भारत का प्राचीन स्वरुप
भारत बहुत प्राचीन एवं विविधताओं से भरा देश
है। भारत में हर धर्म के लोग निवास करते है यहाँ बहुधर्मी लोगो की कमी नहीं है। इसलिए
भारत सबसे प्राचीन और महान देश है। लेकिन क्या आप जानते है? आज हम जिस भारत को देखते हैं अतीत में भारत ऐसा नहीं था। भारत बहुत विशाल देश
हुआ करता था। ईरान से लेकर इंडोनेशिया तक सारा भारत ही था, लेकिन समय के साथ-साथ भारत के टुकड़े होते चले गये जिससे भारत की संस्कृति का अलग-अलग
जगहों में बटवारां हो गया। आज हम आपको उन देशों को नाम बतायेंगे जो कभी भारत का हिस्सा
हुआ करते थे।
बता दें सांस्कृतिक दृष्टि से प्राचीन भारत
की सीमाएं विश्व में दूर-दूर तक फैली हुई थीं। भारत ने राजनीतिक आक्रमण तो कहीं नहीं
किए परंतु सांस्कृतिक दिग्विजय अभियान के लिए भारतीय मनीषी विश्वभर में गए। शायद इसीलिए
भारतीय संस्कृति और सभ्यता के चिन्ह विश्व के अधिकतर देशों में मिलते हैं। आज हम आपको
बता रहे हैं कि हमारा प्राचीन सांस्कृतिक भारत कहां तक था।
1.
ईरान – ईरान में आर्य संस्कृति का उद्भव 2000 ई. पू. उस वक्त हुआ जब ब्लूचिस्तान के मार्ग
से आर्य ईरान पहुंचे और अपनी सभ्यता व संस्कृति का प्रचार वहां किया। उन्हीं के नाम
पर इस देश का नाम आर्याना पड़ा। 644 ई. में अरबों ने ईरान पर आक्रमण कर उसे जीत लिया। 2. कम्बोडिया – माना जाता है कि प्रथम शताब्दी में कौंडिन्य नामक एक ब्राह्मण ने हिन्द-चीन में
हिन्दू राज्य की स्थापना की। इन्हीं के नाम पर कम्बोडिया देश हुआ। हिन्द-चीन ने मिलकर
यहां खमेर साम्राज्य की स्थापना की थी। यह भी माना जाता है कि भारतीय राज्य कम्बोज
के उपनिवेश के रूप में कम्बोडिया की स्थापना हुई थी। कम्बोडिया को पहले कंपूचिया और
उससे पहले कम्बोज के नाम से जाना जाता था, यह दक्षिण-पूर्व एशिया का एक प्रमुख देश है। पहले यह हिन्दू राष्ट्र था, अब बौद्ध राष्ट्र है। लगभग 600 वर्षों तक फूनान ने इस प्रदेश में हिन्दू संस्कृति
का प्रचार एवं प्रसार करने में महत्वपूर्ण योग दिया, तत्पश्चात इस क्षेत्र में कम्बुज या कम्बोज का महान राज्य स्थापित हुआ। 3. वियतनाम – वियतनाम का पुराना नाम चम्पा
था। दूसरी शताब्दी में स्थापित चम्पा भारतीय संस्कृति का प्रमुख केंद्र था। यहां के
चम लोगों ने भारतीय धर्म, भाषा, सभ्यता ग्रहण की थी। 1825 में चम्पा के महान हिन्दू राज्य का अन्त हुआ। 4. मलेशिया – प्रथम शताब्दी में साहसी भारतीयों ने मलेशिया पहुंचकर वहां के निवासियों को भारतीय
सभ्यता एवं संस्कृति से परिचित करवाया। कालान्तर में मलेशिया में शैव, वैष्णव तथा बौद्ध धर्म का प्रचलन हो गया। 1948 में अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त
हो यह सम्प्रभुता सम्पन्न राज्य बना। 5. इण्डोनेशिया – इण्डोनिशिया भी किसी समय में भारत का एक सम्पन्न राज्य था। आज इण्डोनेशिया में
बाली द्वीप को छोड़कर शेष सभी द्वीपों पर मुसलमान बहुसंख्यक हैं। फिर भी यहाँ के लोग
हिन्दू धर्म एवं हिन्दू देवी-देवताओं से से जुड़े हुए है एवं हिन्दू संस्कृति का निर्वहन
कर रहे है। इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता
जाने वाले यात्रियों के लिए उत्तर-पश्चिम तट पर स्थित शहर के बीचोंबीच भव्य निर्मित
अनेक घोड़ों से खिंचने वाले रथ पर श्री कृष्ण-अर्जुन की प्रतिमा सर्वाधिक आकर्षित करने
वाली है। इस शहर में जगह-जगह आपको हिंदू स्थपत्य कला का दर्शन होता रहेगा। वहीं इंडोनेशिया
में पांच बड़े-बड़े हिंदू मंदिर भी हैं। भारत के भगवान राम और अन्य कई देवताओं की मूर्तियां
या मंदिर आपको सहज ही मिल जाएंगे जो की इंडोनेशिया को भारत की संस्कृति से कहीं न कहीं
जोडऩे का कार्य करते हैं। 7. फिलीपींस – फिलीपींस में किसी समय भारतीय संस्कृति का पूर्ण प्रभाव था पर 15 वीं शताब्दी में
मुसलमानों ने आक्रमण कर वहां आधिपत्य जमा लिया। आज भी फिलीपींस में कुछ हिन्दू रीति-रिवाज
प्रचलित हैं। 8. अफगानिस्तान – अफगानिस्तान 350 इ.पू.
तक भारत का एक अंग था। सातवीं शताब्दी में इस्लाम के आगमन के बाद अफगानिस्तान धीरे-धीरे
राजनीतिक और बाद में सांस्कृतिक रूप से भारत से अलग हो गया। 9. नेपाल – नेपाल विश्व का एक मात्र हिन्दू देश है, जिसका एकीकरण गोरखा राजा ने 1769 ई. में किया था। पूर्व में यह प्राय: भारतीय राज्यों
का ही अंग रहा।
10. भूटान – प्राचीन काल में भूटान भद्र देश के नाम से जाना जाता था। 8 अगस्त 1949 में भारत-भूटान
संधि हुई जिससे स्वतंत्र प्रभुता सम्पन्न भूटान की पहचान बनी। 11. तिब्बत – तिब्बत का उल्लेख हमारे ग्रन्थों में त्रिविष्टप के नाम से आता है। यहां बौद्ध
धर्म का प्रचार चौथी शताब्दी में शुरू हुआ। तिब्बत प्राचीन भारत के सांस्कृतिक प्रभाव
क्षेत्र में था। भारतीय कांग्रेसी नेताओं की अदूरदर्शिता के कारण चीन ने 1957 में तिब्बत
पर कब्जा कर लिया। 12. श्रीलंका – श्रीलंका का प्राचीन नाम ताम्रपर्णी था। श्रीलंका भारत का प्रमुख अंग था। 1505
में पुर्तगाली, 1606 में डच और 1795 में अंग्रेजों ने
लंका पर अधिकार किया। 1935 ई. में अंग्रेजों ने लंका को भारत से अलग कर दिया। 13. म्यांमार
(बर्मा) – अराकान की अनुश्रुतियों के अनुसार यहां
का प्रथम राजा वाराणसी का एक राजकुमार था। 1852 में अंग्रेजों का बर्मा पर अधिकार हो
गया। 1937 में भारत से इसे अलग कर दिया गया।
14. पाकिस्तान – 15 अगस्त, 1947 के पहले पाकिस्तान भारत का एक अंग था। हालांकि बटवारे के बाद पाकिस्तान में
बहुत से हिन्दू मंदिर तोड़ दिये गये हैं, जो बचे भी हैं उनकी हालत बहुत ही जर्जर है।
बांग्लादेश – बांग्लादेश भी 15 अगस्त
1947 के पहले भारत का अंग था। देश विभाजन के बाद पूर्वी पाकिस्तान के रूप में यह भारत
से अलग हो गया। 1971 में यह पाकिस्तान से भी अलग हो गया। इसके अलावा भारतीय संस्कृति चीन, जापान, मंगोलिया, लाओस, हॉन्गकॉन्ग, ताइवान, मकाउ, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया एवं उत्तर कोरिया सहित
विश्व के अनेकों देशों में फैली हुई थी। बौद्ध धर्म विश्व का दूसरा सबसे बड़ा धर्म
है और इस धर्म का जन्म ई.पू. छठी शताब्दी में भारत में हुआ था।
‘‘विजानीह्यार्यान्ये च दस्यवो बर्हिष्मते रंधया शासद व्रतान्।” यह ऋग्वेद का मंत्र
1/51/8 है तथा ‘उत शूद्र उतार्ये।’ यह अथर्ववेद का प्रमाण है।
कि आर्य नाम धार्मिक, विद्वान, आप्त पुरुषों का और
इन से विपरीत जनों का नाम दस्यु अर्थात् डाकु, दुष्ट, अधार्मिक और अविद्वान् है तथा ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य द्विजों का नाम आर्य और शूद्र का नाम अनार्य अर्थात् अनाड़ी है। जब वेद ऐसे
कहता है, तो दूसरे विदेशियों
के कपोलकल्पित को बुद्धिमान् लोग कभी नहीं मान सकते। और देवासुर संग्राम में आर्यावर्तीय
अर्जुन तथा महाराजा दशरथ आदि, हिमालय पहाड़ में आर्य और दस्यु-मलेच्छ-असुरों का जो युद्ध हुआ था, उसमें देव अर्थात् आर्यों
की रक्षा और असुरों के पराजय करने को सहायक हुए थे। (अर्जुन व दशरथ के काल अलग अलग
होने से यह भी सम्भावना लगती है कि यह देवासुर संग्राम अनेक बार हुआ)। इससे यही सिद्ध
होता है कि आर्यावर्त्त के बाहर चारों ओर जो हिमालय के पूर्व, आग्नेय, दक्षिण, नैर्ऋत पश्चिम, वायव्य, उत्तर, ईशान, देश में मनुष्य रहते हैं, उन्हीं का नाम असुर सिद्ध
होता है। क्योंकि जब जब हिमालय प्रदेशस्थ आर्यों पर (विदेशी दस्यु व असुर) लड़ने को
चढ़ाई करते थे, तब तब यहां के राजा-महाराजा
लोग उन्हीं उत्तर आदि देशों में आर्यों के सहायक होते। और जो श्री रामचन्द्र जी से
दक्षिण में युद्ध हुआ है, उसका नाम देवासुर संग्राम नहीं है, किन्तु उस को राम-रावण अथवा आर्य और राक्षसों का संग्राम कहते हैं। किसी संस्कृत
ग्रन्थ में वा इतिहास में नहीं लिखा है कि आर्य लोग ईरान से आये और वहां के जंगलियों
को लड़कर, विजय पा के, निकाल के, इस देश के राजा हुए। पुनः
विदेशियों का (पक्षपात से पूर्ण) लेख माननीय कैसे हो सकता है? (अर्थात् नहीं हो सकता)। महर्षि दयानन्द ने अपने वचनों में सृष्टि की आदि
में मनुष्य की उत्पत्ति के स्थान को तिब्बत बताया है। अन्य प्राचीन प्रमाणों से भी
यही स्थान सिद्ध होता है। इसके लिए विख्यात विद्वान स्वामी विद्यानन्द सरस्वती जी की
पुस्तक ‘आर्यों का आदि देश
और उनकी सभ्यता’ पठनीय है। महर्षि
दयानन्द जी ने अंग्रेजों की इस मिथ्या मान्यता का भी सप्रमाण प्रतिवाद कर दिया है कि
आर्य इस आर्यावर्त्त के मूल निवासी नहीं हैं। उनके अनुसार आर्य किसी अन्य देश में आकर
यहां आर्यावर्त्त भारत में नहीं बसे अपितु सृष्टि की आदि में, जब पूरा भूलोक व पृथिवी खाली
पड़ी थी, तिब्बत से सीधे यहां
आकर बसे व इसको उन्होंने ही बसाया था। अंग्रेजों ने जो आर्यों के ईरान व अन्य किसी
देश से आने की मान्यता प्रचलित थी, उसके पीछे उनका निजी स्वार्थ था। वह यह प्रचारित करना चाहते थे कि जिस प्रकार हम
विदेशी हैं उसी प्रकार से वर्ण व आश्रम धर्म-व्यवस्था को मानने वाले आर्य भी हैं। महर्षि
दयानन्द का अंग्रेजों की इस स्वार्थपूर्ण मान्यता का सप्रमाण खण्डन उनकी ऐतिहासिक तथ्यों
पर सूक्ष्म तथ्यात्मक दृष्टि व दूरदर्शिता सहित देशहितैषी होने का प्रमाण है। हम आशा
करते हैं कि लेख के पाठक महर्षि दयानन्द के दोनों ही निष्कर्षों से सहमत होंगे। आवश्यकता
इस बात की है कि महर्षि दयानन्द की मान्यता का डिन्डिम घोष से प्रचार व प्रसार हो और
भारत सरकार इस तथ्यात्मक मान्यता को स्केूली पाठ्यक्रम में शामिल कर न्याय करे। भारत ही सर्वप्रथम एक ऐसा देश था जो इस सम्पूर्ण
भुमंडल पर अधिकार करता था। इसके अन्दर अज्ञान का विस्तार होने के कारण ही सिकुड़ते
सिकुड़ते भारत आज कि स्थिती को प्राप्त हुआ है। इन सब को एक करने का कारण भारतिय सांस्कृतिक
सभ्यता और प्राचिन वैदिक संस्कृत परंपरा थी। जिसके पतन के कारण ही भारत का पतन भी हो
गया, इससे अभी और खतरा बढ़ गया है क्योंक हमने स्वयं
को स्वयं की जड़ से अलग कर रखा है। हमें अपनी जड़ों से जुणने के लिये पुनः हम सब को अपने प्राचिनतम ज्ञान विज्ञान ब्रह्मज्ञान
के प्रमुख श्रोतों से जुणना होग। जिसके लिये हि यह एक बहुत क्षुद्र प्रयास है, जैसा कि अंधकार से आच्छदित कंदरा में व्याप्त घोर अंधकार को दूर करने के लिये सूर्य
भी जहां कमजोर सिद्ध हो रहा है वहां दिपक समर्थ हो सकता है। ऐसी कामना के साथ आप सुधि
जनों को यह संकलन भारतिय प्राचिन कहानियों का संकलन प्रस्तुत किया जा रहा है।
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