🚩‼️ओ३म्‼️🚩
🕉️🙏नमस्ते जी
दिनांक - - १५ फ़रवरी २०२५ ईस्वी
दिन - - शनिवार
🌖 तिथि -- तृतीया ( २३:५२ तक तत्पश्चात चतुर्थी )
🪐 नक्षत्र - - उत्तराफाल्गुन ( २५:३९ तक तत्पश्चात हस्त )
पक्ष - - कृष्ण
मास - - फाल्गुन
ऋतु - - शिशिर
सूर्य - - उत्तरायण
🌞 सूर्योदय - - प्रातः ६:५९ पर दिल्ली में
🌞 सूर्यास्त - - सायं १८:११ पर
🌖 चन्द्रोदय -- २०:४६ पर
🌖 चन्द्रास्त - - ८:२८ पर
सृष्टि संवत् - - १,९६,०८,५३,१२५
कलयुगाब्द - - ५१२५
विक्रम संवत् - -२०८१
शक संवत् - - १९४६
दयानंदाब्द - - २००
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🚩‼️ओ३म्‼️🚩
🔥शायद सदियों से एक ही वाक्य प्रचलित है। भाग्य का लिखा मिटाया नहीं जा सकता।
इसी को आधार मान कर ज्योतिषियों की भविष्यवाणियां तथा किस्मत या भाग्य पर निर्भरता व्यक्ति में व्यर्थ की आशंका भय, निराशा और तनाव पैदा करता है। जिसके कारण से मस्तिष्क में नकारात्मक विचार ही आते हैं जो भीतर की ऊर्जा को और कमजोर ही करते हैं।
याद रखियें व्यक्ति अपना भाग्य स्वयं बनाता है और वह साकार होता है सही दिशा में परिश्रम और प्रयास करने से। भाग्य हर किसी को अवसर देता है, अवसर चूक जाने पर व्यक्ति उस चीज का लाभ नहीं ले पाता। यह ध्यान देने की बात है कि बहुत प्रयास करने के बाद भी जो व्यक्ति सफल नहीं हो पाता इसके लिए उसका भाग्य दोषी नहीं है। अपितु कुछ न कुछ कमी रह गयी है जो वह अपने गुणों का सही उपयोग नहीं कर पा रहा है।
भाग्य बहुत कुछ व्यक्ति के व्यवहार व उसके विचारों पर भी निर्भर है जो उसका जीवन बना सकते हैं तो बिगाड़ भी सकते हैं।
ऐसे व्यक्ति को अपने भाग्य को दोष देने के बजाय पुरुषार्थ को महत्व देना होगा। हमारे आज के किये गए कर्म ही कल की दिशा को तय करते हैं। वास्तव में देखा जाय तो बिना परिश्रम और प्रयास के कुछ भी सम्भव नही है।
संस्कृति की ये पंक्तियां हम सभी ने स्कूल के दिनों में पढ़ी होंगी। ये उक्ति पुरानी जरूर है लेकिन इसका महत्व आज भी उतना ही है, जितना की एक हजार साल पहले था।
उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः॥
अर्थात जिस प्रकार सोते हुए शेर के मुख में खुद मृग प्रवेश नही करता, शेर को उसके लिए परिश्रम कर के शिकार करना पड़ता है। ठीक इसी तरह कोई भी कार्य कठिन परिश्रम से ही पूरा होता है, केवल सोचने भर से नहीं।
संस्कृत की ये पंक्तियां कर्म को भाग्य से अधिक महत्वपूर्ण बनाती हैं।
हम में से बहुत से लोग ऐसे हैं जो भाग्य का रोना रोते रहते हैं और कठिन परिश्रम नहीं करते। किसी काम में सफल होने के लिए आवश्यक प्रयास नहीं करते, शायद ऐसे ही व्यक्तियों के लिए यें पंक्तिया लिखी गई हैं। लोग भाग्य और परिश्रम को अलग -अलग मानते हैं। इसीलिए ऐसी कहावत कहते फिरते हैं कि भाग्य में होगा तो सब कुछ मिल जाएगा और भाग्य में नहीं तो कुछ भी नहीं मिलेगा।
ऐसे लोग किसी कार्य में परिश्रम करने से अधिक भाग्य के बारे में सोचते रहते हैं। उनको लगता है कि जब भाग्य पलटेगा तो उनका जीवन एकाएक बदल जाएगा । लेकिन सच्चाई तो यह है कि ऐसे लोगों का आधा समय तो भाग्य के बारे में सोचने में ही निकल जाता है। जबकि उद्योग करने वाला व्यक्ति लगन के साथ परिश्रम करने से आगे निकल जाता है। इसलिए सारे अंधविश्वास छोड़कर आलस्य का त्याग करें व जिस लक्ष्य को पाना चाहते हैं उसके लिए जी जान से आज से ही जुट जाएं।
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🕉️🚩 आज का वेद मंत्र 🚩🕉️
🔥ओ३म् एकयास्तुवत प्रजाऽ अधीयन्त प्रजापतिरधिपतिरासीत्। तिसृभिरस्तुवत ब्रह्मासृज्यत ब्रह्मणस्पतिरधिपतिरासीत्।
पञ्चभिरस्तुवत भूतान्यसृज्यन्त भूतानां पतिरधिपतिरासीत्।
सप्तभिरस्तुवत सप्तऽ ऋषयोऽसृज्यन्त धाताधिपतिरासीत्॥ यजुर्वेद १४-२८॥
🌷इस ब्रह्मांड के निर्माता ईश्वर है। वो ही तो है जिन्होंने हमारी आत्मा को मनुष्य शरीर दिया है। उनकी स्तुति वेद वाणी से करे। उन्होंने हमारे जीवन को चलाने और मुक्ति प्राप्त करने के लिए सर्वश्रेष्ठ ज्ञान, वेद दिये। उस ईश्वर ने पांच महाभूत- पृथ्वी, जल, तेज, वायु आकाश बनाऐ। जिससे समस्त प्रकृति का निर्माण हुआ। मानव शरीर भी प्रकृति का एक अंश है। हमें उसकी स्तुति पांच (शरीर, मन, बुद्धि ,स्मृति, चेतना) से करनी चाहिए। ईश्वर ने सप्त ऋषय - दो कान, दो नासिका, दो आंख और एक मुख बनाए। इन सप्त ऋषय से भूतों का मनुष्य ज्ञान प्राप्त करे और उनमें उस रचीयता के महत्व के दर्शन करे। वह सब को धारण करने वाला है। वह सब का स्वामी है ।
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🔥विश्व के एकमात्र वैदिक पञ्चाङ्ग के अनुसार👇
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🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏
(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त) 🔮🚨💧🚨 🔮
ओ३म् तत्सत् श्री ब्रह्मणो दिवसे द्वितीये प्रहरार्धे श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वते मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- पञ्चर्विंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२५ ) सृष्ट्यब्दे】【 एकाशीत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०८१) वैक्रमाब्दे 】 【 द्विशतीतमे ( २००) दयानन्दाब्दे, काल -संवत्सरे, रवि- उत्तरायणे , शिशिर -ऋतौ, फाल्गुन - मासे, कृष्ण पक्षे, तृतीयायां
तिथौ,
उत्तराफाल्गुन - नक्षत्रे,. शनिवासरे
, शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे भरतखंडे...प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ, आत्मकल्याणार्थ,रोग,शोक,निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे
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