*🚩‼️ओ३म्‼️🚩*
*🕉️🙏नमस्ते जी🙏🕉️*
दिनांक - - २१ फ़रवरी २०२५ ईस्वी
दिन - - शुक्रवार
🌗 तिथि -- अष्टमी ( ११:५७ तक तत्पश्चात नवमी )
🪐 नक्षत्र - - अनुराधा ( १५:५४ तक तत्पश्चात ज्येष्ठा )
पक्ष - - कृष्ण
मास - - फाल्गुन
ऋतु - - शिशिर
सूर्य - - उत्तरायण
🌞 सूर्योदय - - प्रातः ६:५४ पर दिल्ली में
🌞 सूर्यास्त - - सायं १८:१६ पर
🌗 चन्द्रोदय -- २६:१८ पर
🌗 चन्द्रास्त - - १०:३६ पर
सृष्टि संवत् - - १,९६,०८,५३,१२५
कलयुगाब्द - - ५१२५
विक्रम संवत् - -२०८१
शक संवत् - - १९४६
दयानंदाब्द - - २००
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*🚩‼️ओ३म्‼️🚩*
🔥 जिस कुल में पत्नी से पति और पति से प्रशन्न पत्नी रहती है उस कुल में निश्चित कल्याण होता है
।
🌷 जिस घर में नारियों का सत्कार होता है उस घर में उत्तम गुण, उत्तम पदार्थ तथा उत्तम सन्तान होते है और जिस घर में स्त्रियों का सम्मान नही होता उस घर में चाहें कुछ भी यत्न करो सुख की प्राप्ती नही होती ।
जिस घर वा कुल में स्त्रियाँ शोकातुर हो दुःख पाती है वह कुल शीघ्र ही नष्ट- भ्रष्ट हो जाता है और जिस घर में वा कुल में स्त्रियाँ आनन्द, उत्साह और प्रशन्नता से भरी रहती है वह कुल सदा बढ़ता रहता है ।
इस कारण से ऐश्वर्य की इच्छा रखने वाले पुरूषों को चाहिए की स्त्रियों को सत्कार के अवसरों और उत्सवों में आभूषण, वस्त्र, खान पान आदि से सदा प्रशन्न रखें ।
नारी को भोग विलास की वस्तु समझना, उसके शरीर का प्रदर्शन विज्ञापनों में करना, सिनेमाओं में तस्वीरों द्वारा उसके तथा हाव भाव के प्रदर्शन से पुरूषों का घटिया किस्म का मनोरंजन करके उनकी जेबसे पैसे ऐठ़ना भारतीय सभ्यता और वैदिक संस्कृति के विरूदॣ है ।
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*💐 आचार्य चाणक्य नीति श्लोक *
*🌷गुणैरूत्तमतां याति नोच्चैरासन संस्थित। प्रासादशिखरस्थोऽपि काक: किं गरूडायते।। (आचार्य चाणक्य)*
💐 अर्थात् मनुष्य अपने श्रेष्ठ गुणों, सदाचार, शील और चरित्र द्वारा उत्तम होता है, ऊंचे आसान पर बैठने से नही । किसी बड़े भवन के शिखर पर बैठने से ही कौवा गरूड नही हो जाता ।
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🔥विश्व के एकमात्र वैदिक पञ्चाङ्ग के अनुसार👇
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🙏 🕉🚩आज का संकल्प पाठ 🕉🚩🙏
(सृष्ट्यादिसंवत्-संवत्सर-अयन-ऋतु-मास-तिथि -नक्षत्र-लग्न-मुहूर्त) 🔮🚨💧🚨 🔮
ओ३म् तत्सत् श्री ब्रह्मणो दिवसे द्वितीये प्रहरार्धे श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वते मन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे 【एकवृन्द-षण्णवतिकोटि-अष्टलक्ष-त्रिपञ्चाशत्सहस्र- पञ्चर्विंशत्युत्तरशततमे ( १,९६,०८,५३,१२५ ) सृष्ट्यब्दे】【 एकाशीत्युत्तर-द्विसहस्रतमे ( २०८१) वैक्रमाब्दे 】 【 द्विशतीतमे ( २००) दयानन्दाब्दे, काल -संवत्सरे, रवि- उत्तरायणे , शिशिर -ऋतौ, फाल्गुन - मासे, कृष्ण पक्षे, अष्टम्यां- तिथौ, अनुराधा - नक्षत्रे, शुक्रवासरे शिव -मुहूर्ते, भूर्लोके जम्बूद्वीपे, आर्यावर्तान्तर गते, भारतवर्षे भरतखंडे...प्रदेशे.... जनपदे...नगरे... गोत्रोत्पन्न....श्रीमान .( पितामह)... (पिता)...पुत्रोऽहम् ( स्वयं का नाम)...अद्य प्रातः कालीन वेलायाम् सुख शांति समृद्धि हितार्थ, आत्मकल्याणार्थ,रोग,शोक,निवारणार्थ च यज्ञ कर्मकरणाय भवन्तम् वृणे।
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