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🔥क्या आप जानते है भारत की दुर्गति के पीछे वेद की आज्ञाओ का उलंघन ही था

 🚩‼️ओ३म्‼️🚩



🕉️🙏नमस्ते जी


दिनांक  - - १४ फ़रवरी २०२५ ईस्वी


दिन  - - शुक्रवार 


  🌖 तिथि -- द्वितीया ( २१:५२ तक तत्पश्चात  तृतीया )


🪐 नक्षत्र - - पूर्वाफाल्गुन ( २३:०९ तक तत्पश्चात  उत्तराफाल्गुन )

 

पक्ष  - -  कृष्ण 

मास  - -  फाल्गुन 

ऋतु - - शिशिर 

सूर्य  - - उत्तरायण 


🌞 सूर्योदय  - - प्रातः ७:०० पर दिल्ली में 

🌞 सूर्यास्त  - - सायं १८:११ पर 

🌖 चन्द्रोदय  -- १९:५२ पर 

🌖 चन्द्रास्त  - - ८:०१ पर 


 सृष्टि संवत्  - - १,९६,०८,५३,१२५

कलयुगाब्द  - - ५१२५

विक्रम संवत्  - -२०८१

शक संवत्  - - १९४६

दयानंदाब्द  - - २००


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 🚩‼️ओ३म्‼️🚩


 🔥क्या आप जानते है भारत की दुर्गति के पीछे वेद की आज्ञाओ का उलंघन ही था ?

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१.) पहली आज्ञा

अक्षैर्मा दिव्य: ( ऋ १०|३४|१३ )


  अर्थात जुआ मत खेलो ।

इस आज्ञा का उलंघन हुआ । इस आज्ञा का उलंघन धर्म राज कहेजाने वाले युधिष्टर ने किया ।

परिणाम :- एक स्त्री का भरी सभा में अपमान । महाभारत जैसा भयंकर युद्ध जिसमे करोड़ो सेना मारी गयी । लाखो योद्धा मारे गये । हजारो विद्वान मारे गये और आर्यावर्त पतन की ओर अग्रसर हुआ ।


३.) दूसरी आज्ञा

मा नो निद्रा ईशत मोत जल्पिः । ( ऋ ८|४८|१४)


   अर्थात आलस्य प्रमाद और बकवास हम पर शासन न करे ।

लेकिन इस आज्ञा का भी उलंघन हुआ । महाभारत के कुछ समय बाद भारत के राजा आलस्य प्रमाद में डूब गये ।

परिणाम :- विदेशियों के आक्रमण 


३.) तीसरी आज्ञा

सं गच्छध्वं सं वद्ध्वम । ( ऋ १०|१९१|२ )


   अर्थात मिल कर चलो और मिलकर बोलो ।

वेद की इस आज्ञा का भी उलंघन हुआ । जब विदेशियों के आक्रमण हुए तो देश के राजा मिल कर नहीं चले । बल्कि कुछ ने आक्रमणकारियो का ही सहयोग किया ।

परिणाम :- लाखो लोगो का कत्ल , लाखो स्त्रियों के साथ दुराचार , अपार धन धान्य की लूटपाट , गुलामी ।


४.) चौथी आज्ञा

कृतं मे दक्षिणे हस्ते जयो में सव्य आहितः । ( अथर्व ७\५०\८ )


   अर्थात मेरे दाए हाथ में कर्म है और बाएं हाथ में विजय ।

वेद की इस आज्ञा का उलंघन हुआ । लोगो ने कर्म को छोड़ कर ग्रहों फलित ज्योतिष आदि पर आश्रय पाया ।

परिणाम : अकर्मण्यता  , भाग्य के भरोसे रह आक्रान्ताओ को मुह तोड़ जवाब न देना

, धन धान्य का व्यय , मनोबल की कमी और मानसिक दरिद्रता ।


५.) पांचवी आज्ञा

उतिष्ठत सं नह्यध्वमुदारा: केतुभिः सह ।

सर्पा इतरजना रक्षांस्य मित्राननु धावत ।। ( अथर्व ११\१०\१)


   अर्थात हे वीर योद्धाओ ! आप अपने झंडे को लेकर उठ खड़े होवो और कमर कसकर तैयार हो जाओ । हे सर्प के समान क्रुद्ध रक्षाकारी विशिष्ट पुरुषो ! अपने शत्रुओ पर धावा बोल दो ।

वेद की इस आज्ञा का भी उलंघन हुआ जब लोगो के बिच बुद्ध ओर जैन मत के मिथ्या अहिंसावाद का प्रचार हुआ । लोग आक्रमणकरियो को मुह तोड़ जवाब देने की वजाय “ मन्युरसि मन्युं मयि धेहि “ यजु १९\९ को भूल कर मिथ्या  अहिंसावाद को मुख्य मानने लगे ।

परिणाम :- अशोक जैसा महान योद्धा का युद्ध न लड़ना । विदेशियों के द्वारा इसका फायदा उठा कर भारत पर आक्रमण करना आरम्भ हुवा ।


६.) छठी आज्ञा

मिथो विघ्राना उप यन्तु मृत्युम । ( अथर्व ६\३२\३ )


  अर्थात परस्पर लड़नेवाले मृत्यु का ग्रास बनते है और नष्ट भ्रष्ट हो जाते है ।

वेद की इस आज्ञा का उलंघन हुआ ।

परिणाम - भारत के योद्धा आपस में ही लड़ लड़ कर मर गये और विदेशियों ने इसका फायदा उठाया ।


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 🕉️🚩आज का वेद मंत्र 🕉️🚩


🌷ओ३म् को व: स्तोमं राधति यं जुषोषथ विश्वे देवासो मनुषो यतिष्ठन । को वोऽध्वरं तुविजाता अरं करद्यो न: पर्षदत्यंह: स्वस्तये ।( ऋग्वेद  १०|६३|६ )


💐अर्थ  :-  हे दिव्यगुण युक्त विद्वानों  ! तुम जितने भी हो, उन सबकी स्तुति- उपासना जिसका तुम सेवन करते हो, प्रजापति परमेश्वर सिद्ध करता रहता है। वहीं सुख स्वरूप परमात्मा तुम अनेक जन्म धारण करने वालों के हिंसा रहित यज्ञ को पूर्ण करता है, जो यज्ञ पाप को हटाकर हमारे लिए आनन्द को प्राप्त कराता है ।


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🔥विश्व के एकमात्र वैदिक  पञ्चाङ्ग के अनुसार👇

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 🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏


(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त)       🔮🚨💧🚨 🔮


ओ३म् तत्सत् श्री ब्रह्मणो दिवसे द्वितीये प्रहरार्धे श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वते मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- पञ्चर्विंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२५ ) सृष्ट्यब्दे】【 एकाशीत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०८१) वैक्रमाब्दे 】 【 द्विशतीतमे ( २००) दयानन्दाब्दे, काल -संवत्सरे,  रवि- उत्तरायणे , शिशिर -ऋतौ, फाल्गुन - मासे, कृष्ण पक्षे, द्वितीयायां

 तिथौ, 

    पूर्वाफाल्गुन - नक्षत्रे,. शनिवासरे

 , शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे भरतखंडे...प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ,  आत्मकल्याणार्थ,रोग,शोक,निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे


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