ा कर नहीं बताते हैं वह वहीं बताते हैं जो वास्तव में होता है, और वह सभी पर संदेह दृष्टि नही रखते हैं, जल्दी होने वाले कार्य जल्दी ही कर दे ते हैँ, इसलिए वह विद्वान हैँ |
6.जो मनुष्य पितरों का श्राद्ध और देवताओं का पूजन नहीं करता तथा जिसे सच्चा मित्र प्राप्त नहीं होता वह भीमूर्ख ही माना जाता है।
जो व्यक्ति पितरो का श्राद्ध और देवताओं की पुजा करता है, जिसको सच्चा मित्र प्राप्त होता है वह विद्वानों की श्रेणी मे आता है|
7.विदुरनीति के अनुसार मूर्ख व्यक्ति बिना बुलाए ही कहीं भी अंदर चला आता है,बिना पूछे ही बहुत बोलता है तथा विश्वासघाती मनुष्यों पर भी विश्वास कर लेता है।
विद्वान बिना बुलाए कही भी अंदर नहीं जाते हैं, बिना पुछे ज्यादा नहीं बोलते है, अर्थात कम बोलते हैं, पुछने पर ही ज्यादा बोलते हैँ, विश्वासघाती मनुष्यों पर भरोशा नहीं करते है|
8.जो व्यक्ति स्वयं दोषयुक्त बर्ताव करते हुए भी दूसरे को दोषी बताकर आक्षेप करता है तथा जो असमर्थ होते हुए भी व्यर्थ का क्रोध करता है वह मनुष्य महामूर्ख है।
विद्वान व्यक्ति दोष मुक्त होता है, और वह निर्दोष पर कभी आक्षेप लगा कर उसे दोषी नहीं ठहराता, समर्थ होते हुए आवश्यक कार्य पर क्रोध करता है।|
9.जो अपने बल को न समझकर बिना काम किए ही धर्म और अर्थ से विरुद्ध तथा न पाने योग्य वस्तु की इच्छा करता है वह व्यक्ति इस संसार में महामूर्ख कहलाता है।
्विद्वान व्यक्ति अपने बल को जानकर धर्म अर्थ के सहयोग से अपने पाने योग्य वस्तु की इच्छा करता है|
10.जो अधिकारी को उपदेश देता है और शून्य की उपासना करता है तथा जो कृपण का आश्रय लेता है उसे मूढ़ चित्तवाला यानि महामूर्ख कहते हैं।
विद्वान अधिकारी को उपदेश नहीं देता है, शुन्य की उपासना नही करता है, और वह कंजुस का आश्रय नहीं लेता धनियों के आश्रय में रहता है|
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