विषयों को हमने नहीं भोगा !!!
भोगा न भुक्ता वयमेव भुक्ता स्तपो न तप्तं वयमेव तप्ता: ।
कालो न यातो वयमेव यातास्तृष्णा न जीर्णावयमेव जीर्णा: ॥
विषयों को हमने नहीं भोगा किन्तु विषयों ने हमारा भोग कर दिया, हमने तप को नहीं तपा किन्तु तप ने हमें तपा डाला। काल का खात्मा न हुआ किन्तु हमारा ही खात्मा हो चला। तृष्णा का बुढ़ापा न आया पर हमारा ही बुढ़ापा आ गया।। 12॥
क्षान्तं न क्षमया गृहोचितसुखं त्यक्तं न संतोषत: ।
सोढा दु:सहशांतवाततपनक्लेशा न तप्तं तपः ॥
ध्यातं वित्तमहर्निशं नियमितप्रार्णेर्न शम्भो: पदं ।
तत्ततकर्मकृतं यदेव मुनिभिस्तैस्तै: फलैर्वंचितम ॥
क्षमा तो हमने की किन्तु धर्म के ख्याल से नहीं की। हमने घर के सुख चैन तो छोड़े परंतु संतोष से नहीं छोड़े। हमने सर्दी, गर्मी और हवा के न सह सकने योग्य दुख तो सहे किन्तु हमने ये सब दुख ताप की गरज से नहीं, दरिद्रता के कारण सहे। हम दिन रात धन के ध्यान में लगे रहे किन्तु प्राणायाम क्रिया द्वारा शम्भु के चरणों का ध्यान नहीं किया। हमने काम तो सब मुनियों जैसे किए परंतु उनकी तरह फल हमें नहीं मिले॥ 13॥
बलिभिर्मुखमाक्रांतं पलितैरंकितं शिर: ।
गात्राणि शिथिलायंते तृष्णैका तरुणायते ॥
चेहरे पर झुर्रियाँ पढ गई, सिर के बाल पक कर सफ़ेद हो गए, सारे अंग ढीले हो गए पर तृष्णा तो तरुण होती जाती है।। 14॥
येनैवाम्बरखंडेन संवीतो निशि चंद्रमा।
तेनैव च दिवा भानुरहो दौर्गत्यमेतयो:॥
आकाश के जिस टुकड़े को ओढ़ कर चंद्रमा रात बिताता है उसी को ओढ़कर सूर्य दिन बिताता है। इन दोनों की कैसी दुर्गति होती है।। 15॥
अवश्यं यातारश्चिरतरमूषित्वाSपि विषया
वियोगे को भेदस्त्यजति न जानो यत्स्वयममून्।
व्रजन्त: स्वातंत्र्यादतुतलपरितापाय मनस:
स्वयं तयक्त्वा ह्येते शमसुखमनन्तं विदधति ॥
विषयों को हम चाहे जीतने दिनों तक क्यों न भोगें, एक दिन वे निश्चय ही अलग हो जायेंगे। तब मनुष्य उन्हे स्वयं, अपनी इच्छा से ही क्यों न छोड़ दे ? इस जुदाई में क्या फर्क है? अगर यह न छोड़ेगा तो वे छोड़ देंगे। जब वे स्वयं मनुष्य को छोड़ेंगे तब उसे बड़ा दुख और मन-क्लेश होगा । अगर मनुष्य उन्हे स्वयं छोड़ देगा तो उसे अनंत सुख और शांति प्राप्त होगी।।16॥
विवेकव्याकोशे विदधति शमं शाम्यति तृषा ।
परिश्वंगे तुंगे प्रसरतितरां सा परिणति: ।।
जब ज्ञान का उदय होता है तब शांति की प्राप्ति होती है । शांति की प्राप्ति से तृष्णा शांत हो जाती है किन्तु वही तृष्णा विषयों के संसर्ग से, बेहद बढ़ती है अर्थात विषयों से तृष्णा कभी शांत नहीं हो सकती ॥17॥
We will not get the subjects !!!
Age Benefit Period:
Do not live longer than usual:
We will not accept the subjects but the subjects gave us our pleasure, we did not know the tenacity, but the penance inspected us. The end of time has not been eliminated, but our own elimination is gone. Old age of Trishna did not come but our old age has come. 12.
Not satisfied with the situation: Not satisfied with:
Sleep disturbances:
Regarding financial matters, regular posting: positions.
Tattatkaramkaran Yedev Munibastastam: Pharvanchancham
Sorry we did but did not think of religion. We left the happiness of the house but did not leave it with satisfaction. We saved the unhappiness of cold, heat and wind, but we did not get all these suffering from the need for heat, because of poverty. We were engaged in the meditation of wealth day by day, but we did not pay attention to the steps of Shambhu by pranayama action. We did the work like all the Munis but we did not get the fruits like them. 13.
Balirimar Mamkrant Palatirankitam Pat:.
Gathani Shithilayante Treshakka Junket
Wrinkles on the face have been read; the hair of the head has become white by gaining, all the limbs are loose, but the trishna becomes so young. 14.
Yenavamkhandh Svittito Nishi Moon
Teenaiv ch divava bhanuroho routines:.
Spends the sun day by covering the fragment of the sky that span the moon night. What kind of defect is there for both of them? 15.
Necessity
Do not know the separation of yiyogay yatyayamamun
Vrajanjit: freedom fighters:
Self-determination is a way of learning about Shamsukhamantan Vidyadhi.
Whether we will not take subjects for the days of winning, one day they will surely be separated. Then why do not people leave themselves, by their own will? What is the difference between this separation? If they do not leave then they will leave. When he himself leaves the human family, then he will have great sadness and anguish. If man leaves himself, he will be blessed with eternal happiness and peace.
Vivekwakosh Vidyaditya Shamyati Trisha
The culmination of the transmigration process culminates: ..
When wisdom arises, then peace is attained. Trishna becomes calm by attaining peace, but the same increases with the incidence of thirst, which means that trash can never be calm.
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