एक मैं हूं दूसरा कोई नहीं
मैं
पढ़ा लिखा अनपढ़ गवार जाहिल किस्म का मुर्ख आदमी हूं। इस लियें तो कोई मेरी बातों को
नहीं सुनता है और मुझे यहाँ संसार में शान्ती के साथ जीना नहीं आता है, मुझे हमेसा संसार से शिकायत ही रहती है। यह विल्कुल सत्य है। इसे मैं हि जानता
हूँ कि किस तरह मैंने अपने आलस्य और व्यर्थ पूर्ण कार्य को करने में और क्षणिक सांसरिक
सुख कि चाह में मैंने अपने शाश्वत सुख और आनन्द को आग लगा दिया। अब जब मैंने स्वयं
अपनी चिता तैयार कर के स्वयं ही उसमें आग लगा कर बैठ गया। मेरे पास अब इतना सामर्थ
भी नहीं है। कि मैं स्वयं को अपनी चिता से अलग कर सकु। अब मुझसे यह जलने का असहनि पिड़ा
दर्द सहा नहीं जा रहा है। फिर भी मैं सह रहा हूँ मैं लाख चाह कर भी स्वयं को इससे मुक्त
नहीं कर पा रहा हूं। मेरी मजबुरियों और कमजोरियों ने मुझको इस कदर जकड़ कर पकड़ लिया
है, जैसे सूर्य के प्रकास को बादल रोक लेते है।
आकाश में ही और उस प्रकाश को पृथ्वी पर नहीं आने देते है। उसकी विरोधी शक्तिया जिसे
हम बादल कहते है। यहाँ सम्पूर्ण जीवन आहें भरते हुए रोता है। जिस प्रकार से किसी नदी
को बांध बनाकर उसके पानी को रोक लिया जाता है। जिस प्रकार से किसी शेर को पिजड़े बन्द
कर लिया जाता है, बिना उसकी इच्छा के विपरीत, वह लाख प्रयास करता है। मगर वह शेर पिजड़े से निकल नहीं पाता है। जीवन में जैसे
कोई प्रकाश ही नहीं है। हर तरफ केवल अंधेरी घाटिया ही नजर आ रही है। अपनी इचछा होती
है कि स्वयं को ले कर किसी अंजाने कन्दरें में हमेंशा के लिये खो जाउ, जहाँ ना जीने कि चाह हो ना मरने का गम हो। वहाँ यह सब कुछ भी नहीं हो। लेकिन यह
भी मेरे लिये संभव नहीं है, क्योकि वह मेरा शत्रु
मेर अन्तर जगत में हर समय विद्यमान रहता है और वह हमारी सभी गुप्त से गुप्त जानकारियों
की खबर रखता है। उससे मेरा कोई भी राज छुपा नहीं है। जो आज हमारे चारों तरफ संसार विद्यमान
है। क्योंकि यह संसार मुझे रास नहीं आया। जैसा कि किसी शायर ने कहाँ है कि यह दुनिया
यह महफिल मेरें काम की नहीं। या फिर मैं स्वयं इस दुनिया और महफिल के किसी का काम का
नहीं रहा। मैं विल्कुल बेकार हो चुका हूं। मेरा कोई उपयोग नहीं है इस संसार में, ना ही यह संसार ही मेरे किसी कार्य का सिद्ध हो रहा है। इस तरह से हमारा इस संसार
से कोई सम्बधं ही नहीं बन रहा है। मुझे वह गित प्रिय लगता है जिसमें संसार के दर्द
कि कराहने की आवाज आती है। जिसमें मुझे आत्मिक ध्वनी सुनाई देती है। बाकि सब गित तो
मुझे फिके-फिके बिना स्वाद के लगते है। कोई रस ही नहीं आता, ना मुझे किसी कार्य से प्रसन्नता का ही अनुभव हो रहा है, ना ही मैं किसी से अप्रसन्न ही हो रहा हूं। मैं भरी भिड़ में भी स्वयं को अकेला
पा रहा हूं। ऐसा मेरे साथ ही क्यों हो रहा है, क्या मैं पागल हो रहा हू? या मेरा दिमाग काम
नहीं कर रहा है। मुझे अपना फायद क्यों नहीं दिख रहा है? इस संसार में मुझे ही क्यों रास नहीं आ रहा? यह संसार, जबकि हमारे अतिरिक्त सभी यहाँ मजा लुट
रहे है। मैंने भी मजा लेने का प्रयाश किया। बदलें में मुझे स्वयं को मजा नहीं आया।
मैने स्वयं के सर्वनाश की आधार शिला अवश्य रख दी जिसके उपर ही आज मेरे जीवन का महल
खड़ा है। जो धिरे-धिरे धरा साई हो कर गिर रहा है। जिस प्रकार से किसी रेत का महल जिसको
ना बनते देर लगती है ना ही बिगड़ते ही। यहाँ हमारे साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। मेरा
दिल डुबता जा रहा है। मेरे हृदय से वेवश आह निकल रहीं है। अपनी नाकामियों और अपनी असमर्थता
को देख कर मुझे आश्चर्यय हो रहा है। कि यह सब मैंने क्या कर दिया, क्या यह सब मैने स्वयं किया है। मुझे स्वयं पर भरोशा नहीं हो रहा है। मुझे स्वयं
से बहुत भय और आतंक महशुश हो रहा है। या फिर मेरे अतिरीक्त कोई मेरे अन्दर रहता है।
जो मेरी इच्छा के विपरीत मेरे से कार्य कराता है। जिसका फायदा, सुख और आनन्द स्वयं लेता है। उसको मेरे साथ नहीं बाटता है और दुनिया भर के क्लेश
पिड़ा अपमान और सांसारिक मुर्खता पूर्ण कर्मों के परिणाम है। वह हमारे सर पर दे मारता
है। इस बात में दम है मैंने यह अनुभव किया है कि कोई एक दूसरा जो मुझसे ताकत वर और
बहुत शक्तिशाली है। वह विल्कुल मेरे जैसा ही मेरा ही नकल है। लेकिन उसके पास शरिर नहीं
है। वह मेरी शरीर में निवास करता गुप्त रूप से, मुझे खुब याद है। जब वह मेरे अन्दर मेरे हृदय में प्रकट हुआ था। ऐसा केवल एक या
दो बार ही हूआ। वह कुछ ऐसी बातें मेरे से कर-कर रहा था। जैसे वह मेरे जीवन का स्वामी
हो, मैं उसे परमात्मा समझ बैठा, मेरा हृदय इस समय बैठा जा रहा था। एक समय के लिये तो मैं बहुत भयभित हो गया। कि
यह मेरे अन्दर से कौन बोल रहा है। क्योंकि उसकी वाणी में शक्ति थी, उसने जो कहा मेरी ही तरह कहा, लेकिन वह मुझसे अलग
था। क्योकि मैं अपने आपको जबसे जानता हूं। ऐसा कभी नहीं हुआ कि मेरे अन्दर से मैं ही
दो रूपों प्रस्न्न उत्तर किया हो अपने आप से ही। उसके बाद मैंने कई बार उससे बात चित
करने का प्रयास किया, जो मेरे ही अंदर मेरी दूसरी
कापी रहती है। लेकिन मैं सफल नहीं हो सका। क्योकि वह अपनी मर्जी से आता है और अपनी
मर्जी से जाता है और वह बहुत संक्षिप्त में बाते करता है। वह शब्द रूप है जो हमारे
अंदर अचानक प्रकट हो जाता है। उसने जो कहा वह विल्कुल सत्य हमारे साथ सिद्ध हो रहा
है। उसने मेरी असमर्थता को मेरे सामने प्रकट किया। मैंने कहा कि समर्थ हूं, लेकिन मुझे यह बहुत समय के बाद ज्ञात हुआ। कि वह हमारे भविषय कि घटना को देखने
वाला है। जबकि मैं अपने अतित को भी अच्छि तरह से देख नहीं पा रहा हूं। तो अपनी भविष्य
को कहाँ से देख पाउंगा। जिससे अपने भविश्य के लिये कुछ अच्छे कदम उठा सकु। वह हम पर
बहुत मेहर बान है। उसने हम पर कृपा कर मेरे जीवन की सिमा को कुछ समय के लिये बढ़ा दिया
है। जब वह मुझमें प्रकट हुआ तो उसने कहा कि तुम मेरे लिये बेकार हो, मैं तुम्हे मार दुंगा। मैंने कहा कि मैं काम का बनुगां। लेकिन यही तो मेरी कमजोरी
है कि मैं उसके काम का नहीं बन पाया। यहा तो मैं स्वयं के भी काम का नहीं बन पाया।
तो उस परमात्मा के काम का कैसे बन पाउंगा? उसने ठिक ही कहा है कि वह मुझे मार देगा और यह कार्य कर रहा है, रोज मुझे वह मार रहा है। जिसके मार कि चोट का कोई निसान भी नहीं पड़ रहा है। लेकिन
मैं उसको और उसके द्वारा दिये जा रहे हर कष्ट को अच्छी तरह से अनुभव कर रहा हूं। वह
यह भी कह सकता हे कि यह तुम्हारें कर्मों का फल है जबकि मैं यह मानने को तैयार नहीं
हूं। क्योंकि मैं जब से स्वयं को जानता हूँ प्रारंभ से ही मैं कर्मों में स्वतन्त्र
नहीं हूं। यह कोई वहुत पहुचां हुआ है, जो हमारे जैसा ही आदमी है जिसने किसी सुक्ष्म और गुप्त तकनिकी के द्वारा हमारें
अन्तर जगत में प्रवेश कर लिया है और-और वह हमारे जीवन का उपयोग करता है। वह परमात्मा
नहीं है। कोई और क्योंकि परमात्मा दयालु और न्याकारी ही है। जबकि जो आदमी मेरे अन्दर
मेरे साक्षात्कार के समय में आया वह स्वार्थी है और दया हीन है। जिससे हम किसी दया
या न्याय कि कामना नहीं कर सकते है। वह हमारी बाहरी प्रकृति पर भी अधिकार कर लिया है।
मुझे यह अनुभव होता है केवल मैं ही भयभित नहीं होता हूं, यद्यपि जो हमारी प्रकृत है जैसे आकाश, पृथ्वि, सुर्य, वायु, जल यह भी भय भित हो जाते है और यहं हमेशा
रात्री के समय भयभित करता है। इसको केवल मैने ही अनुभव नहीं किया मेरे साथ मेरे बहुत
बड़ा परिवार जो हजारों कि संख्या वाला है। गांव के और दूसरे लोगों ने भी अनुभव किया
है। जैसे यह भयभित और आतंकित करने कि घटना किसी सुक्ष्म मसिन के द्वारा किया जा रहा
है। वह हमारे मनो मस्तिस्क पर अधिकार कर लेता है।
एक ऐसी ताकत है जिसका उपयोग केवल अमिर देश
या अमिर लोग ही कर रहें है। जिसका उपयोग करके किसी भी क्षेत्र में भुकंप, बाढ़, या ऐसी हवावों के सात तरंगों को फैलाया
जा सकता है जिसके प्रभाव में आने के बाद उस क्षेत्र के किसी भी व्यक्ती या बहुत बड़े
समुह पर अधिकार किया जा सकता है। इसका भरपुर उपयोग किया गया है, मुझे और मेरे परिवार, मेरे रिस्तेदारों
को और मेरे समाज को भयभित करने के लिये। ऐसे अमिर आतंकवादी है, जो यह नहीं चाहते है कि लोग सत्य और ज्ञान को उपलब्ध करें। जिसने कर लिया हो उसके
पूरे समुह को ही पुरी तरह से समाप्त हत्या कर उसकी समपत्तियों को अपने अधिकार में कर
लेने कि योजना बना लिया है। इसमें हमारी सरकार का भी हाथ है यह भी निश्चित है और इस
तकनिकि के साथ आज भी कार्य कर रहे है। हमारे खानदान के, हमारे गांव के लोगों पर, हमारे परिवार के लोगों
पर, हमारे सम्प्रदाय के लोगों पर इस तरह कि सुक्ष्म
मसिनो का उपयोग करके. उन सब कि हत्या हो रही है और काम इतनी सफाई से करते है। कि इसका
कोई प्रमाण प्रशासन को नहीं मिलता है। यह केवल मेरे जीवन या मेरे परिवार या समाज कि
बात नहीं यह सभी पर प्रयोग किया जायेगा जो सत्य और इमानदारी के कार्य में लगे हुऐ.
उन सब कि किसी ना किसी प्रकार से समाज में हत्या हो रही है। जैसा कि मेरी भी हत्या
का प्रयाश कई बार हो चुका है। मैं अपनी दैविय शक्तियों के प्रभाव से कई बार बच चुका
हू। लेकिन वह जो हमारे शत्रु है वह हमें किसी भी किमत पर समाप्त करने के लिये उतारु
है। इनके जाल बहुत बड़े है। इनके अंडर में दुनिया कि सरकारे चलती है। यह स्वयं को परमात्मा
समझते है। भहुत भयानक तरह से यह सब गुप्त रूप से लोगों का शोषड़ और लुट पाट के साथ
हत्या भी करते है।
यह उन दिनो कि बात है जब मैं अपने गांव में
रहता था और मैंने एक क्रान्तिकारी कदम उठा लिया था और अपना व्यक्तिगत ज्ञान विज्ञान
ब्रह्मज्ञान वैदिक विश्वविद्यालय बनाने के लिये कार्य कर रहा था। जिसके आधार शिला को
रखने के लिये। मिर्जापुर छानबे क्षेत्र में स्वामी रामदेव जि को हरिद्वार वाले को आमन्त्रित
किया था और स्वामी जी अपने नियमित समय पर आयें और उस स्थान का मुआयना भी किया, उसको बनाने के लिये। उन्होंने एक बड़ी रकम को देने का वायदा भी किया जनता के समाने।
जिससे जनता में एक प्रकार कि लहर व्याप्त हो गई कि मेरे पास बहुत बड़ा धन आ चुका है।
सुनने वालों में ज्यादातर लोगों को यह अच्छा नहीं लगा, जिसमें हमारें जो सबसे करिबी थे। उन्हें बहुत गहरा दुःख हुआ। वह सब हमारे विपरित
खड़े हो गये। क्योंकि वह सब नहीं चाहते थे कि मैं वहाँ पर किसी प्रकार निर्माण का कार्य
कराउ। मेरे पक्ष में कोई नहीं था अक्सर लोग हमारे खिलाफ ही थे। मैं जि जान से लगा हुआ
था कि मुझे विश्वविद्यालय बनाना है। मुझसे जो भी संभव था वह कार्य कर रहा था। लेकिन
मेरे द्वारा कार्य जा रहा था, वह कार्य किसी मायने
से बहुत तुक्ष्य था। क्योकि आज के समय में किसी प्रकार का कार्य करने के लिये सबसे
पहले धन चाहिये। धन का वादा तो सब के सामने रामदेव ने कर दिया। लेकिन समय आने पर वह
मुकर गये। अर्थात धन नहीं दिया, जिसको बनाने के लिये
मैंने सबसे शत्रुता कर ली थी। मैं यह समझता था कि राम देव का पैसा मिल जायेगा इस तरह
से मेरा कार्य संभव हो जायेगा। मेरे साथ कोई देने के लिये तैयार नहीं हुआ। उस समय मेरे
पास धन कि बहुत कमी थी। यहाँ तक मेरा खाना पिना भी बड़ी मुस्किल से चल रहा था। मेरे
खिलाफ सुरु से मेरे पिता ही रहे क्योंकि वह किसी भी सर्त पर नहीं चाहते थे। कि मैं
उनकी इच्छा के विपरीत कोई कार्य करु। जबकि मैं सारे कार्य उनके विपरीत ही करता था।
वह हमें देखना नहीं चाहते थे। जबकि मैं वही पर रह कर बहुत बड़े कार्य को सिद्ध करने
का प्रयाश कर रहा था। इस तरह से सबसे बड़ा शत्रु मेरा पिता ही मेरे खिलाफ खड़ा हो चुका
था। वह एक भी रुपया देने के पक्ष में नहीं था। उसने सारी पुस्तैनि सम्पत्ती पर एक तरफा
अधिकार कर लिया है। यहाँ तक मुझे घर में भी रहने नहीं दिया। गांव वाले कुछ पड़ोसियों
के साथ मिल कर मुझ पर जान लेवा हमला भी कर चुका है। उसने मुझे समाज में पागल सिद्ध
कर दिया और सब उसकी बाते मानने लगे। मेरे हाथ और पैर में बेड़िया डालने कि तैयारी चलने
लगी। इस बात से सारा समाज परिचित है कोई भी मेरा एक रुपये से भी सहायता नहीं करना चाहता
है। मेरे पास खाने पिने रहने कि बहुत भयानक दिक्कत आ चुकी थी। किसी प्रकार से मेरी
माँ मेरे पिता के चोरी से मुझे खाने पिने के कुछ दे देती थी। जिसके लिये उसे अक्सर
प्रताड़ित होना पड़ता था। हर तरफ से केवल मेरे शत्रु ही निकल रहे थे। उसी बिच मुझे
एक खतरनाक विमारी ने पकड़ लिया जिसने मुझे अघमरा बनाकर रख दिया।
थोड़ा इससे पहले जैसा कि मैंने अनुभव किया
है। कि मेरा पिता बचपन से ही मुझसे शत्रुता करता था। उसकी ऐसी समझ है कि मैं उसका पुत्र
नहीं किसी और का पुत्र हूँ जिसके मेरी माँ अपने साथ ले कर आई थी। जिस कारण से वह मुझे
और मेरी माँ को जान से मारने चाहता था। जब से मैं जानने लायक हुआ मैं अपनी जान उससे
बड़ी मुस्किल से बचा पाया हूं। मैं हमेशा से बहुत अधिक परेसान रहा, सबसे अधिक अपने पिता से ही। यहाँ तक मैं अपने स्वप्नों में भी अपने पिता कि यातना
का बहुत अधिक शिकार रहा। जिससे बचने के लिये मैं घर को छोड़ कर भागने लगा था। जब भी
वह हमारे साथ मार पिट करता मैं घर छोड़ कर भाग जाता था। कुछ समय बाहर में दुःखों और
कष्टों को सहता बड़े छोटे महानगरों में रहा और हजारों प्रकार कि छोटी-छोटी नौकरियाँ
भी कि इस तरह से मैं लगभग सम्पूर्ण भारत का बहुत दर्दनाक भ्रमण किया। जिसमें मेरे जीवन
का बहुत बड़ा हिस्सा युं ही दुनिया के अनछुये सत्य का साक्षात्कार करने में भी व्यतित
हो गया। जिसका आभाष शायद ही कभी किसी को हुआ। इसी बिच हमारा निर्वाण भी हुआ। इस तरह
से मैं केवल ना एक परिवार एक समाज का ना एक सहर का ना ही एक राज्य का यद्यपी मैं सम्पूर्ण
रूप से भारतिय बन गया। जिसमें बहुत ही असहनिय और दुखान्त अनुभव भी जुणें है। क्योंकि
मेरी यह भारत भ्रमण कि यात्रा सुख सुविधाओं के बिच में नहीं कि गयी यद्यपि बहुत भयानक
तंगी और असुविधा में कि गई अक्सर मेरे लिये खाने पिने के लिये बोजन भी उपलब्द होता
था। जिससे मैं लम्बे समय तक भुखा ही रहता था। शिवाय पानी पि कर कभी-कभी तो मुझे पानी
भी नहीं मिलता था। यूं ही कहीं किसी कोने में मुर्क्षा अवस्था में कई दिनों तक इस हालत
में कहीं भी पड़ा रहता था और अंत में मजबुर हो कर घर को वापस आ जाता था। क्योंकि बिना
धन के कही पर रहना बहुत कठीन कार्य है। यहाँ तक बहुत मुस्किल या असंभव कार्य है। इसी
तरह से चलता रहा बहुत समय के बाद मेरी शादी भी हो गई पत्नी आगई और उसको एक पुत्र भी
हो गया। लेकिन यह सब मेरे रास नहीं आया। मेरी पत्नी मेरे पुत्र कि मृत्यु के बाद मुझे
छोड़ कर चली गई. इसके पिछे सबसे बड़ा कारण मेरा पिता ही था। वह मुझे हर तरह से मिटाना
चाहता था और उसके लिए उसने भरपुर प्रयास किया और काफी हद तक सफल भी हुआ।
एक दिन रात्री के करीब नौ बज रहे थे सर्दि का
समय था और मुझे मारने के लिये मेरे पिताने बाहरी हत्यारों को बुला लिया था। जैसे ही
मैं बाहर खाने के लिये बैठा हुआ था। अचानक मेरे अंदर से बहुत भयानक भय कि लहर उठने
लगी। जैसा कि पहले एक बार मेरे साथ पहले भी हो चुका था। जब मैं दिल्ली मैं रहता था।
उस समय दिल्ली में मैं एक बहुत बड़े व्यापारी परिवार से मेरी कुछ समय के लिये मित्रता
थी। बाद में वह हमारे विचार क्रान्तिकारी होने के कारण वह सब मेरे साथ शत्रुता का व्यवहार
करने लगे। यहाँ तक बात पहुच गई कि उन्होने मुझे जान से मारने का भी योजना बना लिया।
मेरा जिना मुस्किल कर दिया दिल्ली में, उनकी पहुंच काफी उपर तक थी। एक बार धोखे से बुला कर मुझे वह लोग अपने घर में मुझे
पुलिस के हवाले मरा पिट कर-कर दिया और यह इल्जाम लगाया कि मैं उनके घर में चोरी के
लिये आया था। मेरे साथ बहुत बड़ा अन्याय हो रहा था। उस समय जेल से छुड़ाने में मेरे
वह मालिक काम आये जिनके यहाँ पर मैं कार्य करता था।
इसके बाद मेरा रहना दिल्ली में बहुत मुस्किल
होगया और मैं बहुत परेशान रहने लगा था। मैं भी बदला लेना चाहता था। एक बार फिर उनके
यहा पर मैं चला गया पिछला सब कुछ भुल कर कि सायद यह हमारी मददत करना चाहते है। लेकिन
मैं ग़लत था। वह सब हमारी हत्या कि योजना पुरी तरह से बना चचुके थे। मेरे पहुंचते ही
वहाँ पर मेरे उपर चार पांच आदमियों ने जानलेवा हमला कर दिया और मुझे तब तक मारते रहे
जब तक मैं पुरी तरह से मरातुल्य नहीं हो गया। जब उनको विश्वास होगया कि मैं अब मर जाउंगा
तो मुझे उन्होंने मेरे बहुत याचना करने पर छोड़ दिया। इस सर्त पर कि मैं पुलिस से संम्पर्क
नहीं करुगां। वह 25 नवमंबर 2002 की बहुत भयानक रात थी। जब मैं जीवन और मृत्य से लड़
रहा था। उस समय मुझसे एक कदम भी नहीं चला जा रहा था। बड़ी मुस्किल से मैं कनाट प्लेस
के भिड़ भाड़ वाले सर्कल से गाड़ियों कि रौसनी के बिच में गिरते लड़खाते बाहर निकल
पाया नई दिल्ली रेल्वे स्टेशन के लिये। मैं रेल्वे स्टेशन के अन्दर ना जा कर सिधा पहाड़
गंज कि तरफ से उस पुल पर चढ़ गया जो रेल्वेलाईनो को पार कर के अजमेरी गेट और पहाड़
गंज को जोड़ने वाले उस पुल पर पहुंच गया। उपर पुल पर पहुचंने पर मैं भयंकर दर्द से
कराह रहा था। मेरे हाथ पैर के जोड़ खुल गये ते। दायाँ पैर और बायाँ हाथ बिल्कुल ढिला
पड़ चुके थे। मैंने वहाँ पुल के उपर साईडर पर कुछ समय रुक कर आराम करना चाहा। जिस कारण
से मैं वहीं पर निचे ही लेट गया। कुछ ही पल वहाँ लेटा हुआ था। कि मुझको बहुत अधिक ठंडी
लगने लगी, जिसके कारण मैं वहाँ से एक बार फिर खड़ा
हुआ और पैदल चलते हुए किसी तरह से बड़ी मुस्किल से चलते हुए. अजमेरी गेट कि तरफ नई
दिल्ली रेल्वे स्टेसन के सामने, जहाँ पर एक साधु अखाड़ा
है। उसके पास से होते हुए, आगे एक मोड़ था वहाँ
पहुंचा, जहाँ एक रिक्से वाला एक कागज जला कर आग
ताप रहा था। जहाँ पर जा कर आग के पास अपनी सर्दी को दूर करने के लिये मैं बैठ गया।
रिक्से वाला जो आग जला रहा था उसके पास लकड़ी भी नहीं थी कुछ कागज था। जो थोड़ी समय
में जल कर राख हो गयी। वह रिक्सा वाला मेरी शक्ल देखर बुरी तरह से भयभित हो गया और
बोला यहाँ से चले जाओं नहीं तो पुलिस आ जायेगी और मुझे परेशान करेगी। मैंने कहा डरो
मत मेरे पास बैग में कपड़े भरे है। मेरे है इसमें से एकाक ले लो और मुझे थोड़ी देर
आग के बैठ कर आराम करने दो और मैंने अपना एक जिन्स का पैन्ट वैग से निकाल कर उस रीक्सेवाले
को दे दिया और कुछ कापी किताब जो मेंरे बैग में थे। उनको निकाला और आग में जलाने के
लिये डाल दिया। जिससे आग फिर से धधकने लगी जिससे मुझे थोड़ा सकुन मिला, लेकिन उस समय मुझे भयानक दर्द और मुर्छा आ रही थी। क्योंकि मैने कई दिन से खाना
भी नहीं खाया था और मुझे भी अन्दर से भय लग रहा था कि कहीं पुलिस ना आ जायें और वह
भी मुझे मारने पिटने लगे। उस रिक्से वाले ने कहा कि थोड़ा पिछे साधु आश्रम के बगल में
मड़ी और ट्रान्सपोर्ट है। वहाँ जा कर बैठ जा, वहाँ रात भर काम चलता है। कोई पुलिस वाला परेशान भी नहीं करेगा। मैंने वैसा ही
किया और वहाँ से अर्धमुर्छा अवस्था में उस ट्रान्सपोर्ट नगर में पहुंच गया। जहाँ पर
एक किनारा देख कर बैठ गया और लग भग मैं मुर्छित हो चुका था। मुझे कुछ भी ज्ञान नहीं
था कि मैं कहाँ हु और कैसी हालत में हू? लेकिन वह रिक्सा वाला बरा-बर मुझ पर नजर रख रहा था। जिसने मुझे मेरी अर्ध मुर्छा
कि हालत में ही उठाया और एक दो बार चाय भी पिलाया। उसके बाद रात्री के समय वहाँ के
दुकान मालिको से मेरे बारे में कह कर, मुझ पर तरस खा मुझे खाना भी खिलाया। खाने के बाद मेरे शरीर में कुछ जान आई और तब
उन लोगों ने मुझसे कहा अब तुम यहाँ से जाओ इस समय रात्री के एक बज रहे है। अभी यहाँ
पुलिस आ सकती है। जो तुम्हे परेशान कर सकती है। फिर मैं वहाँ से धिरे-धिरे खड़ा हुआ
और नई दिल्ली रेल्वे स्टेसन के अन्दर पहुंच गया। जहाँ एक तरफ किनारे में दाहिने हाथ
पुल के निचे कुछ हाथ ठेला पड़े थे। जिन पर मैं पहुंच कर सोने का प्रयास करने लगा। लेकिन
मुझे नीद नहीं आ रही थी। क्योंकि उस समय मुझे सर्दि बहुत अधिक लग रही थी। फिर मैंने
अपने बैग को एक बैग खोला और उसमें से कई सारे सर्ट और पैंट निकाल कर, कठिनाई से किसी तरह सबके एक उपर एक पहन लिया। जिससे मेरे उपर सर्दि का प्रभाव काफ़ी
कम हो गया और मैं वहाँ पर कुछ समय के लिये सो गया। रात के चार बजे ही मेरी निद खुल
गई मुझे यहा भी पुलिस का डर सता रहा था कि कभी भी पुलिस यहाँ आ सकती है। जो मेरे लिये
समस्या खड़ी कर सकती है। क्योकि इसके पहले मैं एक बार बहुत पहले इसी रेल्वे स्टेसन
के प्लेटफार्म पर बिना टिकट का पकड़ा गया था। कई एक साल पहले जब मुझको पुलिस ने पकड़
लिया था और मुझे और सैकड़ों कैदियों के साथ लाकप में बन्द कर दिया था। जहाँ पेसाब करने
और निपटने का स्थान भी नहीं था और बहुत मारा था उस समय मेरी उम्र कम थी इस लिये स्टेशन
से चलान नहीं किया था। मार पिट कर ही छोड़ दिया था। लेकिन अब समय काफ़ी बदल चुका था।
शुबह के करिब चार बजे मैं निकला नई दिल्ली रेल्वे
स्टेसन से और आगे दिल्ली गेट की तरफ चले लगा कुछ दूर जाने के बाद जहाँ पर दिल्ली स्टाक
एक्सचेन्ज है। उस के सामन पहुच ही मैं थक गया। क्योंकि शरीर में भयानक दर्द और पिड़ा
हो रही थी। इसलिये ठंड में वही पर बैठ गया और एकाक घंटे तक आराम किया। उसके बाद वहाँ
से निकला और दिल्ली गेट को पार कर के सड़क के दूसरे तरफ सिधा बाहरी रिंग रोड के लिये
आगे चल पड़ा तभी मेरी निगाप बाई तरफ पार्क के खुले दरवाजे पर पड़ी जो उस समय खाली था
चारों तरफ बड़ी बड़ू घास थी। मैं उस पार्क में घुस गया और वहीं गिर पड़ा और मुझे निद
आगई. मेरी निद से शाम को करिब 5 बज कर 30 पर उठा और सिधा रिंग रोड को पकड़ कर पैदल
ही चल पड़ा। क्योकि मेरे पास जो पैसे वगैरह थे। सब निकाल लिया था हमारे शत्रुओं ने, मैं आगें बढ़ता रहा मुझे रात विताने के लिये एक ऐसी जगह की तलाश थी जहाँ पर मैं
अपनी रात्री को बिना किसी विध्न के बिता सकु। मैं रास्ते में कई जगह प्रयास किया लेकिन
सफलता नहीं हर जगह से मुझे आगे बढ़ जाने का ही संक्त मिला। मैं निरंतर आगें ही बढ़ता
रहा पुरी तरह से मैं थक के चुर हो रहा था। मेरे कदम जबाब दे रहे थे। फिर भी मैं जबरजस्ती
आगे ही आगे बढ़ रहा था। इस तरह से मैं वजिरा बाद पुल के पास पहुंच गया रात के उस करिब
बारह बज चुके थे। वजिरा बाद पुल को रात में ना जा कर मैं उससे थोड़ा पहले ही एक रास्ता
जो दिल्ली शहर में जाता था मोती बाग का उस रास्ते से आगें निकल पड़ा। कुछ दूर मेरे
चलने पर मुझे एक कुत्तों को रहने का एक झोपड़ा पार्क में बना दिखाई दिया। जिसमें मैं
चुपके से धुस गया। जिसमें बहुत गंदगी थी और मुझे बहुत भय भी लग रहा था कहीं किसी की
निगाह मुझ पर ना पड़ जाये। जिससे लोग मुझको चोर समझ कर मेरी पिटाई ना करने लगे। क्योंकि
लोग उस पार्क रास्ते से उस समय गुजर रहें थे। कभी किसी के बोलने कि आवाज आति तो कभी
गाड़यों और मोटर सायकिल कि आवाज भी आती थी रुक-रुक कर, जिससे मैं अन्दर से पुरी तरह से टुट चुका था मेरी बहुत मजबुरी थी। वहाँ रात्री
बिताना बहुत कठिन था, किसी तरह से मैंने वहा पर
एक या दो घंटे बिताया। फिर वहाँ से भी रात्री के करिब दो तीन बजे निकल पड़ा और वजिरा
बाद पुल पर चल पड़ा चलते-चलते थक चुका था। फिर वही एक बस स्टाप पर बैठ गया और सुबह
होने का इन्तजार करने लगा। रात जो बितने का नाम नहीं ले रही थी। फिर मुझे रात्री की
अजान सुनाई दि जो सुबह भोर में बोलते है। जिससे मैं समझ गया कि सुबह होने वाली है और
फिर मैं वहाँ बस स्टाप से आगे कि तरफ चल पड़ा रास्ते में मैंने एक दो जगह आराम किया।
सूर्य का प्रकाश हुआ तब तक मैं लोनी बार्डर पर पहुंच गया था। जहाँ पर मुझे बहुत थकान
और दर्द के साथ भुख भी लग रही थी। जिसके लियें मैने एक सड़क किनारे होटल में गया और
अपनी मजबुरी को बताया और कहा कि मैं कई दिन से भुखा हूं। मुझे खाना दे दो मैं आप के
यहाँ काम कर लुगा। इस तरह से उस होटल के मालिक ने मुझे अपने होटल में बर्तन धोने के
लिये रख लिया और बदले में भोजन देने लगा। जहाँ पर केवल सराब पिने के लिये ही अधिक लोग
आते थे। इस तरह से मैं वहाँ पर करिब चालिस दिन रहा और एक दिन वहाँ से मैं फिर पैदल
ही पुरानी दिल्ली रेल्वे स्टेशन आया और विना टिकट के ही ट्रेन में सवार हो कर मिर्जापुर
के लिये चल पड़ा।
ठीक इसी प्रकार कि घटना दूबारा मेरे साथ मेरे
पिता के द्वारा घटनें वाली थी। इन दिल्ली वाले लोगों के साथ मिल कर दोहाराने का प्रयाश
किया गया। जिसका आभास मुझे पहले ही होगया जैसै हवां में वह दूबारा दर्द मेरी मेरे मरने
का मातम भर गया है। चारों तरफ बहुत बुरी तरह से कुत्ते रोने लगे, जैसे पुरी की प्रकृती ही मुझे मारने के लिये उवली हो गयी हो। मेरे हाथ पैर काम
करना बंद करने लगे। जब अपने गांव के घर के बाहर बैठ कर खाना खा रहा था। क्योंकि यह
दिल्लि वाले मेरे घर पर पहुंच कर मेरे पिता को अपने साथ मिला लिया था और आपस में सौदा
किया मेरी हत्या करने का, जिसके साथ रामदेव
का भी साथ था। जिसने हमें पुरी तरह से पागल सिद्ध करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। लेकिन
मुझ पर आने वाले भयंकर संकट का आभाष मुझे पहले ही हो गया। जिसके कारण मैं वहाँ से सिधा
नदी किनारे भागा अपनी जान बचाने के लिये यह सब लोगो मेरा पिछा किया। जब मुझे लगा कि
यह लोग मुझे मार ही देगे और समय रात्री के समय ही सर्दी में मैं गंगा नदी में कुद पड़ा
और अंधेरे में खो गया। जिससे सारे मेरे हत्यारे पिछे लौट गये।
श्वेतकेतु
और उद्दालक, उपनिषद की कहानी, छान्द्योग्यापनिषद, GVB THE UNIVERSITY OF VEDA
यजुर्वेद मंत्रा हिन्दी व्याख्या सहित, प्रथम अध्याय 1-10, GVB THE
UIVERSITY OF VEDA
उषस्ति की कठिनाई, उपनिषद की कहानी, आपदकालेमर्यादानास्ति,
_4 -GVB the uiversity of veda
वैराग्यशतकम्, योगी भर्तृहरिकृत, संस्कृत काव्य, हिन्दी व्याख्या, भाग-1, gvb the university of Veda
G.V.B. THE UNIVERSITY OF VEDA ON
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वैदिक विद्वान वैज्ञानिक विश्वामित्र के द्वारा
अन्तरिक्ष में स्वर्ग की स्थापना
राजकुमार और उसके पुत्र के बलिदान की कहानीः-
पुरुषार्थ
और विद्या- ब्रह्मज्ञान
संस्कृत
के अद्भुत सार गर्भित विद्या श्लोक हिन्दी अर्थ सहित
श्रेष्ट
मनुष्य समझ बूझकर चलता है"
पंचतंत्र-
कहानि क्षुद्रवुद्धि गिदण की
कनफ्यूशियस
के शिष्य चीनी विद्वान के शब्द। लियोटालस्टा
कहानी
माधो चमार की-लियोटलस्टाय
पर्मार्थ
कि यात्रा के सुक्ष्म सोपान
जीवन संग्राम
-1, मिर्जापुर का परिचय
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