वैदिक इतिहास संक्षीप्त रामायण
की कहानीः-
वैसे तो रामायण की कहानी बहुत लम्बी है परन्तु
आज हम आपके सामने इस कहानी का एक संक्षिप्त रूप रेखा प्रस्तुत कर रहे हैं। रामायण श्री
राम की एक अद्भुत अमर कहानी है जो हमें विचारधारा, भक्ति, कर्तव्य, रिश्ते, धर्म और कर्म को सही मायने में सिखाता
है।
श्री राम अयोध्या
के राजा दशरथ के जेष्ट पुत्र थे और माता सीता उनकी धर्मपत्नी थी। राम बहुत ही साहसी, बुद्धिमान और आज्ञाकारी और सीता बहुत ही सुन्दर, उदार और पुण्यात्मा थी। माता सीता की मुलाकात श्री राम से उनके स्वयंवर में हुई
जो सीता माता के पिता, मिथिला के राजा जनक द्वारा
संयोजित किया गया था। यह स्वयंवर माता सीता के लिए अच्छे वर की खोज में आयोजित किया
गया था।
उस आयोजन में कई राज्यों
के राजकुमारों और राजाओं को आमंत्रित किया गया था। शर्त यह थी की जो कोई भी शिव धनुष
को उठा कर धनुष के तार को खीच सकेगा उसी का विवाह सीता से होगा। सभी राजाओं ने कोशिश
किया परन्तु वे धनुष को हिला भी ना सके। जब श्री राम की बारी आई तो श्री राम ने एक
ही हाथ से धनुष उठा लिया और जैस ही उसके तार को खीचने की कोशिश की वह धनुष दो टुकड़ों
में टूट गया। इस प्रकार श्री राम और सीता का मिलन / विवाह हुआ।
अयोध्या राज घराने में षड्यंत्रः- अयोध्या के राजा दशरथ के तीन पत्नियाँ और चार पुत्र थे। राम सभी भाइयों में बड़े
थे और उनकी माता का नाम कौशल्या था। भरत राजा दशरथ के दूसरी और प्रिय पत्नी कैकेयी
के पुत्र थे। दुसरे दो भाई थे, लक्ष्मण और सत्रुघन
जिनकी माता का नाम था सुमित्रा।
जब राम को एक तरफ
राज तिलक करने की तैयारी हो रही थी तभी उसकी सौतेली माँ कैकेयी, अपने पुत्र भरत को अयोध्या का राजा बनाने का षड्यंत्र रच रही थी। यह षड्यंत्र बूढी
मंथरा के द्वारा किया गया था। रानी कैकेयी ने एक बार राजा दशरथ की जीवन की रक्षा की
थी तब राजा दशरथ ने उन्हें कुछ भी मांगने के लिए पुछा था पर कैकेयी ने कहा समय आने
पर मैं मांग लूंगी।
उसी वचन के बल पर
कैकेयी ने राजा दशरथ से पुत्र भरत के लिए अयोध्या का सिंघासन और राम के लिए चौदह वर्ष
का वनवास माँगा। श्री राम तो आज्ञाकारी थे इसलिए उन्होंने अपने सौतेली माँ कैकेयी की
बातों को आशीर्वाद माना और माता सीता और प्रिय भाई लक्ष्मण के साथ चौदह वर्ष का वनवास
व्यतीत करने के लिए राज्य छोड़ कर चले गए।
इस असीम दुख को राजा दशरथ सह नहीं पाए और उनकी
मृत्यु हो गयी। कैकेयी के पुत्र भरत को जब यह बात पता चली तो उसने भी राज गद्दी लेने
से इंकार कर दिया।
चौदह वर्ष का वनवासः- राम, सीता और लक्ष्मण वनवास के लिए निकल पड़े। रास्ते में उन्होंने कई असुरों का संहार
किया और कई पवित्र और अच्छे लोगों से भी वे मिले। वे वन चित्रकूट में एक कुटिया बना
कर रहने लगे। एक बार की बात है लंका के असुर राजा रावण की छोटी बहन शूर्पनखा ने राम
को देखा और वह मोहित हो गयी।
उसने राम को पाने की कोशिश की पर राम ने उत्तर
दिया–मैं तो विवाहित हूँ मेरे भाई लक्ष्मण
से पूछ के देखो। तब शूर्पनखा लक्ष्मण के पास जा कर विवाह का प्रस्ताव रखने लगी पर लक्ष्मण
ने साफ़ इनकार कर दिया। तब शूर्पनखा ने क्रोधित हो कर माता सीता पर आक्रमण कर दिया।
यह देख कर लक्ष्मण ने चाकू से शूर्पनखा का नाक काट दिया। कटी हुई नाक के साथ रोते हुए
जब शूर्पनखा लंका पहुंची तो सारी बातें जान कर रावण को बहुत क्रोध आया। उसने बाद रावण
ने सीता हरण की योजना बनायीं।
सीता हरणः- योजना के तहत रावण ने मारीच राक्षश
को चित्रकूट के कुटिया के पास एक सुन्दर हिरन के रूप में भेजा। जब मारीच को माता सीता
ने देखा तो उन्होंने श्री राम से उस हिरण को पकड़ के लाने के लिए कहा। सीता की बात को
मान कर राम उस हिरण को पकड़ने उसके पीछे-पीछे गए और लक्ष्मण को आदेश दिया की वह सीता
को छोड़ कर कहीं ना जाए। बहुत पिचा करने के बाद राम ने उस हिरण को बाण से मारा। जैसे
ही राम का बाण हिरण बने मारीच को लगा वह अपने असली राक्षस रूप में आ गया और राम के
आवाज़ में सीता और लक्ष्मण को मदद के लिए पुकारने लगा।
सीता ने जब राम के
आवाज़ में उस राक्षश के विलाप को देखा तो वह घबरा गयी और उसने लक्ष्मण को राम की मदद
के लिए वन जाने को कहा। लक्ष्मण ने सीता माता के कुटिया को चारों और से "लक्ष्मण
रेखा" से सुरक्षित किया और वह श्री राम की खोज करने वन में चले गए।
योजना के अनुसार रावण एक साधू के रूप में कुटिया
पहुंचा और भिक्षाम देहि का स्वर लगाने लगा। जैसे ही रावण ने कुटिया के पास लक्ष्मण
रेखा पर अपना पैर रखा उसका पैर जलने लगा यह देखकर रावण ने माता सीता को बाहर आकर भोजन
देने के लिए कहा। जैसे ही माता सीता लक्ष्मण रेखा से बाहर निकली रावण ने पुष्पक विमान
में उनका अपहरण कर लिया।
जब राम और लक्ष्मण को यह पता चला की उनके साथ
छल हुआ है तो वह कुटिया की और भागे पर वहाँ उन्हें कोई नहीं मिला। जब रावण सीता को
पुष्पक विमान में लेकर जा रहा था तब बूढ़े जटायु पक्षी ने रावण से सीता माता को छुड़ाने
के लिए युद्ध किया परन्तु रावण ने जटायु का पंख काट डाला। जब राम और लक्ष्मण सीता को
ढूँढते हुए जा रहे थे तो रास्ते में जटायु का शारीर पड़ा था और वह राम-राम विलाप कर
रहा था। जब राम और लक्ष्मण ने उनसे सीता के विषय में पुछा तो जटायु ने उन्हें बताया
की रावण माता सीता को उठा ले गया है और यह बताते-बताते उसकी मृत्यु हो गयी।
राम और हनुमानः- हनुमान किसकिन्धा के राजा सुग्रीव की वानर सेना
के मंत्री थे। राम और हनुमान पहली बार रिशिमुख पर्वत पर मिले जहाँ सुग्रीव और उनके
साथी रहते थे। सुग्रीव के भाई बाली ने उससे उसका राज्य भी छीन लिया और उसकी पत्नी को
भी बंदी बना कर रखा था।
जब सुग्रीव राम से मिले वे दोनों मित्र बन गए।
जब रावण पुष्पक विमान में सीता माता को ले जा रहा था तब माता सीता ने निशानी के लिए
अपने अलंकर फैक दिए थे वह सुग्रीव की सेना के कुछ वानरों को मिला था। जब उन्होंने श्री
राम को वह अलंकर दिखाये तो राम और लक्ष्मण के आँखों में आंसू आगये।
श्री राम ने बाली का वध करके सुग्रीव को किसकिन्धा
का राजा दोबारा बना दिया। सुग्रीव ने भी मित्रता निभाते हुए राम को वचन दिया की वह
और उनकी वानर सेना भी सीता माता को रावण के चंगुल से छुडाने के लिए पूरी जी जान लगा
देंगे।
वानर सेनाः-
उसके बाद हनुमान, सुग्रीव, जामवंत, ने मिल कर सुग्रीव की वानर सेना का नेतृत्व
किया और चारों दिशाओं में अपनी सेना को भेजा। सभी दिशाओं में ढूँढने के बाद भी कुछ
ना मिलने पर ज्यादातर सेना वापस लौट आये। दक्षिण की तरफ हनुमान एक सेना लेकर गए जिसका
नेतृत्व अंगद कर रहे थे। जब वे दक्षिण के समुंद तट पर पहुंचे तो वे भी उदास होकर विन्द्य
पर्वत पर इसके विषय में बात कर रहे थे।
वहीँ कोने में एक बड़ा पक्षी बैठा था जिसका नाम
था सम्पाती। सम्पति वानरों को देखकर बहुत खुश हो गया और भगवान् का शुक्रिया करने लगा
इतना सारा भोजन देने के लिए। जब सभी वानरों को पता चला की वह उन्हें खाने की कोशिश
करने वाला था तो सभी उसकी घोर आलोचना करने लगे और महान पक्षी जटायु का नाम लेकर उसकी
वीरता की कहानी सुनाने लगे।
जैसे ही जटायु की मृत्यु की बात उसे पता चला वह
ज़ोर-ज़ोर से विलाप करने लगा। उसने वानर सेना को बताया की वह जटायु का भाई है और यह भी
बताया की उसने और जटायु ने मिलकर स्वर्ग में जाकर इंद्र को भी युद्ध में हराया था।
उसने यह भी बताया की सूर्य की तेज़ किरणों से जटायु की रक्षा करते समय उसके सभी पंख
भी जल गए और वह उस पर्वत पर गिर गया।
सम्पाती ने वानरों से बताया कि वह बहुत ज़्यादा
जगहों पर जा चूका है और उसने यह भी बताया की लंका का असुर राजा रावण ने सीता को अपहरण
किया है और उसी दक्षिणी समुद्र के दूसरी ओर उसका राज्य है।
लंका की ओर हनुमान की समुद्र यात्राः- जामवंत
ने हनुमान के सभी शक्तियों को ध्यान दिलाते हुए कहा कि हे हनुमान आप तो महा ज्ञानी, वानरों के स्वामी और पवन पुत्र हैं। यह सुन कर हनुमान का मन हर्षित हो गया और वे
समुंद्र तट किनारे स्तिथ सभी लोगों से बोले आप सभी कंद मूल खाकर यही मेरा इंतज़ार करें
जब तक में सीता माता को देखकर वापस ना लौट आऊं। ऐसा कहकर वे समुद्र के ऊपर से उड़ते
हुए लंका की ओर चले गए।
रास्ते में जाते समय उन्हें सबसे पहले मेनका
पर्वत आये। उन्होंने हनुमान जी से कुछ देर आराम करने के लिए कहा पर हनुमान ने उत्तर
दिया–जब तक में श्री राम जी का कार्य पूर्ण
ना कर लूं मेरे जीवन में विश्राम की कोई जगह नहीं है और वे उड़ाते हुए आगे चले गए।
देवताओं ने हनुमान की परीक्षा लेने के लिए सापों
की माता सुरसा को भेजा। सुरसा ने हनुमान को खाने की कोशिश की पर हनुमान को वह खा ना
सकी। हनुमान उसके मुख में जा कर दोबारा निकल आये और आगे चले गए।
समुंद्र में एक छाया को पकड़ कर खा लेने वाली
राक्षसी रहती थी। उसने हनुमान को पकड़ लिया पर हनुमान ने उसे भी मार दिया।
हनुमान लंका दहन की कहानीः- समुद्र तट पर पहुँचने
के बाद हनुमान एक पर्वत के ऊपर चढ़ गए और वहाँ से उन्होंने लंका की और देखा। लंका का
राज्य उन्हें दिखा जिसके सामने एक बड़ा द्वार था और पूरा लंका सोने का बना हुआ था।
हनुमान ने एक छोटे मछर के आकार जितना रूप धारण
किया और वह द्वार से अन्दर जाने लगे। उसी द्वार पर लंकिनी नामक राक्षसी रहती थी। उसने
हनुमान का रास्ता रोका तो हनुमान ने एक ज़ोर का घूँसा दिया तो निचे जा कर गिरी। उसने
डर के मारे हनुमान को हाथ जोड़ा और लंका के भीतर जाने दिया। हनुमान ने माता सीता को
महल के हर जगह ढूँढा पर वह उन्हें नहीं मिली। थोड़ी दे बाद ढूँढने के बाद उन्हें एक
ऐसा महल दिखाई दिया जिसमें एक छोटा-सा मंदिर था एक तुलसी का पौधा भी। हनुमान जी को
यह देखकर अचंभे में पड गए औए उन्हें यह जानने की इच्छा हुई की आखिर ऐसा कौन है जो इन
असुरों के बिच श्री राम का भक्त है। यह जानने के लिए हनुमान ने एक ब्राह्मण का रूप
धारण किया और उन्हें पुकारा। विभीषण अपने महल से बाहर निकले और जब उन्होंने हनुमान
को देखा तो वह बोले–हे महापुरुष आपको देख कर
मेरे मन में अत्यंत सुख मिल रहा है, क्या आप स्वयं श्री राम हैं?
हनुमान ने पुछा आप कौन हैं? विभीषण ने उत्तर दिया–मैं रावण का भाई विभीषण हूँ।
यह सुन कर हनुमान अपने असली रूप में आगए और श्री
रामचन्द्र जी के विषय में सभी बातें उन्हें बताया। विभीषण ने निवेदन किया-हे पवनपुत्र
मुझे एक बार श्री राम से मिलवा दो। हनुमान ने उत्तर दिया–मैं श्री राम जी से ज़रूर मिलवा दूंगा परन्तु पहले मुझे यह बताये की मैं जानकी माता
से कैसे मिल सकता हूँ?
अशोक वाटिका में हनुमान सीता भेटः- विभीषण ने
हनुमान को बताया की रावण ने सीता माता को अशोक वाटिका में कैद करके रखा है। यह जानने
के बाद हनुमान जी ने एक छोटा-सा रूप धारण किया और वह अशोक वाटिका पहुंचे। वहाँ पहुँचने
के बाद उन्होंने देखा कि रावण अपने दसियों के साथ उसी समय अशोक वाटिका में-में पहुंचा
और सीता माता को अपने ओर देखने के लिए साम दाम दंड भेद का उपयोग किया पर तब भी सीता
जी ने एक बार भी उसकी ओर नहीं देखा। रावण ने सभी राक्षसियों को सीता को डराने के लिए
कहा। पर त्रिजटा नामक एक राक्षसी ने माता सीता की बहुत मदद और देखभाल की और अन्य राक्षसियों
को भी डराया जिससे अन्य सभी राक्षसी भी सीता की देखभाल करने लगे।
कुछ देर बाद हनुमान ने सीता जी के सामने श्री
राम की अंगूठी डाल दी। श्री राम नामसे अंकित अंगूठी देख कर सीता माता के आँखों से ख़ुशी
के अंशु निकल पड़े। परन्तु सीता माता को संदेह हुआ की कहीं यह रावण की कोई चाल तो नहीं।
तब सीता माता ने पुकारा की कौन है जो यह अंगूठी ले कर आया है। उसके बाद हनुमान जी प्रकट
हुए पर हनुमान जी को देखकर भी सीता माता को विश्वस नहीं हुआ। उसके बाद हनुमान जी ने
मधुर वचनों के साथ रामचन्द्र के गुणों का वर्णन किया और बताया की वह श्री राम जी के
दूत हैं। सीता ने व्याकुलता से श्री राम जी का हाल चाल पुछा। हनुमान जी ने उत्तर दिया–हे माते श्री राम जी ठीक हैं और वे आपको बहुत याद करते हैं। वे बहुत जल्द ही आपको
लेने आयेंगे और में शीघ्र ही आपका सन्देश श्री राम जी के पास पहुंचा दूंगा।
तभी हनुमान ने सीता माता से श्री राम जी को दिखने
के लिए चिह्न माँगा तो माता सीता ने हनुमान को अपने कंगन उतार कर दे दिए।
हनुमान लंका दहनः-हनुमान जी को बहुत भूख लग
रहा था तो हनुमान अशोक वाटिका में लगे पेड़ों के फलों को खाने लगे। फलों को खाने के
साथ-साथ हनुमान उन पेड़ों को तोड़ने लगे तभी रावण के सैनिकों ने हनुमान पर प्रहार किया
पर हनुमान ने सबको मार डाला। जब रावण को इस बात का परा चला की कोई बन्दर अशोक वाटिका
में उत्पात मचा रहा है तो उसने अपने पुत्र अक्षय कुमार को भेजा हनुमान का वध करने के
लिए। पर हनुमान जी ने उसे क्षण भर में ऊपर पहुंचा दिया। कुछ देर बाद जब रावण को जब
अपने पुत्र की मृत्यु का पता चला वह बहुत ज़्यादा क्रोधित हुआ। उसके बाद रावण ने अपने
जेष्ट पुत्र मेघनाद को भेजा। हनुमान के साथ मेघनाद का बहुत ज़्यादा युद्ध हुआ परकुछ
ना कर पाने के बाद मेघनाद ने ब्रह्मास्त्र चला दिया। ब्रह्मास्त्र का सम्मान करते हुए
हनुमान स्वयं बंधग बन गए। हनुमान को रावण की सभा में लाया गया। रावण हनुमान को देख
कर हंसा और फिर क्रोधित हो कर उसने प्रश्न किया–रे वानर, तूने किस कारण अशोक वाटिका को तहस-नहस
कर दिया? तूने किस कारण से मेरे सैनिकों और पुत्र
का वध कर दिया क्या तुझे अपने प्राण जाने का डर नहीं है?
यह सुन कर हनुमान ने कहा–हे रावण, जिसने महान शिव धनुष को पल भर में तोड़
डाला, जिसने खर, दूषण, त्रिशिरा और बाली को मार गिराया, जिसकी प्रिय पत्नीका तुमने अपहरण किया, मैं उन्ही का दूत हूँ। मुजे भूख लग रहा था इसलिए मैंने फल खाए और तुम्हारे राक्षसों
ने मुझे खाने नहीं दिया इसलिए मैंने उन्हें मार डाला। अभी भी समय है सीता माता को श्री
राम को सौंप दो और क्षमा मांग लो।
रावण हनुमान की बता सुन कर हसने लगा और बोला–रे दुष्ट, तेरी मृत्यु तेरे सिर पर है। ऐसा कह कर
रावण ने अपने मंत्रियों को हनुमान को मार डालने का आदेश दिया। यह सुन कर सभी मंत्री
हनुमान को मारने दौड़े। तभी विभीषण वहाँ आ पहुंचे और बोले-रुको, दूत को मारना सही नहीं होगा यह निति के विरुद्ध है। कोई और भयानक दंड देना चाहिए।
सभी ने कहा बन्दर का पूंछ उसको सबसे प्यारा
होता है क्यों ना तेल में कपडा डूबा कर इसकी पूंछ में बंध कर आग लगा दिया जाये। हनुमान
की पूंछ पर तेल वाला कपडा बंध कर आग लगा दिया गया। जैसे ही पूंछ में आग लगी हनुमान
जी बंधन मुक्त हो कर एक छत से दुसरे में कूदते गए और पूरी सोने की लंका में आग लगा
के समुद्र की और चले गए और वहाँ अपनी पूंछ पर लगी आग को बुझा दिया। वहाँ से सीधे हनुमान
जी श्री राम के पास लौटे और वहाँ उन्होंने श्री राम को सीता माता के विषय में बताया
और उनके कंगन भी दिखाए। सीता माता के निशानी को देख कर श्री राम भौवुक हो गए।
प्रभु राम सेतु बंधः-अब श्री राम और वानर सेना
की चिंता का विषय था कैसे पूरी सेना समुद्र के दुसरे और जा सकेंगे। श्री राम जी ने
समुद्र से निवेदन किया की वे रास्ता दें ताकि उनकी सेना समुद्र पार कर सके। परन्तु
कई बार कहने पर भी समुद्र ने उनकी बात नहीं मानी तब राम ने लक्ष्मण से धनुष माँगा और
अग्नि बाण को समुद्र पर साधा जिससे की पानी सुख जाये और वे आगे बढ़ सकें। जैसे ही श्री
राम ने ऐसा किया समुद्र देव डरते हुए प्रकट हुए और श्री राम से माफ़ी मांगी और कहा हे
नाथ, ऐसा ना करें आपके इस बाण से मेरे में रहते
वाले सभी मछलियाँ और जीवित प्राणी का अंत हो जायेगा। श्री राम ने कहा–हे समुद्र देव हमें यह बताएँ की मेरी यह विशाल सेना इस समुद्र को कैसे पार कर सकते
हैं। समुद्र देव ने उत्तर दिया–हे रघुनन्दन राम आपकी सेना
में दो वानर हैं नल और नील उनके स्पर्श करके किसी भी बड़े से बड़े चीज को पानी में तैरा
सकते हैं। यह कह कर समुद्र देव चले गए। उनकी सलाह के अनुसार नल और नील ने पत्थर पर
श्री राम के नाम लिख कर समुद्र में फैंक के देखा तो पत्थर तैरने लगा। उसके बाद एक के
बाद एक करके नल नील समुद्र में पत्थर को समुद्र में फेंकते रहे और समुद्र के अगले छोर
तक पहुच गए।
लंका में श्री राम की वानर सेनाः-श्री राम ने
अपनी सेना के साथ समुद्र किनारे डेरा डाला। जब इस बात का पता रावण की पत्नी मंदोदरी
को पता चला तो वह घबरा गयी और उसने रावण को बहुत समझाया पर वह नहीं समझा और सभा में
चले गया। रावण के भाई विभीषण ने भी रावण को सभा में समझाया और सीता माता को समान्पुर्वक
श्री राम को सौंप देने के लिए कहा परन्तु यह सुन कर रावण क्रोधित हो गया और अपने ही
भाई को लात मार दिया जिसके कारण विभीषण सीढियों से नीचे आ गिरे। विभीषण ने अपना राज्य
छोड़ दिया और वह श्री राम के पास गए। राम ने भी ख़ुशी के साथ उन्हें स्वीकार किया और
अपने डेरे में रहने की जगह दी। आखरी बार श्री राम ने बाली पुत्र अंगद कुमार को भेजा
पर रावण तब भी नहीं माना।
युद्ध आरंभ हुआः- श्री राम और रावण की सेना के
बिच भीषण युद्ध हुआ। इस युद्ध में लक्ष्मण पर मेघनाद ने शक्ति बांण से प्रहार किया
था जिसके कारण हनुमान जी संजीवनी बूटी लेने के लिए हिमालय पर्वत गए। परन्तु वे उस पौधे
को पहेचन ना सके इसलिए वे पूरा हिमालय पर्वत ही उठा लाये थे।
श्वेतकेतु और
उद्दालक, उपनिषद की कहानी, छान्द्योग्यापनिषद,
GVB THE UNIVERSITY OF VEDA
यजुर्वेद
मंत्रा हिन्दी व्याख्या सहित, प्रथम अध्याय 1-10, GVB THE
UIVERSITY OF VEDA
उषस्ति
की कठिनाई, उपनिषद की कहानी, आपदकालेमर्यादानास्ति,
_4 -GVB the uiversity of veda
वैराग्यशतकम्,
योगी भर्तृहरिकृत, संस्कृत काव्य, हिन्दी
व्याख्या, भाग-1, gvb the university of Veda
G.V.B. THE
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