Ad Code

आज का वेद मंत्र

 🚩‼️ओ३म्‼️🚩



🕉️🙏नमस्ते जी🙏


दिनांक  - - २८ जनवरी २०२५ ईस्वी


दिन  - - मंगलवार 


  🌘 तिथि -- चतुर्दशी ( १९:३५ तक तत्पश्चात  अमावस्या )



🪐 नक्षत्र - - पूर्वाषाढ ( ८:५८ तक तत्पश्चात  उत्तराषाढ  )

 

पक्ष  - -  कृष्ण 

मास  - -  माघ 

ऋतु - - शिशिर 

सूर्य  - - उत्तरायण 


🌞 सूर्योदय  - - प्रातः ७:११ पर  दिल्ली में 

🌞 सूर्यास्त  - - सायं १७:५७ पर 

 🌘 चन्द्रोदय  --  ३१:०९ पर 

  🌘 चन्द्रास्त  - - १६:४१ पर 


 सृष्टि संवत्  - - १,९६,०८,५३,१२५

कलयुगाब्द  - - ५१२५

विक्रम संवत्  - -२०८१

शक संवत्  - - १९४६

दयानंदाब्द  - - २००


🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁🍀


🚩‼️ओ३म्‼️🚩


     जन्म व मरण का यह नियम हम सभी जीवों पर लागू होता है और सबके जीवन में जन्म व मृत्यु का समय अवश्य ही आना है। जब हमें पता है कि हमारी व हमारे सभी सगे सम्बन्धियों की मृत्यु होनी है तो हमें मृत्यु आने व होने पर दुःखी नहीं होना चाहिये। हमें जानना चाहिये कि मृत्यु के समय जीवात्मा शरीर से निकल कर ईश्वर की प्रेरणा से आकाश व वायुमण्डल में रहता है। ईश्वर उस मृतक जीवात्मा का उसके कर्मानुसार माता-पिता का चयन कर उनके द्वारा पुनर्जन्म प्रदान करता है। यह अटल सत्य व वैदिक सनातन सिद्धान्त है। वस्तुतः सभी के साथ ऐसा ही होना है। मृत्यु होने पर मृतक आत्मा के अपने परिवारजनों से सभी सम्बन्ध टूट जाते हैं। मृतक आत्मा को मृत्यु हो जाने पर अपने पूर्व सम्बन्धों व परिजनों का किंचित ज्ञान नहीं रहता। 


    मृत्यु के बाद एक क्षण से 12 दिवस के समय आत्मा को नया गर्भ या शरीर प्रदान हीं जाता हैं I मृत्यु होने पर नया शरीर मिलता है। पुराने शरीर के मस्तिष्क, मन व बुद्धि आदि अंग होते हैं वह शरीर सहित सभी नष्ट हो जाते हैं। पुराना शरीर छूट जाने पर नया शरीर मिलता है जो १२ वर्ष तक बाल व किशोर अवस्था में होता है। अतः पुनर्जन्म में पूर्वजन्म की स्मृतियां विस्मृत हो जाती हैं। ऐसा होना मनुष्य के लाभकारी ही होता है। योगियों को इनका साक्षात्कार होना सम्भव होता है। अतः जिन परिवारों में कभी वियोग की कोई घटना हो तो ईश्वर के


    इस

              जन्म-मरण-पुनर्जन्म की व्यवस्था को विचार कर विषाद रहित रहना चाहिये। ईश्वर की उपासना व भक्ति में संलग्न रहना चाहिये। स्वाध्याय करने में कभी प्रमाद नहीं करना चाहिये। दुःख कितना ही बड़ा क्यों न हो व वह कैसा भी हो, समय के साथ उसमें न्यूनता आती जाती है। कुछ समय बाद तो आहत मनुष्य उस दुःख को भूल ही जाता है। अतः जब कभी कोई वियोग आदि का दुःख आये तो मनुष्य को उससे विचलित नहीं होना चाहिये और वेद व वैदिक ग्रन्थों के स्वाध्याय सहित ईश्वर के ‘ओ३म्’ नाम के जप सहित गायत्री मन्त्र आदि के जप से अपने मन व आत्मा को शुद्ध कर उन्हें ईश्वर में लगाना चाहिये। इससे मनुष्य व परिवारजन अपने किसी प्रिय के वियोग के दुःख को कम व नष्ट कर सकते हैं।


हम सब को जीवन में परमात्मा और आत्मा आदि का सत्य ज्ञान प्राप्त करना चाहिये। परमात्मा हमारे माता-पिता, आचार्य, मित्र, सखा, बन्धु, हितैषी, सुखदाता तथा प्रेरणाओं के स्रोत है। उनकी शरण में जाकर सबको उनकी स्तुति, प्रार्थना, उपासना व भक्ति करनी चाहिये। इसी से हमारा कल्याण होगा।


🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁🍀


 🕉️🚩आज का वेद मंत्र 🚩🕉️


🌷 ओ३म्  इन्द्रो विश्वस्य राजति।  शं नोऽअस्तु द्विपदे शं चतुष्पदे  ( यजुर्वेद  ३६\८ )


💐 अर्थ  :- हे परमेश्वर  ! आप सारे जगत् के स्वामी रूप में प्रकाशमान है।  आपकी कृपा से हमारे पुत्रादि, मनुष्यादि व दोपाये सुख प्राप्त करें तथा गौ आदि चौपाये कल्याण को प्राप्त हों ।


🍀🍁🍀🍁🍀🍁🍁🍀


 🔥विश्व के एकमात्र वैदिक  पञ्चाङ्ग के अनुसार👇

==============


 🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏


(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त)       🔮🚨💧🚨 🔮


ओ३म् तत्सत् श्री ब्रह्मणो दिवसे द्वितीये प्रहरार्धे श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वते मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- पञ्चर्विंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२५ ) सृष्ट्यब्दे】【 एकाशीत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०८१) वैक्रमाब्दे 】 【 द्विशतीतमे ( २००) दयानन्दाब्दे, काल -संवत्सरे,  रवि- उत्तरायणे , शिशिर -ऋतौ, माघ - मासे, कृष्ण पक्षे, चतुर्दश्यां

 तिथौ, 

    पूर्वाषाढ नक्षत्रे, मंगलवासरे

 , शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे भरतखंडे...प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ,  आत्मकल्याणार्थ,रोग,शोक,निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे


🍁🍀🍁🍀🍁🍀🍁

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

Ad Code