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तपस्या हीन ,कामचोर ,निट्ठल्ले ,ये तीनों ही पापी है ।

 🚩‼️ओ३म्‼️🚩


🕉️🙏नमस्ते जी🙏


दिनांक  - - ०१ फ़रवरी २०२५ ईस्वी


दिन  - - शनिवार 


  🌒 तिथि -- तृतीया (  ११:३८ तक तत्पश्चात  चतुर्थी )



🪐 नक्षत्र - - पूर्वाभाद्रपद ( २६:३३ तक तत्पश्चात उत्तराभाद्रपद )

 

पक्ष  - -  शुक्ल 

मास  - -  माघ 

ऋतु - - शिशिर 

सूर्य  - - उत्तरायण 


🌞 सूर्योदय  - - प्रातः ७:०९ पर दिल्ली में 

🌞 सूर्यास्त  - - सायं १८:०० पर 

🌒 चन्द्रोदय  -- ९:०२ पर 

🌒 चन्द्रास्त  - - २१:०७ पर 


 सृष्टि संवत्  - - १,९६,०८,५३,१२५

कलयुगाब्द  - - ५१२५

विक्रम संवत्  - -२०८१

शक संवत्  - - १९४६

दयानंदाब्द  - - २००


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 🚩‼️ओ३म्‼️🚩


तपस्या हीन  ,कामचोर ,निट्ठल्ले ,ये तीनों ही पापी है ।

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  🔥वेदा वदन्ति ।

अतप्ततनूर्न तदामो अश्नुते ।ऋ०-९-८३-१


  उस सुख को अतपस्वी नहीं प्राप्त कर सकता ।


   अर्थात् जो तपस्याहीन है ,कामचोर है ,हाथ नहीं हिलाना चाहता ,बैठे बैठे ही दूसरों द्वारा प्रदत्त ,संचित कमाई को खाना चाहता है वह न लौकिक सुख को भोग सकता है और न पारलौकिक । 


  वेद कहता है - नाहमन्यकृतेन भोजम् - मैं दूसरों के द्वारा अर्जित किये हुये को भोग नहीं करूं तथाअनधिकार चेष्टा नहीं करूं ।उसमें आता है - स्वयं यजस्व स्वयं जुषस्व - स्वयं यज्ञ करो  स्वयं सेवन करो ,स्वावलम्बी बनो । अपने कर्तव्यों का निर्वहण न करना ,आलसी होकर दूसरों के सहारे पड़े रहना निट्ठल्लापन है । ऐसे व्यक्ति अशान्त रहते हुये वास्तविक सुख को न यहाँ प्राप्त कर सकते हैं न वहाँ ,भोग्यपदार्थ तो दूसरों द्वारा मिल भी जांयें तोभी मानसिक क्लेश बना रहता है । जब यहाँ शान्ति नहीं तो परलोक में भी कैसे मिलेगी ।


    इसीलिये वेद ने कहा - कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतं समा: ।- 


   हर क्षेत्र में मनुष्य को तप , कठोर परिश्रम करना पडता है । चाहे वह विद्या का हो ,अध्ययन का हो ,अध्यापन का हो ,चिकित्सा का हो , धनोपार्जन का हो ,परिवार का हो  ,समाज का हो ,इहलोक हो या परलोक , सर्वत्र तपस्या की ,साधना की ,कर्मठता की आवश्यकता होती है ।


  उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथै:।नहि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा: ।।


सोये हुये शेर के मुख में आहार अपने अाप प्रवेश नहीं करता ।

उद्योगिनं पुरुषसिंहमुपैति लक्ष्मी: ।


    दैवेन देयमिति कापुरुषा: वदन्ति ।


  भोजन सामने होने पर भी हाथ को मुँह तक ले ही जाना पडता है । आलसी ,निष्क्रिय ,परन्तु समर्थ कटोरा लेकर घूमने वाले को भिक्षा देना भी पाप है ,यदि कर सकते हैं तो उनमें क्रियाशीलता पैदा करें । क्यों कि वेद की दृष्टि में अकर्मा दस्यु होता है  नीच होता है ,लुटेरा होता है ,कामचोर होता है । ऐसे लोगों पर तो परमेश्वर भी दया नहीं करता क्योंकि उसने कहा है - 


कुर्वन्नेवेह कर्माणि सुकर्मों को  ,शुभ कर्मों को करता हुआ ही मनुष्य जीने की इच्छा करे । अन्यथा राम रहीम जैसा ,लोगों को उल्लू बना कर , डरा कर धमका कर ,अन्धश्रद्धा पैदा कर अपना उल्लू सीधा करने वाला ,परार्थ भी स्वार्थ के लिये संपादन करने वाला ,एक इन्द्रियासक्ति के लिये तदर्थ सभी इन्द्रियों को झोंक देने वाला ,विषयासक्त बलात्कारी ,जघन्य निकृष्टतम पाप कर्म करके इह लोक तथा परलोक में कठोरातिकठोर दंड भोगने के लिये तैयार रहे ।इस निकृष्ट ने पिक्चरों से करोड़ों रुपये कमाये तो विषयभोगों के लिये  ,सैंकड़ों कन्याओं की अस्मिता लूटी तो विषयतृप्ति के लिये न कि परमात्म दर्शन कराने के लिये , हज़ारों साधुओं को नपुंसक बनाया तो केवल मात्र अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिये ,विषयाग्नि को तृप्त करने के लिये ,नकि भगवद्भक्ति के लिये  । जितने भी इसके परोपकार के कार्यों के इनके समर्थक गीत गा रहे हैं उन सब के पीछे विषय लोलुपता बख़ूबी झाँक रही है ।शास्त्रों में ठीक ही लिखा है -


  इन्द्रियाणां तु सर्वेषां यद्येकं क्षरतीन्द्रियम् ।

तेनास्य हरति प्रज्ञां दृते पात्रादिवोदकम् ।।


   इन्द्रियों में से यदि एक भी इन्द्रिय क्षरण कर जाती है ,विकृत हो जाती है ,कुमार्ग  पर चल पड़ती है तो वह उसकी बुद्धि का हरण कर लेती  है । 

यही कारण है कि एक विषयेन्द्रिय के कारण से ही ये आज विनाश के कगार पर है । वृत्ततस्तु हतो हत: ।

ऐसे दुष्ट राम के नाम को लांछित करने वाले ,बारह वर्ष तक जितेन्द्रिय रह कर तपस्या करने वाले योगिराज कृष्ण की सोलह हज़ार रानियाँ थी यह कहकर अपने पक्ष में दुहाई देकर सैंकड़ों कन्याओं को फुसलाने वाले , वेद न पढ़ने वाले ,अतपस्वी। दान लेने में तत्पर ,जल में पत्थर की नौका के समान उसके साथ ही डूब मरते हैं ,ऐसे लोगों को दान देना दाता के लिये अनर्थ कारी होता है और लेने वाले का परलोक बिगाड़ देता है अर्थात्अतपस्वी भवसागर में डूब मरता है । वह चिरन्तन आनंद को तो प्राप्त कर ही नहीं सकता इहलोक में भी दुर्गति को प्राप्त करता है ।


     ऐसे व्यभिचारी भ्रष्टाचारी बलात्कारी आततायी विषय लोलुप  कामान्ध दुराचारियों के लिये वेद में राष्ट्रपति से प्रार्थना की गई है जो सर्वथा उचित और मान्य है - वि न इन्द्र मृधो जहि - हे राजन् हमारे मसलने वाले प्रजापीडकों ,आततायियों ,चोरों डाकुओं ,कर्महीनों ,दुष्कर्मियों ,समाजशोषकों को मसल दे । मसले हुये मूल वाले वृक्ष के समान ऐसे दुष्टों को जड़ सहित उखाड़ने पर ही राष्ट्र में स्थिर शान्ति हो सकती है । नष्टे मूले नैव शाखा न पत्रम् । प्रजाशोषकों के हनु ज़बाडे तोड़ देने चाहियें । दूसरी माँग यह रखी है - नीचा यच्छ पृतन्यत: -फसादियों  उपद्रवकारियों को नीचा दिखा  उन्हें दबा दो ,दमन कर दो ।


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 🕉️🚩     आज का वेद मंत्र 🕉️🚩


🌷ओ३म् सम्यक् स्रवन्ति सरितो न धेनाऽअन्तर्हृदा मनसा

पूयमाना:।एतेऽअर्षन्त्यूर्मयो घृतस्य मृगाऽइव क्षिपणोरीषमाणा:॥ यजुर्वेद १७-९४॥


  💐 अर्थ  :- हमारे हृदय में मन द्वारा पवित्र की हुई ज्ञान की दिव्य धाराऐं नदी के प्रवाह की तरह निरंतर प्रवाहित होती हैं। ये बाहरी वासनाओं से इस तरह दूर होती हैं, जैसे की एक हिरण शिकारी की पहुंच से बाहर हो गया 


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 🔥विश्व के एकमात्र वैदिक  पञ्चाङ्ग के अनुसार👇

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 🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏


(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त)       🔮🚨💧🚨 🔮


ओ३म् तत्सत् श्री ब्रह्मणो दिवसे द्वितीये प्रहरार्धे श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वते मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- पञ्चर्विंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२५ ) सृष्ट्यब्दे】【 एकाशीत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०८१) वैक्रमाब्दे 】 【 द्विशतीतमे ( २००) दयानन्दाब्दे, काल -संवत्सरे,  रवि- उत्तरायणे , शिशिर -ऋतौ, माघ - मासे, शुक्ल पक्षे, तृतीयायां

 तिथौ, 

    पूर्वाभाद्रपद नक्षत्रे, शनिवासरे

 , शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे भरतखंडे...प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ,  आत्मकल्याणार्थ,रोग,शोक,निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे


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